आतंक के खिलाफ जोर की मुहिम की जरूरत
संदीप भटट
जयपुर दिल्ली और अब असम। धमाकों का एक सिलसिलेवार आतंकी युद्ध। हर बार की तरह निशाने पर आम आदमी। आम आदमी जो अदद रोजी रोटी की तलाश में घर से निकलता है, इस उम्मीद के साथ कि दो जून का जुगाड़ कर वापस आ जाएगा। एक बार फिर बम के धमाकों से दहल गया है। गुवाहाटी के गणेशगुडी, कछारी, फैंसी बाजार और पान बाजा और बोगाइगांव इलाकों में सुबह साढे़ 11 बजे के आसपास 4 धमाके हुए। धमाकों में तत्कालिक तौर पर करीबन 65 से अधिक लोगों की मौत हो गई और 60 से अधिक लोग घायल हुए जिनकी संख्या शुक्रवार तक साढ़े चार सौ का आंकड़ा पार कर गई । ये आंकड़े लगातार बढ़ ही रहे हैं। शुरूआती रिपोर्टो के मुताबिक पूरे राज्य में 12 विस्फोट हुए हैं। विस्फोट के बाद सूबे के मुखिया तरूण गोगोई ने इन हमलों की कड़ी निंदा की। इन धमाकों को असम में हुए अब तक के सबसे बडे धमाकों में से एक माना जा रहा है। विस्फोट के बाद से आमतौर पर जैसा होता है, असम में भी अनिश्चितताओं का माहौल व्याप्त बन गया। पिछले कुछ दिनों में देश में आतंकियो द्वारा बमधमाकों की वारदातों में तेजी आई है। सिलसिलेवार आतंकी धमाकों की शुरूआत इस साल जयपुर में मई माह में हुई वंहा नौ सिलसिलेवार धमाकों से गुलाबी नगरी दहल उठी। जयपुर में हुए धमाकों में 65 से अधिक लोगों की जानें गईं और 150 लोग घायल हुए। इसके बाद सिलिकॉन सिटी बेंगलुरु में नौ सिलसिलेवार धमाके हुए। इसके ठीक एक दिन बाद ही अहमदाबाद में हुए 18 सिलसिलेवार धमाकों में 57 लोग मारे गए तथा 130 अन्य घायल हुए। राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली भी सिलसिलेवार धमाकों से नहीं बच सकी। दिल्ली में छह सिलसिलेवार धमाकों में 26 लोग मारे गए तथा 50 अन्य घायल हुए। भीड़ भरे बाजार और खुले स्थान जंहा पर लोगों की आवाजाही अधिक होती है, आतंकियों के निशाने पर रहते हैं। ये बात सही है कि आतंकवादी हमले कंही भी हो सकते हैं लेकिन तमाम सुरक्षा व्यवस्थाओं और खूफिया तंत्रों के होने के बावजूद अगर आतंकी खुलेआम इस तरह की वारदातों को अंजाम देते हैं तो यह तंत्र की नाकामी को ही दर्शाता है। असम पूर्वोत्तर का सबसे बड़ा राज्य है जंहा, असमी, बंगाली और बड़ी संख्या में हिंदी भाषी लोग साथ साथ रहते हैं। अपनी इसी खासियत के कारण असम हमेशा से ही अलगाव वादियों के प्रमुख निशाने पर रहा है। यंहा यूनाइटेड लिब्रेशन फ्रंट ऑफ असाम (उल्फा) और अल्फा का बेहद प्रभाव है और आमतौर पर हिंसक वारदातों में इनका नाम भी शुमार होता है। इन हमलों में भी आशंका व्यक्त की जा रही है कि इसमें प्रतिबंधित उल्फा या हुजी का हाथ हो सकता है।धमाकों के बाद जैसा कि आमतौर पर होता है कि पुलिस तंत्र पूरी तरह से चौकस हो जाता है, इलाके की नाकेबंदी कर दी जाती है, वैसा ही असम में भी किया गया। पूरे राज्य में हाई एलर्ट घोषित कर दिया गया, गुवहाटी में धारा 144 लगा दी गई। प्रधानमंत्री का बयान आया कि विघटनकारी ताकतें देश की बढ़ती आर्थिक तरक्की को कमजोर करना चाहती हैं। विपक्ष के नेता आडवाणी का बयान भी रटे रटाए जुमले की तरह रहा कि यूपीए सरकार के आने के बाद देश में आतंकवाद की घटनाओं में लगातार वृद्धि हुई है। आडवाणी अपने दल की सरकार के समय की घटनाओं को भूल जाते हैं। उन्हे कारगिल में आतंकियों की घुसपैठ और कांधार विमान अपहरण वाली बातें तों जैसे याद ही नही। कारगिल तो ऐसी घटना थी जो सीधे तौर पर रक्षा एवं गुप्तचर संस्थाओं की नाकामियों और आपसी तालमेल न होने का नतीजा थीं। यह जिम्मेदार मंत्रालय उस वक्त आडवाणी के पास ही था। लेकिन अब उन्हें लगता है कि ये सारी आतंकी घटनाएं यूपीए की नाकामियों का नतीजा हैं। दरअसल वे सरकार के खिलाफ आतंकवाद के आरोपों को को सिर्फ राजनैतिक रोटियां सेंकने वाली बेहतरीन आग की तरह इस्तेमाल कर रहे हैं । जबकि यह समस्या बेहद गंभीर है और सभी राजनैतिक दलों को इसके खिलाफ एक साथ खड़ा होना चाहिए। यह सारे मुल्क की समस्या है। मौजूदा समय में आतंकी वारदातें न सिर्फ भारत बल्कि अमेरिका, ब्रिटेन और तमाम अन्य मुल्कों के लिए भारी परेशानी का कारण बन गई हैं। भारत में आतंक के अलग अलग चेहरे मोहरे हैं। जम्मू काश्मीर और पूर्वोत्तर के असम समेत कई अन्य राज्यों में अलगाववादी संगठन लंबे समय से आतंक का पर्याय बने हुए हैं। पिछले कुछ सालों में तो गणतंत्र दिवस या स्वतंत्रता दिवस के विशेष मौकों पर ये संगठन बाकायदा आगाह करते हुए आतंकी घटनाओं को अंजाम देते हैं। सेना समेत गृह विभाग के तहत कार्यरत सुरक्षाबलों की यंहा तैनातिया वर्षों से हैं। लेकिन हर बार की तरह आतंकी वारदातों को अंजाम दे देते हैं और सुरक्षाबलों के लिए एक नई मुसीबत पैदा कर देते हैं। जम्मू काश्मीर में लगभग रोजाना आतंकियों और सेना के बीच मुठभेड़ें चलती रहती हैं। आतंकियों से मुठभेड़ों के दौरान सैकड़ों निर्दोष नागरिकों की जान जाती है और असंख्य सैनिक शहीद होते हैं। यह आतंकवाद से पीड़ित भारत जैसे तमाम और मुल्कों में एक अंतहीन और सतत प्रक्रिया बनती नजर आ रही है। मुल्क के अन्य राज्यों जिनमें छत्तीसगढ़, आंध्रप्रदेश, उड़ीसा, झारखंड और महाराष्ट्र तथा मध्यप्रदेश भी शामिल हैं, नक्सलियों से त्रस्त हैं। सबसे अधिक आंध्र और