सोमवार, 28 दिसंबर 2009

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समाचार विश्व मंगल गौ-ग्राम यात्रा

29 दिसंबर को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह-सरकार्यवाह सुरेश सोनी भोपाल में विवेकानन्द केन्द्र के कार्यकर्ता सम्मेलन में देश भर से आए कार्यकर्ताओं का मार्गदर्शन करेंगे।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पूर्व प्रचारक, भाजपा के पूर्व संगठन महासचिव और वरिष्ठ चिंतक-विचारक के.एन.गोविन्दाचार्य मध्यप्रदेश के भोपाल, होशंगाबाद, हरदा, खंडवा और बुरहानपुर के दौरे पद हैं। 29 से 30 दिसंबर के बीच वे भोपाल में पत्रकार और सामाजिक सरोकारों से जुड़े लोगों से मुलाकात करेंगे, वहीं वे हरदा, खंडवा और बुरहानपुर में विश्व मंगल गौ-ग्राम यात्रा को संबोधित करेंगे। 31 दिसंबर को वे राष्ट्रीय स्वाभिमान आंदोलन की बैठक में भाग लेंगे।

अखिल भारतीय स्तर पद आयोजित विश्व मंगल गौ-ग्राम यात्रा 5 जनवरी, 2010 को भोपाल पहुंचेगी।

मंगलवार, 22 दिसंबर 2009

राम मंदिर आंदोलन का शंखनाद अप्रैल में

विश्व हिंदू परिषद के अंतरराष्ट्रीय महासचिव डॉ. प्रवीणभाई तोगडिय़ा ने साफ कहा कि अयोध्या में राम मंदिर बनाने का ब्लू प्रिंट 6 अप्रैल से शुरू हो रहे हरिद्वार के कुंभ मेले में साधु-संतों की अगुआई में तैयार होगा। वे कारसेवा या जो भी फैसला लेंगे, उसी आधार पर आंदोलन चलेगा। इसका नेतृत्व संत करेंगे। किसी नेता को मंच पर भी नहीं चढऩे देंगे। तोगडिय़ा ने कहा कुंभ में 6 अप्रैल को 20 हजार से ज्यादा साधु-संत मौजूद होंगे। विहिप संतों से आग्रह करेगी कि मंदिर आंदोलन का मार्ग प्रशस्त करें। उनकी मंशानुसार ही राममंदिर का संकल्प पूरा किया जाएगा। तोगडिय़ा ने कहा अलगाववाद, जेहाद, घुसपैठिए बांग्लादेशी और सच्चर कमेटी का समाधान इसी रास्ते से गुजरेगा। उन्होंने स्पष्ट किया कि आंदोलन चुनाव या वोटों के लिए नहीं होगा। इसका नेतृत्व साधु-संत ही करेंगे।

मंदिर निर्माण से मिटेगा जेहादी आतंकवादविहिप के हितरक्षक सम्मेलन में गरजे तोगडिय़ाइंदौर, सिटी रिपोर्टर। विश्व हिंदू परिषद के अंतरराष्ट्रीय महासचिव डॉ. प्रवीण भाई तोगडिय़ा ने ऐलान किया कि एक बार फिर राम मंदिर आंदोलन उठेगा। जेहादी आतंकवाद को मिटाने का रास्ता मंदिर निर्माण से ही गुजरेगा। यह लड़ाई कोई पीएम और सीएम बनाने की नहीं, बल्कि अखंड ब्रह्मांड के भगवान राम के मंदिर की है। वे विहिप के हित रक्षक सम्मेलन में गरज रहे थे। उन्होंने कहा कि अगर मो. कासिम से लेकर मो. जिन्ना तक की मंदिर तोडऩे वाली मानसिकता खत्म नहीं की तो देश बंट जाएगा। भारत में अवैध बसे तीन लाख बांग्लादेशियों की विदाई का रास्ता भी मंदिर बनने से ही होगा।वंदे मातरम् का फतवा राष्ट्रद्रोह
डॉ. तोगडिय़ा ने कहा कि एक लाख मौलवियों के सम्मेलन में वंदे मातरम् का फतवा जारी किया गया। यह राष्ट्रद्रोह है। रंगनाथ मिश्र आधुनिक जिन्ना है, जिसने संसद में मुस्लिमों को आरक्षण देने की रपट पेश की है।हर तहसील में जिन्ना की औलादें
उन्होंने कहा अब तो भारत की हर तहसील में जिन्ना की औलादें पैदा हो गई हैं। इंदौर और उज्जैन में सिमी के नाम पर इनकी कोई कमी नहीं है। सम्मेलन में विहिप संयुक्त मंत्री स्वामी विद्यानंदजी ने भी विचार रखे। इस मौके पर अंतरराष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष एस. वेदांतम, संगठन महामंत्री दिनेशचंद्र, संयुक्त महामंत्री स्वामी विद्यानंद, वरिष्ठ सलाहकार मंडल गिरिराज किशोर, मालवा प्रांत अध्यक्ष जड़ावचंद्र जैन, प्रांत मंत्री नारायणजी और प्रशासनिक व्यवस्था व प्रचार-प्रसार प्रमुख मुकेश जैन भी मौजूद थे। स्वास्थ्य खराब होने की वजह से अंतरराष्ट्रीय अध्यक्ष अशोक सिंघल सम्मेलन में नहीं आ पाए। हिंदुत्व के लिए काम करें गडकरी
इंदौर। विहिप के अंतरराष्ट्रीय महासचिव डॉ. प्रवीण भाई तोगडिय़ा ने पत्रकारों से अनौपचारिक चर्चा में कहा कि भाजपा के नए राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गडकरी को हिंदुत्व के लिए काम करना चाहिए। अगर वे ऐसा करते हैं तो करोड़ों हिंदुओं का भरोसा जीत पाएंगे।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ करेगा राष्ट्रीय सुरक्षा पर चिंतन


9-10 मार्च, 2010 में हरिद्वार में होगा अखिल भारतीय राष्ट्र-रक्षा कुंभ

भोपाल। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ देश में सीमाई सुरक्षा के साथ देश की आंतरिक सुरक्षा को लेकर भी चिंतित है। संघ की चिंता समय-समय पर प्रस्तावों, वक्तव्यों और कार्यक्रमों के माध्यम से व्यक्त होती रही है। देश की आंतरिक और बाह्य सुरक्षा केन्द्र और राज्यों की सरकारों के साथ ही आमलोगों की चिंता का विषय बने इस दिशा में कई प्रयास किए जा रहे हैं। संघ की प्रेरणा और पहल से देश के अनेक सुरक्षा विशेषज्ञों, सेना और पुलिस के सेवानिवृत्त अधिकारियों तथा अन्य तकनीकी और विशिष्ट क्षेत्रों के विशेषज्ञों ने ‘फोरम फाॅर इंटीग्रेटेड नेशनल सिक्योरिटी’ (फिन्स) का गठन किया है। अखिल भारतीय स्तर पर गठित इस फोरम को सभी राज्यों में विस्तार दिया जा रहा है।
उल्लेखनीय है कि फिन्स को विस्तार देने और इसे प्रभावी बनाने के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय कार्यकारिणी सदस्य श्री इन्द्रेश कुमार देशभर में प्रवास कर रहे हैं। इसी सिलसिले में वे 21 दिसंबर को भोपाल आए थे। श्री इन्द्रेश कुमार ने 9-10 मार्च, 2010 में प्रस्तावित राष्ट्र रक्षा सम्मेलन के सिलसिले में भोपाल के विशिष्ट लोगों से चर्चा। यह सम्मेलन हरिद्वारा में होना प्रस्तावित है। इस सम्मेलन में देशभर से लगभग सात सौ प्रतिनिधि शामिल होंगे। ये सभी प्रतिनिधि सुरक्षा संबंधी मामलों से जुडे विशेषज्ञ होंगे। इन्द्रेश कुमार भोपाल के सेवानिवृत्त पुलिस, प्रशासन और सेना के लोगों से मिले और घंटो चर्चा की। उन्होंने बताया कि हरिद्वारा में आयोजित इस राष्ट्र रक्षा सम्मेलन में देश की आंतरिक, सीमाई और बाह्य सुरक्षा के विषयों पर विविध आयामों से विस्तृत चर्चा की जायेगी। विभिन्न तकनीकी सत्रों में आयोजित होने वाले इस सम्मेलन में सुरक्षा संबंधी समस्याओं और सरकार तथा सुरक्षा संबंधी एजेंसियों के साथ ही नागरिकों स्तर पर हाने वाली पहल के बारे में सुझाव, योजना और रणनीति संबंधी चर्चा भी होगी।
श्री इन्द्रश कुमार ने चर्चा उपस्थित सभी वरिष्ठ प्रतिभागियों से हरिद्वार में प्रस्तावित राष्ट्ररक्षा सम्मेलन में उपस्थित होने और इस सम्मेलन में अधिकाधिक प्रतिनिधियों की उपस्थिति के लिए सभी से प्रयास करने का आग्रह भी किया। भोपाल की चर्चा में मध्यप्रदेश हाईकोर्ट के पूर्व न्यायाधीश और मानव अधिकार आयोग के अध्यक्ष जस्टिस आर डी शुक्ला, सेवानिवृत्त डीजीपी एन. नटराजन,एचएम जोशी, सुभाषचन्द्र त्रिपाठी, वीपी साहनी, कैप्टन वीपी सिंह, सेवानिवृत्त पुलिस अधिकारी डीएस गिल और जयकृष्ण गौड़ आदि उपस्थित थे। अन्य राज्य की तरह ही मध्यप्रदेश से भी प्रतिनिधियों की सूची तैयार की जायेगी। मध्यप्रदेश के सुरक्षा और रक्षा विशेषज्ञों का भी अच्छी संख्या में प्रतिनिधित्व सुनिश्चित किया जायेगा।

सोमवार, 16 नवंबर 2009

‘हरित तकनीक द्वारा अक्षम विकास‘ पर केद्रित होगा
द्वितीय भारतीय विज्ञान सम्मेलन
3 दिसम्बर, 2009 से इंदौर में


भोपाल (म.प्र) विभिन्न भारतीय भाषाओं के माध्यम से विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के प्रकीर्णन हेतु आयोजित भारतीय विज्ञान सम्मेलन का द्वितीय आयोजन इंदौर में 3 दिसम्बर से होने जा रहा है। जो हरित तकनीक द्वारा अक्षम विकास पर केंद्रित होगा ।
सम्मेलन का आयोजन आमजन के बीच लाभार्थ विज्ञान आंदोलन ‘‘विज्ञान भारती‘‘ म.प्र. विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद् और देवी अहिल्या विश्वविद्यालय भोपाल द्वारा किया जा रहा है। प्रथम भारतीय विज्ञान सम्मेलन का आयोजन भोपाल में किया गया था जिसमें प्रख्यात वैज्ञानिक एवं पूर्व राष्ट्रपति डा. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम ने भी भाग लिया था ।
ग्लोबल वार्मिग की विश्व व्यापी समस्या की भारतीय दृष्टि से समाधान प्रस्तुत करने के लिए द्वितीय भारतीय विज्ञान सम्मेलन का विषय हरित तकनीक द्वारा अक्षम विकास है ।
ज्ञात है कि भारतीय विज्ञान सम्मेलन एक ऐसा प्रयास है जिसमें समस्त भारतीय भाषाओं में शोध पत्रों को प्रस्तुत किया जा सकता है। इस सम्मेलन की मूल अवधारणा है कि भारतीय भाषाओं के उपयोग से ही विज्ञान को भारतीय समाज के लिए कल्याणकारी बनाया जा सकता है।
सम्मेलन के सफल आयोजन हेतु मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चैहान द्वारा तैयारियों की समीक्षा की गई । श्री चैहान ने विज्ञान सम्मेलन को गरिमा तथा उद्देश्य परकता के साथ आयोजित करने पर बल दिया ।
इस वर्ष सम्मेलन के अध्यक्ष देश के परम कम्प्युटर के जनक डा. विजय भाटकर होंगे ं साथ ही पूर्व राष्ट्रपति ए.पी.जे. कलाम इसरो के चैयरमैन प्रो. जी माधवन नायर, सीएसआईआर के पूर्व महानिदेशक श्री मशालकर जी, स्वामीनायन, परमाणु उर्जा आयोग के अध्यक्ष अनिल काकोड़कर भी सम्मिलित होंगे ।
इस अवसर पर 27 नवम्बर से देवी अहिल्या परिसर में एक अखिल भारतीय प्रदर्शनी का भी आयोजन किया जाएगा । जिसमें म0प्र0 शासन सहित भारत सरकार के प्रतिष्ठित विज्ञान संस्थानों की उपलब्धियों का चित्रण होगा ।
द्वितीय भारतीय विज्ञान सम्मेलन,2009 प्रो. (डा.) जे.सी.बोस की एक सौ पचासवी जन्म शताब्दी को समर्पित है। भारतीय विज्ञान उन वैज्ञानिक सिद्धान्तों पर आधारित है जो जीवन के प्रत्येक मार्ग पर वातावरण को बिना किसी क्षति के आगे बढ़ने का समाधान प्रस्तुत करता है। वर्तमान में पाश्चात्य जगत में आ रही नवीन उर्जा सम्बन्धी धारणाएं हमारे पुरातन ज्ञान की सार्थकता को प्रमाणित कर रही है ।
हरित तकनीकी द्वारा राष्ट्र और उनके समाजों की सामाजिक, आर्थिक विभिन्नताओं, शहरीकरण, ग्रामीण निर्धनता पर्यावरणीय क्षय और विषय विकास की समस्याओं को हल किया जा सकता है।
प्रज्ञा प्रवाह द्वारा वंदेमातरम् पर विमर्श
मुस्लिम देशो के राष्ट्रगीत में मातृवंदना, फिर वंदेमातरम् गैर इस्लामी कैसे!

भोपाल। जब विश्व के अधिकांश मुस्लिम देशों के राष्ट्रगीतों में मातृभूमि प्रतीकों का चित्रण है फिर राष्ट्रगान वंदेमातरम् को गैर इस्लामी कैसे कहा जा सकता है। मुसलमानों द्वारा वंदेमातरम् गायन का विरोध अज्ञानता का परिचायक है। यह विचार मनोज श्रीवास्तव, आयुक्त जनसम्पर्क मध्यप्रदेश शासन ने ‘प्रज्ञा प्रवाह‘ संस्थान द्वारा वंदेमातरम् पर आयोजित परिचर्चा में व्यक्त किया।
वन्दे मातरम् - गीत के साहित्येतिहासिक महत्व का अध्ययन करने और इसी विषय पर पुस्तिका लिखने वाले श्री श्रीवास्तव ने विस्तार से चर्चा करते हुए कहा कि वंदेमातरम् का विरोध करने वाले सबसे पहले इसका अध्ययन करें। उन्होंने इसे नापसंद करने वाले राजेन्द्र यादव, ए.जी.नूरानी, शम्सुल इस्लाम, अम्बरीश आदि के वक्तव्यों का उल्लेख करते हुए कहा कि यह राष्ट्रगान सांप्रदायिकता कट्टरपन से परे मातृभूमि के प्रति समर्पित भावना का प्रतीक है और इस संवैधानिक मान्यता मिली है।
वरिष्ठ समाजसेवी लज्जाशंकर हरदेनिया ने भी वंदेमातरम् की ऐतिहासिक और संवैधानिक भूमिका को स्पष्ट करते हुए कहा कि जब भी संवैधानिक और पारंपरिक मान्यताओं के बीच टकराव हो तो हमें संवैधानिक दायित्वों को पालन करना चाहिए। इसी से आपसी भाईचारा और राष्ट्रीय एकता की भावना मजबूत हो सकेगी। उन्होंने जमाएते उलेमा हिंद द्वारा देवबंद में जारी वंदेमातरम् के फतवे के साथ ही उलेमाओं के कट्टरपंथी अन्य प्रस्तावों की भी आलोचना की । म.प्र. अल्पसंख्यक आयोग के पूर्व अध्यक्ष मो. अनवर खान ने उलेमाओं द्वारा वंदेमातरम् के खिलाफ जारी फतवे को ‘सियासी चाल‘ बताते हुए कहा कि जब उल्लमा इकबाल ने वंदेमातरम् का विरोध नहीं किया फिर आजकल के फिरकापरस्ती ताकतों द्वारा इसका विरोध गैर वाजिब है। वैसे भी इस फतवे की कोई शरियत हैसियत नहीं है और न ही यह कोई खुदा का हुक्म है जिसे माना जाए। उन्होंने मुस्लिम समाज को देश ओर इसकी संस्कृति के प्रति दायित्वपूर्ण रवैया अपनाने का आहवान किया। देवबंद से तालीम प्राप्त भोपाल के मौलाना अख्तर हाशमी ने भी इस तरह के फतवों को कोई अहमियत न दिए जाने की पुरजोर वकालत की । उन्होंने कहा कि मुझे और मेरे जैसे लाखों मुसलमानों को इस बात पर फक्र है कि वो पूरी आजादी और मजहबी उसूलों के साथ इस देश में रह रहे हैं। श्री हाशमी ने कहा कि उलेमा कौम को प्रगति के रास्ते पर ले जाने वाले कदम उठाएं न कि गैर जरूरी मुद्दों पर विवाद और फसाद वाले कदम।
प्रख्यात चिंतक और धर्मपाल शोधपीठ के निदेशक प्रो. रामेश्वर मिश्र ‘पंकज‘ ने देवबंद में वंदेमातरम के खिलाफ जारी फतवे को गहरी सांस्कृतिक कशमकश से उपजी सोच बताते हुए कहा कि ऐसे मुद्दो पर फतवे जारी करने की बजाय मुस्लिम संवाद का रास्ता अपनाए जिससे सही रास्ता निकल सके। विमर्श का आयोजन स्वराज संस्थान के सभाकक्ष में ‘प्रज्ञा प्रवाह‘ द्वारा किया गया था। प्रज्ञा प्रवाह के प्रांत संयोज बालकृष्ण दवे ने उपस्थिति सुधीजन के प्रति धन्यवाद ज्ञापित किया। कार्यक्रम का संचालन प्रज्ञा प्रवाह के सह-संयोजक दीपक शर्मा ने किया। कार्यक्रम में वरिष्ठ साहित्यकार और मध्यप्रदेश साहित्य अकादमी के निदेशक डाॅ. देवेन्द्र दीपक, अधिवक्ता परिषद् के ब्रजकिशोर सांघी, मध्यप्रदेश राष्ट्रीय एकता परिषद् के रमेश शर्मा, संस्कार भारती के कामतानाथ वैशम्पायन, राष्ट्र सेविका समिति की सुखप्रीत कौर सहित काफी संख्या में प्रबुद्ध नागरिक उपस्थित थे।

सोमवार, 12 अक्टूबर 2009

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ
अखिल भारतीय कार्यकारी मंडल, युगाब्द 5111
दिनांक: 9,10,11 अक्टूबर, 2009
राजगृह, नालन्दा (बिहार)

