शनिवार, 7 मार्च 2009
मंगलवार, 3 मार्च 2009
प्रो. विश्वनाथ प्रसाद तिवारी, संयोजक, हिन्दी सलाहकार बोर्ड, साहित्य अकादमी नई दिल्ली से लालमिर्ची के लिए बातचीत
बर्बर विचारधारा का नाम है आतंकवाद: प्रो. विश्वनाथ प्रसाद तिवारी
लालमिर्ची - आप आतंकवाद को कैसे परिभाषित करते हैं? प्रो. तिवारी - आतंकवाद एक तरह की मानसिकता या सोच है जिसमें यह निश्चय किया जाता है कि आतंक के द्वारा अपनी मांगे या विचार थोप सकेंगे, उनका पालन करवा सकेंगे। अतः यह अपने आपमें एक बर्बर विचारधारा है। आतंकवाद का कोई घोषणा पत्र सामने नहीं रखा गया न ही किसी विचारधारा को आखिर वो क्या चाहते हैं ऐसा उन्होंने दुनिया के सामने नहीं रखा। सिर्फ जेल में बंद अपने साथियों को छुडवाना या इस तरह के अन्य कृत्य के लिए। शहीद भगतसिंह ने बिना जानमाल को क्षति पहुंचाए असेम्बली में बम विस्फोट करने पर पर्चों के जरिए अपनी स्पष्ट विचारधारा को सामने रखा उनका अपना लेखन भी विचार धारा को व्यक्त करता रहा, लेकिन क्या मुम्बई में आतंक हमला करने वालो कि कोई विचारधारा थी? विचारधारा तो दूर की बात उनकी मुम्बई हमले के समय कोई मांग भी सामने नहीं आई। लालमिर्ची - विचारधारा के अभाव में अन्य कोई नीति अपनाई? प्रो. तिवारी - कोई भी दण्ड उसे दिया जाता है जो दोषी हो, लेकिन स्टेशन, होटल, सार्वजनिक जगहों पर इस तरह के हमले में क्या नैतिकता है? आतंकी उन लोगों को मार रहे हैं जो असुरक्षित, निर्दोष हैं जिनकी किसी से भी दुश्मनी नहीं। अगर आतंकी का कोई दुश्मन भी है तो आमजन की तो नीति निर्धरण में कोई हिस्सेदारी भी नहीं है। जहां स्पष्ट मांग नहीं है वह सिर्फ तानाशाही है और ऐसा आचरण आतंकी वहां भी करते हैं जहां उनके पास सत्ता है। स्वातघाटी में लड़कियों के स्कूल बंद करवा दिए, पत्रकार को मारा। दरअसल आतंकवादी जो सत्य है उसको दबाना चाहते हैं और यह डरपोकों का काम है और कायरता की निशानी है। लालमिर्ची - पश्यिमी देशों की बनिस्बत भारत में आतंकी घटनाओं की पुनरावृत्ति क्यों? प्रो. तिवारी - इसके लिए हमारी राजनीतिक व्यवस्था दोषी है। जहां विभिन्न राजनीतिक दल आतंक के मुद्दे पर एकजुट नहीं है। पश्चिमी देशों के राजनीतिक दलों में आतंक के बारे में एकजुट दिखते हैं। जिससे वहां आतंक के खिलाफ स्पष्ट, ठोस और कड़ी कार्यवाही होती है। जब कि भारतीय राजनीतिक दलों में इसका अभाव है। लालमिर्ची - आतंक के बारे में साहित्यकार वर्ग की सोच क्या है? प्रो. तिवारी - साहित्यकार, हिंसा, तानाशाही, शाश्वत, विरोधी है अगर नहीं है तो होना चाहिए और उसे विचारों की सहिष्णुता को स्वीकार करना चाहिए। दुनिया तीन शब्दों लोकतंत्र, अहिंसा और भाईचारा को छोड़कर नहीं चल सकती और साहित्य