सोमवार, 12 जुलाई 2010

क्वीन्स बेटन (महारानी का डण्डा) वापस हो का नारा लगाते ही पुलिस ने लाठी बरसाया


वाराणसी, 12 जुलाई। जागृति वाहनी की ओर से क्वीन्स बेटन का विरोध करते हुए गोदौलिया चैराहे पर कार्यकर्ताओं ने क्वीन्स बेटेन वापस हो का नारा लगाते हुए हाथ में तख्ती लेकर काले झण्डे दिखायें। चैराहे पर ही उन लोगों ने बड़ी संख्या में पत्रक बांटे। काले झण्डे देखकर पुलिस ने लाठी बरसाया।
पत्रक में लिखा है कि सारे देश में इस समय महा महोत्सव की तैयारी चल रही है। महंगाई से त्रस्त जनता की आवाज को नजरअंदाज कर सारे संसाधन जहां झोक दिये गये हैं उसका नाम है राष्ट्रकुल खेल। इन्हीं खेलों के सिलसिले में महारानी का डंडा शहर-शहर घूम रहा है और समूचा प्रशासनिक अमला उसके स्वागत में लगा है।
1781 में बनारस के राजा चेत सिंह ने वारेन हेस्टिंग की शर्तों को मानने से इंकार कर दिया, तो इसी शहर की जनता ने हेस्टिंग को सड़को पर खदेड़ दिया। सुभाष चन्द्र बोस, भगत सिंह, राजगुरू चन्द्रशेखर आजाद समेत असंख्य ऐसे नौजवान रहे जिन्होंने ब्रितानी हुकूमत से लड़ते हुए अपना बलिदान दिया। बड़े दुःख की बात है कि आजादी के 62 साल बाद आज हम उसी लन्दन की महारानी के डंडे के स्वागत में अपना सब कुछ न्योछावर करने को तत्पर हैं। जिस चन्द्रशेखर आजाद ने अंग्रेजों के हाथ आने के बजाय प्राणोत्सर्ग किया उन्हीं के नाम पर बने आजाद स्टेडियम में रानी के डण्डे का स्वागत समारोह हुआ निश्चित रूप से यह उन शहीदों का अपमान है जिन्होंने आजादी की लड़ाई में अपना सबकुछ न्योछावर कर दिया था।
सोचिये! क्या आज हम मानसिक रूप से अंग्रेजों के गुलाम नहीं हैं? क्या हुकूमत साम्राज्यवादी प्रतीकों को ढोने में गौरवान्वित महसूस नहीं करती है? याद करिये महारानी एलिजाबेथ की दिल्ली यात्रा, जब सर्वश्रेष्ठ समझे जाने वाले पब्लिक स्कूल की छात्राओं ने महारानी की पालकी ढोयी थी। आज भी हम बच्चों को रानी लक्ष्मीबाई बेगम, हजरत महल, भगत सिंह की बजाय साम्राज्यवाद की पालकी ढोने वाले कहार बना रहे हैं।
देश को अगर साम्राज्यवादी लूट से बचाना है तो हमें समझना होगा कि हमारे जैसे देशों से लूटी गयी धन संपदा की बदौलत ही तीन सौ साल से ब्रिटेन ऐश कर रहा है। यह लूट आज भी बहुराष्ट्रीय कंपनियों के रूप में जारी है। हमें इस लूट को राकने के लिए आगे आना होगा। साम्राज्यवादी प्रतीकों को ध्वस्त करना होगा। मानसिक गुलामी से मुक्ती पानी होगी।
अन्त में इस पत्रक में लिखा है कि आइये काशी की धरती से रानी के डंडे का विरोध कर साम्राज्यवादी लूट और दास मानसिकता के खिलाफ विरोध दर्ज करें। (विसंके)