प्रस्ताव क्र॰: 1
सीमा सुरक्षा सुदृढ़ करें

अखिल भारतीय कार्यकारी मंडल भारत - तिब्बत (चीन अधिकृत) सीमा पर हुए हाल के घटनाक्रम पर गहरी चिंता व्यक्त करता है। विस्तारवादी चीन द्वारा हमारे भू-भाग पर कब्जा जमाने के निरंतर प्रयासों को कई समाचार माध्यमों ने उजागर किया है और अपने सुरक्षा विभाग के जिम्मेवार अधिकारियों ने भी इसकी पुष्टि की है।
अकेले गत वर्ष में ही इन रपटों ने चीन की ‘पीपुल्स लिबरेशन आर्मी’ द्वारा नियंत्रण रेखा के
270 उल्लंघन और ‘आक्रामक सीमा चैकसी’ की 2285 घटनाएँ होने की पुष्टि की है। यह हमारी राजनीतिक व्यवस्था पर दुःखद टिप्पणी है कि हमारे भू-भाग के बारे में विरोधियों की कुटिल योजनाओं के प्रति देश की जनता को सचेत करने के स्थान पर कानूनी कार्यवाही द्वारा मीडिया के स्वरों को दबाने का प्रयास हुआ है और आसन्न खतरे को निर्लज्जतापूर्वक कम दिखाने का भी प्रयास हुआ है। चीन की आक्रामक गतिविधियों के विरोध में अपनी तैयारी के विषय में हमारे नेताओं द्वारा दिये जा रहे पराभूत मनोवृत्ति वाले वक्तव्य अत्यन्त निराशाजनक एवं मनोबल गिराने वाले हैं।
यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि हमारे आस-पास के देशों के आक्रामक व्यवहार के प्रति हमारी प्रतिक्रिया सदैव ढीली-ढाली रहती है। परम श्रद्धेय दलाई लामा को शरण देने के ऐतिहासिक निर्णय को छोड़ दें तो, तिब्बत के प्रश्न पर हमने निरंतर गलतियाँ की हैं और अंततः सार्वभौम व स्वतंत्र तिब्बत पर चीनी कब्जे को मान्यता ही दे दी है। चीन ने 50 के दशक में लद्दाख के अक्साई चिन पर कब्जा जमा लिया। हमारे अन्य भी भू-भाग हड़पने के चीन के षड्यंत्र के परिणामस्वरूप 1987 में सुंदोरांग चू घाटी के विषय में हमें अपमानजनक समझौता करना पड़ा। हमारी कमजोरी का लाभ उठाकर अब तो चीन ने पूरे अरुणाचल प्रदेश पर ही अपना दावा करना प्रारम्भ कर दिया है।
अ.भा.का.मं. का मानना है कि इस प्रकार के आक्रमणकारी रवैये पर भारत सरकार की प्रतिक्रिया सर्वथा अपर्याप्त रही है। कार्यकारी मंडल सरकार से आवाहन करता है कि भारत-तिब्बत सीमा को और साथ ही साथ समुद्री सीमा, भारत-पाक एवं भारत-बांग्लादेश सीमा को भी सुदृढ़ करने के लिए तुरन्त कदम उठाए। चीन द्वारा सीमा के उस पार भारी सैन्य बल का एकत्रीकरण और ढाँचागत व्यवस्थाओं के निर्माण को देखते हुए हमें भारत-तिब्बत सीमा पर अपने सैन्य बल की प्रत्युत्तर क्षमता को और अधिक बढ़ाने की आवश्यकता है।
कूटनीतिक संवाद, घेरना और हमारे शत्रुओं को प्रोत्साहन देना - इन तीन बातों का भारत को परेशान करने के लिए चीन व्यूहात्मक शस्त्र के रूप में प्रयोग करता है। दक्षिण म्यांमा के
कोको द्वीप में स्थित उनकी गश्ती चैकी को उन्होंने पूर्णरूपेण सेना चैकी के रूप में विकसित कर लिया है। श्रीलंका में चीन एक वाणिज्य बंदरगाह का निर्माण कर रहा है जबकि पाकिस्तान के सिंध प्रांत में उसके द्वारा बनाया गया ग्वादर सैनिक बंदरगाह कामकाज के लिये तैयार हो चुका है। एक ओर वह भारत-तिब्बत सीमा को सैनिकी उŸोजना के लिये उपयोग में ला रहा है तो दूसरी ओर पूर्वोŸार भारत में स्थित आतंकवादी और राष्ट्रविरोधी तत्वों की मदद करने के लिए भारत-म्यांमा सीमा का दुरुपयोग कर रहा है। वह भारत को तोड़ने की बात तक करने लगा है।
कार्यकारी मंडल को खेद के साथ कहना पड़ता है कि सरकार के इस ढुलमुल रवैये
की कीमत भारत को न केवल सीमा पर अपितु कूटनीतिक मोर्चे पर भी चुकानी पड़ रही है।
‘ एशियन डेवलपमेंट बैंक ’ में अरुणाचल प्रदेश का मुद्दा उठाकर उस राज्य के विकास के लिए ऋण प्राप्त करने के भारत के प्रयासों को बाधित करने में चीन सफल हुआ है। चीन ने परमाणु आपूर्ति समूह के देशों को भारत के विरुद्ध लगे प्रतिबंधों को हटाने से रोकने का असफल प्रयास भी किया है।
अ.भा.का.मं. सरकार को स्मरण दिलाना चाहता है कि उसे संसद द्वारा 14 नवम्बर, 1962 को पारित सर्वसम्मत प्रस्ताव की भावना के प्रकाश में कदम उठाना चाहिए, जिसमें चीन द्वारा हड़पी गई सारी भूमि वापस प्राप्त करने की बात स्पष्ट रूप से कही गई थी। भारत सरकार को चीन से स्पष्ट रूप से कह देना चाहिए कि वह पश्चिमी क्षेत्र में हड़पे गये भू-भाग को वापस करे और अन्य क्षेत्रों के संदर्भ में कोई दावा पेश न करे। चीन से कहा जाए कि वह मैकमोहन रेखा को भारत की अंतर्राष्ट्रीय सीमा के रूप में उसी तरह मान्यता दे जिस तरह उसने चीन-म्यांमा सीमा पर उसे दी है।
यह बात चिन्ताजनक है कि अरुणाचल प्रदेश व कश्मीर के नागरिकों को चीन ‘पेपर वीसा’ दे रहा है। इस उकसाने वाली कारवाई से चीन दिखाना चाहता है कि अरुणाचल प्रदेश व कश्मीर को वह भारत के अविभाज्य अंग के रूप में स्वीकार नहीं करता। कार्यकारी मंडल माँग करता है कि सरकार आव्रजन अधिकारियों को आदेश दे कि, लोगों को देश से बाहर जाने के लिये इस प्रकार के ‘पेपर वीसा’ के प्रयोग पर तत्काल प्रतिबंध लगाये। आक्रामक दौत्य नीति के साथ इस प्रकार के दृढ़ कदम ही चीन के संबंध में अनुकूल परिणाम दे सकते हैं।
भारत-पाक मोर्चे पर भी इसी तरह की चिंताओं को कार्यकारी मंडल रेखांकित करना चाहता है। विशेषकर 9 जुलाई 2009 का भारत और पाक के प्रधानमंत्रियों का शर्म-अल-शेख का
संयुक्त वक्तव्य देश को स्तब्ध कर देने वाला है। अनेक विशेषज्ञ और विभिन्न राजनीतिक दलो के नेताओं ने इस वक्तव्य की दौत्य संबंधी भारी भूलों को उजागर किया है, जैसे - बलूचिस्तान मुद्दे को उसमें लाना और पाकिस्तान द्वारा सीमा पार आतंकवाद को जारी रखने पर भी उससे वात्र्ता पुनः प्रारम्भ करने की सहमति व्यक्त करना।
अ.भा.का.मं. माँग करता है कि पाकिस्तान के संबंध में भी संसद के 22 फरवरी 1994 के सर्वसम्मत प्रस्ताव की भावना का सरकार पालन करे, जिसमें कहा गया है कि पाक अधिकृत कश्मीर को भारत में वापस लाना ही एक मात्र मुद्दा है।
कार्यकारी मंडल हमारी सीमाओं की रक्षा में लगे बहादुर जवानों एवं अधिकारियों के शौर्यपूर्ण कृत्यों का अभिनंदन करता है और देशवासियों से आवाहन करता है कि वे सदैव सतर्क रह कर सरकार को अपनी भौगोलिक अखंडता एवं स्वाभिमान की रक्षा करने के लिए बाध्य करें ।

मध्यप्रदेश में एनजीओ पंचायत के मायने

अनिल सौमित्र
12 अक्टूबर को प्रदेश की राजधानी भोपाल में एनजीओ पंचायत आहूत की गई है। पहले यह पंचायत 2 अक्टूबर को गांधी जयंती के दिन किया जाना था। सरकार ने गांधीजी से संबंधित दिवस पर एनजीओ पंचायत कर कुछ विशेष संदेश देने की सोची होगी। लेकिन किन्ही कारणों से यह पंचायत अब 12 अक्टूबर को की जा रही है। दिवस चाहे कोई भी हो, इस पंचायत का पूर्व नियोजित कोई उद्देश्य अवश्य होगा। प्रदेश के मुखिया शिवराज सिंह चैहान ने ‘‘स्वर्णिम मध्यप्रदेश’’ का नारा दिया है। सरकार ने 2013 तक इसे पूरा करने का लक्ष्य रखा है। उल्लेखनीय है कि सिर्फ भाजपा सरकार ही नहीं, संपूर्ण भाजपा और कहें तो संपूर्ण राष्ट्रवादी शक्तियों की यही अभीप्सा है - परम् वैभवम् नेतुमेतत् स्वराष्ट्रम्’ अर्थात् अपने देश को परम वैभव के शिखर तक ले जाना है। राष्ट्र के परम वैभव का सपना तभी सकार होगा जब एक-एक प्रदेश परम् वैभव की ओर अग्रसर होगा।
स्वप्न का संबंध स्वप्नद्रष्ट्रा से भी है। स्वप्न तो कोई भी देख सकता है, लेकिन उसे साकार वहीं कर सकता है जो कुशल योजनाकार और रणनीतिकार हो। स्वप्न को नीति, योजना और रणनीति दिए बिना साकार करना संभव नहीं है। आजादी के बाद अनेक पार्टियों और सरकारों ने सुखद स्वप्न देखे। लेकिन ये स्वप्न नारों में तब्दिल होकर रह गए। क्या भाजपा सरकार के मुखिया शिवराज का स्वप्न भी नारे में तब्दील होकर रह जायेगा! अन्य पार्टियों और सरकारों की तुलना में भाजपा और भाजपा सरकारों में थोड़ा ही सही, लेकिन फर्क तो जरूर है। यही फर्क उसे स्वप्न को साकार करने का जज्बा, उर्जा और कौशल देता है। भाजपा के पास आज भी प्रशिक्षित कार्यकर्ताओं की बड़ी फौज है। सैकड़ों समविचारी संगठनों का सहयोग और उर्जा है। अगर शिवराज सरकार ने पार्टी के कार्यकर्ताओं और समविचारी संगठनों की उर्जा और कौशल का उपयोग किया तो स्वर्णिम मध्यप्रदेश का स्वप्न साकार होने में देर नहीं लगेगी।
शिवराज सरकार ने अपने पिछले कार्यकाल में भी विभिन्न पंचायतों के माध्यम से जनमत का आगाज किया था। इस कार्यकाल में भी प्रदेश के मुखिया ने पंचों को मंच देने का सिलसिला जारी रखा है। वे जानते हैं पंच ही परमेश्वर है। भाजपा सरकार हकदारों को सुनना चाहती है, जिनका हक है उनसे दो बातें करना चाहती है। मुख्यमंत्री की चैपाल में पंचायत का आयोजन सबको सुनने का एक उपक्रम है। लेकिन सुने हुए को गुना जाए और गुने हुए को वापस सब तक पहुचाया जाए, यह जनता-जनार्दन की अपेक्षा है। महिला पंचायत, किसान पंचायत, जनजाति (आदिवासी) पंचायत, वन पंचायत, अनुसूचित जाति पंचायत, कोटवार पंचायत, खेल पंचायत, लघु उद्योग पंचायत तथा कारीगर-शिल्पी पंचायत, किसान महापंचायत, निःशक्तजन पंचायत, मछुआ पंचायत, स्व-सहायता समूह पंचायत, हम्माल-तुलावट पंचायत और रिक्शा-ठेला चालक पंचायत के बाद इस एनजीओ पंचायत के अपने मायने हैं। इसके बाद कामकाजी महिलाओं की पंचायत भी की जा रही है।
यह पंचायत पूर्व में आयोजित पंचायतों से कई मायनों में भिन्न है। यहां यह उल्लेख करना आवश्यक है कि मध्यप्रदेश ही नहीं, देश और दुनियाभर में सार्वजनिक और निजी (सेक्टर) क्षेत्र की तरह एनजीओ सेक्टर का भी विस्तार हुआ है। पूर्व में आयोजित विभिन्न पंचायतों के बरक्स, राजनीति और वैचारिक क्षेत्र में एनजीओ सेक्टर का उन सबसे अधिक दखल और प्रभाव है। प्रदेश ही नहीं, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर एनजीओ की अलग किस्म की राजनीति है। एनजीओ के अनेक समूहों का न सिर्फ सामाजिक-आर्थिक क्षेत्र में दखल है, बल्कि वे देश और दुनिया की राजनीति को भी बड़े पैमाने पर प्रभावित करते हैं। आज कुकुरमुत्ते की तरह पनप रहे पनप रहे एनजीओ की चर्चा छोड़ दे ंतो मध्यप्रदेश और देश के अन्य हिस्सों में स्थापित एनजीओ अपनी-अपनी वैचारिक पृष्ठभूमि के साथ अपने उद्देश्यों को अंजाम देने में लगे हैं। अमेरिका जैसे पूंजीवादी देशों से लेकर सोवियत रूस तक एनजीओ के माध्यम से अपने नियोजित उद्देश्यों को पूरा करते रहे हैं। अनेक सरकारों की खुफिया एजेंसियां भी अपनी विदेश नीति को क्रियान्वित करने में एनजीओ को माध्यम की तरह इस्तेमाल करते रहे हैं। लगभग सभी बड़ी रानीतिक पार्टियों ने एनजीओ प्रकोष्ठ की स्थापना कर रखी है। लेकिन अभी इस क्षेत्र में वाम राजनीति का एकछत्र कब्जा है। शिक्षा, शोध, मानवाधिकार, गरीबी, सूचना और ऐसे लगभग सभी क्षेत्रों में वाम राजनीति ने एनजीओ के माध्यम से अपना दखल और रूतबा बनाए रखा है। आज तक देशभर में माक्र्सवाद, लेनिनवाद, माओवाद और कुल मिलाकर वाम (कम्युनिस्ट) राजनीति को स्थापित करने, उसे विस्तार देने में एनजीओ को एक उपकरण की तरह इस्तेमाल किया जाता रहा है। भारत में एनजीओ सेक्टर अपेक्षाकृत नया और कच्चा है। इस लिए अभी से इस दिशा में जागरुक, सचेत और सावधानी पूर्वक पहल व प्रयोग की दरकार है।
मध्यप्रदेश में जन अभियान परिषद् के रूप में एक अभिनव प्रयोग हुआ है। स्वैच्छिक संस्थाओं को संस्कार और प्रशिक्षण के माध्यम से सशक्त करने का प्रयास भले ही दिग्विजय सिंह के कार्यकाल में शुरु हुआ, लकिन तब तक यह सुप्तावस्था में ही था। भाजपा सरकार ने पहली बार इस दिशा में एक सार्थक और सकारात्मक पहल की। भारत सरकार का योजना विभाग, योजना आयोग के माध्यम से इस दिशा में सक्रिय प्रयोग कर रहा है। इस प्रयोग के परिणाम भी आने लगे हैं। मध्यप्रदेश सरकार की पहल को और अधिक सक्रियता की दरकार है। जन अभियान परिषद् को कार्य करते हुए दशक बीत गए, लेकिन अभी तक कोई उल्लेखनीय परिणाम नहीं दिखा। अच्छे बजट और भारी-भरकम अमले के बावजूद जन अभियान परिषद् का कार्य-निष्पादन संतोषजनक नहीं है। स्वैच्छिक संस्थाओं और सरकार के बीच नीति, योजना और क्रियान्वयन के स्तर पर अभी बहुत कुछ किया जाना है। संभव है 12 अक्टूबर को आयोजित इस एनजीओ पंचायत में किसी एनजीओ नीति के प्रारूप की घोषणा हो। मुख्यमंत्री चाहें तो जन अभियान परिषद् के बैनर तले एक नीति-निर्माण समिति का गठन भी कर सकते हैं। ग्राम पंचायत से लेकर प्रदेश स्तर तक न सिर्फ विकास योजनाओं को अमलीजामा पहनाने में, बल्कि आम जनता तक सुशासन सुनिश्चित करने में भी एनजीओ की भूमिका तय की जा सकती है।
जब कभी विकास की बात होती है तो उसके साथ विभिन्न ‘‘सिद्धांतों-वादों’’ की चर्चा भी होती है। विकास का चाहे पूंजीवादी, समाजवादी या माक्र्सवादी सिद्धांत हो या हिन्दुत्ववादी सिद्धांत, सबका लक्ष्य व्यक्ति को सुखी और सम्पन्न बनाना है। हिन्दुत्ववादी चिन्तन विशेष रूप से सभी प्रकार के संघर्षों का निषेध करते हुए समाज के अंतिम व्यक्ति को प्राथमिकता देता है। यह विविधताओं और श्रेष्ठताओं को सहज स्वीकार करता है। गांधी, लोहिया और दीनदयाल उपाध्याय का विकास चिन्तन इसी हिन्दुत्व से प्रेरित और पोषित है। भारतीय समाज ने इसे सहज स्वीकार किया है। लेकिन माक्र्सवादी, माओवादी और लेनिनवादी अपने विकास सिद्धांतों को जबरन थोपने की कोशिश कर रहे हैं, जो न माने उसे हथियारों का भय दिखाने और भयभीत न होने वालों को खत्म कर देने का खूनी खेल हैं। भाजपा और भाजपा सरकार के मुखिया गाहे-बगाहे हिन्दुत्व, एकात्ममानववाद, अन्त्योदय और सर्वोदय की चर्चा करते ही रहे हैं। सर्वे भवन्तु सुखिनः की कल्पना साकार करने में प्रदेश के हजारों स्वैच्छिक संगठन समाज के प्रतिनिधि के तौर पर सरकार की मदद के लिए आगे आ सकते हैं। बशर्ते वे प्रशिक्षित और संस्कारित किए जाएं। प्रदेश के स्थापित एनजीओ स्वयं के प्रशिक्षण और संस्कार का विरोध भी कर सकते हैं। उन्हें अपने प्रशिक्षण और संस्कार का गुमान भी है। सरकार का राजधर्म तो यही है कि नये-पुराने, छोटे-बड़े सभी को साथ लेकर चले। वैचारिक अंतरद्र्वन्दों के बीच आपसी समन्वय स्थापित हो। प्रदेश की स्वैच्छिक संस्थाएं अपने शासकीय मुखिया के साथ कदम मिलाने, साथ चलने की चेष्टा करें तो ही बीमारू मध्यप्रदेश, स्वस्थ होकर स्वर्णिम प्रदेश बन सकेगा। यही स्वर्णिम प्रदेश, परम वैभवशाली राष्ट्र के लिए देश का नेतृत्व कर सकेगा। स्वर्णिम मध्यप्रदेश की चाह, कांग्रेस के गरीबी हटाओ और अनुशासन लाओ के नारे की तरह न हो जाए, इसलिए प्रदेश के विकास के प्रति अटूट प्रतिबद्धता विकसित करने की जरूरत है। इस दृष्टि से निश्चित ही इस एनजीओ पंचायत के मायने हैं। यह पंचायत इस आर्षवाणी की साक्षी बनेगी -
समानो मन्त्रः समितिः समानी
समानं मनः सहिचित्तमेषाम्।
समानं मन्त्रमिभिमन्त्रये वः
समानने दो हविषा जुहोमि।।
अर्थात् मिलकर कार्य करने वालों का मन्त्र समान होता है, ये परस्पर मंत्रणा करके एक निर्णय पर पहंुचते हैं, चित्तसहित इनका मन समान होता है। मैं तुम्हे मिलकर समान निष्कर्ष पर पहंुचने की प्रेरणा देता हूं। यह एनजीओ पंचायत स्वर्णिम मध्यप्रदेश के लिए प्रदेश के मुखिया द्वारा समन्वय और उर्जा संचय का एक आह्वान भी है।

