सोमवार, 10 जनवरी 2011

गुजरात में शबरी कुंभ के बाद मध्यप्रदेश में नर्मदा सामाजिक कुंभ


भोपाल से अनिल सौमित्र
भोपाल। वर्ष 2011 मध्यप्रदेश ही नहीं, पूरे देश के लिए ऐतिहासिक होने वाला है। 10 से 12 फरवरी तक मां नर्मदा सामाजिक कुंभ का आयोजन हो रहा है। नर्मदा कुंभ मध्यप्रदेश के वनवासी बहुल मंडला जिले में हो रहा है। ऐसा ही एक कंुभ वर्ष 2006 में गुजरात के डांग जिले में शबरी कुंभ के नाम से आयोजित हुआ था। भारत वर्षों से हरिद्वार, प्रयाग, उज्जैन और नासिक में होने वाले धार्मिक कुभ से अलग यह सामाजिक कंुभ है।
नर्मदा सामाजिक कुंभ के मीडिया समन्वयक विराग पाचपोर ने पत्रकारों से बातचीत करते हुए बताया कि इस कंुभ के लिए आयोजन समिति का गठन काफी पहले हो चुका है। इस समिति में देश के प्रख्यात धर्माचार्य, सामाजिक संगठन और वनवासी क्षेत्रों में कार्यरत ख्यात लोग शामिल हैं। इस कुभ में मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, झारखंड, आंध्रप्रदेश, राजस्थान, उत्तरप्रदेश, बिहार और दिल्ली के साथ ही पूर्वोत्तर के राज्यों से भी बड़ी संख्या में लोगों के आने की संभावना है। श्री पाचपोर ने बताया कि वर्तमान तैयारियों के आधार पर यह अनुमान है कि इस कुंभ में लगभग 20 से 25 लाख लोग शामिल होंगे। कुंभ के आयोजन के लिए केन्द्रीय आयोजन समिति के अलावा ब्लॉक, तालुका और जिला स्तर पर आयोजन समिति का गठन किया गया है।
परंपरागत रूप से आयोजित होने वाले ऐतिहासिक कुंभ-मेलों का उद्देश्य भले ही धार्मिक हो लेकिन गुजरात के शबरी कुंभ और छत्तीसगढ़ के राजिम कुंभ से लेकर मंडला में आयोजित होने वाले नर्मदा कुभ का उद्देश्य विकास के साथ सामाजिक समरसता को बढ़ावा देना है। वनवासी क्षेत्रों में मतान्तरण रोकना और मतान्तरण से पैदा होने वाले राष्ट्रीय एकता-अखंडता के खतरे को उजागर करना भी इस कुंभ का एक प्रमुख उद्देश्य है। कुंभ के पूर्व और कुंभ के दौरान जनजागरण कार्यक्रमों के द्वारा मंडला की महारानी दुर्गावती, रानी लक्ष्मीबाई सहित मध्यप्रदेश के ऐतिहासिक व्यक्तित्वों और जनजातीय संस्कृति को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पेश किया जायेगा।
मां नर्मदा सामाजिक कुंभ के दौरान रानी दुर्गावती, महाराणा प्रतात, पर्यावरण एवं मां नर्मदा, सिख गुरुपुत्रों की बलिदान गाथा, राष्ट्रीय एकता और विधर्मियों के कुटिल हथकंडे, विश्वमंगल गौ-माता, जल संरक्षण, सामाजिक सुरक्षा और अयोध्या राम मंदिर केन्द्रित 10 से अधिक प्रदर्शनियां भी लगाई जायेगी। चूुकि यह ऐतिहासिक आयोजन मध्यप्रदेश में हो रहा है इसलिए राज्य सरकार ने भी अपनी ओर से तैयारियां कर रही है। सड़कें और पुल-पुलियों के निर्माण और मरम्मत का काम तेजी से हो रहा है। मध्यप्रदेश शासन की ओर से सड़क और बिजली जैसी आधारभूत सुविधाओं के साथ ही सुरक्षा की दृष्टि से भी मदद का आश्वासन दिया गया है।
आयोजकों ने इस सामाजिक कुंभ को समाज के अंतिम व्यक्ति तक ले जाने का निर्णय किया है। इसीलिए तैयारियों से लेकर जन-जागरण और सामग्री संग्रह में भी शहरी और ग्रामीण परिवारों से मदद ली जा रही है। महाराष्ट्र से शक्कर और लाखों की संख्या में लॉकेट बुलाया जा रहा है। इसी प्रकार मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के लाखों परिवारों से एक किलो चावल, आधा किलो दाल और एक-एक रूपये का संग्रह किया जा रहा है। उत्तरप्रदेश से आलू तो गुजरात से भाजन सामग्री के साथ बड़ी संख्या में भाजन बनाने और वितरण करने वाले आ रहे हैं।
मां नर्मदा सामाजिक कुंभ के आयोजक एक तरफ इसके सफल आयोजन के प्रति निश्चिन्त हैं, वहीं असामाजिक तत्वों और ईसाइ मिशनरियों के विरोध के प्रति चिंतित भी। शबरी कुंभ के आयोजन में भी इन्हीं तत्वों ने देश-विदेश में काफी विरोध किया था। जबलपुर सहित प्रदेश के अनेक ईसाइ संगठनों ने इस सामाजिक कुंभ के खिलाफ न सिर्फ दुष्प्रचार शुरु कर दिया है बल्कि उन्होेने इसके विरोध की रणनीति भी बना रखी है। आने वाले दिनों में ईसाइयों का दुष्प्रचार और विरोध और अधिक आक्रमक होगा।