श्री कुप्. सी. सुदर्शन द्वारा रामशंकर अगिन्होत्री को शोक श्रद्धांजलि


आषाढ़ कृष्ण 12 ईस्वी सं. कलियुग - 5112 09-07-2010
कल जब रायपुर से श्री राजेन्द्र दुबे ने समाचार दिया कि मेरे अति आत्मीय, परम मित्र परामर्शदाता व मार्गदर्शक श्री रामशंकर जी अग्निहोत्री परमात्मचरणों में लीन हो गये तो ऐसा लगा कि अभिन्नता में आधा भाग अलग हो गया है। सन् 1942 से 1946 तक, जब मैं मध्यप्रदेश के नर्मदा तटवर्ती जिला केन्द्र मण्डला में 6वीं से 10वीं तक की पढ़ाई कर रहा था, तब रामशंकर जी प्रचारक होकर मण्डल आए थे। तब हम दोनों की उम्र में केवल एक वर्ष का ही अन्तर होने के कारण हम दोनों सही अर्थो में अभिन्न शरीर और संघ मन बन गये थे। उस समय मा. श्री एकनाथ जी रानडे महाकौशल प्रान्त के प्रचारक थे। संघ के अखिल भारतीय अधिकारियों में सर्वप्रथम हम लोगों का परिचय मा. बाबा साहेब आप्टे से हुआ। संघ केवल लाठी-काठी सिखाने वाला अखाड़ा नहीं अपितु हिन्दु समाज को संगठित करने का लक्ष्य लेकर चलने वाला कार्य है। यह बात सर्वप्रथम उन्हीं से सुनी थी। सन् 1947 में महाविद्यालयीन शिक्षा के लिए जब जबलपुर आया और तत्कालीन राबर्टसन कॉलेज में भर्ती हुआ तो माननीय रामशंकर जी भी वहां पढ़ने आये थे। तभी 30 जनवरी को प्रातः स्मरणीय महात्मा गांधी की हत्या हो गयी और राजनैतिक विद्वेषवश संघ को भी इसमें सम्मिलित मानकर प्रतिबंधित कर दिया गया। प.पू. श्री गुरूजी के आदेश से उसको हटवाने के लिए सत्याग्रह किया गया तो मैं भी तीन माह जैल में रहा और रामशंकर जी भुमिगत रह कर कार्य करते रहे। सन् 54 में मेरे प्रचारक निकलने के पश्चात् रामशंकर जी मेरे प्रांत प्रचारक बने और उनके नेतृत्व में मैं रायगढ़ जिला प्रचारक, सागरनगर प्रचारक तथा विन्ध्य विभाग प्रचारक का दायित्व सम्हालते हुए उनसे सब प्रकार का मार्गदर्शन करता रहा। श्री रामशंकर जी बाद में युग धर्म, राष्ट्र धर्म, आदि दैनिक व मासिक में भी काम करते रहे व हिन्दुस्तान समाचार और विश्व संवाद केन्द्र का भी काम अत्यन्त कुशलता से सम्हाला।
रामजन्म भूमि आन्दोलन के समय तो अयोध्या का विश्व संवाद केन्द्र ही उस अभूतपूर्व आन्दोलन के अद्यतन समाचार जानने का केन्द्र बिन्दु बना रहा यही नहीं विश्व संवाद केन्द्र समाचार सेवा का वही उद्गम भी था। गत वर्ष ही जब रायपुर गया था तब उनसे भेंट हुई थी और खूब देर तक हम अपने भूत काल में विचार करते रहे। रायपुर में वे अमरकंटक के बाबा नागराज द्वारा आविष्कृत जीवन विद्या का प्रचार करने के लिए रायपुर आ गये थे और दीनदयाल मानव अध्ययन केन्द्र का अध्यक्ष पद सम्हाल रहे थे।
ऐसे मेरे प्रायः संपूर्ण जीवन के साथी मा. रामशंकर जी तो इहलोक का अपना कर्तव्य निभा कर चले गये। मुझको भी देर सवेर उसी पथ का राही बनना है अतः उन्हें अपनी विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं।