सोमवार, 16 नवंबर 2009

‘हरित तकनीक द्वारा अक्षम विकास‘ पर केद्रित होगा
द्वितीय भारतीय विज्ञान सम्मेलन
3 दिसम्बर, 2009 से इंदौर में


भोपाल (म.प्र) विभिन्न भारतीय भाषाओं के माध्यम से विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के प्रकीर्णन हेतु आयोजित भारतीय विज्ञान सम्मेलन का द्वितीय आयोजन इंदौर में 3 दिसम्बर से होने जा रहा है। जो हरित तकनीक द्वारा अक्षम विकास पर केंद्रित होगा ।
सम्मेलन का आयोजन आमजन के बीच लाभार्थ विज्ञान आंदोलन ‘‘विज्ञान भारती‘‘ म.प्र. विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद् और देवी अहिल्या विश्वविद्यालय भोपाल द्वारा किया जा रहा है। प्रथम भारतीय विज्ञान सम्मेलन का आयोजन भोपाल में किया गया था जिसमें प्रख्यात वैज्ञानिक एवं पूर्व राष्ट्रपति डा. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम ने भी भाग लिया था ।
ग्लोबल वार्मिग की विश्व व्यापी समस्या की भारतीय दृष्टि से समाधान प्रस्तुत करने के लिए द्वितीय भारतीय विज्ञान सम्मेलन का विषय हरित तकनीक द्वारा अक्षम विकास है ।
ज्ञात है कि भारतीय विज्ञान सम्मेलन एक ऐसा प्रयास है जिसमें समस्त भारतीय भाषाओं में शोध पत्रों को प्रस्तुत किया जा सकता है। इस सम्मेलन की मूल अवधारणा है कि भारतीय भाषाओं के उपयोग से ही विज्ञान को भारतीय समाज के लिए कल्याणकारी बनाया जा सकता है।
सम्मेलन के सफल आयोजन हेतु मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चैहान द्वारा तैयारियों की समीक्षा की गई । श्री चैहान ने विज्ञान सम्मेलन को गरिमा तथा उद्देश्य परकता के साथ आयोजित करने पर बल दिया ।
इस वर्ष सम्मेलन के अध्यक्ष देश के परम कम्प्युटर के जनक डा. विजय भाटकर होंगे ं साथ ही पूर्व राष्ट्रपति ए.पी.जे. कलाम इसरो के चैयरमैन प्रो. जी माधवन नायर, सीएसआईआर के पूर्व महानिदेशक श्री मशालकर जी, स्वामीनायन, परमाणु उर्जा आयोग के अध्यक्ष अनिल काकोड़कर भी सम्मिलित होंगे ।
इस अवसर पर 27 नवम्बर से देवी अहिल्या परिसर में एक अखिल भारतीय प्रदर्शनी का भी आयोजन किया जाएगा । जिसमें म0प्र0 शासन सहित भारत सरकार के प्रतिष्ठित विज्ञान संस्थानों की उपलब्धियों का चित्रण होगा ।
द्वितीय भारतीय विज्ञान सम्मेलन,2009 प्रो. (डा.) जे.सी.बोस की एक सौ पचासवी जन्म शताब्दी को समर्पित है। भारतीय विज्ञान उन वैज्ञानिक सिद्धान्तों पर आधारित है जो जीवन के प्रत्येक मार्ग पर वातावरण को बिना किसी क्षति के आगे बढ़ने का समाधान प्रस्तुत करता है। वर्तमान में पाश्चात्य जगत में आ रही नवीन उर्जा सम्बन्धी धारणाएं हमारे पुरातन ज्ञान की सार्थकता को प्रमाणित कर रही है ।
हरित तकनीकी द्वारा राष्ट्र और उनके समाजों की सामाजिक, आर्थिक विभिन्नताओं, शहरीकरण, ग्रामीण निर्धनता पर्यावरणीय क्षय और विषय विकास की समस्याओं को हल किया जा सकता है।
प्रज्ञा प्रवाह द्वारा वंदेमातरम् पर विमर्श
मुस्लिम देशो के राष्ट्रगीत में मातृवंदना, फिर वंदेमातरम् गैर इस्लामी कैसे!