माँ नर्मदा सामाजिक कुंभ

हिन्दू समाज में श्रेष्ठतम् दार्षनिक सिðांत होने के बावजूद काल प्रवाह मंे अनेक ऐसी षिथिलताएं और कुरीतियां समाज में प्रवेष करती चली गयीं, जिनमे सर्वाधिक कष्ट कर विड्ढय जाति के आधार पर हिन्दू और हिन्दू के बीच भेद-भाव एवं अस्पृष्यता रहा,जिनसे हमारे षत्रुओं केा हमें परास्त करने और दासत्व में रखने का अवसर प्राप्त हुआ। इसमें मुख्य रुप से तेरह सौ वर्ड्ढ मुगल एवं पांच सौ वर्ड्ढ ईसाइयांें का रहा। इतने वर्ड्ढों तक विदेषी आक्रांताओं की उपस्थिति के बावजूद हिन्दू धर्म की सर्वव्यापकता के कारण हिन्दू धर्म का अस्तित्व एवं राष्ट्र की एकता अक्षुण्ण रही। विष्व का अन्य कोई भी देष 100-150 से ज्यादा वर्ड्ढों के संघर्ड्ढ मंे अपना अस्तित्व कायम नही रख पाया।
हमारे समाज को कुरीतियों से मुक्त करने के लिए जितना कार्य किया जाना चाहिए था, उतना अभी हुआ नहीं है । बौð, जैन, सिक्ख सभी अपने - अपने तत्वज्ञान को कायम रखते हुए हिन्दू धर्म के व्यापक सहायक अंग हैं, अतः हिन्दू समाज को अपने तत्व ज्ञान के अनुरुप अपना आचरण दिखाना है। कुरीतियों और रुढ़ियांे से ग्रस्त इस समाज में बदलाव आना चाहिए। हिन्दू समाज की मूल धारा रहे, जनजातीय व वनवासी बन्धुओं को अलग करने का एक ड्ढड्य××ंत्र चल रहा है। अतः आज स्वयं में परिवर्तन लाये जाने की जरुरत है। हिन्दू ही अपनी संस्कृति से दूर हटेगा तो कौन इस महान संस्कृति का धारक होगा। हम सब भारत माता के पुत्र हैं यह भाव सभी में उत्पन्न करना, यही हम सब का लक्ष्य होना चाहिये। हिन्दू समानता की कल्पना सर्वांगीण समरसता की कल्पना है। सभी में एक ही ईष्वर का अंष है इसलिए न कोई ऊंचा है और न कोई निम्न।
इस माँ नर्मदा सामाजिक कुंभ में देषभर से संत, महात्माआंे एवं प्रबुðजनों के अलावा लगभग बीस लाख लोगों के आने की संभावना है। इसकी सुचारु व्यवस्था के लिये हजारों कार्यकर्ताओं की आवष्यकता होगी जो दस दिनांे तक रहकर कुंभ मंे आयोजित विभिन्न कार्यक्रमों की व्यवस्था में लगेंगे। विगत 12,13 व 14 नवम्बर को मंडला मंे कुंभ के संचालन हेतु लगभग पांच हजार कार्यकर्ताओं को व्यवस्था संम्बधी प्रषिक्षण दिया गया। इस कुंभ में सहभागिता हेतु बड़ी संख्या में साधु संतों के अपनी षिष्य मंडली सहित आगमन की सहमति प्राप्त हो रही है। समूचे राष्ट्र से सभी जाति बिरादरियों के बंधु इस कुंभ में पधार रहे हैं।
इस आयोजन से सामाजिक समरसता के निर्माण एवं धर्म की दृढ़ता की परिणति राष्ट्र की सुदृढ़ एकता के रुप में होगी। जबलपुर में दिनांक 21/11/2010 रविवार को आयोजित इस पत्रकार वार्ता को मार्गदर्षक द्वय मा.श्री मुकुंदराव जी पणषीकर(अ.भा.धर्मजागरण प्रमुख), स्वामी महामण्डलेष्वर अखिलेष्वरानंद जी सरस्वती, श्री राजेन्द्र जी (सचिव) माँ नर्मदा सामाजिक कुंभ ने सम्बेाधित किया।

10,11,व 12 फरवरी २०११ माँ नर्मदा सामाजिक कुंभ

किसी राष्ट्र की उन्नति व एकता के लिए वहां के निवासियांे में अपनी संस्कृति, मान्यताओं व धर्म के प्रति दृढ़ता व सामाजिक समरसता की महती भूमिका है। किसी राष्ट्र की संस्कृति व धर्म को क्षीण कर दिया जाये तो वह ज्यादा दिन तक सबल नहीं रह सकता। भारत एक धर्म प्रधान राष्ट्र है, प्रारम्भ से ही धर्म रुपी सूत्र ने समूचे राष्ट्र को एकरुप बँाध रखा है। विभिन्न बोली-भाड्ढा, खान-पान,रहन-सहन, स्थानीय लोक व्यवहार की भिन्नताआंे के बावजूद हिन्दू धर्म की सर्वव्यापकता ने एकात्मता के भाव को सर्वोपरि रखा तथा राष्ट्र की एकता को अक्षुण्ण रखा। स्वामी विवेकानंद ने भी कहा है - धर्म भारत का प्राण है।
प्राचीनकाल से ही कुंभ जैसे बड़े-बड़े धार्मिक स्वरुप लिये हुए वृहद् सामाजिक आयोजन देश की अखण्डता व एकात्मता को सुदृढ़ बनाने के माध्यम रहे हैं। इस अवसर पर सामाजिक व्यवस्थाओं, परम्पराओं के पुनर्मूल्यांकन व संषोधन की प्रक्रिया विद्वत मण्डली, ऋड्ढि-मुनियांे की उपस्थिति में चलती रहती थी। इस प्रकार के आयोजनों से वर्ग भेद को मिटाकर समाज में समरसता, उदारता, एकता और संगठन के सूत्र में पिरोने का कार्य सम्पन्न करने मार्ग निर्देषित किये जाते रहे हैं।
आगामी 10,11,व 12 फरवरी 2011 अर्थात् माघ षुक्ल, सप्तमी,अष्टमी व नवमी, विक्रम संवत् 2067 को माँ नर्मदा जयंती के अवसर पर ‘‘माँ नर्मदा सामाजिक कुंभ’’ का आयोजन प्राचीन महिष्मती नगरी (वर्तमान मण्डला ) में किया जा रहा है । इसके पूर्व सन् 2006 में गुजरात के डांग जिले में षबरी कुंभ का आयोजन सफलता पूर्वक सम्पन्न हो चुका है। उस समय सम्पूर्ण भारतवर्ड्ढ से पूज्य संतों के अह्वान पर बड़ी संख्या में आबाल - वृð, नर-नारी सम्मिलित हुये थे। उस समय संतो का यह निर्णय हुआ कि ऐसे सामाजिक कुंभांे का आयोजन पष्चिम से पूर्व की दिषा में बढ़ते हुए हो । उक्त आह्वान की श्रृंखला की कड़ी के रुप में ही इस आयोजन की रचना बनी है।
मंडला मध्यप्रदेष का एक ऐतिहासिक स्थल है जिसका सीधा सम्बंध रानी दुर्गावती की षैार्य गाथाओं से जुड़ा हुआ है। इसके अलावा गढ़ मण्डला हजारों वर्ड्ढों से वनवासी संस्कृति का पोड्ढक कंेद्र भी रहा है।धार्मिक दृष्टि से भी पुराणकालीन कृष्ण द्वयपायन वेदव्यास ने वेदों का संकलन एवं सरलीकरण तथा प्रख्यात् श्री नर्मदा पुराण की रचना यहीं की थी । ऐसे पावन स्थल पर ‘‘माँ नर्मदा सामाजिक कुंभ’’ का आयोजन होने जा रहा है। हम सब इस वास्तविकता से अवगत हैं कि गंगा, यमुना, सरस्वती, नर्मदा, क्षिप्रा, गोदावरी, कावेरी जैसी पावन नदियों के तट पर ही संपूर्ण विष्व को अपने ज्ञानसे आलोकित करने वाली सनातन संस्कृति ने जन्म लिया है। यहां आयोजित कुंभ के अवसरों पर देष के कोने-कोने से संत और प्रबुðजन एकत्र होकर काल,परिस्थिति का समग्र विष्लेड्ढण कर समाज का मार्गदर्षन करते रहे हेैंें। इस अवसर पर महामण्डलेष्वर स्वामी अखिलेष्वरानंद जी महाराज, मार्गदर्षक मा.मुकुंदराव पणषीकर एवं सचिव श्री राजेन्द्र प्रसाद जी आदि ने इस अवसर पर पत्रकारों से विषेड्ढ चर्चा की।