छत्तीसगढ़ इस आतंक से प्रभावित हैं। आये दिन छत्तीसगढ़ में नक्सली हिंसा की वारदातें होती ही रहती हैं। यदाकदा महाराष्ट्र और मध्यप्रदेश में भी नक्सली वारदातों की खबर आती ही रहती है। भाजपा शासित मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में नक्सलियों के कई सरगनाओं को पकड़ा जा चुका है। आतंकवाद के मुद्दे पर केंद्र सरकार की घोर आलोचना करने वाली भाजपा हर बार यह भूल जाती है कि आतंकवाद के लिए सिर्फ आरोप प्रत्यारोपों से ही काम नही चलता है इसके लिए सहयोग, समर्थन और दृढ़ इच्छाशक्ति की आवश्यकता होती है। सरकार को भी चाहिए कि सुरक्षाबलों और खूफिया विभागों को सतर्क रहने और आतंकवादी हमलों से पूरी तरह से निपटने की चेतावनी दे। निस्संदेह सरकार के कड़े रवैये से इस तरह के काम करने वालों की शैलिया और प्रभावशीलता बढ़ेंगी। सबसे अहम यह भी होगा कि सभी सुरक्षा बलों और खूफिया तंत्रों के बीच बेहतर तालमेल स्थापित किया जाए। क्योंकि अक्सर बाद में यह बात सामने आती है कि अगर इनके आपस में अच्छा तालमेल हो तो आतंकी वारदातों को काफी हद तक नाकाम करने में मदद मिल सकती है। आज आतंकवाद सिर्फ भारत की ही समस्या नही है बल्कि पूरे विश्व के लिए एक चुनौती है। अब आतंक के लगातार नए चेहरे सामने आ रहे हैं। आतंकी बेहतरीन प्रशिक्षण प्राप्त और तकनीक से लैस होकर चुनौतियां पेश कर रहे हैं। यह तकनीक और आतंक का मिलाजुला रूप है जो बेहद घातक है। हमारे राजनैतिक दलों को इस तरह की बयानबाजियों से बाज आते हुए आतंकवाद के विरोध में आवाज बुलंद करनी चाहिए। अमेरिका से इस मामले में सीख ली जा सकती है जंहा 13 सितंबर को वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हुए आतंकी हमले के बाद पूरा मुल्क आतंक के विरोध में एक स्वर से उठ खड़ा हुआ। भारत को भी इसी तरह की इच्छाशक्ति और बुलंद आवाज की जरूरत है।
गुरुवार, 30 अक्टूबर 2008
मालेगावं,मालेगावं,मालेगावं।क्या मालेगावं के अलावा कहीं धमाके नही हुए?
मालेगावं,मालेगावं,मालेगावं।क्या मालेगावं के अलावा देश में कहीं और धमाके नही हुए?क्या दुसरे शहरों मे हुए धमाकों की जांच मे ये तेजी नज़र आई?क्या मालेगावं के धमाकों मे हिन्दूवादी संगठन से जुडे लोगों पर शक होने से बाकी शहरों में हुए धमाको का पाप धुल सकता है?मालेगावं की गल्ती क्या बाकी गल्तियों को कम साबित कर सकती है?क्या बाट्ला हाऊस काण्ड की न्यायिक जांच की मांग करने वालों को इस मामले मे जांच की जरुरत नज़र नही आती?क्या मालेगावं काण्ड का शक हिन्दू उग्रवाद जैसी धारणा बनाने के लिये काफ़ी है?अगर काफ़ी है तो फ़िर इस्लामिक उग्रवाद पर आपत्ति क्यों?मालेगावं धमाके की जांच को जितनी प्राथमिकता से सार्वजनिक किया जा रहा है,क्या अन्य धमाको की जांच को सार्वजनिक किया गया?क्या मालेगावं के धमाको के तार एक साध्वी से लेकर सेना के अफ़सर तक जोडने वाले एटीएस के अफ़सरो ने दूसरें शहरों के धमाको के तार सिमी के बाद आगे कहीं किसी से जोड कर दिखाये थे?इसका मतलब ये नही है कि मालेगावं के धमाके जायज हैं,वो भी उतने ही नापाक थे जितने दूसरे शहरों मे हुए धमाके।मगर दोनो धमाकों को अलग-अलग नज़रिये से देखने-दिखाने का षडयण्त्र बंद होना चाहिये।कुछ सवाल ऐसे है जिनके ज़वाब ढूंढना ज़रूरी है?वर्ना इस्लामिक उग्रवाद की उग्रता को कम करने के लिये हिन्दू उग्रवाद,मराठी अलगाववाद की तपिश को कम करने के लिये उल्फ़ा और हुज़ी और उल्फ़ा और हुज़ी को छिपाने के लिये पता नही किस-किस का सहारा लेना पडेगा?देशवासी सब देख रहे हैं और समझ रहे हैं,उन्हे नेता बहुत ज्यादा समय तक अंधेरे मे नही रख सकते हैं।
मालेगावं,मालेगावं,मालेगावं।क्या मालेगावं के अलावा देश में कहीं और धमाके नही हुए?क्या दुसरे शहरों मे हुए धमाकों की जांच मे ये तेजी नज़र आई?क्या मालेगावं के धमाकों मे हिन्दूवादी संगठन से जुडे लोगों पर शक होने से बाकी शहरों में हुए धमाको का पाप धुल सकता है?मालेगावं की गल्ती क्या बाकी गल्तियों को कम साबित कर सकती है?क्या बाट्ला हाऊस काण्ड की न्यायिक जांच की मांग करने वालों को इस मामले मे जांच की जरुरत नज़र नही आती?क्या मालेगावं काण्ड का शक हिन्दू उग्रवाद जैसी धारणा बनाने के लिये काफ़ी है?अगर काफ़ी है तो फ़िर इस्लामिक उग्रवाद पर आपत्ति क्यों?मालेगावं धमाके की जांच को जितनी प्राथमिकता से सार्वजनिक किया जा रहा है,क्या अन्य धमाको की जांच को सार्वजनिक किया गया?क्या मालेगावं के धमाको के तार एक साध्वी से लेकर सेना के अफ़सर तक जोडने वाले एटीएस के अफ़सरो ने दूसरें शहरों के धमाको के तार सिमी के बाद आगे कहीं किसी से जोड कर दिखाये थे?इसका मतलब ये नही है कि मालेगावं के धमाके जायज हैं,वो भी उतने ही नापाक थे जितने दूसरे शहरों मे हुए धमाके।मगर दोनो धमाकों को अलग-अलग नज़रिये से देखने-दिखाने का षडयण्त्र बंद होना चाहिये।कुछ सवाल ऐसे है जिनके ज़वाब ढूंढना ज़रूरी है?वर्ना इस्लामिक उग्रवाद की उग्रता को कम करने के लिये हिन्दू उग्रवाद,मराठी अलगाववाद की तपिश को कम करने के लिये उल्फ़ा और हुज़ी और उल्फ़ा और हुज़ी को छिपाने के लिये पता नही किस-किस का सहारा लेना पडेगा?देशवासी सब देख रहे हैं और समझ रहे हैं,उन्हे नेता बहुत ज्यादा समय तक अंधेरे मे नही रख सकते हैं।