(लेखक सामाजिक कार्यकर्ता हैं।)
ई-31, 45 बंगले, भोपाल

शुक्रवार, 9 अक्टूबर 2009

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ

ऊँ
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ
’’समिधा‘‘ संघ कार्यालय, ई-2/187, महावीर नगर, भोपाल-462016
दूरभाष-07ःः7241004, फैक्स-07ःः-2421055, अणुडाक-ोेनकंतेींद2009/तमकपििउंपसण्बवउ

कुप्. सी. सुदर्षन

तिथि: कार्तिक कृष्ण 2 ईसवी दिनांक 06.10.2009
कलियुग-5111 पटना, बिहार

आज पटना पहुंचते ही यह अति दुःखद समाचार मिला कि हमारे वरिष्ठ प्रचारक श्री प्यारेलाल जी खण्डेलवाल हम सबको छोड़कर परमधाम सिधार गये। सन् 1948 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर लगे प्रथम प्रतिबंध के समय संघ कार्य पर आए संकट को दूर करने और आगे उसकी अभिवृद्धि के लिए जिन प्रचारकों ने अपना जीवन लगाने का संकल्प किया उनमें श्री प्यारेलाल जी भी एक थे। इंदौर नगर के प्रचारक के रुप में कार्यारम्भ कर उन्होंने जिला, विभाग ऐसे अनेक दायित्व सम्हाले और सन् 1964 में जनसंघ की मध्यप्रदेष इकाई में उनकी योग्यता हुई। तब से कुछ वर्षों पूर्व तक उन्होंने राजनैतिक क्षेत्र में अपनी सेवाएं समर्पित की।
पहल जनसंघ और बाद में आपातकाल के पश्चात् भारतीय जनता पार्टी में न एक कर्मठ, निरलस, अकुतोभय एवं कुषल संगठन के रुप में विख्यात रहे। आज की मूल्यविहीन राजनीति में जिन कुछ लोगों ने आचरण का आदर्ष प्रस्तुत किया उनमें श्री प्यारेलाल जी भी एक रहे। मूल्यों से उन्होंने कभी समझौता नहीं किया। सन् 1989 मे लोकसभा सदस्य के रुप में निर्वाचित होकर ढ़ाई वर्ष तक लोकसभा में तथा सन् 1998 से लेकर जब तक राज्यसभा में उन्होंने अपना अमूल्य योगदान दिया।
गत तीन वर्षों से वे बीमार चल रहे थे। बीच में अ.भा.आयुर्विज्ञान संस्थान में भर्ती रहे तथा हम लोगों में से अनेक उनसे मिलने भी गये थे। अपनी प्रवास इच्छा-षक्ति के बल पर वे रोगों से जूझते रहे। शारीरिक दुर्बलता के बाद भी उन्हें कार्य की सतत चिन्ता रहा करती थी, यहां तक कि अस्वस्थ होते हुये भी 29 जुलाई 2009 केा दिल्ली में स्वयंसेवक सांसदों के श्री गुरुदक्षिणा उत्सव के कार्यक्रम में वे सम्मिलित हुये। इतने वर्षों के उनके सार्वजनिक जीवन में समाज का जो बहुत बड़ा वर्ग जो उनके सम्पर्क में आया था उन सबका शोक संतप्त होना स्वाभाविक है। पर नियति के आगे किसी का बस नहीं चलता और वे हम सबको छोड़ गये।
दिनांक 07 अक्टूबर से राजगीर में प्रारंभ हो रही अ.भा.कार्यकारी मंडल की बैठक के पूर्व संघ के केन्द्रीय पदाधिकारियों की यह बैठक श्री प्यारेलालजी के बड़े भाई श्री गुलाबचन्द खण्डेलवाल, उनके परिवारजनों तथा स्नेहीजनों एवं सहयोगियों के शोक में सहभागी होतु हुये स्व. श्री प्यारेलालजी को अश्रुपूर्ण श्रद्धाजंलि अर्पित करती हैं।
ऊँ पूर्णमदःपूर्णमिदं पूर्णात् पूर्णमुदच्यते।
पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावषिष्यते।
ऊँ शांतिः शांतिः शांतिः
अपठित हस्ताक्षर सहित केन्द्रीय पदाधिकारियों की सूची -
सरसंघचालक - पू. श्री मोहनराव भागवत
सरकार्यवाह - मा. श्री भैयाजी जोषी
सह सरकार्यवाह - मा. सुरेषजी सोनी
सह सरकार्यवाह - मा. दत्तात्रय होसबाले
अ.भा. बौद्धिक प्रमुख - मा. भागय्या जी
अ.भा. शारीरिक प्रमुख - मा. कण्णन जी
अ.भा. प्रचार प्रमुख - मा. मनमोहनजी
अ.भा. सह सेवा प्रमुख - मा. सुहास हिरेमठ
अ.भा. प्रचारक प्रमुख - मा. मदनदासजी
अ.भा. सह प्रचारक प्रमुख - मा. श्रीकृष्णजी मोतलग
अ.भा. कार्यकारिणी सदस्य - मा. इंदे्रषजी
निवृत्त सरसंघचालक - मा. सुदर्षनजी
अ.भा. कार्यकारिणी सदस्य - मा. मधुभाई कुलकर्णी

गोवंश के बिना विश्व मंगल की कामना नहीं

गोवंश के बिना विश्व मंगल की कामना नहीं
नादौन 8 october : विश्व मंगल गो ग्राम यात्रा के नादौन स्थित श्रीराम लीला मैदान में वीरवार सुबह नौ बजे पहुंचते ही पंडाल वंदे गो मातरम् के जयघोष से गूंज उठा।समारोह में भारत माता मंदिर हरिद्वार से यात्रा के साथ आए अखिलेश्वरानंद महाराज ने जनसमूह को संबोधित करते कहा कि जो देश आदिकाल से ही गोमाता का पुजारी था। वहां आज गोवंश की निर्मम हत्या की जा रही है जिसके लिए देश के कर्णधार शासकों की नीतियां जिम्मेवार हैं। उन्होंने कहा कि ऐसे शासकों को न तो गोमाता की महिमा का पता है और न ही परलोक का ज्ञान है। उन्होंने कहा कि जब हमारे बुजुर्ग बूढ़े हो जाते हैं तो क्या हम उनके प्रति श्रद्धा का भाव नहीं रखते हैं। उन्होंने कहा कि संपूर्ण गोवंश देश के विकास में काम आता है और इसके बिना भारत तो क्या विश्व के मंगल की कामना करना भी मुश्किल है।

उन्होंने गाय माता के प्रति वचनबद्धता के संकल्प से लोगों को प्रतिज्ञा भी दिलवाई। सभी लोगों से गाय को माता मानकर उसे सम्मान देने का आह्वान किया गया। समारोह यात्रा के प्रदेशाध्यक्ष महंत सूर्यनाथ ने कहा कि माता नाम ही ऐसा है जिसमें करुणा बसी है। सूर्यनाथ ने कहा कि जब-जब भी गोवंश का सम्मान हुआ भारत सोने की चिड़िया कहलाया।

इस अवसर पर दंगड़ी मठ के संत श्रीमद भक्ति प्रसाद विष्णु महाराज भी उपस्थित थे। समारोह में गोशाला भड़ाली भगोर के संस्थापक सुखदेव शास्त्री तथा भदरूं गोशाला के संयोजक पाधा मंशा राम को स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित किया गया।

इस अवसर पर श्रीनिवास मूर्ति, कैलाश, वेद प्रकाश, विवेक, सोहन सिंह, विजय अग्निहोत्री, राजकुमार शर्मा, किशोर शर्मा, सुभाष, अजय सौंधी, जसवीर सिंह, दिनेश, प्रमोद कपिल, त्रिभुवन सिंह आदि उपस्थित थे।


गाय में समाहित हैं सभी शास्त्र – स्वामी अखिलेश्वरानंद
पठाणकोट, अक्तूबर ७ – गाय भारतीय समाज – जीवन के सभी पहलुओं को स्पर्श और प्रभावित करती है । गाय में अर्थशास्त्र, समाजशास्त्र, चिकित्साशास्त्र का समावेश है । यह कहना है स्वामी अखिलेश्वरानंद का । स्वामी जी विश्व मंगल गो ग्राम यात्रा के स्वागत के लिए पठाणकोट में आयोजित एक जनसभा को संबोधित कर रहे थे ।

स्वामी जी ने कहा कि गाय अपने आप में एक संपूर्ण विज्ञान है । गोमूत्र सभी रोगों की रामबाण औषधि है । यह संपूर्ण शरीर का शोधन करके रोगों का नाश करता है । उन्होंने कहा कि भारतीय शास्त्रों में गोविज्ञान की बात कही गयी है । गाय का दूध, मूत्र, गोबर आर्थिक विकास में उपयोगी है और वैज्ञानिक कसौटी पर भी खरे उतरे हैं । उन्होंने कहा कि गाय को अपने जीवन से दूर करन के कारण ही पंजाब की समृद्धि में कमी आयी है ।

इससे पहले कठुआ में आयोजित स्वागत सभा में बोलते हुए गो विज्ञान अनुसंधान केन्द्र के सुरेश धवन ने गाय की उपयोगिता और पंचगव्य को लेकर हुए आधुनिक शोधों के बारे में जानकारी दी । उन्होंने कहा कि बाजार में उपलब्ध घी बनाने की प्रक्रिया दोषपूर्ण है । बाजारु घी स्वास्थ्य को हानि पहुंचाता है । जबकि ठीक प्रकार से बनाया गया गाय का घी हृदयरोगियों के लिए भि लाभदायक है ।

यात्रा को जम्मू से हिमाचल प्रदेश में प्रवेश करने पर नूरपुर में यात्रा का भव्य स्वागत किया गया । कांगडा में आयोजित स्वागत सभा में बोलते हुए ज्वाला देवी मंदिर के स्वामी सूर्यनाथ ने कहा कि स्वतंत्रता के बाद पं. जवाहर लाल नेहरु और उनके समर्थकों के कारण गोहत्या पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने वाला प्रस्ताव संसद में पारित नही हो सका । उन्होंने गोशालाओं में सुधार करने की भी बात कही ।

गोकर्णा पीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य राघवेश्वर भारती ने आंकडो का हवाला देते हुए कहा कि १९४७ में एक हजार भारतीयों पर ४३० गोवंश उपलब्ध थे । २००१ में यह आंकडा घटकर ११० हो गयी । और २०११ में यह आंकडा घटकर २० गोवंश प्रति एक हजार व्यक्ति हो जाने का अनुमान है ।

उन्होंने कहा कि गोमाता की रक्षा करके ही भारतमाता और प्रकृति माता की रक्षा की जा सकती है ।

फिल्म अभिनेता सुरेश ओबेराय ने अपना व्यक्तिगत अनुभव बताते हुए कहा कि गोदुग्ध के सेवन से उनके पूरे परिवार में प्यार का माहौल बन गया है । उन्होंने कहा कि गोवंश के महत्व को तार्किक रूप से समझने की आवश्यकता है ।

विश्व मंगल गो ग्राम यात्रा अब मैदानी हिस्से छोडकर पहाडी क्षेत्रों में प्रवेश कर चुकी है । लेकिन यात्रा के स्वागत कार्यक्रमों और जनसमुदाय की भागीदारी में कोई कमी नहीं आयी है

वंदेमातरम कहने से सहमत नहीं

सहारनपुर। दारुल उलूम देवबंद को लेकर जमीयत उलेमा द्वारा आयोजित जलसे में वक्ताओं ने कहा कि इस देश का मुसलमान राष्ट्रगान का सम्मान करता है। खुदा के अलावा किसी और को सजदा इस्लाम में जायज न होने के कारण धार्मिक तौर पर वंदेमातरम कहने से सहमत नहीं हैं। इसलिए देश के लिए तो जान दे सकते हैं परंतु वंदेमातरम नहीं कह सकते।

इस्लामिया इंटर कालेज की मस्जिद में आयोजित जलसे में वक्ताओं ने कहा कि दारुल उलूम देवबंद का मकसद कुरान व इस्लाम की तालीम देना रहा है। देश की आजादी में इस संस्था का योगदान रहा है। जमीयतुल उलेमा के अध्यक्ष मौलवी जहूर अहमद ने कहा कि जिन लोगों ने दारुल उलूम का पुतला जलाया उनके कार्य से राजद्रोह की बू आ रही है। उनका यह कार्य न केवल असंवैधानिक बल्कि अपराध की श्रेणी में आता है। उन्होंने वंदेमातरम का सहारा लेकर समाज को बांटने और सांप्रदायिकता फैलाने का काम किया है। वतन से मोहब्बत नबी का फरमान है इसलिए वे देश से प्यार करते हैं और राष्ट्रगान का सम्मान करते हैं। जलसे के बाद में राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री व मुख्यमंत्री को संबोधित ज्ञापन सीओ को ज्ञापन दिया।

मंगलवार, 29 सितंबर 2009

सैकड़ों स्वयंसेवकों की उपस्थिति में स्व. श्री नरेश मोटवानी को अंतिम विदाई

विश्व संवाद केन्द्र
100/45, शिवाजी नगर, भोपाल
0755-2763768, 0-9425008648

दिनांक 29.09.2009


भोपाल। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के निवर्तमान सरसंघचालक श्री कुप्. सी. सुदर्शन की उपस्थिति में सैंकड़ों स्वयंसेवकों और समाज के बन्धुओं ने स्व. श्री नेरश मोटवानी को अंतिम विदाई दी। इस अवसर पर श्री सुदर्शन जी, भोपाल विभाग के संघचालक श्री कांतिलाल चतर, प्रांत सेवा प्रमुख श्री प्रदीप खांडेकर, प्रांत शारीरिक प्रमुख श्री विलास गोळे सहित सैकड़ों कार्यकर्ता और स्वयंसेवक उपस्थित थे। सेंट्रल सिंधी पंचायत के अध्यक्ष बंसीलाल इसराणी और महासचिव श्री गिरधारी लाल भीखानी, सचिव श्री किशन लाल आशुदानी, लालघाटी सिंधी पंचायत के अध्यक्ष लालचंद ममतानी आदि उपस्थित थे। सभी ने स्व. श्री नरेश मोटवानी को अश्रुपूरित श्रद्धांजलि देते हुए भगवान से प्रार्थना की कि श्री मोटवानी की आत्मा को सदगति दें और उनके परिवार को दुःख सहने की शक्ति प्रदान करें।
इस अवसर पर पत्रकारों द्वारा पूछे जाने पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक के प्रांत शारीरिक प्रमुख श्री विलास गोळे ने बताया कि संघ के कार्यकर्ता और स्वयंसेवक पूरी तरह मोटवानी परिवार के साथ खड़े हैं। उन्होंने कहा कि संघ के कार्यकर्ताओं ने तत्काल उपचार के लिए उन्हें अस्पताल पहुचा कर अपने स्वयंसेवक को बचाने की हरसंभव कोशिश की, लेकिन हमारा दुर्भाग्य कि हम श्री मोटवानी को बचा नहीं पाए। श्री विलास गोळे ने पुनः दुहराया कि पुलिस-प्रशासन द्वारा की जा रही जांच में हम पूर्ण सहयोग करेंगे और संघ के स्वयंसेवक मोटवानी परिवार की हर संभव सहायता करेंगे।
अंतिम संस्कार में भोपाल के विधायक श्री उमाशंकर गुप्ता, प्रदेष भाजपा उपाध्यक्ष एवं सांसद श्री अनिल दवे, भोपाल विकास प्राधिकरण के अध्यक्ष श्री सुरेन्द्रनाथ सिंह, उपाध्यक्ष श्री विष्णु खत्री, नगर निगम के अध्यक्ष श्री रामदयाल प्रजापति, श्री भगवानदास सबनानी, विश्व हिन्दू परिषद् के श्री बी.एल. तिवारी, श्री देवेन्द्र रावत, राष्ट्रीय सिख संगत के श्री बिहारीलाल,, लघु उद्योग भारतीय के अ.भा. मंत्री श्री जितेन्द्र गुप्ता, प्रज्ञा प्रवाह के श्री दीपक ष्षर्मा, अधिवक्ता परिषद के श्री बी के संाघी साहित्य अकादमी के निदेषक डाॅ देवेन्द्र दीपक,, निराला सृजन पीठ के श्री रामेष्वर मिश्र पंकज सहित अनेक संगठनों के कार्यकर्ता और समाज के वरिष्ठ लोग उपस्थित थे।

सोमवार, 28 सितंबर 2009

संघ के कार्यकर्ता श्री नरेश मोटवानी की दुर्घटनावश हुई दुःखद मृत्यु

विश्व संवाद केन्द्र
100/45, शिवाजी नगर, भोपाल
0755-2763768, 0-9425008648

भोपाल । राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के विभाग संघचालक श्री कांतिलाल चतर ने आंबेडकर नगर के विजयादशमी कार्यक्रम के पश्चात संघ के कार्यकर्ता श्री नरेश मोटवानी की दुर्घटनावश हुई दुःखद मृत्यु पर गहरा शोक व्यक्त किया है। उन्होंने इसे संघ और समाज के लिए एक बड़ी क्षति बताया है। श्री चतर ने कहा कि दुःख कि इस घड़ी में समूचा संघ मोटवानी परिवार के साथ खड़ा है। उन्होंने कहा कि इस दुर्घटनाजन्य मृत्यु से स्व. श्री नेरश मोटवानी के पारिवारिक सदस्य और रिश्तेदारों के साथ ही संघ के कार्यकर्ता भी स्तब्ध और शोकाकुल हैं। इस विषम परिस्थिति में संघ के कार्यकर्ता श्री मोटवानी परिवार की मदद के लिए तत्पर हैं। उन्होंने पुलिस और प्रशासन को जांच में पूर्ण सहयोग का आश्वासन दिया।

भवदीय

सुरेन्द्र ठाकरे
कार्यालय प्रभारी

सोमवार, 7 सितंबर 2009

विष्व सभ्यताओं के अंतस्संबंध, आतंकवाद, मीडिया और भारत के बौद्धिकों पर दो दिवसीय संगोष्ठी