"नर्मदा संस्कृति: संक्रमण एवं समाधान" पर विमर्श

विश्व संवाद केंद्र, हिंदुस्तान समाचार तथा इंडियन मीडिया सेण्टर भोपाल ने आज उपरोक्त विषय पर एक कार्यशाला आयोजित की, जिसमे मुख्य अतिथि पूर्व मुख्य सचिव श्री कृपा शंकर शर्मा, तथा मुख्यवक्ता विश्वप्रसिद्ध मानवशास्त्री श्री विकास भट्ट थे. श्री विराग पाचपोर कार्यक्रम के अध्यक्ष तथा राष्ट्रीय एकता समिति के उपाध्यक्ष रमेश शर्मा विशिष्ट अतिथि थे.
नर्मदा लोकगाथाओं और वैज्ञानिक तथ्यों, दोनों से ही विश्व की प्राचीनतम नदी मानी गयी है. यही कारण है की इसके तट पर विश्व की प्राचीनतम सभ्यता विकसित हुई. जब विश्व की अनेक प्राचीन संस्कृतियों ने साम्राज्यवाद और अनेक अन्य आक्रमणों के आगे घुटने टेक दिए और पूर्णतः नाश्ता हो गयीं, विश्व नर्मदा की सभ्यता ने अपना अस्तित्व कायम रखा और स्वयं को हर युग में अभिव्यक्त करती रही. इस महान संस्कृति के संरक्षक नर्मदाक्षेत्र के वनवासी हैं जो युगों से अपनी आस्था का केंद्र अपनी नरबदा मैया, अपने संस्कारों, अपनी परम्पराओं और अपने देशज ज्ञान को मानते रहे हैं. वर्तमान युग में यह समाज की जिम्मेदारी है की वे वनवासी बंधुओं से पुनः सांस्कृतिक और सामाजिक सम्बन्ध प्रगाढ़ कर सदियों पुरानी अपनी संस्कृति, कलाओं और ज्ञान को ग्रहण करें तथा इनके संरक्षण हेतु उनके साथ कंधे से कन्धा मिलाकर खड़े हों. इसी विचार से इस विषय को विस्तार से आम लोगों तक पहुंचाने, नए युग में इस संस्कृति पर आसन्न नयी चुनौतियों को पहचानने, तथा उनका समाधानों पर चर्चा हेतु ये कार्यशाला आयोजित की गयी थी.
उदबोधन:
इस अवसर पर मुख्य अतिथि श्री कृपा शंकर शर्मा ने स्वयं को नर्मदा पुत्र बताते हुए इसके तट पर बसे लोगों का माँ नर्मदा के प्रति उनकी आस्थाओं के बारे मं बताया. उन्होए विश्वास व्यक्त किया की इस कार्यशाला से अनेक उपयोगी विचार निकल कर आयेंगे. मुख्यवक्ता श्री विकास भट्ट ने विस्तार से अमरकंटक से लेकर गुजरात तक नर्मदा तट पर बसे वनवासियों की आस्थाओं और उनसे जुडी परम्पराओं का वर्णन किया. उन्होंने ने इस बात पर भी प्रकाश डाला की किस प्रकार विदेशी आक्रमणकारियों ने वनवासियों को मुख्य से बाटने के हर संभव प्रयास किये, यहाँ तक की उन्हें 'आदिवासी' कह कर उनकी पहचान ही बदलने की कोशिश की. शिक्षाविद श्री संजय द्विवेदी ने नर्मदा तट पर नक्सालियों की समस्या पर प्रकाश डाला तो नर्मदा सहयता के विद्वान नरेन्द्र द्विवेदी ने अनेक नै चुनौतियों का वर्णन किया. कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे नागपुर के वरिष्ठ पत्रकार श्री विराग पाचपोर ने धर्मांतरण से उत्पन्न संकट और कम्यूनिस्ट, इस्लामी आतंकवाद, इसाई मिशनरियों तथा नाक्साल्वादियों के गठजोड़ पर गहरी चिंता जताई. बिनायक सेन की रिहाई के प्रयासों को भी उन्होंने देश के विरुद्ध एक षड़यंत्र बताया. कार्यक्रम में आभार प्रदर्शन श्री अनिल सौमित्र ने किया.