हिन्दु आतंकवादी एक और कंलक का कोशिश
द्वारा प्रकाशित किया गया चन्दन चौहान पर 8:55 AM लेबल: मिडीया, शंकराचार्य, सेकुलर, हिन्दु धर्म, हिन्दु संगठन
14 नवम्बर 2004 दिपावली के ठीक पहले शंकराचार्य स्वामी जयेन्द्र स्वामी को ठीक पुजा करते समय गिरफ्तार किया गया सेकुलर के द्वारा यह किसी विश्व विजय से कम नही था जम कर खुशीयाँ मनायी गया। इस खुशी के माहौल को दुगना करने में मिडीया का भरपुर सहयोग मिला मिडीया पुलिस और खूफिया ऎजेन्सी से ज्यादा तेज निकला और डेली एक नया सबूत लाकर टी.वी समाचार के माध्यम से दिखाया जाने लगा हिन्दु साधु-संत को जम कर गालिया दिया जाने लगा सभी को हत्यारा कहा जाने लगा। लेकिन सेकुलर और मिडीया का झुठ ज्यादा दिन तक नही टिका और शकराचार्य स्वामी जयेन्द्र स्वामी के खिलाफ सेकुलर और मिडीया कुछ भी नहीं साबित कर रहा था, सभी आरोप को बकवास करार दिया गया, उच्चतम न्यायालय का फैसला शकराचार्य स्वामी जयेन्द्र स्वामी के पक्ष में आया उन्हे हत्या के आरोप से जमानत के द्वारा रिहा कर दिया गया।इस दीवाली हिन्दुओ के उपर एक और कंलक लगाने का कोशिश किया जा रहा हिन्दु आतंकवादी का बैगर किसी सबूत के एक हिंदू साध्वी को मालेगांव विस्फोटों में उसकी कथित तौर पर शामिल होने के आरोप में गिरफ्तार किया गया है। पुलिस के पास सबूत नही है। जिस मोटर बाइक का उपयोग विस्फोट में करने के बारे में बताया जा रहा है उस बाइक को कुछ साल पहले बेच दिया गया था। स्पेशल पुलिस रविवार को साध्वी प्रज्ञा सिंह के किराए के मकान पर छापा मारा, लेकिन वहाँ से कुछ भी आपत्तिजनक नहीं मिला। मुंबई एटीएस प्रदेश में साध्वी प्रज्ञा से जुड़े लोगों की गतिविधियों की जानकारी एकत्रित कर रही है। लेकिन अभी तक पुलिस को कोई खास सफलता मिला लगता नही है। लेकिन इस मुद्दे पर काग्रेसी और उसके सहयोगी के द्वारा झुठा प्रचार सुरु कर दिया गया है । चुनाव से पहले खुफिया ऎजेन्सी और पुलिस को अपने चुनाव ऎजेन्ट के रुप में काम करवाया जा करवा दिया है। काग्रेस के नेता और उनके सहयोगी दल इसी कोशीश में लगे हैं कि किस हिन्दु संघठन को चुनाव तक हिन्दु आतंकवादी का तगमा लगा कर रखा जाये जिससे चुनाव में फायदा उठाया जा सके। कांग्रेस सरकार इस पांच साल में इस देश को क्या दिया है। इस सरकार के दौरान सबसे ज्यादा मुस्लिम आतंकी का भयावह चेहरा हिन्दुस्तान देखा है। आंतकी को सरक्षण देने के लिये पोटा हटा दिया गया। परमाणु करार के द्वारा सरकार अपना परमाणु और रक्षा निती अमेरिका के हाथ में गिरवी रख दिया है। आखिर कौन सा चेहरा मुंह कांग्रेस उन किसानो के पास वोट मागने जायेगा जिसके परिजन आत्महत्या कर चुके हैं। हिन्दुस्तान का अर्थव्यवस्था आज जिस गति से निचे गिर रहा है उतना तेजी से शायद सचिन और धोनी ने रन भी नही बनाता है। हमारे अमेरिकन स्कालर प्रधानमंत्री और उनके सहयोगी वित्त मंत्री के द्वारा लाख भरोसा और आश्वासन के बाबजुद भी अर्थव्यवस्था का गिरना बन्द नही हो रहा है अगर हालत यही रहा तो 1-2 महीना के अन्दर हिन्दुस्तान में भुखमरी सुरु हो जायेगा। सोचने योग्य बाते हैं आखिर हिन्दु अपने देश हिन्दुस्तान में क्यों बम विस्फोट करेंगे। उन्हें ना तो किसी देवता के द्वारा जिहाद करने को कहा गया है। नही हिन्दु इस देश को दारुल हिन्दुस्तान बनाना चाहता है। हिन्दु के किसी धर्म ग्रन्थ में कही भी यैसा भी नही लिखा है कि दुसरे धर्म वालो को तलवार से सर कलम कर दो। उसके बच्चों को उसी के सामने पटक कर मार दो उसकी बहन और बेटी का बलात्कार करो। किसी हिन्दु धर्मगुरु ने मंदिर के उपर चढकर अपने भक्तों को कभी नही कहा होगा की तुम्हे अपने घर में हथियार रखना जरुरी है और हिन्दु जिहाद के नाम पर चन्दाँ इकट्ठा कर के आतंकवादीयों को सुरक्षा मुहैया करना है आतंकवादीयों को अपने घर में पनाह देना है। और उसे न तो किसी आतंकवादी देश के द्वारा छ्दम युद्ध लड़ने के लिये पैसा मिलता है। आखिर क्या कारण है कि हिन्दु अपने घर को तवाह करना चाहते हैं। कोई कारण समझ में नही आता है सिर्फ इतना ही समझ में आरहा है कि हिन्दु आतंकवाद का डर दिखा कर कुछ मुस्लिम तुस्टिकरण में लिप्त, आतंकवादियों के सहयोगी राजनिती पार्टी को चुनाव में फायदा होगा। और कोई कारण नही है इस हिन्दु आतंकवादी का। सत्यमेव जयते के सिद्धान्त का पालन करते हुये हिन्दु इसी आशा में बैढे हैं कि जिस तरह से शकराचार्य स्वामी जयेन्द्र स्वामी को न्यायालय के द्वारा बाइज्जत बरी किया गया उसी तरह इस साध्वी प्रज्ञा सिंह भी एक दिन इज्जत के साथ जेल से रिहा होगी और तथाकथित सेकुलरिज्म का नकाव पहने, समाचार के नाम पर दलाली करने बाले मिडीया के गाल में तमाचा मारते हुये। फिर से इस देश में अपने ओजस्वी भाषण, देशभक्ती कार्य के द्वारा इस देश को परम वैभव में पहुचाने के कार्य में लग जायेगी।http://ckshindu.blogspot.com
2 प्रतिक्रियाऐं:
Anonymous said...
भाई हिन्दु आतंकवाद के खिलाफ कार्यवाही होने पर यह दर्द क्यों। आतंकवाद के खिलाफ आज तक जितनी गिरफतारियॉं हुई हैं, वे सभी बिना किसी सुबूत के खिलाफ होती रही हैं। पर इससे पहले आप ही कहते रहे थे कि इन देश द्रोहियों को फांसी दो। अब यह हायतौबा क्यों।
October 31, 2008 11:01 AM
Anonymous said...
हम आज भी कहते हैं अफजल, नागोरी, अबु फजल जैसे देशद्रोहियों को फांसी दो क्यों ये हरामी आतंकवादी हैं और ये आतंकवादी अपने मुह से कबुला है, हजारो सबुत है आतंकवादी के खिलाफ। पुलिस के उपर बाटला हाउस में गोली चलाने बाला क्या देशभक्त होता है। किसी कुरान में यैसे दोगले चरित्र वाले देशद्रोही आतंकवादी का महिमामंडन किया जाता है। या फिर दिगले नेता चरित्र वाले नेता जो वोट के लिये आतंकवादी का गुनगाण करता होगा। लेकिन साध्वि के खिलाफ अगर सबूत है तो उसे मकोका के तहत क्यों नही गिरफ्तार किया गया। जब पुलिस को साध्वि से पुछ ताछ में कुछ भी हाथ नही लगा नार्को टेस्ट और ब्रेन मैपिक करवाया जा रहा है।मुस्लिम आतंकवादी के समर्थन करने बाले भी दोगले और देशद्रोही हैं
द्वारा प्रकाशित किया गया चन्दन चौहान पर 8:55 AM लेबल: मिडीया, शंकराचार्य, सेकुलर, हिन्दु धर्म, हिन्दु संगठन
14 नवम्बर 2004 दिपावली के ठीक पहले शंकराचार्य स्वामी जयेन्द्र स्वामी को ठीक पुजा करते समय गिरफ्तार किया गया सेकुलर के द्वारा यह किसी विश्व विजय से कम नही था जम कर खुशीयाँ मनायी गया। इस खुशी के माहौल को दुगना करने में मिडीया का भरपुर सहयोग मिला मिडीया पुलिस और खूफिया ऎजेन्सी से ज्यादा तेज निकला और डेली एक नया सबूत लाकर टी.वी समाचार के माध्यम से दिखाया जाने लगा हिन्दु साधु-संत को जम कर गालिया दिया जाने लगा सभी को हत्यारा कहा जाने लगा। लेकिन सेकुलर और मिडीया का झुठ ज्यादा दिन तक नही टिका और शकराचार्य स्वामी जयेन्द्र स्वामी के खिलाफ सेकुलर और मिडीया कुछ भी नहीं साबित कर रहा था, सभी आरोप को बकवास करार दिया गया, उच्चतम न्यायालय का फैसला शकराचार्य स्वामी जयेन्द्र स्वामी के पक्ष में आया उन्हे हत्या के आरोप से जमानत के द्वारा रिहा कर दिया गया।इस दीवाली हिन्दुओ के उपर एक और कंलक लगाने का कोशिश किया जा रहा हिन्दु आतंकवादी का बैगर किसी सबूत के एक हिंदू साध्वी को मालेगांव विस्फोटों में उसकी कथित तौर पर शामिल होने के आरोप में गिरफ्तार किया गया है। पुलिस के पास सबूत नही है। जिस मोटर बाइक का उपयोग विस्फोट में करने के बारे में बताया जा रहा है उस बाइक को कुछ साल पहले बेच दिया गया था। स्पेशल पुलिस रविवार को साध्वी प्रज्ञा सिंह के किराए के मकान पर छापा मारा, लेकिन वहाँ से कुछ भी आपत्तिजनक नहीं मिला। मुंबई एटीएस प्रदेश में साध्वी प्रज्ञा से जुड़े लोगों की गतिविधियों की जानकारी एकत्रित कर रही है। लेकिन अभी तक पुलिस को कोई खास सफलता मिला लगता नही है। लेकिन इस मुद्दे पर काग्रेसी और उसके सहयोगी के द्वारा झुठा प्रचार सुरु कर दिया गया है । चुनाव से पहले खुफिया ऎजेन्सी और पुलिस को अपने चुनाव ऎजेन्ट के रुप में काम करवाया जा करवा दिया है। काग्रेस के नेता और उनके सहयोगी दल इसी कोशीश में लगे हैं कि किस हिन्दु संघठन को चुनाव तक हिन्दु आतंकवादी का तगमा लगा कर रखा जाये जिससे चुनाव में फायदा उठाया जा सके। कांग्रेस सरकार इस पांच साल में इस देश को क्या दिया है। इस सरकार के दौरान सबसे ज्यादा मुस्लिम आतंकी का भयावह चेहरा हिन्दुस्तान देखा है। आंतकी को सरक्षण देने के लिये पोटा हटा दिया गया। परमाणु करार के द्वारा सरकार अपना परमाणु और रक्षा निती अमेरिका के हाथ में गिरवी रख दिया है। आखिर कौन सा चेहरा मुंह कांग्रेस उन किसानो के पास वोट मागने जायेगा जिसके परिजन आत्महत्या कर चुके हैं। हिन्दुस्तान का अर्थव्यवस्था आज जिस गति से निचे गिर रहा है उतना तेजी से शायद सचिन और धोनी ने रन भी नही बनाता है। हमारे अमेरिकन स्कालर प्रधानमंत्री और उनके सहयोगी वित्त मंत्री के द्वारा लाख भरोसा और आश्वासन के बाबजुद भी अर्थव्यवस्था का गिरना बन्द नही हो रहा है अगर हालत यही रहा तो 1-2 महीना के अन्दर हिन्दुस्तान में भुखमरी सुरु हो जायेगा। सोचने योग्य बाते हैं आखिर हिन्दु अपने देश हिन्दुस्तान में क्यों बम विस्फोट करेंगे। उन्हें ना तो किसी देवता के द्वारा जिहाद करने को कहा गया है। नही हिन्दु इस देश को दारुल हिन्दुस्तान बनाना चाहता है। हिन्दु के किसी धर्म ग्रन्थ में कही भी यैसा भी नही लिखा है कि दुसरे धर्म वालो को तलवार से सर कलम कर दो। उसके बच्चों को उसी के सामने पटक कर मार दो उसकी बहन और बेटी का बलात्कार करो। किसी हिन्दु धर्मगुरु ने मंदिर के उपर चढकर अपने भक्तों को कभी नही कहा होगा की तुम्हे अपने घर में हथियार रखना जरुरी है और हिन्दु जिहाद के नाम पर चन्दाँ इकट्ठा कर के आतंकवादीयों को सुरक्षा मुहैया करना है आतंकवादीयों को अपने घर में पनाह देना है। और उसे न तो किसी आतंकवादी देश के द्वारा छ्दम युद्ध लड़ने के लिये पैसा मिलता है। आखिर क्या कारण है कि हिन्दु अपने घर को तवाह करना चाहते हैं। कोई कारण समझ में नही आता है सिर्फ इतना ही समझ में आरहा है कि हिन्दु आतंकवाद का डर दिखा कर कुछ मुस्लिम तुस्टिकरण में लिप्त, आतंकवादियों के सहयोगी राजनिती पार्टी को चुनाव में फायदा होगा। और कोई कारण नही है इस हिन्दु आतंकवादी का। सत्यमेव जयते के सिद्धान्त का पालन करते हुये हिन्दु इसी आशा में बैढे हैं कि जिस तरह से शकराचार्य स्वामी जयेन्द्र स्वामी को न्यायालय के द्वारा बाइज्जत बरी किया गया उसी तरह इस साध्वी प्रज्ञा सिंह भी एक दिन इज्जत के साथ जेल से रिहा होगी और तथाकथित सेकुलरिज्म का नकाव पहने, समाचार के नाम पर दलाली करने बाले मिडीया के गाल में तमाचा मारते हुये। फिर से इस देश में अपने ओजस्वी भाषण, देशभक्ती कार्य के द्वारा इस देश को परम वैभव में पहुचाने के कार्य में लग जायेगी।http://ckshindu.blogspot.com
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Anonymous said...
भाई हिन्दु आतंकवाद के खिलाफ कार्यवाही होने पर यह दर्द क्यों। आतंकवाद के खिलाफ आज तक जितनी गिरफतारियॉं हुई हैं, वे सभी बिना किसी सुबूत के खिलाफ होती रही हैं। पर इससे पहले आप ही कहते रहे थे कि इन देश द्रोहियों को फांसी दो। अब यह हायतौबा क्यों।
October 31, 2008 11:01 AM
Anonymous said...
हम आज भी कहते हैं अफजल, नागोरी, अबु फजल जैसे देशद्रोहियों को फांसी दो क्यों ये हरामी आतंकवादी हैं और ये आतंकवादी अपने मुह से कबुला है, हजारो सबुत है आतंकवादी के खिलाफ। पुलिस के उपर बाटला हाउस में गोली चलाने बाला क्या देशभक्त होता है। किसी कुरान में यैसे दोगले चरित्र वाले देशद्रोही आतंकवादी का महिमामंडन किया जाता है। या फिर दिगले नेता चरित्र वाले नेता जो वोट के लिये आतंकवादी का गुनगाण करता होगा। लेकिन साध्वि के खिलाफ अगर सबूत है तो उसे मकोका के तहत क्यों नही गिरफ्तार किया गया। जब पुलिस को साध्वि से पुछ ताछ में कुछ भी हाथ नही लगा नार्को टेस्ट और ब्रेन मैपिक करवाया जा रहा है।मुस्लिम आतंकवादी के समर्थन करने बाले भी दोगले और देशद्रोही हैं
दिल्ली राजस्थान मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के चुनावी समर
संदीप भटट
राजधानी दिल्ली समेत राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ में चुनावों की हलचलें रोजाना तेज हो रही हैं। दिल्ली में तकरीबन दस सालों से शीला दीक्षित का एकछत्र राज है। शीला कांग्रेस की पुरानी सिपहसालार हैं और बेहद बहादुरी के साथ दिल्ली के विकास का दावा कर रही हैं। मेरी दिल्ली मैं ही संवारू जैसे अभियानों की शुरूआत करने वाली दीक्षित ने इस तरह के भागीदारी अभियान से दिल्ली की सूरत बदलने की कवायद शुरू कर एक साहसिक कदम उठाया। इसके नतीजे बेहद सुखद रहे और दिल्ली दुनिया के उन महानगरों में शुमार हो गया जिन्होंने तेजी से कम होती जा रही हरियाली को रोका और शहर को हरा भरा कर गुलजार किया। दिल्ली में अब बिजली के हालात थोड़ा बेहतर हैं। इसका निजीकरण किया गया और बिजली चोरी के मामलों में थोड़ा कमी आई है। राष्ट्रमंडल खेलों के लिए दिल्ली शहर को सुंदर और सुविधाजनक बनाने के लिए प्रयासरत शीला सरकार अब भी प्रतिबद्ध है और वाकई दिल्ली में तेजी से काम चल रहा है। दिल्ली के एक नदी यमुना जो कंही से भी यंहा आकर नदी की शक्ल में नही दिखती, शीला ने इंजीनियर इंडिया लिमिटेड की मदद से इसे फिर से एक नदी बनाने की चुनौती पर भी काम शुरू किया है। उनकी सरकार का दावा है कि वर्ष 2010 तक यमुना का पानी आचमन के काबिल बना दिया जाएगा। हलांकि उनकी सरकार पर इस योजना के ऊपर करोड़ों रूपये बरबाद करने के बाद भी बेहतर परिणाम न देने के आरोप भी लगे हैं। लेकिन दिल्ली में पता चलता है कि वाकई काम हो तो रहा है।
शीला दिल्ली में बाहर से आने वाले लोगों के खिलाफ विवादित बयान के कारण भी सुर्खियों में रही थीं। हो सकता है कि उस बयान का खामियाजा उन्हे भुगतना पड़े क्योंकि आधे से अधिक लोग दिल्ली के बाहर से आकर यंहा बसे हैं। उनकी सबसे बड़ी नाकामी रही दिल्ली को एक सुरक्षित शहर न बना पाने की। मामले दिल्ली में बढ़ते अपराधों का हो या फिर आतंकवादी घटनाओं के, शीला सरकार को इस मोर्चे पर सफलता नही मिली। 15 अगस्त या 26 जनवरी के आसपास दिल्ली में हर चार कदम पर पुलिस का जवान दिखाई देता है और कुछ ही फासले पर पुलिस की गाड़ी। एक छावनी में तब्दील हो जाती है राजधानी। लोगों को इतनी पुलिस के साथ असहज भी लगता है,खासकर उनको जो बाहर से पहली बार यंहा आते हैं। लेकिन मामला सुरक्षा का होता है सो यह कवायद भी जरूरी है। अफसोस की बात है कि यही पुलिस बल तब कंही नही दिखता जब पॉश इलाकों में हत्या, बलात्कार,या कोई और अपराध घटित होते हैं, कई बार तो दिनदहाडे़ ही। महिलाओं के लिए तो यह देश के सबसे असुरक्षित शहरों में से एक है। लेकिन हद तो तब होती है जब भीड़ भाड़ वाले वाले इलाके में आतंकी बम विस्फोट करते हैं और पुलिस को मेल भी भेजते हैं। शीला दिल्ली वालों को सुरक्षा तो नही दे सकीं और यह भी आने वाले चुनावों में एक बड़ा मुददा रहेगा।
शीला के खिलाफ विपक्षियों में कोई खास दम नजर नही आता। भाजपा या अन्य किसी पार्टी के पास शीला के कद का कोई नेता नही है। शीला का कद और भी ऊंचा इसलिए है क्योंकि उनके पास संभालने के लिए एक अदद सा शहर दिल्ली ही तो है। हां पड़ोसी राज्य की मुखिया मायावती का सोशल इंजीनियरिंग का फार्मूला शीला के और अन्य पार्टियों के गणित को गड़बड़ाने के लिए काफी है। वैसे भी एनसीआर के नोएडा तक तो मायाराज ही है।
छत्तीसगढ़ की अपनी ही अलग समस्याएं हैं। ये राज्य अगर चैनलों अक्सर नक्सली हमलों की वजह से ही सुर्खियों में आता है। राजधानी रायपुर में तेजी से बनते जा रहे शापिंग मॉलों की ऊंचाइयों को देख लगता है कि यंहा कुछ जरूर नया हुआ है, जमीन के भाव आसमानों को छू रहे हैं, मुख्यमंत्री रमन सिंह विकास का मजबूत दावा करते हैं। उन्होंने बायोडीजल वाली गाड़ी इस्तेमाल की और इसे राजशाही में हो रहे खर्चो में कटौती कहा। उनकी एक मात्र उपलब्धि है बेहद सस्ते दामों पर लोगों को चावल मुहैया कराना। यह मंहगाई के दौर में आम आदमी को थोड़ा राहत पंहुचाने वाला काम है। राजधानी रायपुर में ही बड़े बड़े नक्सली नेताओं की गिरफ्तारियों ने रमन सिंह सरकार के सामने चुनौती पेश की, जिसे उन्होंने बखूबी कबूल किया। लेकिन यह एक ऐसी समस्या है जो केंद्र और राज्य सरकार के बेहतर सामंजस्य के बिना खत्म नही होने वाली। लेकिन फिर भी जिम्मेदारी को यह कह कर टाला नही जा सकता और इस पैमाने पर रमन सरकार कुछ खास नही कर पाई। छत्तीसगढ़ का एक अलग किस्म का दर्द भी है और वो है आम छत्तीसगढ़ी का विकास। रायपुर स्टेशन हो, राजनांदगांव या फिर बिलासपुर, छत्तीसगढ़ का बासिंदा अब भी ठहरा हुआ ठगा हुआ सा महसूस करता है। अधिकांश सरकारी दफ्तरों या कुछ एक कंपिनयों के आफिसों में काम करने वालों में वो लोग अधिक हैं जो उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश,बिहार या महाराष्ट्र से आए हैं। आम छत्तीसगढ़ी तो अब भी विकास से कासों दूर है। चुनावों में यंहा रमन सिंह के खिलाफ कोई खास कददावर अजीत सिंह के अलावा कोई नेता कांग्रेस के पास नही है। और कांग्रेस की अंतरकलह जगजाहिर है। जोगी भी लंबे समय से रायपुर के राजनैतिक धरातल से गायब रहे। चुनावों की घोषणा से पहले ही बसपा सुप्रीमों मायावती ने राजनैतिक जमीन की तलाश यंहा शुरू कर दी थी। लेकिन आदिवासी बहुल और नक्सल प्रभावित छत्तीसगढ़ में सोशल इंजीनियरिंग की कामयाबी शायद उत्तरप्रदेश के र्फामूले पर न हो सके।
राजस्थान की रेतीली धरती पिछले कुछ महीनों पहले गुर्जर आंदोंलन की आग से और भी गर्म हो गई। भाजपा की वसुंधरा राजे सूबे की मुखिया हैं। कुछ समय पहले कांग्रेस और भाजपा दोनों के बड़े नेताओं के दैवीय स्वरूप वाले कैलेंडर या पोस्टर छपने की खबरें प्रकाश में आई थी। राजे का नाम भी उन नेताओं में शुमार था। बाद में एनडीए सरकार में रक्षा मंत्री रह चुके जसवंत सिंह और राजे की राजनैतिक खींचतान भी चर्चाओं में रही। असली विवादों और सुर्खियों में वे गुर्जर आंदोलन के दौरान रहीं। आरक्षण के मसले पर गुर्जर समुदाय सड़कों पर उतर आया। रेलें रोकी गई, सरकारी बसों को जलाया गया, करोड़ों का नुक्सान हुआ और जानमाल का भी नुक्सान हुआ। सरकार आंदोलन को रोकने में नाकाम रही और गुजर्रो का असंतोष अभी भी खत्म नही हुआ है। राजस्थान में आतंकी घटनाओं का होना भी चुनावों में एक बडा मुददा रहेगा। जयपुर के बम धमाकों की आवाज चुनाव के परिणामें में परिणित होगी। आजकल भाजपा के नेता और राजस्थान में मजबूत पकड़ रखने वाले भूतपूर्व उप राष्ट्रपति भैरोंसिंह शेखावत की भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम भी चुनावों को एक अलग रूख देगी। कांग्रेस के भीतर का कलह राजस्थान में भी पार्टी को कोई खास फायदा नही होने देगा। प्रदेश में बसपा भी अपनी उम्मीदवारी को मजबूत करने में लगी है और चूंकि इसके कुछ इलाके खासकर भरतपुर आदि उत्तरप्रदेश की सीमा से सटे हैं सो कम से कम इन इलाकों में पार्टी कुछ सीटें झटक सकती है।
मध्यप्रदेश ने भाजपा के इस शासनकाल मे तीन मुख्यमंत्री देखे हैं। उमाभारती जो अब भाजपा से नाता तोड़ चुकी हैं, बाबूलाल गौर और युवा छवि वाले मौजूदा मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान । इससे पहले कांग्रेस राज से आजिज आकर जनता ने सत्ता पलट कर दिया और भाजपा को मौका दिया। पहले कुछ साल अस्थिरता के बावजूद मध्यप्रदेश के लोगों को सरकार सही हाथों में दिखी। कई सर्वेक्षणों में प्रदेश को तेजी से विकास की ओर अग्रसर बताया गया। योजनाओं और घोषणाओं की धाराएं प्रदेश में बहने लगी। शिक्षा, स्वास्थ्य, ग्रामीण विकास, रोजगार आदि फ्रंटों पर शिवराज सरकार को सफलतम घोषित करने की स्वनामधन्य कोशिशें की गई। लेकिन जो यहां रहते हैं असलियत उन्हें ही पता है। जिला मुख्यालयों से कुछ ही दूरी के ऐसे सैकड़ों गांव है जिनमें दीपावली के दिन भी बिजली का कोई पता नही होता। पानी तो इंदौर जैसे महानगर में भी एक दो दिन छोड़कर आता है। अपराधों में कोई कमी नही आई। सबसे चिंताजन पहलू ये है कि कमजोर वर्गों के प्रति बेहद असंवेदनशीलता दिखाई देती है। कमजोर वर्ग सबसे असुरक्षित महसूस करता है। राजधानी भोपाल में ही अपराध का ग्राफ पिछले कुछ सालों में तेजी से बढ़ा है। एक बार तो नक्सली नेताओं की पूरी फौज ही भोपाल से पकड़ी गई। स्वास्थ्य और शिक्षा जैसी बुनियादी सुविधाओं की बदहाली अब भी जगजाहिर है। हाल के दिनों में कुपोषण के मामले जाहिर होने पर लीपापोती की गई लेकिन हकीकत है कि यंहा हालात वाकई गंभीर हैं। आंतकी संगठनों से जुड़े लोगों की प्रदेश के छोटे शहरों से जुड़े होने की खबरों ने बताया है कि यंहा का तंत्र सुरक्षा को लेकर कितना सचेत है। मध्यप्रदेश के राजनेताओं में मौजूदा मानव संसाधन मंत्री अर्जुनसिहं, स्व माधवराव सिंधिया, दिगविजय सिंह, वर्तमान वाणिज्य मंत्री कमलनाथ समेत कई दिग्गज नेताओं के नाम शुमार हैं लेकिन फिर भी यह प्रश्न यथावत रहता है कि क्यों देश का ह्दय कहलाने वाल मध्यप्रदेश विकास की दौड़ में इतना पीछे है। क्यों यंहा के किसानों, आदिवासियों के हालात भी कतिपय छत्तीसगढ़ जैसे ही हैं। 2004-05 के दौरान एक खबर आई थी कि आदिवासी अंचल के जिलों के किसानों ने तत्काली राष्ट्रपति डा. कलाम से स्वैच्छा मृत्यु की अनुमति मांगी थी। किसान वाकई परेशान हैं और आम आदमी भी आहत है कि जिन ख्वाबों के साथ उसने इस नई सरकार के नेतृत्व करने वालों कों वोट दिया था वे तो पूरे ही नही हुए। इन आम आदमियों सवालों के जवाब तो सरकार को देने ही होंगे। कांग्रेस का अंर्तकलह यंहा कोई नई बात नही है। वैसे कांग्रेस के महासचिव राहुल गांधी भी प्रदेश के अंचलों के कई दौरे कर चुके हैं और बेहद संजीदगी के साथ उन्होंने रणनीतिकारों की एक लाबी तैयार की है। राहुल कभी किसी गांव मे सभा करते हैं तो कभी किसी गरीब की झोपड़ी में रात बिताते हैं। वाकई वे गंभीरता से कांगेस की खोई राजनैतिक जमीन की तलाश की जददोजहद मे लगे हैं, लेकिन उनकी समस्या यह है कि इस पार्टी में लार्जर देन पार्टी कई लोग हैं जो पीढ़ीयों से पार्टी पर काबिज हैं और सत्ता सुख भोगते आ रहे हैं। यही खेमेबाजी कांगेस की परेशानी का कारण बनती जा रही है।कई गुटों में बंटी इस पार्टी का प्रदेश में क्या हाल होगा कहा नही जा सकता है। उमा भारती की भारतीय जनशक्ति पार्टी भाजपा को कुछ हद तक नुकसान पंहुचा सकती है। मौजूदा सरकार में भी कई ऐसे मंत्री हैं जिनक मन में उमा के प्रति आदरभाव अब भी है। बुंदेलखंड से लगे इलाको में बसपा का हाथी हावी होने की जुगत में है। वैसे पार्टी सुप्रीमो मायावती प्रदेश के दौरे कर चुकीं हैं और उन्हे उम्मीद है कि इस प्रदेश के बहुजन बसपा के साथ होंगे। अगर मायावती सोशल इंजीनियरिंग की जोरआजमाइश बेहतर ढंग से करें तो थोडे़ बेहतर परिणाम तो आ ही सकते हैं। इन दलों के अलावा प्रदेश में समाजवादियों का भी दखल है और कुछेक और स्थानीय दल भी आशान्वित होंगे।