बहुकला केन्द्र भारत भवन में राष्ट्रवादी बद्धिजीवियों का दो दिवसीय समागम
अरसे बाद मध्यप्रदेश की राजधानी भेापाल में बुद्धिजीवियों का जमावड़ा हुआ। इस बौद्धिक जमघट में अधिकांश राष्ट्रवादी बुद्धिजीवी शामिल हुए। संगोष्ठी में देशभर के पत्रकारों, लेखकों और साहित्यकारों ने भी भागीदारी की। स्व. माणिकचन्द्र वाजपेयी राष्ट्रीय पत्रकारिता सम्मान समारोह के मौके पर मध्यप्रदेश शासन के जनसंपर्क विभाग ने दो दिवसीय संगोष्ठी का आयोजन किया। इस दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी में कुल चार चर्चा सत्रों का आयोजन किया गया। प्रथम सत्र में विश्व सभ्यताओं के अंतस्संबंध, दूसरे सत्र में वैश्विक आतंकवाद की चुनौतियां और भारत की भूमिका, तीसरे सत्र में स्वाधीन भारत राष्ट्र के बौद्धिक - अतीत और भविष्य तथा चैथे सत्र में भविष्य का भारत और मीडिया की भूमिका जैसे विषयों पर गंभीर बौद्धिक विमर्श हुआ।
‘‘विश्व सभ्यताओं के अंतस्संबंध’’
विश्व सभ्यताओं में संघर्ष नहीं, सतत संवाद की जरूरत
संगोष्ठी की शुरूआत ‘‘विश्व सभ्यताओं के अंतस्संबंध’’ पर विमश्आ। प्रो. कुसुमलता केडिया ने इस विषय पर अपना बीज वक्तव्य दिया और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ कार्यकर्ता श्री राममाधव ने इस विषय पर विचार रखते हुए विषय को और अधिक विस्तार दिया। अखिल भारतीय साहित्य परिषद् के सह संगठन मंत्री श्री श्रीधर पराड़कर कार्यक्रम में मुख्य अतिथि थे। मध्यप्रदेश के शासन के जनसंपर्क और संस्कृति मंत्री श्री लक्ष्मीकांत शर्मा ने कार्यक्रम की अध्यक्षता की।
संगोष्ठी में वक्ताओं ने विश्व सभ्यताओं के ऐतिहासिक परिपेक्ष्य और आपसी संबंधों पर गहन विमर्श किया। विद्वान वक्ताओं ने असभ्यताओं के संघर्ष का उल्लेख करते हुए श्रेष्ठ दुनिया के लिए संभ्यताओं के बीच अंतस्संबंध की हिमायत की। सभ्यताओं के बीच संघर्ष की बजाए संवाद पर जोर देते हुए अपनी-अपनी सभ्यतामूलक श्रेष्ठताओं के आदान-प्रदान की जरूरत बताई गई। सुपर सिविलाइजेशन के आदर्श के नाम पर हमारे उपर विचार और आदर्श लादने की कोशिश की जा रही है, यह जायज नहीं है। इससे संवाद का मार्ग नहीं निकलेगा, बल्कि विरोध के स्वर ही मुखरित होंगे। पूर्वाग्रह रहित होकर दूसरों की पहचान और उनके विचारों को जानने-समझने और स्वीकार करने से ही बेहतर विश्व की कल्पना की जा सकी है।
गांधी विद्या संस्थान, वाराणसी की प्रो. कुसुमलता केडिया ने अपने बीज वक्तव्य में कहा कि धरती पर प्राचीन समय से ही उन्नत सभ्यताओं को अस्तित्व रहा है। इन सभ्यताओं का अपना-अपना वैशिष्ठ भी रहा है। सभ्यताओं के बारे में हमारा ज्ञान बहुत ही अल्प है। यह ज्ञान न तो सभ्यताओं की व्यापकता को और न ही उसकी प्राचीनता को समेट पाता है। आज विश्व सभ्यताओं के बारे में लाखों-करोड़ों वर्षों के तथ्य सामने आ रहे हैं। प्रो. केडिया ने युवा पीढ़ी को नइ तथ्यों और विश्व सभ्यता के इतिहास का अध्ययन करने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि अध्ययन से ही भविष्य में ज्ञान के इस आलोक से परिचित भारत विश्व का नेतृत्व करने में समर्थ होगा।
इस विमर्श में मुख्य वक्ता के रूप में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ कार्यकर्ता श्री राममाधव ने बोलते हुए कहा कि सिर्फ अपनी ही सभ्यता को श्रेष्ठ मानने के सोच से उपर उठना होगा। कोई धर्म या संस्कृति संस्कृति युद्ध नहीं करती, बल्कि व्यक्ति युद्ध करता है, यह बात कहने में आदर्श में लग सकती है। लेकिन यह सच नही हो सकता है। धर्म और संस्कृति इतिहास में अनेक युद्धों के कारक रहे हैं। उन्होंने कहा कि किसी भी सभ्यता और संस्कृति को पूरी तरह नष्ट नहीं किया जा सकता। इसलिए किसी को भी अपनी सभ्यता और संस्कृति को आक्रामक तरीके से स्थापित करने का प्रयास नहीं करना चाहिए। आज आपसी संवाद की बजाए ग्लोबलाइजेशन, साइंस एन्ड टेक्नाॅलोजी, ह्यूमन राइट्स और हथियारों के बल पर सुपर सिविलाइजेशन को स्थापित करने की कोशिश की जा रही है। उदारता के साथ सभ्यताओं का परस्पर संवाद ही एकमात्र रास्ता है।
उद्घाटन सत्र में बतौर मुख्य अतिथि श्री श्रीधर पराड़कर ने कहा कि हमारे उपर विचार और परिभाषाएं लाद दी गई हैं। इससे संवाद और संबंध का मार्ग प्रशस्त नहीं, अवरूद्ध होता है। लेकिन संवाद के लिए हमें अपनी पहचान न तो भूलना चाहिए और न ही उसे नकारना चाहिए। अपनी श्रेष्ठता सिद्ध करने के लिए दुनियाभर में चल रहे प्रयासों का उल्लेख करते हुए श्री पराड़कर ने कहा कि लाशों पर सभ्यताएं नहीं बनती हैं। उन्होंने कहा कि निहित स्वार्थ नहीं बल्कि मनुष्यत्व के भाव से ही सभ्यताएं बनती और पनपती हैं। दूसरों के अस्तित्व और विचारों को जानना, समझना, मानना और उसे सम्मान देना होगा, इसी से विश्व संभ्यताओं के बीच अंतस्संबंध विकसित होंगे।
मध्यप्रदेश शासन के संस्कृति और जनसंपर्क मंत्री श्री लक्ष्मीकांत शर्मा ने उद्घाटन के अध्यक्षीय उद्बोधन में कहा कि प्रदेश सरकार ने युवा पीढ़ी को अध्ययन की ओर प्रवृत करने के लिए प्रत्येक जिले में अध्ययन केन्द्र स्थापित करने का प्रयास करेगी। जनसंपर्क और संस्कृति सचिव श्री मनोज श्रीवास्तव ने स्वागत वक्तव्य प्रस्तुत किया। चर्चा की प्रस्तावना रखते हुए श्री श्रीवास्तव ने वैश्विक धरातल पर उपस्थित सांस्कृकि संकट को रेखांकित किया। सभ्यतागत संघर्षों का उल्लेख करते हुए उन्होंने भारतीय संस्कृति में संवाद और समन्वय की लंबी परंपरा को भी उद्धृत किया।
‘‘वैश्विक आतंकवाद की चुनौतियां और भारत की भूमिका’’
आतंकवाद से निपटने में सरकार से अधिक समाज की भूमिका
संगोष्ठी के दूसरे सत्र में वक्ताओं ने ‘‘वैश्विक आतंकवाद की चुनौतियां और भारत की भूमिका’’ पर अपने विचार प्रस्तुत किए। पांचजन्य के पूर्व संपादक और विचारक श्री देवेन्द्र स्वरूप ने इस चर्चा सत्र की अध्यक्षता की। भारतीय पुलिस सेवा की वरिष्ठ अधिकारी श्रीमती अनुराधा शंकर ने बीज वक्तव्य प्रस्तुत किया। लेखक और चिंतक प्रो. शंकर शरण तथा डाॅ. पवन सिन्हा ने आतंकवाद की चुनौतियों पर अपना उद्बोधन प्रस्तुत किया।
विश्व आतंकवाद से निजात पाने के लिए समाज को आगे आकर रणनीति तैयार कर अपनी लड़ाई स्वयं लड़नी होगी। वैश्विक आतंकवाद रूपी ताकत से निपटने के लिए वैचारिक स्पष्टता, द्ढ़ता एवं शक्ति का होना अत्यन्त आवश्यक है। सिर्फ राजनैतिक इच्छा शक्ति के आधार पर आतंकवाद पर विजय प्राप्त नहीं की जा सकती। आतंकवाद की विचारधारा से अनभिज्ञ रहकर हम आतंकवाद से लड़ाई नहीं लड़ सकते।
उपरोक्त चर्चा सत्र की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ पत्रकार और विचारक श्री देवेन्द्र स्वरूप ने कहा कि आतंकवाद के विरूद्ध युद्ध में भारत आध्यात्म के बल पर ही अपनी लड़ाई लड़ सकता है। लेकिन राजनैतिक नेतृत्व को भी आगे आकर अपना आत्मबल प्रकट करना होगा। उन्होंने इस अवसर पर महात्मा गांधी का उल्लेख करते हुए कहा कि गांधीजी का स्वाधीनता आंदोलन आध्यात्मिक शक्ति पर ही आधारित था। उन्होंने कहा कि आतंकवाद से निपटने में सरकार से अधिक समाज की भूमिका होती है। श्री स्वरूप ने कहा कि आतंकवाद के विरूद्ध संघर्ष एक कठिन चुनौती है। आतंकवाद का संचालन करने वाला अदृश्य होता है, उसका स्थान और तरीका पूर्व नियोजित होता है। आतंकवाद के शिकार हमेशा दृश्य होते हैं। उन्होंने कहा कि आतंकियों का उद्देश्य केवल मीडिया के जरिए पूरी दुनिया को भयभीत करना, शत्रु के मनोबल और आत्मविश्वास को खंडित करना और शत्रु के शिविर में अविश्वास पैदा करना होता है।
श्री स्वरूप ने कहा कि आतंकियों की लड़ाई सरकार से न होकर समाज से होती है। हमें युवाओं को में आतंकवाद से संघर्ष के लिए आत्मबल विकसित करना होगा। हमें आतंकियों की उस विधा को भी समझने की कोशिश करनी हं स्पोगी जिसके द्वारा वे नवयुवकों को जिहाद और आत्म बलिदान के लिए प्रेरित करते हैं। पुलिस और सैन्यबल के लिए आतंकवाद से संघर्ष करना कठिन है। इसके लिए हमें समाज और खासकर युवाओं को तैयार और तैनात करना होगा। आतंकवाद के विरूद्ध संषर्घ और सोच को हमें स्पष्ट करना होगा। आतंकवाद की चुनौती से निपटने के लिए एक तरफ तो हमें अपनी बौद्धिक तैयारी करनी पडे़गी वहीं राजनैतिक इच्छा शक्ति भी उत्पन्न करनी होगी।
वैश्विक आतंकवाद की चुनौतियों पर अपना उद्बोधन देते हुए राजनीतिशास्त्र के प्राध्यापक और स्तंभकार प्रो. शंकर शरण ने कहा कि आतंकवाद या नक्सलवाद के प्रति मीडिया को अपना दोहरापन खत्म करना होगा। उन्होंने कहा कि आतंकवादियों और नक्सलियों से बरामद दस्तावेजों की जांच-पड़ताल कर उनके मूल विचारों एवं कारणों तक पहुचना होगा। दुनिया में जितने भी कुख्यात आतंकवादी संगठन हैं उनमें मज़हबी शब्दावली का इस्तेमाल हो रहा है, इस पर विचार और इसका विरोध होना चाहिए। आतंकवादी संगठनों द्वारा भेजे जाने वाले ई-मेल की चर्चा बाहर भी होनी चाहिए, ताकि समाज भी उसकी विचारधारा से अवगत हो सके। उन्होंने कहा कि झूठ और हिंसा का आपसी संबंध होता है। यह आतंकवाद और नक्सलवाद के संदर्भ में भी लागू होता है। प्रो. शंकर शरण ने कहा कि आतंकवाद के परिपेक्ष्य में अब तक सिर्फ भौतिक लड़ाई पर ध्यान दियश गया है, वैचारिक लड़ाई पर ध्यान न देना अब तक की सबसे बड़ी भूल रही है। आतंकवाद से निपटने के लिए वैचारिक लड़ाई भी आवश्यक है। उन्होंने बौद्धिक वर्ग का आह्वान किया िकवे अपनी तर्क शक्ति से आतंकवाद जैसे खतरनाक और ज्वलंत विषय पर समाज को प्रेरित करें।
अपने बीज वक्तव्य में भारतीय पुलिस सेवा की वरिष्ठ अधिकारी श्रीमती अनुराधा शंकर ने कहा कि हमारे देश में 1980 तक पारंपरिक आतंकवाद 1990 के दशक में विभीषिकाजनक आतंकवाद में परिवर्तित हो गया। इसके लिए सोवियत संघ का पतन एक प्रमुख कारक रहा है। आधुनिक आतंकवादी संगठनों के पास आधुनिक ज्ञान और हथियार आ गए। आतंकवादी संगठनों ने ज्यादा से ज्यादा जनहानि पहुंचाने की रणनीति पर काम करना शुरू किया। श्रीमती शंकर ने कहा कि आतंकवाद के मूल स्वरूप को आज भी बहुत कम करके आंका जा रहा है। भारत में हुई मुम्बई की घटना के बाद वैश्विक आतंकवाद के पीड़ितों में भारत की प्रविष्टि हो सकी। उन्होंने जोर देकर कहा कि इस वैश्विक आतंकवाद में नक्सलवाद भी शामिल है। भोपाल में पकड़ी गई नक्सलियों के हथियारों की फैक्ट्री का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि इसमें यूरोपीय देशों के हथियार भी मिले। भारत को वैश्विक आतंकवाद के संदर्भ में गंभीरतापूर्वक विचार और चिंतन करना होगा।
दिल्ली विश्वविद्याल में राजनीतिशास्त्र के प्राध्यापक डाॅ. पवन सिन्हा ने कहा कि वैश्विक आतंकवाद में अर्थव्यवस्था और विचारधारा महत्वपूर्ण कारक सिद्ध हुए हैं। वैश्विक आतंकवाद का ध्येय आर्थिक आधार अथवा अर्थव्यवस्था को तहस-नहस करना रहा है। डाॅ. सिन्हा ने आथर््िक मंदी और आतंकवाद के अंतस्संबंध का भी उल्लेख किया। चर्चा के प्रारंभ में मध्यप्रदेश शासन के संस्कृति और जनसंपर्क सचिव श्री मनोज श्रीवास्तव ने विषय प्रवर्तन करते हुए कहा कि आतंकवाद को हमें मनोवैज्ञानिक धरातल पर समझना होगा।
‘‘स्वाधीन भारत राष्ट्र के बौद्धिक - अतीत और भविष्य’’
भारत में विचारों, विद्वानों और बौद्धिकों के स्वागत और समन्वय की परंपरा
संगोष्ठी के दूसरे दिन वक्ताओं ने ‘स्वाधीन भारत राष्ट्र के बौद्धिक - अतीत और भविष्य’’ विषय पर अपने विचार रखे। प्रख्यात चिंतक और राज्यसभा के पूर्व सदस्य डाॅ. महेश्शचन्द्र शर्मा ने इस चर्चा की अध्यक्षता की। डाॅ. मधुकरश्याम चतुर्वेदी ने बीज वक्तव्य दिया। प्रो. रामेश्वर मिश्र पंकज ने इस विषय पर शोधपरक उद्बोधन प्रस्तुत किया।
अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में दीनदयाल शोध संस्थान के पूर्व सचिव और सांसद डाॅ. महेशचन्द्र शर्मा ने कहा कि प्रत्येक भारतीय को अपने राष्ट्र को सही समझने और जानने की आवश्यकता है। कुछ वर्षों की अंग्रेजों की गुलामी ने भारतीय परंपरा और ज्ञान को बदलकर रख दिया है। भारत के हजारों वर्षों के इतिहास को सीमित कर दिया गया है। भारत जैसे महान देश को बनाने में वाणिज्य, कला, विज्ञान एवं दर्शन क्षेत्र की महान हस्तियों ने योगदान दिया है। उनकी पहचान दुनियाभर में है। डाॅ. शर्मा ने कहा कि युवा पीढ़ी को भारतीय संस्कृति व परंपरा के बारे में गहन शोध करने की आवश्यकता है। इन शोधों के जरिये सही भारत की पहचान दुनियाभर में हो सकेगी। उन्होंने भारतीय परंपराओं और हिन्दू दर्शन को वर्तमान पाठ्यक्रमों में शामिल किए जाने की वकालत की। भारत में स्वागत और समन्वय की परंपरा का उल्लेख करते हुए डाॅ. शर्मा ने कहा कि किसी भी विषय पर खुले मंच पर पक्ष एवं विपक्ष पर चर्चा होना चाहिए। इन खुली चर्चाओं के बाद ही सार्थक तत्व का बोध हो सकेगा।
संगोष्ठी में अपना वक्तव्य देते हुए निराला सृजनपीठ के निदेशक और भारत भवन के पूर्व सचिव प्रो. रामेश्वर मिश्र पंकज ने कहा कि अंग्रेजों के समय से शिक्षा व्यवस्था एवं विश्वविद्यालयों में वायसराय का दखल रहता था। इसका प्रभाव अब तक देखने का मिल रहा है। उन्होंने कहा कि महामना मदनमोहन मालवीय ने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय की स्थापना की थी, लेकिन आजादी के बाद यह विश्वविद्यालय भी पश्चिमी प्रभाव से अछूता नहीं रहा। प्रो. ंपकज ने देश के अनेक प्राचीन विश्वविद्यालयों के अस्तित्व समाप्ति की ओर ध्यान आकृष्ट किया। हिन्दुओं के संरक्षण के लिए राष्ट्रपति से विशेष प्रावधान करने का आग्रह भी किया।
चर्चा सत्र की शुरूआत राजस्थान विश्वविद्यालय के प्रो. मधुकर श्याम चतुर्वेदी के बीज वक्तव्य से हुई। प्रो. चतुर्वेदी ने कहा कि स्वतंत्र भारत में जब शिक्षा व्यवस्था की नींव डाली जा रही थी, तब हमारे राजनेताओं ने भारत की प्राचीन शिक्षा व्यवस्था की अनदेखी की थी। इसके दुष्परिणाम अब तक देखने को मिल रहे हैं। लंबे समय तक भारत के संविधान में राष्ट्र की गौरवशाली परंपरा और संस्कृति का उल्लेख तक नहीं था। ‘‘सेक्यूलर’’ शब्द की आड़ में बहुसंख्यक भारतीयों की भावनाओं की अनदेखी की गई। देश की स्वाधीनता आंदोलन का इतिहास कांग्रेस का पर्याय बनकर रह गया। अरविन्द एवं तिलक जैसे जननायकों के विचारों को पूरी तरह से मान्यता नहीं मिल सकी। इनज न नायकों का चिन्तन पश्चिमी चिन्तन से मेल नहीं खाता था। आज भारत में आत्म हनन को भारतीय संस्कृति की पहचान दी जा रही है। धर्म पर चर्चा निषेध हो गया है। इन सबके बावजूद भारतीय चिन्तन और परंपरा ईश्वर के अस्तित्व को स्वीकारता है।
चर्चा के प्रारंभ में संस्कृति सचिव श्री मनोज श्रीवास्तव ने भारत में हजारों वर्ष पुरानी समृद्ध बौद्धिक परंपरा का हवाला देते हुए स्वाधीन भारत के बौद्धिकों का उल्लेख भी किया। उन्होंने कहा कि इतिहास और वर्तमान की बौद्धिक बुनियाद पर भारत का स्वर्णिम बौद्धिक भविष्य गढ़ा जायेगा।
‘‘भविष्य का भारत और मीडिया की भूमिका’’
वर्तमान समय में सिद्धांतों की पत्रकारिता आसान नहीं
संगोष्ठी का अंतिम चर्चा सत्र मीडिया पर आधारित था। ‘‘भविष्य का भारत और मीडिया की भूमिका’’ विषय केन्द्रित इस चर्चा सत्र में वरिष्ठ पत्रकार श्री महेश श्रीवास्तव ने अध्यक्षीय उद्बोधन दिया। टीवी कलाकार श्रीमती स्मृति ईरानी ने इस विषय पर अपना बीज वक्तव्य प्रस्तुत किया। राज्यसभा सांसद श्री प्रभात झा, माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय के कुलपति श्री अच्युतानंद मिश्र, भाषाविद् श्री प्रभु जोशी और वरिष्ठ पत्रकार श्री श्रवण गर्ग ने इस विषय पर अपना उद्बोधन प्रस्तुत किया।
भविष्य का भारत और मीडिया की भूमिका को लेकर आयोजित चर्चा में पत्रकारिता, साहित्य और अभिनय क्षेत्रों की ख्यातिनाम हस्तियों ने अपने-अपने तर्कों और विचारों के माध्यम से मीडिया की भूमिका को अधिक सकारात्मक और विश्वसनीय बनाए जाने पर जोर दिया। विद्वान वक्ताओं के मुताबिक मीडिया के सामाजिक सरोकारों में पूंजी के रोडे को दूर करने की जरूरत है। विज्ञापनों का लगातार बढ़ता दायरा और हस्तक्ष्ेाप चिन्ता बढ़ाने वाला है। स्व. माणिकचन्द्र वाजपेयी और रामशंकर अग्निहोत्री की पत्रकारिता का उल्लेख करते हुए विद्वान वक्ताओं ने भविष्य के भारत निर्माण में मीडिया की भूमिका का खुलासा किया। पत्रकारिता विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रमों में मौजूदा वक्त की जरूरतों के मुताबिक विषयों का समावेश करने पर भी जोर दिया गया।
मुख्यअतिथि के रूप में प्रख्यात टीवी कलाकार श्रीमती स्मृति ईरानी ने कहा कि भारत के भविष्य में मीडिया की भूमिका को लेकर आज तेजी से विज्ञापनदाताओं का दखल ज्यादा चिंता की बात है। ऐसी स्थिति में सिद्धांतों की पत्रकारिता अब आसान नहीं रही। श्रीमती ईरानी ने कहा कि मौजूदा पत्रकारिता की शक्ल पर सवाल खड़े करने के पहले हमें यह देखना होगा कि पत्रकार नौकरी किसकी कर रहे हैं। ऐसे में उनके फर्ज मालिक के आदेश और इसके मुताबिक काम करते हुए स्वयं के लाभ एवं हितों में फर्ज सिमट गए हैं। मीडिया में अपने अनुभवों और वर्तमान स्थितियों के मद्देनजर श्रीमती ईरानी ने नई पीढ़ी का आह्वान किया कि अब उसे देश के हित में फर्ज निभाने के लिए अपने विवके पर अच्छे और बुरे का निर्णय कर आगे का रास्ता तैयार करना होगा। अगर वे खुद से पहले राष्ट्र के बारे में सोचेंगे तो यह राह आसान हो जायेगी।
इस अवसर पर सांसद और वरिष्ठ पत्रकार श्री प्रभात झा ने कहा कि मीडिया का अतीत गौरवशाली रहा है और इसका भविष्य भी गौरवशाली है। उन्होंने कहा कि भारत पूरे विश्व की समस्याओं का उत्तर है। श्री झा ने कहा कि आज देश में लोगों के भीतर नागरिक बोध से अधिक मतदाता बोध जागृत हो गया है। मीडिया को इसे समझना और दूर करना होगा। बदलते समय और भविष्य के भारत के संदर्भ में मीडिया की भूमिका अपेक्षाकृत अधिक बढ़ गई है। मीडिया को रोटी से अधिक राष्ट को महत्व देने की जरूर है।
वरिष्ठ पत्रकार श्री महेश श्रीवास्तव ने इस चर्चा सत्र में अध्यक्षीय उद्बोधन दिया। माखनलाल पत्रकारिता विश्वविद्याल के कुलपति श्री अच्युतानंद मिश्र, वरिष्ठ पत्रकार श्री श्रवण गर्ग और श्री प्रभु जोशी ने अपने विचार रखे। जनसंपर्क और संस्कृति सचिव श्री मनोज श्रीवास्तव ने अतिथियों का स्वागत किया और प्रस्ताविक भाषण प्रस्तुत किया।
अनिल सौमित्र