भोपाल। जब विश्व के अधिकांश मुस्लिम देशों के राष्ट्रगीतों में मातृभूमि प्रतीकों का चित्रण है फिर राष्ट्रगान वंदेमातरम् को गैर इस्लामी कैसे कहा जा सकता है। मुसलमानों द्वारा वंदेमातरम् गायन का विरोध अज्ञानता का परिचायक है। यह विचार मनोज श्रीवास्तव, आयुक्त जनसम्पर्क मध्यप्रदेश शासन ने ‘प्रज्ञा प्रवाह‘ संस्थान द्वारा वंदेमातरम् पर आयोजित परिचर्चा में व्यक्त किया।
वन्दे मातरम् - गीत के साहित्येतिहासिक महत्व का अध्ययन करने और इसी विषय पर पुस्तिका लिखने वाले श्री श्रीवास्तव ने विस्तार से चर्चा करते हुए कहा कि वंदेमातरम् का विरोध करने वाले सबसे पहले इसका अध्ययन करें। उन्होंने इसे नापसंद करने वाले राजेन्द्र यादव, ए.जी.नूरानी, शम्सुल इस्लाम, अम्बरीश आदि के वक्तव्यों का उल्लेख करते हुए कहा कि यह राष्ट्रगान सांप्रदायिकता कट्टरपन से परे मातृभूमि के प्रति समर्पित भावना का प्रतीक है और इस संवैधानिक मान्यता मिली है।
वरिष्ठ समाजसेवी लज्जाशंकर हरदेनिया ने भी वंदेमातरम् की ऐतिहासिक और संवैधानिक भूमिका को स्पष्ट करते हुए कहा कि जब भी संवैधानिक और पारंपरिक मान्यताओं के बीच टकराव हो तो हमें संवैधानिक दायित्वों को पालन करना चाहिए। इसी से आपसी भाईचारा और राष्ट्रीय एकता की भावना मजबूत हो सकेगी। उन्होंने जमाएते उलेमा हिंद द्वारा देवबंद में जारी वंदेमातरम् के फतवे के साथ ही उलेमाओं के कट्टरपंथी अन्य प्रस्तावों की भी आलोचना की । म.प्र. अल्पसंख्यक आयोग के पूर्व अध्यक्ष मो. अनवर खान ने उलेमाओं द्वारा वंदेमातरम् के खिलाफ जारी फतवे को ‘सियासी चाल‘ बताते हुए कहा कि जब उल्लमा इकबाल ने वंदेमातरम् का विरोध नहीं किया फिर आजकल के फिरकापरस्ती ताकतों द्वारा इसका विरोध गैर वाजिब है। वैसे भी इस फतवे की कोई शरियत हैसियत नहीं है और न ही यह कोई खुदा का हुक्म है जिसे माना जाए। उन्होंने मुस्लिम समाज को देश ओर इसकी संस्कृति के प्रति दायित्वपूर्ण रवैया अपनाने का आहवान किया। देवबंद से तालीम प्राप्त भोपाल के मौलाना अख्तर हाशमी ने भी इस तरह के फतवों को कोई अहमियत न दिए जाने की पुरजोर वकालत की । उन्होंने कहा कि मुझे और मेरे जैसे लाखों मुसलमानों को इस बात पर फक्र है कि वो पूरी आजादी और मजहबी उसूलों के साथ इस देश में रह रहे हैं। श्री हाशमी ने कहा कि उलेमा कौम को प्रगति के रास्ते पर ले जाने वाले कदम उठाएं न कि गैर जरूरी मुद्दों पर विवाद और फसाद वाले कदम।
प्रख्यात चिंतक और धर्मपाल शोधपीठ के निदेशक प्रो. रामेश्वर मिश्र ‘पंकज‘ ने देवबंद में वंदेमातरम के खिलाफ जारी फतवे को गहरी सांस्कृतिक कशमकश से उपजी सोच बताते हुए कहा कि ऐसे मुद्दो पर फतवे जारी करने की बजाय मुस्लिम संवाद का रास्ता अपनाए जिससे सही रास्ता निकल सके। विमर्श का आयोजन स्वराज संस्थान के सभाकक्ष में ‘प्रज्ञा प्रवाह‘ द्वारा किया गया था। प्रज्ञा प्रवाह के प्रांत संयोज बालकृष्ण दवे ने उपस्थिति सुधीजन के प्रति धन्यवाद ज्ञापित किया। कार्यक्रम का संचालन प्रज्ञा प्रवाह के सह-संयोजक दीपक शर्मा ने किया। कार्यक्रम में वरिष्ठ साहित्यकार और मध्यप्रदेश साहित्य अकादमी के निदेशक डाॅ. देवेन्द्र दीपक, अधिवक्ता परिषद् के ब्रजकिशोर सांघी, मध्यप्रदेश राष्ट्रीय एकता परिषद् के रमेश शर्मा, संस्कार भारती के कामतानाथ वैशम्पायन, राष्ट्र सेविका समिति की सुखप्रीत कौर सहित काफी संख्या में प्रबुद्ध नागरिक उपस्थित थे।