बहरहाल ये चारों राज्य बेहद महत्वपूर्ण हैं और इनके चुनाव परिणाम काफी हद तक ये स्पष्ट करेंगे कि देश में सरकार किसकी बनेगी।
संदीप भटट
राजधानी दिल्ली समेत राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ में चुनावों की हलचलें रोजाना तेज हो रही हैं। दिल्ली में तकरीबन दस सालों से शीला दीक्षित का एकछत्र राज है। शीला कांग्रेस की पुरानी सिपहसालार हैं और बेहद बहादुरी के साथ दिल्ली के विकास का दावा कर रही हैं। मेरी दिल्ली मैं ही संवारू जैसे अभियानों की शुरूआत करने वाली दीक्षित ने इस तरह के भागीदारी अभियान से दिल्ली की सूरत बदलने की कवायद शुरू कर एक साहसिक कदम उठाया। इसके नतीजे बेहद सुखद रहे और दिल्ली दुनिया के उन महानगरों में शुमार हो गया जिन्होंने तेजी से कम होती जा रही हरियाली को रोका और शहर को हरा भरा कर गुलजार किया। दिल्ली में अब बिजली के हालात थोड़ा बेहतर हैं। इसका निजीकरण किया गया और बिजली चोरी के मामलों में थोड़ा कमी आई है। राष्ट्रमंडल खेलों के लिए दिल्ली शहर को सुंदर और सुविधाजनक बनाने के लिए प्रयासरत शीला सरकार अब भी प्रतिबद्ध है और वाकई दिल्ली में तेजी से काम चल रहा है। दिल्ली के एक नदी यमुना जो कंही से भी यंहा आकर नदी की शक्ल में नही दिखती, शीला ने इंजीनियर इंडिया लिमिटेड की मदद से इसे फिर से एक नदी बनाने की चुनौती पर भी काम शुरू किया है। उनकी सरकार का दावा है कि वर्ष 2010 तक यमुना का पानी आचमन के काबिल बना दिया जाएगा। हलांकि उनकी सरकार पर इस योजना के ऊपर करोड़ों रूपये बरबाद करने के बाद भी बेहतर परिणाम न देने के आरोप भी लगे हैं। लेकिन दिल्ली में पता चलता है कि वाकई काम हो तो रहा है।
शीला दिल्ली में बाहर से आने वाले लोगों के खिलाफ विवादित बयान के कारण भी सुर्खियों में रही थीं। हो सकता है कि उस बयान का खामियाजा उन्हे भुगतना पड़े क्योंकि आधे से अधिक लोग दिल्ली के बाहर से आकर यंहा बसे हैं। उनकी सबसे बड़ी नाकामी रही दिल्ली को एक सुरक्षित शहर न बना पाने की। मामले दिल्ली में बढ़ते अपराधों का हो या फिर आतंकवादी घटनाओं के, शीला सरकार को इस मोर्चे पर सफलता नही मिली। 15 अगस्त या 26 जनवरी के आसपास दिल्ली में हर चार कदम पर पुलिस का जवान दिखाई देता है और कुछ ही फासले पर पुलिस की गाड़ी। एक छावनी में तब्दील हो जाती है राजधानी। लोगों को इतनी पुलिस के साथ असहज भी लगता है,खासकर उनको जो बाहर से पहली बार यंहा आते हैं। लेकिन मामला सुरक्षा का होता है सो यह कवायद भी जरूरी है। अफसोस की बात है कि यही पुलिस बल तब कंही नही दिखता जब पॉश इलाकों में हत्या, बलात्कार,या कोई और अपराध घटित होते हैं, कई बार तो दिनदहाडे़ ही। महिलाओं के लिए तो यह देश के सबसे असुरक्षित शहरों में से एक है। लेकिन हद तो तब होती है जब भीड़ भाड़ वाले वाले इलाके में आतंकी बम विस्फोट करते हैं और पुलिस को मेल भी भेजते हैं। शीला दिल्ली वालों को सुरक्षा तो नही दे सकीं और यह भी आने वाले चुनावों में एक बड़ा मुददा रहेगा।
शीला के खिलाफ विपक्षियों में कोई खास दम नजर नही आता। भाजपा या अन्य किसी पार्टी के पास शीला के कद का कोई नेता नही है। शीला का कद और भी ऊंचा इसलिए है क्योंकि उनके पास संभालने के लिए एक अदद सा शहर दिल्ली ही तो है। हां पड़ोसी राज्य की मुखिया मायावती का सोशल इंजीनियरिंग का फार्मूला शीला के और अन्य पार्टियों के गणित को गड़बड़ाने के लिए काफी है। वैसे भी एनसीआर के नोएडा तक तो मायाराज ही है।
छत्तीसगढ़ की अपनी ही अलग समस्याएं हैं। ये राज्य अगर चैनलों अक्सर नक्सली हमलों की वजह से ही सुर्खियों में आता है। राजधानी रायपुर में तेजी से बनते जा रहे शापिंग मॉलों की ऊंचाइयों को देख लगता है कि यंहा कुछ जरूर नया हुआ है, जमीन के भाव आसमानों को छू रहे हैं, मुख्यमंत्री रमन सिंह विकास का मजबूत दावा करते हैं। उन्होंने बायोडीजल वाली गाड़ी इस्तेमाल की और इसे राजशाही में हो रहे खर्चो में कटौती कहा। उनकी एक मात्र उपलब्धि है बेहद सस्ते दामों पर लोगों को चावल मुहैया कराना। यह मंहगाई के दौर में आम आदमी को थोड़ा राहत पंहुचाने वाला काम है। राजधानी रायपुर में ही बड़े बड़े नक्सली नेताओं की गिरफ्तारियों ने रमन सिंह सरकार के सामने चुनौती पेश की, जिसे उन्होंने बखूबी कबूल किया। लेकिन यह एक ऐसी समस्या है जो केंद्र और राज्य सरकार के बेहतर सामंजस्य के बिना खत्म नही होने वाली। लेकिन फिर भी जिम्मेदारी को यह कह कर टाला नही जा सकता और इस पैमाने पर रमन सरकार कुछ खास नही कर पाई। छत्तीसगढ़ का एक अलग किस्म का दर्द भी है और वो है आम छत्तीसगढ़ी का विकास। रायपुर स्टेशन हो, राजनांदगांव या फिर बिलासपुर, छत्तीसगढ़ का बासिंदा अब भी ठहरा हुआ ठगा हुआ सा महसूस करता है। अधिकांश सरकारी दफ्तरों या कुछ एक कंपिनयों के आफिसों में काम करने वालों में वो लोग अधिक हैं जो उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश,बिहार या महाराष्ट्र से आए हैं। आम छत्तीसगढ़ी तो अब भी विकास से कासों दूर है। चुनावों में यंहा रमन सिंह के खिलाफ कोई खास कददावर अजीत सिंह के अलावा कोई नेता कांग्रेस के पास नही है। और कांग्रेस की अंतरकलह जगजाहिर है। जोगी भी लंबे समय से रायपुर के राजनैतिक धरातल से गायब रहे। चुनावों की घोषणा से पहले ही बसपा सुप्रीमों मायावती ने राजनैतिक जमीन की तलाश यंहा शुरू कर दी थी। लेकिन आदिवासी बहुल और नक्सल प्रभावित छत्तीसगढ़ में सोशल इंजीनियरिंग की कामयाबी शायद उत्तरप्रदेश के र्फामूले पर न हो सके।