रामषंकर अग्निहोत्री को माणिकचन्द्र वाजपेयी राष्ट्रीय पत्रकारिता सम्मान



दो दिवसीय संगोष्ठी में विष्व सभ्यता, आतंकवाद, मीडिया और भारत के बौद्धिकों पर महत्वपूर्ण चर्चा
मातृभाषा को मिले सम्मान और प्रोत्साहन: श्री सुदर्शन
मध्यप्रदेश शासन द्वारा स्व. माणिकचन्द्र वाजपेयी की स्मृति में पत्रकारिता सम्मान की स्थापना की गई है। राष्ट्रीय स्तर का यह सम्मान प्रति वर्ष वरिष्ठ पत्रकार को दिया जाता है। वर्ष 2008 का सम्मान वरिष्ठ पत्रकार श्री रामशंकर अग्निहोत्री को दिया गया है। गत वर्ष श्री ओमप्रकाश कुन्द्रा को सम्मानित किया गया था। 23 अगस्त को आयोजित इस सम्मान समारोह में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के निवर्तमान सरसंघचालक श्री कृप्प.सी. सुदर्शन, मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चैहान, अखिल भारतीय साहित्य परिषद् के सह-संयोजक श्री श्रीधर पराड़कर और मध्यप्रदेश शासन के संस्कृति एवं जनसंपर्क मंत्री श्री लक्ष्मीकांत शर्मा विशेष रूप से उपस्थित थे।
इस अवसर पर मुख्यअतिथि के रूप में उपस्थित श्री सुदर्शन जी ने कहा कि देश में अंग्रेजी को अनावश्यक महत्व दिये जाने के कारण इसे न जानने वाले लोगों में हीन भावना का विकास होता है। इसके कारण ग्रामीण क्षेत्रों की प्रतिभाएं आगे नहीं बढ़ पाती। उन्होंने कहा कि अंग्रेजी के साथ अन्य विदेशी भाषाओं का अध्ययन भी किया जाना चाहिए। लेकिन मातृ भाषा में अध्यापन होने से देश की प्रतिभाएं आगे नहीं बढ़ सकेंगी। उन्होंने हिन्दी भाषी राज्यों में एक विश्वविद्यालय हिन्दी माध्यम से विकसित करने का सुझाव दिया। श्री सुदर्शन जी ने कहा कि देश के कई गैर हिन्दी भाषी क्षेत्रों में अपनी मातभाषा के प्रति लगाव अभी भी कायम है परंतु हिन्दी क्षेत्रों में अंग्रेजी को अधिक प्रधानता दी जाती है। उन्होंने हिन्दी समाचार-पत्रों में अंग्रेजी भाषा के उपयोग अप्रसन्नता व्यक्त करते हुए कहा कि हिन्दी के पत्रों में हिन्दी शब्दों का ही उपयोग करना चाहिएं। उन्होंने कहा कि भाषाा की शुद्धता का भी अपना महत्व है। अंग्रेजी तथा अन्य विदेशी भाषाओं को सीखने में कोई आपत्ति नही है, परन्तु हमें अपनी-अपनी मातृ-भाषा से लगाव होना चाहिएं यह हमारे राष्ट्रीय और सांस्कृतिक मूल्यों को मजबूत बनाने और विश्व में देश को अग्रणी बनाने के लिए आवश्यक है।
संघ के निवर्तमान सरसंघचालक श्री सुदर्शन जी ने कहा कि भाषा के विषय पर दिल्ली, हरियाणा, मध्यप्रदेश सहित अनेक राज्यों के मुख्यमंत्रियों से मुलाकात कर वे अपना सुझाव दे चुके हैं और इस संबंध में कम से कम एक विश्वविद्यालय हिन्दी माध्यम से शुरू करने का आग्रह भी वे कर चुके हैं। पत्रकारित सम्मान के अवसर पर श्री सुदर्शन जी ने स्व. श्री माणिकचन्द्र वाजपेयी ‘‘मामाजी’’ और श्री रामशंकर अग्निहोत्री से अपने सुदीर्घ संबंधें का उल्लेख किया। दोनों महान विभूतियों के पत्रकारिता में योगदान की भी उन्होंने चर्चा की।
सम्मान समारोह की अध्यक्षता करते हुए मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चैहान ने कहा कि देश की पत्रकारिता आजादी की लड़ाई, स्वतंत्रता के बाद विकास और नव-निर्माण, राष्ट्रीय अपेक्षाओं के पूरा न होने पर निराशा, जयप्रकाश जी के नवनिर्माण आंदोलन तथा आपातकाल के दौरान आजादी की तीसरी लडाई और अब आधुनिक-वैश्विक व्यवसाय जैसे विभिन्न दौर से गुजरी है। लेकिन समाज में जिस प्रकार से मूल्यों का ह्यस हो रहा है अब जरूरी लगता है कि राजनेता, मंत्री और पत्रकार भी अपनी-अपनी आचार संहिताओं के दायरे में काम करें।
श्री चैहान ने आगे कहा कि शासन व्यवस्था में मीडिया की स्वस्थ आलोचना से गड़बड़ियों के सुधार में सहायता मिलती है, लेकिन यह भी आवश्यक प्रतीत होता है कि पत्रकारिता में आलोचना तथा रचनात्मकता में संतुलन हो। श्री चैहान ने मामाजी का स्मरण करते हुए सम्मानित पत्रकार श्री रामशंकर अग्निहोत्री के पत्रकारिता योगदान का भी उल्लेख किया।
इस अवसर पर अपने विचार व्यक्त करते हुए श्री रामशंकर अग्निहोत्री ने कहा कि पत्रकारिता हमेशा मिशन रही है और रहेगी। पत्रकारों को अपने भीतर मिशन की भावना जागृत रखने की आवश्यकता है। विचार तथा मिशन ही पत्रकारिता के लिए स्थाई आदर्श हैं। उन्होंने कहा कि भारतीय परंपरा में लोकमत के परिष्कार का भी प्रावधान है।
कार्यक्रम में विशेष अतिथि के तौर पर उपस्थित मध्यप्रदेश शासन के जनसंपर्क और संस्कृति मंत्री श्री लक्ष्मीकांत शर्मा ने इस अवसर पर सभी अतिथियों का शाल-श्रीफल एवं पुष्पमाला से स्वागत किया और उन्हें स्मृति चिन्ह भेंट की। अपने वक्तव्य में श्री शर्मा ने कहा कि राज्य शासन ने पत्रकारों के हित में कई कदम उठाए हैं तथा भविष्य में भी इस दिशा में प्रयास जारी रहेंगे। उन्होंने समारोह के दौरान आयोजित दो दिवसीय विचार गोष्ठी पर केन्द्रित पुस्तिका प्रकाशित करने और सीडी जारी करने की घोषणा भी की।
जनसंपर्क विभाग के सचिव श्री मनोज श्रीवास्तव ने सम्मानित पत्रकार श्री रामशंकर अग्निहोत्री का प्रशस्ति वाचन किया। श्री श्रीवास्तव ने इस अवसर पर स्व. श्री माणिकचन्द्र वाजपेयी के पत्रकारिता योगदान पर भी प्रकाश डाला। उन्होंने भारत भवन में आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के महत्वपूर्ण पहलुओं पर भी विस्तार से प्रकाश डाला।
इस समारोह में प्रदेश के विभिन्न हिस्सों से पत्रकार, साहित्यकार और प्रबुद्ध नागरिकों ने हिस्सा लिया। पूर्व मुख्यमंत्री श्री कैलाश जोशी, श्री सुंदरलाल पटवा, राज्यसभा सांसद श्री कप्तान सिंह सोलंकी, श्री प्रभात झा, डाॅ. महेशचन्द्र शर्मा, कलाकार श्रीमती स्मृति ईरानी, लेखक श्री शंकर शरण, डाॅ. मधुकर श्याम चतुर्वेदी, श्रीमती कुसुमलता केडिया, प्रो. रामेश्वर मिश्र पंकज, श्री अच्युतानंद मिश्र, प्रा. पी. के. वर्मा आदि की उपस्थिति विशेष रूप से उल्लेखनीय है।
इसके पूर्व जनसंपर्क मंत्री श्री लक्ष्मीकांत शर्मा ने सभी अतिथियों का शाल-श्रीफल एवं पुष्पमाला से सम्मान किया तथा उन्हें स्मृति चिन्ह भेंट किया। श्री सुदर्शन जी ने श्री रामशंकर अग्निहोत्री को शाल-श्रीफल भेंट कर सम्मानित किया। जनसंपर्क विभाग के अपर संचालक श्री ए.के. कबीर ने सभी प्रतिभागियों और अतिथियों के प्रति आभार व्यक्त किया।

गुरुवार, 25 जून 2009

BJP themselves are not sure of what Hindutva is!



Janmenjay
BJP themselves are not sure of what Hindutva is!
The political party BJP has been making headlines these days, and for all the wrong reasons. As a voter of this party (or just as a citizen of India if you like) I felt a need to study BJP’s present condition from a bird’s eye. I had researched upon BJP’s history earlier and understood one primary thing – absence of a dynasty in the top order. I also noticed that BJP’s top leaders were from ground level. What I did not understand about the 2004 (and 2009) elections was why BJP has been unable to connect to the masses. When I say ‘the masses’ I speak of the farmers, the labourers, the clerks, the shopkeepers and such businessmen, the women of the villages and unnamed multitudes who seem to appear during the election campaigning to watch their candidates (since the candidates appear once in 5 years), vote and disappear.
The one thing I used to admire about BJP was the clarity in its approach. Their agendas were always clear and never leader-centric (as they were in 2009 elections). Their plans were strongly in favour of nationalism and focused on farmer class, defence, foreign policies, on the ‘common man’, so to speak. I also admired the BJP’s leadership under Atal Bihari Vajpayee. His policies and decisions struck me as being very rock-solid.
Enough praise. Now, the issue that I have difficulty in understanding is why a party with so many people emerged from the ground level, has a policy which strikes me as being very elite and unconnected to the base – so to speak. I don’t say that BJP does not care for the farmers. All I say is that they do not manage to get that across. Also I have seen people who dislike Congress also dislike BJP because it’s communal. BJP is communal because it preaches Hindutva. Another failure of the BJP is to give a clear and concise definition of the word Hindutva. Does Hindutva mean that you slice of Muslim beards (or the heads the beards are attached to)? Or does it mean you burn down the mosques and churches? Or does Hindutva just stand for nationalism? What is the concept of a Hindu Rashtra? I sometimes feel that the workers of the BJP themselves are not sure of what Hindutva is. So how do you expect the common man to appreciate it?
2009. The election in which BJP got thrashed. I will not mince my words. This election was a failure for the party as well as the nation. It was a failure for the nation because the voting in the entire country hovered around 40-50 percent, a mere nothing. Many failures awaited BJP. I will outline some that I perceive. First was the defeat. Second was the reason behind it (same thing perhaps but I will still take them separately). Thirdly, there was absence of a next-gen party leader as should have been groomed by Advani Ji. Four, there is absence of a young party leader in the upcoming generation. Fifth place goes to a lack of ideological clarity. Sixth is naturally the in-fighting over the leader to take up Advani Ji’s mantle (this looks extremely ugly over the press). For last position we have lack of introspection. Actually, a problem that I felt was that BJP put too much of Advani Ji’s leadership in their campaigning. It has never been a leader-centric party and should not attempt to be so.

Finally, I will approach my suggestions for a solution. The obvious advice is (in a wise old man’s scratchy voice) – sort his mess out. Join hands and get out of this problem. Introspect and get a solution. But such advice is available by the dozen and is rather useless unless a method is attached to it. I feel that within the party the leadership of a person like Narendra Modi (like him means someone firm and of the ground level) who should be egalitarian (treating all equally and bringing further transparency to the party) and portrayal of BJP as a strong party of the people should be done (of the people, for the people, by the people I’d say!). The internal disputes of BJP should be internal and not broadcast like the day’s prime soaps. The only announcement that should emerge should be of BJP’s internal leader and its ideologies being decided in finality. The BJP itself should not forget the smell of the earth after the rains and of the soft winds that flow through the green and brown fields. In simpler terms, BJP should perceive and be part of the ground level. The next five years are adequate for it to re-establish a base in the hearts of the people of this country. And finally, BJP should make clear to the people what it really is. I.e. its ideology and policies should be clear to the people (in concise form and in detail).

सोमवार, 25 मई 2009

श्री विष्णु कुमार जी के बारे
बहुत दुःख हुआ . वे एक live-wire थे . उनसे मिलकर आपको लगता था की बस उठें और लग जाएँ वंचितों के कल्याण में . यद्यपि उनकी ऊर्जा का परिमाण इतना विशाल था कि उनके साथ चलना दुष्कर. उनका पदार्पण जब भी मेरे घर में हुआ, आशीर्वाद के साथ उनकी जिज्ञासा और हिदायतों ने हमेशा प्रेरित किया. बच्चों जैसा कौतुक और बुजुर्गों जैसी समझ.
उन जैसे साधू को क्या श्रद्धांजलि दी जाये? उन्मुक्त, अपने दरिद्र-नारायण की अनन्य भक्ति में लीन, उन्हें किसी प्रशंसा से जब जीवन में मतलब न रहा तो ऐसे निरहंकार प्राणी को देहांत के बाद क्या व्यापेगा?
एक रिक्तता हो गयी। अपूरणीय.
अनुराधा शंकर्
संघ के वरिष्ठ प्रचारक विष्णु कुमार का निधन

भोपाल। संघ के वरिष्ठ प्रचारक और सेवा भारती के संरक्षक श्री विष्णु कुमार का कल सुबह निधन हो गया। वे लंबे समय से बीमार थे और दिल्ली में उनका इलाज चल रहा था। 66 वर्षीय श्री विष्णु कुमार का जन्म सन् 1933 में कर्नाटक के कोलार जिले के गौरीबिदनूरू ग्राम में हुआ था। घर में छह भाई और एक बहन हैं। श्री विष्णु कुमार हाई स्कूल में संघ के स्वयंसेवक बन गए थे। उन्होंने मेकैनिकल विषय में इंजीनियरिंग की उपाधि प्राप्त की। उनके एक भाई रामकृष्ण आश्रम के संन्यासी हैं और एक अन्य भाई संघ के प्रचारक रहे। श्री विष्णु कुमार 1958 में संघ के प्रचारक निकल गए। उनका प्रचारक जीवन उत्तरप्रदेश से शुरू हुआ।
संघ के सरसंघचालक श्री बालासाहब देवरस की प्रेरणा से श्री विष्णु कुमार ने दिल्ली की सेवा बस्तियों में सेवा काम शुरु किया। शुरुआती दिनों में 600 बस्तियों में यह काम शुरु हुआ। बाद के दिनों में देश के विभिन्न हिस्सों में सेवा भारती के नाम से काम का विस्तार हुआ। इन्ही के प्रयासों से दिल्ली में सेवाधाम के नाम से एक छात्रावास की शुरुआत हुई। इस छात्रावास और विद्यालय में पिछड़े समाज के बच्चों को सब प्रकार की सुविधा दी जाती है। भोपाल में विष्णु जी के ही प्रयासों से आनंदधाम परिसर का निर्माण हुआ। इस परिसर में वृद्धजनों को सब प्रकार की सुविधाएं मुहैया करायी जाती है।
सन् 1994 में श्री विष्णु कुमार मध्यक्षेत्र में सेवा कार्यों के विस्तार के लिए आए। अत्यन्त अल्प काल में ही मध्यक्षेत्र के विभिन्न प्रांतों में सेवा कार्यों का जाल फैल गया। वनवासी क्षेत्रों में एकल विद्यालय के साथ ही भोपाल में अनाथ बच्चों के लिए मात्छाया, वनवासी बच्चों के लिए वनवासी विद्यालय आदि का निर्माण और विस्तार किया। मध्यक्षेत्र में आज हजारों की संख्या में वनवासी विद्यालयों का संचालन किया जा रहा है।
श्री विष्णु कुमार के सरल और सह्दय व्यक्तित्व को सभी ने पसंद किया और सराहा। आज सायं 5ः30 बजे दिल्ली में उनका अंतिम संस्कार सम्पन्न हुआ। मध्यक्षेत्र के संघचालक श्री श्रीकृष्ण माहेश्वरी, मध्यभारत प्रांत के संघचालक श्री शशीभाई सेठ और विभाग संघचालक श्री कांतिलाल चतर, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सेवा प्रमुख श्री प्रदीप खांडेकर, सेवा भारती के प्रांत संगठनमंत्री श्री संजय शर्मा ने श्री विष्णु कुमार के निधन पर अपनी शोक संवेदना व्यक्त की है। सेवा भारती भोपाल ईकाई के सचिव श्री सोमकांत उमालकर ने बताया कि श्री विष्णु कुमार की अन्त्येष्टि में विश्व हिन्दू परिषद् के अध्यक्ष श्री अशोक सिंहल, महामंत्री श्री ओंकार भावे, पूर्व केन्द्रीय मंत्री श्री सत्यनारायण जटिया, राज्यसभा सांसद श्री गोपाल व्यास, दिल्ली भाजपा के पूर्व अध्यक्ष डाॅ. हर्षवर्धन, मध्यप्रदेश भाजपा के संगठन महामंत्री माखन सिंह चैहान, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ दिल्ली प्रांत के कार्यवाह श्री विजय कुमार, प्रांत प्रचारक श्री प्रेम कुमार और राष्ट्रीय सेवा भारती के कार्यालय मंत्री श्री सुरेश अग्रवाल उपस्थित थे।

शनिवार, 23 मई 2009

15 वीं लोकसभा का एक संदेश यह भी -
राजनीति के दलाल, भगोड़े और ब्लैकमेलर सबक सीखें
अनिल सौमित्र
15 वीं लोकसभा का गठन हो चुका। लेकिन विश्लेषणों का दौर थमा नहीं है। राजनीति के जानकार और मीडिया के लोग अपने-अपने हिसाब से विश्लेषण कर रहे हैं, अपने-अपने तर्काें और विचारों की जमावट और सजावट कर लोगों तक परोस रहे हैं। इन्हीं विश्लेषणों में एक विश्लेषण यह भी है कि 15 वीं लोकसभा के लिए मतदाताओं ने खास किस्म के नेताओं के लिए कुछ संदेश और कुछ सबक दिए हैं। इन संदेशों और सबक पर भी गौर किया जाना चाहिए। हालांकि अभी यूपीए की सफलता के जयकारे में कोई भी दूसरी आवाज सुनाई दे यह मुश्किल है। लेकिन सुनाई न देने के डर से आवाज देना तो नहीं छोड़ा जा सकता। यूपीए, राहुल, सोनिया, मनमोहन की जय हो! लेकिन मतदाताओं ने ममता, नवीन, नीतीश और रमन की भी जय की है। छत्तीसगढ़ की 11 में से भाजपा को 10 सीटें देकर मतदाताओं ने राहुल, सेनिया और मनमोहन फैक्टर को नकारा और रमन फैक्टर को स्वीकारा है। यही हाल बिहार में, बंगाल में और उडी़सा में भी हुआ है। यद्यपि 15 वीं लोकसभा के लिए अखिल भारतीय स्तर पर किसी एक राजनैतिक दिशा का संकेत नहीं मिल रहा है, लेकिन मोटै तौर पर इस चुनाव ने कुछ इशारा तो दिया ही है, मसलन - युवा मतदाताओं का उत्साह और युवा नेतृत्व का उभार, सादगी और ताजगी को जनता का स्वीकार, सुशासन की ललक और स्वच्छ छवि वाले नेताओं के प्रति झुकाव आदि नए संकेत हैं।
लालू यादव, मुलायम सिंह, रामविलास पासवान, मायावती और अजीत सिंह जैसे नेताओं ने चुनाव के पूर्व और चुनाव के बाद जिस तरह की राजनीतिक हरकतें की है उससे आम जनता के बीच जो संदेश गया है वह बहुत ही निराशाजनक है। इनकी हरकतों से राजनीति में अब नए जुमलों का चलन हो जायेगा। ऐसा लगने लगा है कि राजनीति के दलालों, भगोड़ों और ब्लैकमेलरों को जनता ने सबक सिखाने की कोशिश तो की है, लेकिन शायद ये नेता अब भी सीखने को तैयार नहीं हैं। बिना किसी तर्क और आधार के जिस तरह से बिन बुलाए मेहमान की तरह बसपा, सपा, राजद और राष्ट्रीय लोकदल ने पाला बदलते हुए बिना मांगे ही समर्थन की घोषणा कर दी है। यह तो सरासर जनमत का अनादर और अपमान है। लालू और पासवान में तो इतना भी राजनैतिक शर्म नहीं बचा की वे जनादेश को स्वीकार कर विपक्ष में बैठकर रचनात्मक राजनीति करें। शायद उन्हें सत्ता की राजनीति की आदत हो गई है। वे सोनिया गांधी की तरफ मुंहबाए खड़े हैं कि किसी भी तरह उन्हें यूपीए में शामिल कर लिया जाए। सत्ता सुख न सही, कोई उनसे सम्मानजनक बात ही कर ले। कांग्रेस के बार-बार मना करने के बावजूद राजद, सपा और बसपा ने यूपीए को एकतरफा समर्थन की घोषणा कर दी है। ये दल और इनके नेताओं को अपने पापों का अनुमान है। वे भीतर-ही-भीतर डरे हुए हैं। नाजायज तरीके से जमा धनबल और बाहुबल का खतरा अब सताने लगा है। चुनाव प्रचार के दरम्यान कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह ने बसपा प्रमुख मायावती को सीबीआई का डंडा दिखाया ही था। कांग्रेस के पास अब तो सत्ता का डंडा है। इस डंडे का डर अब राजनीतिक दलालों, भगोड़ों और ब्लैकमेलरों को भयभीत करने लगा है। इसलिए भारतीय राजनीति में शायद पहली बार ऐसा हो रहा कि बिना मांगे ही समर्थन की बाढ़ आ गई है। वाम दलों ने तो जनता का संदेश समझते हुए विपक्ष में बैठने की घोषणा कर दी है, लेकिन तथाकथित तीसरे और चैथे मोर्चे के घटक दल तो जनता को फिर से धोखा देने पर आमादा हैं।
इसबार जनता ने भाजपा को भी कुछ सबक और संदेश देने की कोशिश की है। समझना-न समझना, मानना-न मानना पार्टी के नेताओं के उपर है। जनता का यह संदेश भाजपा के चाल, चरित्र और चेहरे के बारे में ही है। नरेन्द्र मोदी भले ही भाजपा को कांग्रेस से ज्यादा जवान बताते रहे, लेकिन भाजपा के थके-मांदे, बूढ़े और जर्जर चेहरे, पार्टी की चाल और चरित्र बयान कर रहे थे। जनता और मतदाता भाजपा के इन चेहरों को नानाजी देशमुख का संकल्प और आदर्श याद दिला रही है। क्या भाजपा के ये दीर्घजीवी नेता तब तक राजनीति का रास्ता और पार्टी का दामन नहीं छोडेंगे जब तक उनके वारिश इसे थाम न लें! भाजपा के ऐसे अनेक नेताओं को अपना प्रतिनिधित्व देने से जनता ने साफ मना कर दिया। अनेक क्षेत्रों में अपराधी और धनपशुओं को भी जनता ने करारा झटका दिया है। वरूण व मेनका गांधी, मुरलीमनोहर जोशी और योगी आदित्यनाथ की विजय सांप्रदायिक और जातीय राजनीति पर हिन्दुत्व की विजय पताका है। भाजपा को अपने स्थायी मुद्दे पर लौटने और दृढ़ता प्रदर्शन का संकेत है। भाजपा के कमराबंद चुनाव प्रबंधकों के लिए भी एक सबक - बंद कमरे में राजनीतिक प्रबंधन से बाज आएं, जनता की नब्ज टटोलें और जमीनी प्रबंधन करें। आयातित और भगोड़े नेता-कार्यकर्ता को जुटाने की बजाए नेता और कार्यकर्ता का निर्माण करें। जनता का मत है- भाजपा दूसरों की डालियों पर बैठने की बजाए अपनी जड़े मजबूत करे। भाजपा को फिर अपने कैडर, विचारधारा, मुद्दों और संगठन की ओर लौटना होगा।
15 वीं लोकसभा में जनता और मतदाता ने जाने-अंजाने एक साफ और स्पष्ट संकेत स्थायी सरकार का दिया है। जातीय, क्षेत्रीय, पारिवारिक और व्यक्तिवादी आधार पर चलने वाले दलों का किनारे लगाने की कोशिश मतदाताओं की है, हालांकि यह काम पूरा-पूरा नहीं पाया। देश की राजनीति दो दलीय और दो ध्रुवीय हो ये जनता की चाहत और राष्ट्रीय राजनीति की जरूरत है। लेकिन इसके लिए कांग्रेस और भाजपा दोनों को मशक्कत करनी होगी। कांग्रेस को सरकार और यूपीए गठबंधन की मर्यादा हो सकती है, लेकिन इस दिशा में शिद्दत से आगे बढ़ना भाजपा की जरूरत भी है और उसके लिए पांच साल का अवसर भी। संभव है बिहार का अगला चुनाव नीतीश कुमार बिना भाजपा के लड़े, जैसे उड़ीसा में नवीन पटनायक ने किया। नीतिश कुमार के सहयोग से बिहार में भाजपा आगे नहीं बढ़ रही, बल्कि पिछड़ रही है या यथास्थिति में है।
यूपीए, कांग्रेस, सोनिया, राहुल और मनमोहन सिंह के बारे में अभी कोई भी विश्लेषण निरर्थक होगा। क्योंकि अभी कांग्रेस को सबसे अधिक सांसद मिले हैं। अभी सरकार बनाने की खुशी है। सभी तर्क, विश्लेषण और विचार कांग्रेस के पक्ष में ही किए जायेंगे। ये सब वातानुकूलित हैं। लेकिन उन सवालों को झुठलाया नहीं जा सकता जो राष्ट्रीय क्षितिज पर मंडरा रहे हैं। आंतरिक और बाह्य सुरक्षा, आतंकवाद, आर्थिक मंदी, बढ़ती बेराजगारी, मंहगाई, दीर्घकालीन तुष्टीकरण से पैदा हुई समस्याओं को न तो यूपीए सरकार और न ही विपक्ष नकार सकता है। यह तो देश का काॅमन मिनिमम प्रोग्राम है। देश की जनता चाहती है समस्याओं का निदान, विकास के अवसर और सुरक्षित माहौल। उसने वादाखिलाफी, परिवारवाद, अहंकार, बेरूखी और दागदार छवि को नकार दिया है। नेताओं, पार्टियों और दलों के रहनुमाओं सावधान! भारतीय लोकतंत्र अब वयस्क हो रहा है। मतदाता सतर्क और सावधान है, इनके संकेत और सबक को पहचानों, उसपर अमल करो।