राजस्थान की रेतीली धरती पिछले कुछ महीनों पहले गुर्जर आंदोंलन की आग से और भी गर्म हो गई। भाजपा की वसुंधरा राजे सूबे की मुखिया हैं। कुछ समय पहले कांग्रेस और भाजपा दोनों के बड़े नेताओं के दैवीय स्वरूप वाले कैलेंडर या पोस्टर छपने की खबरें प्रकाश में आई थी। राजे का नाम भी उन नेताओं में शुमार था। बाद में एनडीए सरकार में रक्षा मंत्री रह चुके जसवंत सिंह और राजे की राजनैतिक खींचतान भी चर्चाओं में रही। असली विवादों और सुर्खियों में वे गुर्जर आंदोलन के दौरान रहीं। आरक्षण के मसले पर गुर्जर समुदाय सड़कों पर उतर आया। रेलें रोकी गई, सरकारी बसों को जलाया गया, करोड़ों का नुक्सान हुआ और जानमाल का भी नुक्सान हुआ। सरकार आंदोलन को रोकने में नाकाम रही और गुजर्रो का असंतोष अभी भी खत्म नही हुआ है। राजस्थान में आतंकी घटनाओं का होना भी चुनावों में एक बडा मुददा रहेगा। जयपुर के बम धमाकों की आवाज चुनाव के परिणामें में परिणित होगी। आजकल भाजपा के नेता और राजस्थान में मजबूत पकड़ रखने वाले भूतपूर्व उप राष्ट्रपति भैरोंसिंह शेखावत की भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम भी चुनावों को एक अलग रूख देगी। कांग्रेस के भीतर का कलह राजस्थान में भी पार्टी को कोई खास फायदा नही होने देगा। प्रदेश में बसपा भी अपनी उम्मीदवारी को मजबूत करने में लगी है और चूंकि इसके कुछ इलाके खासकर भरतपुर आदि उत्तरप्रदेश की सीमा से सटे हैं सो कम से कम इन इलाकों में पार्टी कुछ सीटें झटक सकती है।
मध्यप्रदेश ने भाजपा के इस शासनकाल मे तीन मुख्यमंत्री देखे हैं। उमाभारती जो अब भाजपा से नाता तोड़ चुकी हैं, बाबूलाल गौर और युवा छवि वाले मौजूदा मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान । इससे पहले कांग्रेस राज से आजिज आकर जनता ने सत्ता पलट कर दिया और भाजपा को मौका दिया। पहले कुछ साल अस्थिरता के बावजूद मध्यप्रदेश के लोगों को सरकार सही हाथों में दिखी। कई सर्वेक्षणों में प्रदेश को तेजी से विकास की ओर अग्रसर बताया गया। योजनाओं और घोषणाओं की धाराएं प्रदेश में बहने लगी। शिक्षा, स्वास्थ्य, ग्रामीण विकास, रोजगार आदि फ्रंटों पर शिवराज सरकार को सफलतम घोषित करने की स्वनामधन्य कोशिशें की गई। लेकिन जो यहां रहते हैं असलियत उन्हें ही पता है। जिला मुख्यालयों से कुछ ही दूरी के ऐसे सैकड़ों गांव है जिनमें दीपावली के दिन भी बिजली का कोई पता नही होता। पानी तो इंदौर जैसे महानगर में भी एक दो दिन छोड़कर आता है। अपराधों में कोई कमी नही आई। सबसे चिंताजन पहलू ये है कि कमजोर वर्गों के प्रति बेहद असंवेदनशीलता दिखाई देती है। कमजोर वर्ग सबसे असुरक्षित महसूस करता है। राजधानी भोपाल में ही अपराध का ग्राफ पिछले कुछ सालों में तेजी से बढ़ा है। एक बार तो नक्सली नेताओं की पूरी फौज ही भोपाल से पकड़ी गई। स्वास्थ्य और शिक्षा जैसी बुनियादी सुविधाओं की बदहाली अब भी जगजाहिर है। हाल के दिनों में कुपोषण के मामले जाहिर होने पर लीपापोती की गई लेकिन हकीकत है कि यंहा हालात वाकई गंभीर हैं। आंतकी संगठनों से जुड़े लोगों की प्रदेश के छोटे शहरों से जुड़े होने की खबरों ने बताया है कि यंहा का तंत्र सुरक्षा को लेकर कितना सचेत है। मध्यप्रदेश के राजनेताओं में मौजूदा मानव संसाधन मंत्री अर्जुनसिहं, स्व माधवराव सिंधिया, दिगविजय सिंह, वर्तमान वाणिज्य मंत्री कमलनाथ समेत कई दिग्गज नेताओं के नाम शुमार हैं लेकिन फिर भी यह प्रश्न यथावत रहता है कि क्यों देश का ह्दय कहलाने वाल मध्यप्रदेश विकास की दौड़ में इतना पीछे है। क्यों यंहा के किसानों, आदिवासियों के हालात भी कतिपय छत्तीसगढ़ जैसे ही हैं। 2004-05 के दौरान एक खबर आई थी कि आदिवासी अंचल के जिलों के किसानों ने तत्काली राष्ट्रपति डा. कलाम से स्वैच्छा मृत्यु की अनुमति मांगी थी। किसान वाकई परेशान हैं और आम आदमी भी आहत है कि जिन ख्वाबों के साथ उसने इस नई सरकार के नेतृत्व करने वालों कों वोट दिया था वे तो पूरे ही नही हुए। इन आम आदमियों सवालों के जवाब तो सरकार को देने ही होंगे। कांग्रेस का अंर्तकलह यंहा कोई नई बात नही है। वैसे कांग्रेस के महासचिव राहुल गांधी भी प्रदेश के अंचलों के कई दौरे कर चुके हैं और बेहद संजीदगी के साथ उन्होंने रणनीतिकारों की एक लाबी तैयार की है। राहुल कभी किसी गांव मे सभा करते हैं तो कभी किसी गरीब की झोपड़ी में रात बिताते हैं। वाकई वे गंभीरता से कांगेस की खोई राजनैतिक जमीन की तलाश की जददोजहद मे लगे हैं, लेकिन उनकी समस्या यह है कि इस पार्टी में लार्जर देन पार्टी कई लोग हैं जो पीढ़ीयों से पार्टी पर काबिज हैं और सत्ता सुख भोगते आ रहे हैं। यही खेमेबाजी कांगेस की परेशानी का कारण बनती जा रही है।कई गुटों में बंटी इस पार्टी का प्रदेश में क्या हाल होगा कहा नही जा सकता है। उमा भारती की भारतीय जनशक्ति पार्टी भाजपा को कुछ हद तक नुकसान पंहुचा सकती है। मौजूदा सरकार में भी कई ऐसे मंत्री हैं जिनक मन में उमा के प्रति आदरभाव अब भी है। बुंदेलखंड से लगे इलाको में बसपा का हाथी हावी होने की जुगत में है। वैसे पार्टी सुप्रीमो मायावती प्रदेश के दौरे कर चुकीं हैं और उन्हे उम्मीद है कि इस प्रदेश के बहुजन बसपा के साथ होंगे। अगर मायावती सोशल इंजीनियरिंग की जोरआजमाइश बेहतर ढंग से करें तो थोडे़ बेहतर परिणाम तो आ ही सकते हैं। इन दलों के अलावा प्रदेश में समाजवादियों का भी दखल है और कुछेक और स्थानीय दल भी आशान्वित होंगे।
बहरहाल ये चारों राज्य बेहद महत्वपूर्ण हैं और इनके चुनाव परिणाम काफी हद तक ये स्पष्ट करेंगे कि देश में सरकार किसकी बनेगी।
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