शुक्रवार, 22 मई 2009

मध्यप्रदेश जन अभियान परिषद्
विकास में जनभागीदारी का ताना-बाना
अनिल सौमित्र

सभी के विकास के लिए यह आवश्यक है कि हम सभी साथ चलें, साथ बोलें और साथ-साथ सोचें। विकास के हितग्राही बनने से पहले हमें विकास में सहभागी बनना होगा। अर्थात् - संगच्छध्वम् संवद्ध्वम्। मध्यप्रदेश जन अभियान परिषद् का यही सूत्र वाक्य है। विकास को सर्वस्पर्शी और सर्वग्राही बनाना समाज और सरकारों की कल्पना रही है। खासकर भारत में ‘‘राज्य को, संवैधानिक बाध्यताओं के द्वारा लोक कल्याणकारी बनाया गया है। अन्त्योदय और सर्वोदय से लेकर एकात्ममानववाद तक की परिकल्पना इन्ही आग्रहों के इर्द-गिर्द की गई है।
लंबे अरसे से भारत में विकास, एक सामाजिक पहलु रहा है। यह बहुत कुछ आध्यात्म केन्द्रित था। किन्तु जैसे-जैसे दुनिया की अन्य संस्कृतियों का भारत पर प्रभाव बढ़ा, विकास अर्थ केन्द्रित होता चला गया। समाज पर राजनीति और सरकार का प्रभाव उत्तरोत्तर बढ़ता गया। जाहिर है विकास की अवधारणा में अध्यात्म का लोप और सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक का दखल बढ़ गया। तब भारत में विकास को चार पुरूषार्थों के अंतर्गत देखा गया - धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष। ये चारों पुरूषार्थ विकास के माध्यम भी हैं और परिणति भी। किन्तु वर्तमान संदर्भों में विकास में अर्थ और काम हावी है, धर्म और मोक्ष का लोप हो रहा है।
मध्यप्रदेश में विकास की चर्चा चहुंओर है। यहां तक कि वर्ष 2003 और गत विधानसभा का चुनाव भी विकास के मुद्दे पर लड़ा गया। विकास चुनाव का मुद्दा बने और जनता इसे स्वीकार करे यह शुभ संकेत है। प्रदेश में यह शुभ संकेत घटित हुआ है। भाजपा ने विकास के नारे के साथ जनता का समर्थन प्राप्त किया और लगातार दूसरी सरकार बनाई। मध्य्रपेदश में विकास की चुनौती है। भाजपा सरकार ने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चैहान के नेतृत्व में इस चुनौती को स्वीकार किया है। अब सरकार विकास की भाषा बोलेगी, लेकिन समाज के साथ बोलेगी, समाज को साथ लेकर चलेगी। फिर वही सूत्र वाक्य - संगच्छध्वम् संवद्ध्वम्। लेकिन यह सूत्र अधूरा है। ऋग्वेद के दसवें मंडल, 191 वें सूत्र के दूसरे मंत्र में इसके आगे कहा गया है - संवोमनांसि जानताम्। देवाभागम् यथापूर्वें सं जानाना उपासते। आशय स्पष्ट है - जिस प्रकार पहले के देवता एकमत होकर अर्थात् मिल-जुलकर अपने-अपने यज्ञभाग (दायित्व) को स्वीकार करते आए हैं, उसी प्रकार उसी प्रकार तुम सब लोग साथ-साथ चलो, साथ-साथ बोलो और तुम सबके मन एकमत (ज्ञान प्राप्त करते हुए) हो जाएं। सीखने में साहचर्य के बिना साथ चलने और साथ बोलने की सार्थकता नहीं है। कठोपनिषद् में भी इस प्रकार का संदेश है। इसमें कहा गया - हम साथ-साथ भोजन करें, हम साथ-साथ पराक्रम करें, एक-दूसरे की रक्षा करें, किसी से द्वेष न करें। जनभागीदारी का अद्भुद संदेश।
मध्यप्रदेश जन अभियान परिषद् की स्थापना के पीछे सोच यही थी कि विकास को सिर्फ सरकार का विकास न बनाया जाए, बल्कि इसे जन विकास में तब्दील किया जाए। विकास में जनभागीदारी, जनसहयोग, सामुदायिक सहभागिता और साझेदारी सुनिश्चित हो। जन अभियान परिषद् का गठन कांग्रेस शासन में हुआ। तब प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री दिग्विजय सिंह थे। तब भी जनभागीदारी की चर्चा खूब हुई। जिला सरकार और ग्राम स्वराज जैसी अवधारणाओं को भी काफी जगह मिला। लेकिन साफ नीयत और ईमानदार प्रयास के अभाव में सरकारी प्रयासों को अपेक्षित परिणाम नहीं मिल पाया।
चूंकि विधायिका और न्यायपालिका दोनों की मंशा यही है कि विकास में आम लोगों को भागीदार बनाया जाए, उन्हें योजना, रणनीति और क्रियान्वयन का हिस्सा माना जाए। इसलिए कार्यपालिका के स्तर पर भी इस प्रकार का प्रयास हुआ। लेकिन राजनैतिक इच्छाशक्ति की कमी के कारण कार्यपालिका ने भी इसे आधे-अधूरे मन से इसका क्रियान्वयन किया। वर्ष 2003 के चुनावी दृष्टि-पत्र और घोषणा-पत्र में स्वैच्छिक संगठनों के लिए ढांचागत और संरचनागत प्रयास के वायदे के साथ भाजपा ने इस दिशा में स्पष्ट संकेत दिया। गत वर्षों में मध्यप्रदेश की कार्यपालिका भी इस दिशा में सजग और सक्रिय हुई है।
अन्य प्रदेशों की भांति मध्य्रपेदश में भी हजारों स्वैच्छिक संस्थाएं कार्यरत हैं। सभी के अपने-अपने गुण-दोष होंगे। लेकिन एक नीति और स्पष्ट पद्धति और ढांचागत व्यवस्था न होने से जन, स्वैच्छिक संस्थाएं और सरकार के बीच सुनियोजित समन्वय नहीं हो पा रहा था। किन्तु भाजपा सरकार के प्रयासों से मध्यप्रदेश जन अभियान परिषद् का पुनर्गठन हुआ है। ग्रामीण विकास विभाग की बजाय वित्त एवं योजना विभाग के साथ इसे संबद्ध किया गया है। अब स्वैच्छिक संस्थाओं और सरकार के बीच के संबंधों को जानने-समझने, उसकी व्याख्या करने, आवश्यकतानुसार संशोधित करने और एक-दूसरे के लिए उपयोग करने की व्यूहरचना विकसित करने की कवायद की जा रही है। कोशिश की जा रही है कि इस क्षेत्र में विश्वास को बढ़ावा दिया जाए और विवाद को कम किया जाए। स्वैच्छिक संस्थाओं का संग्रह और संकलन किया जा रहा है। उनके गूण-दोष और विशेषताओं की पहचान की जायेगी। तदनुसार उनके लिए प्रशिक्षण, सशक्तिकरण और नियमन की पद्धति और रूपरेखा तैयार की जायेगी।
प्रदेश के मुख्यमंत्री, जन अभियान परिषद् के पदेन अध्यक्ष होते हैं। मुख्यमंत्री के मार्गदर्शन में ही परिषद् का समूचा तंत्र कार्यरत है। विधान के मुताबिक एक अशासकीय व्यक्ति और वित्त, योजना, आर्थिक व सांख्यिकी मंत्री सहित इसके दो उपाध्यक्ष होते हैं। इसकी कार्यकारिणी सभा के सभापति मध्यप्रदेश शासन के मुख्यसचिव होते हैं। इसके साथ ही विभिन्न विभिगों के प्रमुख सचिव और पांच अशासकीय प्रतिनिधि इसके सदस्य होते है। अशासकीय प्रतिनिधि के तौर पर नामचीन स्वैच्छिक संस्थाओं के प्रतिनिधि मनोनीत किए जाते हैं। परिषद् का राज्य कार्यालय अपने अमले के साथ कार्यपालन निदेशक के नेतृत्व में निर्दिष्ट कार्यों को अंजाम देता है। वर्तमान में विभागीय मंत्री के अलावा अनिल माधव दवे भी इसके उपाध्यक्ष हैं। श्री दवे भाजपा के भी उपाध्यक्ष हैं। प्रदेश भाजपा के मुखपत्र ‘चरैवेती’ के संपादक होने के साथ-साथ वे ‘नर्मदा समग्र न्यास’ के अध्यक्ष भी हैं। लंबे अरसे से वे सामाजिक कार्यों और गतिविधियों में भागीदार रहे हैं। शिक्षा, महिला उत्थान और पर्यावरण के क्षेत्र में कार्यरत संस्था ‘भारती समाज’ के भी वे अध्यक्ष हैं। ‘‘जाणता राजा’’ नाम से संचालित सांस्कृतिक गतिविधि में भी इनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही है। इनके मार्गदर्शन में जन अभियान परिषद् ने ‘‘रोटी और कमल यात्रा’’ तथा अंतरराष्ट्रीय नदी महोत्सव को अंजाम दिया। जन अभियान परिषद् के कार्यपालन निदेशक की जिम्मेदारी का निर्वहन पुलिस विभाग के अधिकारी राजेश गुप्ता कर चुके हैं। श्री गुप्ता का संबंध पुलिस विभाग से जरूर है लेकिन वे विकास कार्यो के भी सिद्धस्त हैं। खंडवा जिला पंचायत के मुख्य कार्यपालन अधिकारी के तौर पर उन्होंने जल संरक्षण और संवर्द्धन से संबंधित कार्यों को एक नया आयाम दिया। वे पर्यावरण, पारंपरिक खेती और जल संवर्द्धन के विशेषज्ञ के तौर पर जाने जाते हैं। अब जन अभियान परिषद् ढांचा विकासखंड स्त्र तक विकसित हो चुका है। संभाग, जिला और विकासखंड समन्वयक, मैदानी कार्यों को बेहतर तरीके से संपादित करने के लिए तैयार हैं।
प्रदेश की स्वयंसेवी संस्थाओं को सरकार से बहुत अपेक्षाएं हैं। सरकार भी इन संस्थाओं से अनेक अपेक्षाएं रखती है। अभी तो आरोप-प्रत्यारोप ही अधिक दिख रहा है। सरकार पर अनुदान में पारदर्शिता और ईमानदारी न बरतने का आरोप लगता रहा है। एक नई धारणा भी विकसित हुई है कि एनजीओ को अब ठेकेदार एजेंसी की तरह समझा जाने लगा है। वहीं सरकार को भी एनजीओ से कई शिकायतें रही है। अनुदान राशि का दुरूपयोग, विदेशी अनुदान का समाज और राष्ट्रविरोधी कार्यों में व्यय तथा कई एनजीओ की सरकार और समाज विरोधी कार्यों में संलिप्तता का आरोप भी गलता रहा है। विभिन्न कार्यों के लिए संस्थाओं के चयन में भेद-भावपूर्ण तौर-तरीके के बारे में भी आपत्ति दर्ज करायी जाती रही है। सरकार भी चाहती है कि एनजीओ पूर्वाग्रह रहित होकर विकास कार्यों में सहभागी बनें। निश्चित तौर पर देश में एनजीओ क्षेत्र का तेजी से विकास हो रहा है। मध्यप्रदेश ऐसा राज्य है जहां विकास में जनांदोलन में स्वैच्छिक संस्थाओं की काफी महत्वपूर्ण भूमिका है। निजी और सार्वजनिक क्षेत्र की ही तरह एनजीओ क्ष्ेात्र का भी व्यापक विस्तार हुआ है। इस क्षेत्र के साथ ताल-मेल, समन्वय, सहयेाग और नियमन कठिन और चुनौतिपूर्ण तो है, लेकिन असंभव नहीं। हां इसके लिए स्पष्ट सोच और व्यापक दृष्टि जरूर चाहिए। जन अभियान परिषद् को स्वैच्छिक संस्थाओं के लिए आकर्षण का केन्द्र बनना है। उसे स्वयं सशक्त और सक्षम होना है। तदर्थ और संविदा ढांचागत विकास से आगे बढ़कर स्थायी संरचना और ढांचा विकसित करना है।
मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चैहान ने ‘स्वर्णिम मध्यप्रदेश’ का नारा दिया है। सच में यह प्रदेश को स्वर्णिम बनाने के लिए समाज और सरकार से आह्वान है। मध्यप्रदेश जन अभियान परिषद् भी इस आह्वान को सफल बनाने के लिए सक्रिय हुआ है। यह समाज और सरकार के बीच एक सेतु की तरह काम करेगा। विकास की यात्रा को जरूरतमंदों तक ले जाने का प्रयास। सहस्रो जन संगठनों को साथ लेकर विकास की उड़ान भरने का काम। मुख्यमंत्री चाहते हैं- प्रदेश में कोई भूखा और भयभीत न रहे, निरक्षर और अशिक्षित न रहे। जन-जन समृद्धि और सम्पन्नता के साझीदार बनें। मानव और प्राकृतिक संसाधनों का कुशल प्रबंधन हो। हर हाथ को काम मिले। अर्थात् भय, भूख और भ्रष्टाचार रहित प्रदेश। ऐसा प्रदेश ही देश और दुनिया में सिरमौर बनेगा।
जाहिर है यह सब तभी होगा जब जन अभियान में व्यक्ति तो हो लेकिन यह व्यक्गित न हो, जन अभियान की राजनीति न हो, लेकिन इसमें राजनीति न हो। जन अभियान परिषद् जन संगठनों और स्वैच्छिक संस्थाओं का संगठन करे, इनके बीच में एक संगठन बनकर न रह जाए। व्यक्तिगत आशा-आकांक्षा, अपेक्षा और महत्वाकांक्षा विलीन होकर व्यापक रूप धारण करे। जन भागीदारी का दर्शन तभी फलीभूत होगा जब साफ नीयत से ईमानदार प्रयास होगा। कथनी और करनी में एकरूपता से ही ऋग्वेद के सूत्र को लागू कर पायेंगे, प्रदेश के हित में कुछ परिणाम दे पायेंगे। अभी तो जन अभियान की पक्रिया चल रही है, जल्दी ही कुछ परिणाम मिले यह सबकी अपेक्षा है। मध्यप्रदेश जन अभियान परिषद् विकास में जन भागीदारी का ताना-बाना बुन रहा है। यह ताना-बाना निश्चित ही ‘स्वर्णिम मध्यप्रदेश’ के स्वप्न को साकार करेगा।

मंगलवार, 19 मई 2009

देवर्षि नारद: मीडिया के पथप्रदर्शक
अनिल सौमित्र

आज नारद जयंती है। ईस्वी सन् के अनुसार वर्ष 2009 और 11 मई है। किन्तु यह संयोग है। सामान्यतः नारद को भारतीय संदर्भों में जानना समझना ही उपयुक्त और समीचीन होगा। इसलिए नारद की जयन्ती भारतीय कालगणना के अनुसार ज्येष्ठ मास की कृष्णपक्ष द्वितीया को है। आंग्ल कालगणना के अनुसार तारीख और मास भले ही बदल जाये लेकिन भारतीय अथवा हिन्दू गणना के अनुसार प्रत्येक वर्ष की ज्येष्ठ मास की कृष्णपक्ष द्वितीया को ही उनकी जयंती होती है।
आज यह सवाल सर्वथा समीचीन है कि नारद को हम क्यों स्मरण कर रहे हैं। क्या इस लिए लिए वे भारत की ऋषि, महर्षि और देवर्षि की परंपरा के वाहक थे। या इसलिए कि उन्होंने अपने कर्तृत्व के द्वारा लोक कल्याण को धारण किया। महर्षि नारद के बारे में आम धारणा यह है कि वे देवलोक और भू-लोक के बीच संवादवाहक के रूप में काम करते थे। देवलोक में भी वे देवताओं के बीच संदेशों का प्रसारण करते रहे। लेकिन नारद मुनि के बारे में भू-लोक वासियों के मन में अच्छी छवि नहीं दिखती है। यही कारण है कि जो लोग अपनी संतान को एक अच्छा पत्रकार बनाना चाहते हैं भी उसका नाम नारद रखने से बचते हैं। कई लोग नारद मुनि के व्यक्तित्व की व्याख्या समाज में आज के चुगली करने वाले की तरह करते हैं। जिस पत्रकार के बारे में नकारात्मक टिप्पणी करनी होती है तो उसे आमतौर पर ‘नारद’ के नाम से ही संबोधित कर देते हैं।
लेकिन अब धीरे-धीरे नारद मुनि के बारे में सकारात्मक दृष्टि से चर्चा शुरू हो गई है। नारद के बहाने भारत में ऋषि-मुनि, महर्षि और देवर्षि जैसे विशेषणों के बारे में खोज-खबर शुरु हो गई है। नारद मुनि के बारे जितनी जानकारी उपलब्ध है उसके मुताबिक उनके व्यक्तित्व का सबसे महत्वपूर्ण पहलू एक कुशल संचारक, संप्रेषक और संवादवाहक का है। आज के मीडिया प्रतीकों के संदर्भ में विचार करें तो स्पष्टतः नारद और महाभारत काल के संजय की भूमिका मीडिया मैन की दिखती है।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक प्रातःस्मरण में जिन महापुरूषों को बार-बार स्मरण करते हैं उनमें देवर्षि नारद का नाम प्रमुख है। संघ, नारद को भारतीय ज्ञान और संचार परंपरा का वाहक मानता है। उनके बहुआयामी व्यक्तित्व को सही अर्थों में समझने और समझाने का गुरुतर दायित्व भी संघ ने अपने उपर लिया है। संघ अपने स्थापना काल से ही प्रचार से दूर रहा। लेकिन समय की आवश्यकताओं के मदद्ेनज़र संघ ने भी प्रचार को अंगीकार किया और इस दिशा में पहल की। प्रचार विभाग, संघ के संरचनागत ढांचे में शामिल है। प्रचार विभाग की ईकाइयां जिला स्तर पर कार्यरत हैं। संघ ने प्रचार को स्वीकार तो किया है, लेकिन इस क्षेत्र में कार्य करते हुए वह पूरी तरह सतर्क और सावधान है। जाहिर है, संघ के लिए प्रचार का एक सीमित उद्देश्य है। संघ को पता है कि अनियंत्रित और असंयमित प्रचार से संघ कार्य पर प्रतिकूल प्रभाव हो सकता है। शायद इसी सावधानी और सतर्कता के कारण संघ सीधे तौर पर मीडिया की दैनंदिनी गतिविधि में शामिल नहीं है। आवश्यकतानुसार निर्धारित व्यक्तियों के द्वारा मीडिया से चर्चा की जाती है। मीडिया क्षेत्र में दीर्घकालिक और योजनाबद्ध कार्य करने के लिए संघ की प्रेरणा से सभी प्रांतों में विश्व संवाद केन्द्र कार्यरत है। संवाद केन्द्रों की कार्य योजना में शोध, सूचना-प्रसार और प्रकाशन महत्वपूर्ण अंग है।
नारद मुनि की चर्चा जितना संघ के लिए प्रसंागिक है उतना ही मीडिया क्षेत्र और समाज के लिए भी। प्रचार या मीडिया का महत्व संघ के लिए आंशिक है। क्योंकि संघ समाज तक सीधे और प्रत्यक्ष पहंुचना चाहता है। लेकिन मीडिया का तो कार्य ही सूचना, शिक्षा और मनोरंजन का है। इसलिए नारद मीडिया के प्रतिमान भी हैं और पथप्रदर्शक भी। दिन-ब-दिन मीडिया का महत्व समाज जीवन में बढ़ता ही जा रहा है। व्यक्ति के निजी और सार्वजनिक जीवन में मीडिया का दखल और प्रभाव दोनों बढ़ता जा रहा है। मीडिया का हस्तक्षेप भौतिक और आध्यात्मिक दोनों स्तरों पर बढ़ रहा है। लोकतंत्र में मीडिया विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिक के साथ चैथे स्तंभ के रूप में कार्यरत है। मीडिया के अलावा अन्य तीनों स्तंभों पर किसी न किसी का नियंत्रण और नियमन है, लेकिन मीडिया रूपी यह चैथा स्तंभ किसी तंत्र के नियंत्रण या नियमन से परे है। अपेक्षा यह की जाती है कि मीडिया स्वयं ही अपना नियमन और नियंत्रण करे। यहीं पर देवषि नारद का व्यक्तित्व और कर्तृत्व मीडिया के लिए महत्वपूर्ण हो जाता है। नारद का संपूर्ण जीवन और व्यक्तित्व एक व्यापक अध्ययन की मांग करता है। उनके कर्तृत्व का अनेक पहलू ऐसा है जो अनछुआ और अनसुलझा है। भारतीय ग्रंथों और साहित्यों में उन्हें तलाशने की आवश्यकता है।
आज जिन बातों की अपेक्षा सभ्य समाज मीडिया से करता है नारद का चरित्र और कर्तृत्व पूर्णतः उसके माकूल है। देवर्षि नारद ने सूचनाओं का आदान-प्रदान लोकहित का ध्यान में रखकर किया। कई बार उनकी सूचनाओं या संप्रेषण शैली से देवताओं को तनाव या व्यवधान उत्पन्न होता प्रतीत होता था, लेकिन लोक या जन की दृष्टि से विचार करने पर उनके अन्तर्निहित भाव का बोध सहज ही हो जाता है। आज मीडिया जब पूंजी, राज्य और बाजार के नियंत्रण में दिखता है, मीडिया का लोकोन्मुखी चरित्र विलुप्त-सा है। पाठक, श्रोता और दर्शक मीडिया अधिष्ठान के द्वारा ग्राहक बनाए जा रहे हैं। मीडिया अब उत्पाद बन गया है। सूचना, शिक्षा और मनोरंजन का घाल-मेल हो गया है। वर्तमान मीडिया, पश्चिमी और यूरोपीय प्रभाव से वशीभूत है। भारतीय मीडिया के प्राचीन नायक नारद को खलनायक की तरह देखने-समझने की बजाए सही अर्थों में जानने-समझने की चेष्टा होनी चाहिए। इसके पहले कि मीडिया से लोक का भरोसा उठ जाए, मीडिया के भारतीय प्रतिमानों, प्रतिरूपों और नायकों को ढूंढने की कोशिश होनी चाहिए। सही मायने में नारद, मीडिया के लिए पथप्रदर्शक हो सकते हैं।
हर वर्ष नारत की जयंती आती और चलर जाती है। भारत में महापुरूषों से सीखने, उनका अनुगमन करने और मार्गदर्शन प्राप्त करने की विधायक परंपरा पही है। ग्राम विकास और अन्त्योदय की बात हो तो गांधी, सर्वोदय की बात हो तो विनोबा, एकात्ममानववाद की बात हो दीनदयाल उपाध्याय हमें सहज ही याद आते हैं, ऐसे ही मीडिया की चर्चा हो तो नारद स्मरण स्वाभाविक ही है। नारद को अब प्रथम पत्रकार या संवाददाता के रूप में याद किया जाने लगा है। अगर चालू भाषा में कहें तो नारद फस्ट मीडिया मैन थे। लेकिन वे तत्व ज्ञान के जानकार, अध्येता और ऋषि परंपरा के वाहक भी थे। उनके व्यक्तित्व के अनेक पहलु अनजाने हैं, लेकिन एक संचारक, संवादवाहक और संप्रेरक के रूप में आमजन उन्हें जानता है, उनके इस रूप को और अधिक जानने की आवश्यकता है। भारतीय मीडिया जगत के लोग भी उन्हें इन्हीं अर्थों में जाने-समझे और स्वीकारे यह समय की मांग है।
(लेखक संघ के मीडिया केन्द्र से संबद्ध हैं।)

सोमवार, 13 अप्रैल 2009

आसन्न चुनाव

सवाल जान और माल का है

- जयराम दास
चुनाव के मुहाने पर खड़ा होकर एक वोटर या नागरिक के नाते यदि आप यह सोचे कि आपने क्या खोया और क्या पाया है तो शायद आपका मन वितृष्ण से भर जायगा। हांलाकि दो रात के बाद एक दिन के उलट हम दो दिन के बीच एक रात देखने की सकारात्मक नजरिये से देखे तो निश्चय ही इस लोकतंत्र की कुछ उपलब्धियां आपको दिखेगी। लेकिन आपको यह मानना होगा कि इस देश ने यह तमाम उपलब्धियां आज के कर्णधारों, नेताओं के कारण नहीं बल्कि उनके बावजूद हासिल की है । जहां तक आज के राजनीति एवं नेताओं का सवाल है तो यह निश्चय ही शर्मनाक है कि भ्रष्टाचार, गुंडागर्दी एवं असुरक्षा के अलावा कुछ भी नहीं दिया है इन राजनीतिक दलों ने देश को। विभिन्न समाचार माध्यमों द्वारा परोसे जा रहे चुनावी खबरों को आप देखे तो यह लगेगा कि गांव, गरीब, किसान, मध्यवर्ग आदि के सरकारों से जुड़ा कुछ है ही नहीं इस लोकसभा चुनाव में। शायद साजिश पूर्वक इस पूरे चुनाव को मुद्दाविहीन करार दिया जा रहा है। क्या यह सच है कि इस चुनाव में कोई मुद्धा नहीं है ? महंगाई से कतराते निम्न मध्य वर्ग, आत्महत्या करते किसान, घुटने टेकना, स्वाभिमान, आतंक की भट्ठी में मांस के लाथड़े मे तबदील होते आसाम से लेकर अहमदाबाद, बंगलौर से लेकर बस्तर तक आम इंसान आदि क्या ऐसे विषय नहीं हैै, जिस पर बहस होती और इस मुद्दे पर जनमत का निर्माण किया जाता ? क्या विभिन्न तरह के जातिगत सामाजिक, क्षेत्रिय, समीकरण से ज्यादा महत्वपूर्ण उपरोक्त मुद्दे नहीं है ? आखिर आज इस विडंबना पर किसी का ध्यान क्यूं नहीं जाता कि जब पिछले पांच साल में अनाजों के दाम आसमान छू रहे थे, तो आखिर उसे उगाने वाला किसान आत्महत्या क्यूं कर रहा था ? आखिर यह कौन सा अर्थशास्त्र है, जिसमें उत्पादक और उपभोक्ता दोनो परेशान है और मालामाल हो रहे थे बिचैलिया और जमाखोर। अर्थशास्त्र के वैश्विक धुरंधर के रूप में पहचान रखने वाले प्रधानमंत्री, तात्कालीन वित्त मंत्री योजना आयोग के उपाध्यक्ष आदि की क्षमता या नीयत पर प्रश्न चिन्ह नहीं लगता यह विषय ? क्या जनता यह जानने का हक नहीं रखती कि क्योकर बढ़ रहीं थी मंहगाई ? इस मुद्दे पर कोई युक्ति संगत सफाई भी देने की जरूरत नहीं समझी उपरोक्त धुरंधरों ने। क्या इस आशंका के पर्याप्त आधार नहीं है कि महंगाई के नाम पर यह भी एक ‘‘घोटाला’’ ही था। और यदि यह घोटाला था तो शायद यह भारत के इतिहास का सबसे बड़ा स्कूप साबित हो सकता है। आखिर इस बिडंबना का क्या करें कि भारत का कृषि मंत्री जिस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते है, वहीं के किसानों ने सबसे ज्यादा खुदखुशी की है। और उस कृषि मंत्री का अपने किसानों से ज्यादा क्रिकेट की चिंता करना ‘‘नीरो’’ की तरह बंशी बजाना नहीं माना जाना चाहिए ? आप याद करें, बहुत ज्यादा दिन नहीं हुआ जब दिल्ली की सरकार केवल प्याज के मुद्दे पर पराजित हो गई थी लेकिन उस बार इतना तो जरूर था कि जिस भी किसान के पास प्याज का स्टाॅक था वे मालामाल हो गये थे। यहां तो आलम ये है कि केवल विदर्भ में पिछले साल 1200 किसानों ने आत्महत्या की। इसी तरह पिछले लगभग सभी चुनावों में बेरोजगारी एक बड़ा मसला हुआ करता था, लेकिन अभी पहली बार ऐसा हुआ है कि लोगों को अपने अच्छे-खासे रोजगार या व्यवसाय से हाथ धोना पड़ रहा है। विश्व बैंक के एक रिपोर्ट के अनुसार मात्र पिछले तीन महीनों में देश के 5 लाख लोगों को अपनी नौकरी गवंानी पडी है। स्वयं केन्द्र सरकार के श्रम मंत्रालय की हालिया जारी 48 वीं रिपोर्ट यह कहता है, कि केवल सरकारी नौकरियों में 48000 रोजगार के अवसरों का खत्मा हुआ है। एक आकलन यह कहता है कि अगले कुछ हफतों में एक करोड़ लोगो को बेरोजगार होने की अशंका है। भारत के सबसे बड़े काॅर्पोरेट घोटाले ‘‘सत्यम’’ के कारण ही 53000 लोगो का भविष्य दांव पर है, और अपनी गाढ़ी कमाई लगाने वाले लाखों निवेश्क कंगाल हो गये हैं। क्या खातों के हेरफेर कर इतने बड़े महाघोटाले को रोके जाने की जिम्मेदारों से ‘‘सेबी’’ जैसी संख्या पल्ला झाड़ सकती है ? आतंकवाद की बात करें ! क्या यह चुनाव मूंबई के ताज समेत तमाम महत्वपूर्ण हमलों पर चर्चा करने का अवसर नहीं है ? लोगों को यह भूल जाना चाहिए कि जब भारत की आर्थिक रीढ़ कहे जाने वाले मुंबई को बंधक बना लिया गया था तब केन्द्रीय गृह मंत्री जो उसी प्रदेश से ताल्लूक रखते हैं, वे फैशन और कपड़े बदलने में, सजने सवरने में मशगूल थे। हमले के बाद वहां का मुख्य मंत्री अपने अभिनेता पुत्र और अपने प्रोड्यूसर दोस्त के साथ वहां फिल्म निर्माण की संभावना तलाश रहा था। और तो और केन्द्र का एक मंत्री उसी हमले में अपने जांबाज जवानों की शहादत पर अल्पसंख्यक कार्ड खेल रहा था। संसद पर हमले के आरोप में सर्वोच्च अदालत तक से मौत की सजा पाये अफजल की मेहमान-नवाजी क्या भारी नहीं पड़ना चाहिए केन्द्र की इस सरकार पर ? क्या बाटला हाउस एनकाऊंटर मै शहीद जवान की शहादत पर सवाल खड़ा करना अर्जुन नाम धारी कौरवों को शोभा देता है ? वैसे तो उपरोक्त के अलावा भी दर्जनों ऐसे मुद्दे हैं, जिन पर चर्चा की जा सकती है। लेकिन खासकर लोगों के जान और माल की सुरक्षा करना किसी भी सरकार का प्राथमिक कतव्र्य है। पिछले कुछ वर्षों ने यह साबित किया है कि सरकार अपनी अक्षमता के कारण या जानबूझकर इन दोनों मामले में बुरी तरह असफल रहीं है। जन, जंगल, जमीन, गांव, गरीब, किसान, आम इंसान से ताल्लूक रखने वाले इन तमाम मुद्दों को केन्द्र बिन्दु बनाना लोकतंत्र के इस महापर्व में उचित होना चाहिए। लेकिन मीडिया मिडिएटर और मसल्समैन की तिकड़ी शायद जानबूझकर इन मुद्दों को उभरने नही दे रही है। इस चुनाव कों मुद्दा विहीन बनाने का षंड्यंत्र निश्चय ही प्रौढ़ होते इस लोकतंत्र पर बदनुमा दाग की तरह हैं। चूंकि बात आम मतदाता से शुरू हुई थी, तो गेंद अब उसी के पाले में है, कि वह अपनी समझदारी का परिचय देते हुए क्षेत्र, जाति, सम्प्रदाय आदि राष्ट्रतोड़क विषय को नजरअंदाज करते हुए राष्ट्रीय हित और अपने सरोकार एवं उसके जान-माल की सुरक्षा करने वाले दलों को अपना समर्थन दें। ------ 000 -------
- लेखक पत्रिका दीपकमल के संपादक हैं



शनिवार, 7 मार्च 2009

आरएसएस का नया कार्यालय....मध्यक्षेत्र....भोपाल....


ये आरएसएस का नया कार्यालय है। मध्यक्षेत्र का भोपाल मे --समिधा नाम है इसका...समिधा, यज्ञ मे हवन सामग्री को कहते है....राष्ट्रयज्ञ मे समिधा है--स्वयंसेवक, प्रचारक और कार्यालंय .

मैकडोनाल्डस का आतंक्


मंगलवार, 3 मार्च 2009


प्रो. विश्वनाथ प्रसाद तिवारी, संयोजक, हिन्दी सलाहकार बोर्ड, साहित्य अकादमी नई दिल्ली से लालमिर्ची के लिए बातचीत 
बर्बर विचारधारा का नाम है आतंकवाद: प्रो. विश्वनाथ प्रसाद तिवारी 
लालमिर्ची - आप आतंकवाद को कैसे परिभाषित करते हैं? प्रो. तिवारी - आतंकवाद एक तरह की मानसिकता या सोच है जिसमें यह निश्चय किया जाता है कि आतंक के द्वारा अपनी मांगे या विचार थोप सकेंगे, उनका पालन करवा सकेंगे। अतः यह अपने आपमें एक बर्बर विचारधारा है। आतंकवाद का कोई घोषणा पत्र सामने नहीं रखा गया न ही किसी विचारधारा को आखिर वो क्या चाहते हैं ऐसा उन्होंने दुनिया के सामने नहीं रखा। सिर्फ जेल में बंद अपने साथियों को छुडवाना या इस तरह के अन्य कृत्य के लिए। शहीद भगतसिंह ने बिना जानमाल को क्षति पहुंचाए असेम्बली में बम विस्फोट करने पर पर्चों के जरिए अपनी स्पष्ट विचारधारा को सामने रखा उनका अपना लेखन भी विचार धारा को व्यक्त करता रहा, लेकिन क्या मुम्बई में आतंक हमला करने वालो कि कोई विचारधारा थी? विचारधारा तो दूर की बात उनकी मुम्बई हमले के समय कोई मांग भी सामने नहीं आई। लालमिर्ची - विचारधारा के अभाव में अन्य कोई नीति अपनाई? प्रो. तिवारी - कोई भी दण्ड उसे दिया जाता है जो दोषी हो, लेकिन स्टेशन, होटल, सार्वजनिक जगहों पर इस तरह के हमले में क्या नैतिकता है? आतंकी उन लोगों को मार रहे हैं जो असुरक्षित, निर्दोष हैं जिनकी किसी से भी दुश्मनी नहीं। अगर आतंकी का कोई दुश्मन भी है तो आमजन की तो नीति निर्धरण में कोई हिस्सेदारी भी नहीं है। जहां स्पष्ट मांग नहीं है वह सिर्फ तानाशाही है और ऐसा आचरण आतंकी वहां भी करते हैं जहां उनके पास सत्ता है। स्वातघाटी में लड़कियों के स्कूल बंद करवा दिए, पत्रकार को मारा। दरअसल आतंकवादी जो सत्य है उसको दबाना चाहते हैं और यह डरपोकों का काम है और कायरता की निशानी है। लालमिर्ची - पश्यिमी देशों की बनिस्बत भारत में आतंकी घटनाओं की पुनरावृत्ति क्यों? प्रो. तिवारी - इसके लिए हमारी राजनीतिक व्यवस्था दोषी है। जहां विभिन्न राजनीतिक दल आतंक के मुद्दे पर एकजुट नहीं है। पश्चिमी देशों के राजनीतिक दलों में आतंक के बारे में एकजुट दिखते हैं। जिससे वहां आतंक के खिलाफ स्पष्ट, ठोस और कड़ी कार्यवाही होती है। जब कि भारतीय राजनीतिक दलों में इसका अभाव है। लालमिर्ची - आतंक के बारे में साहित्यकार वर्ग की सोच क्या है? प्रो. तिवारी - साहित्यकार, हिंसा, तानाशाही, शाश्वत, विरोधी है अगर नहीं है तो होना चाहिए और उसे विचारों की सहिष्णुता को स्वीकार करना चाहिए। दुनिया तीन शब्दों लोकतंत्र, अहिंसा और भाईचारा को छोड़कर नहीं चल सकती और साहित्य इनका पोषण करता है अगर हम तीन शब्दों को छोड़ दंेगे तो उत्पात बना रहेगा। लालमिर्ची - ऐसे में साहित्यिक लोगों का दायित्व? प्रो. तिवारी - तानाशाही, हिंसा आतंकवाद के मूल में है तानाशाही, हम जो करेंगे वही होगा और हिंसा के जरिए करेंगे। ऐसी सोच के निर्मूलन के लिए साहित्यिक वर्ग को आगे आना होगा। किसी भी प्रकार की कट्ठरता और धार्मिक उन्मूलन मानवता के लिए खतरा है। जहां तक साहित्यकार के दायित्व की बात है तो प्रत्येक साहित्यकार के लेखन की आत्मा तानाशाही और हिंसा के विरुद्ध है। लालमिर्ची - क्या कोई ठोस पहल ही रही है? प्रो. तिवारी - आतंकवाद के खिलाफ लेखकों का का कोई घोषित ऐजेण्डा नहीं है। लेखन क्षेत्र में ऐसे कोई दिशा निर्देश भी तय नहीं किए जाते। कई कृतियों की रचना हुई है। लेकिन इन्हें आतंकवाद के खिलाफ नारे के रूप में नहीं अपनाया जा सकता है। लेखन स्व स्फुटित होता है। कश्मीर की प्रख्यात लेखिका चंद्रकांता ने कथा सतीशर लिखा है जिसमें कश्मीर के आतंकवाद और जनमानस की भावनाओं का प्रभावी चित्रण हैं। लालमिर्ची - हमारे पौराणिक, प्राचीन साहित्य में क्या स्थिति थी? प्रो. तिवारी - हमारे संतों ने मानवभाव की एकता के लिए और अनीति, अत्याचार के विरोध में साहित्य रचना की। उस समय आतंकवाद की अवधारणा वर्तमान स्वरूप में तो नहीं थी किन्तु राक्षसों के उत्पाात के विरुद्ध रामकथा, कृष्ण कथा आदि में अनेक जिक्र आते हैं। असुरों के जो वर्णन तमाम साहित्य में मिलते हैं वे वर्तमान परिपे्रक्ष्य में आतंकी ही दृष्टव्य होते हैं। लालमिर्ची - आतंक के बारे में जनमानस का रवैया कैसा हो? प्रो. तिवारी - आतंकवाद के विरुद्ध जनता में आक्रोश और घृणा है लेकिन जनमानस का मूल स्वभाव अहिंसक होता है। जनता संगठित के बारे में सूचना प्रदर्शन कर सकती है ऐसे कृत्यों के बारे में सूचना प्रशासन तक पहुंचा सकती है लेकिन हथियार का मुकाबला शांति से नही किया जा सकता। आतंकी हिंसा से निपटने की जिम्मेदारी सुरक्षा एजेंसियों की है। लालमिर्ची - कोई सीधी कार्यवाही हो सकती है? प्रो. तिवारी - अगर आप गौतम बुद्ध के अंगुलिमाल के समक्ष जाने की बात रही है तो गांधी जी जैसा विराट प्रयोगकर्ता जो नोआखली दंगों में हिंसा के बीच जा सके, भारत ही नहीं बल्कि पूरे विश्व में दिखाई नहीं पड़ रहा है। जो अहिंसा के द्वारा इसे रोकें। साहित्य अकादमी आतंक के मुद्दे पर विचार गोष्ठियों का आयोजन कर व्यापक विचार विमर्श के जरिए जाग्रति लाने का प्रयास करेगी।

साहित्य अकादमी का अलंकरण समारोह अनेक साहित्यकार सम्मानित 
भारत में आतंकवाद और कलम के सिपाही पर विमर्श  
भोपाल। साहित्य अकादमी द्वारा साहित्यकारों के अलंकरण हेतु समारोह का आयोजन किया गया। इस समारोह में अखिल भारतीय और प्रादेशिक पुरस्कार प्रदान किए गए। कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में पूर्व राज्यपाल श्री त्रिलोकीनाथ चुतुर्वेदी उपस्थित हुए। श्री चतुर्वेदी ने अपने उद्बोधन में कहा कि संस्कृति के क्षेत्र में कार्यरत विभिन्न संस्थाओं और संगठनों के बीच अच्छा तालमेल है, इसी के कारण शासन अच्छा परिणाम दे पा रही है। शासन के मंत्री के रूप में श्री लक्ष्मीकांत शर्मा के सकारात्मक और सहयोगी प्रयासों की श्री चतुवेर्दी ने सराहना की। यहां के संस्थान कम लागत में अच्छे साहित्य उपलब्ध कराने के लिए साधुवाद के पात्र हैं। इससे साहित्य को लोकप्रियता मिलेगी और साहित्य जन सामान्य के बीच पहुंच पायेगा। अलंकरण हेतु साहित्यकारों के चयन की प्रक्रिया भी काफी पारदर्शी और स्पष्ट है। अलंकरण समारोह कार्यक्रम की अध्यक्षता मध्यप्रदेश शासन के संस्कृति मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा ने की। श्री शर्मा ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में कहा साहित्य अकादमी के प्रयासों सराहना करते हुए कहा कि इन प्रयासों के कारण प्रदेश में संस्कृति को एक नया आयाम और गति मिली है। उन्होंने कार्यक्रमों के विकेन्द्रित आयोजन की भी प्रशंसा की। उन्होंने कहा कि साहित्य और सांस्कृतिक गतिविधयों को आयोजित करने के मामले में देश का सर्वोत्तम प्रदेश है। लेकिन हम अभी भी असंतुष्ट हैं, अभी और भी बहुत अधिक काम करना है। माननीय मुख्यमंत्री जी ने जो दायित्व दिया है उसे पूरी निष्ठा और उत्साह से पूरा करना है। भाजपा सरकार ने सांस्कृतिक गतिविधियों के लिए भरपूर वित्तीय प्रावधान किया है। धन की कमी पहले भी नहीं हुइ्र्र आगे भी नहीं होने दिया जायेगा। मराठी प्रभाग और बाल साहित्य शोध पीठ की स्थापना मध्यप्रदेश सरकार की ऐतिहासिक पहल है। हमारा यह प्रयास सतत जारी रहेगा। साहित्यकारों और विद्वानों के सुझावों पर शासन अमल करने का प्रयास करेगी। माननीय मुख्यमंत्री जी ने कला पंचायत के आयोजन की मंशा भी व्यक्त की है। आप सब के सहयोग से हमारा यह प्रयास जरूर सफल होगा। कार्यक्रम के प्रारंभ में अलंकरण समारोह की प्रस्तावना रखते हुए साहित्य अकादमी के निदेशक डाॅ. देवेन्द्र दीपक ने कहा कि शासन द्वारा लेखकों के हित में प्रमुख निर्णय लिए जिसमें राष्टीय पुरस्कार की राशि 25 हजार रुपये प्रादेशिक राशि 21 हजार रुपये करने तथा दो वर्ष की बजाय प्रति वर्ष श्रेष्ठ कृतियों को पुरस्कृत किया जाएगा। विकेन्द्रीकरण के नीति के तहत प्रत्येक जिला मुख्यालय पर अकादमी द्वारा वर्ष में एक कार्यक्रम आयोजन किया जा रहा है। श्री दीपक ने अकादमी द्वारा किए गए अभिनव कार्यक्रम प्रज्ञाचक्षु कवियों का काव्यपाठ, अनुसूचित जाति/जनजाति कवियों का काव्यपाठ और प्रशिक्षण तथा श्रम रचनाकारों की कार्यशाला की जानकारी दी। साथ ही 3 अगस्त को मैथिलीशरण गुप्त की जन्मतिथि को कवि दिवस और प्रदेश के तीन महान कवियों जन्मतिथि के अवसर पर उनके जन्म स्थान पर कार्यक्रमों को आयोजित किया गया। कार्यक्रम उपस्थित अतिथियों को स्मृतिचिन्ह भेंट किया गया। मुख्य अतिति श्री त्रिलोकीनाथ चतुर्वेदी और कार्यक्रम के अध्यक्ष श्री लक्ष्मीकांत शर्मा को अकादमी के निदेशक डाॅ. देवेन्द्र दीपक ने स्मृतिचिन्ह भेंट किया। साहित्यकार श्री सुरेशचन्द्र श्ुाक्ल ने अपने उद्गार और आभार व्यक्त किया। कार्यक्रम का संचालन सुश्री सुधा शर्मा ने किया। कार्यक्र में बड़ी संख्या में प्रदेश के साहित्यकार और संस्कृतिकर्मियों ने हिस्सा लिया। भाजपा के वरिष्ठ नेता कप्तान सिंह सेालंकी, वरिष्ठ पत्रकार राजेन्द्र शर्मा, समाजसेवी देवकीनंदन मिश्र भी कार्यक्रम में उपस्थित थे।