इनका पोषण करता है अगर हम तीन शब्दों को छोड़ दंेगे तो उत्पात बना रहेगा। लालमिर्ची - ऐसे में साहित्यिक लोगों का दायित्व? प्रो. तिवारी - तानाशाही, हिंसा आतंकवाद के मूल में है तानाशाही, हम जो करेंगे वही होगा और हिंसा के जरिए करेंगे। ऐसी सोच के निर्मूलन के लिए साहित्यिक वर्ग को आगे आना होगा। किसी भी प्रकार की कट्ठरता और धार्मिक उन्मूलन मानवता के लिए खतरा है। जहां तक साहित्यकार के दायित्व की बात है तो प्रत्येक साहित्यकार के लेखन की आत्मा तानाशाही और हिंसा के विरुद्ध है। लालमिर्ची - क्या कोई ठोस पहल ही रही है? प्रो. तिवारी - आतंकवाद के खिलाफ लेखकों का का कोई घोषित ऐजेण्डा नहीं है। लेखन क्षेत्र में ऐसे कोई दिशा निर्देश भी तय नहीं किए जाते। कई कृतियों की रचना हुई है। लेकिन इन्हें आतंकवाद के खिलाफ नारे के रूप में नहीं अपनाया जा सकता है। लेखन स्व स्फुटित होता है। कश्मीर की प्रख्यात लेखिका चंद्रकांता ने कथा सतीशर लिखा है जिसमें कश्मीर के आतंकवाद और जनमानस की भावनाओं का प्रभावी चित्रण हैं। लालमिर्ची - हमारे पौराणिक, प्राचीन साहित्य में क्या स्थिति थी? प्रो. तिवारी - हमारे संतों ने मानवभाव की एकता के लिए और अनीति, अत्याचार के विरोध में साहित्य रचना की। उस समय आतंकवाद की अवधारणा वर्तमान स्वरूप में तो नहीं थी किन्तु राक्षसों के उत्पाात के विरुद्ध रामकथा, कृष्ण कथा आदि में अनेक जिक्र आते हैं। असुरों के जो वर्णन तमाम साहित्य में मिलते हैं वे वर्तमान परिपे्रक्ष्य में आतंकी ही दृष्टव्य होते हैं। लालमिर्ची - आतंक के बारे में जनमानस का रवैया कैसा हो? प्रो. तिवारी - आतंकवाद के विरुद्ध जनता में आक्रोश और घृणा है लेकिन जनमानस का मूल स्वभाव अहिंसक होता है। जनता संगठित के बारे में सूचना प्रदर्शन कर सकती है ऐसे कृत्यों के बारे में सूचना प्रशासन तक पहुंचा सकती है लेकिन हथियार का मुकाबला शांति से नही किया जा सकता। आतंकी हिंसा से निपटने की जिम्मेदारी सुरक्षा एजेंसियों की है। लालमिर्ची - कोई सीधी कार्यवाही हो सकती है? प्रो. तिवारी - अगर आप गौतम बुद्ध के अंगुलिमाल के समक्ष जाने की बात रही है तो गांधी जी जैसा विराट प्रयोगकर्ता जो नोआखली दंगों में हिंसा के बीच जा सके, भारत ही नहीं बल्कि पूरे विश्व में दिखाई नहीं पड़ रहा है। जो अहिंसा के द्वारा इसे रोकें। साहित्य अकादमी आतंक के मुद्दे पर विचार गोष्ठियों का आयोजन कर व्यापक विचार विमर्श के जरिए जाग्रति लाने का प्रयास करेगी।
साहित्य अकादमी का अलंकरण समारोह अनेक साहित्यकार सम्मानित
भारत में आतंकवाद और कलम के सिपाही पर विमर्श
भोपाल। साहित्य अकादमी द्वारा साहित्यकारों के अलंकरण हेतु समारोह का आयोजन किया गया। इस समारोह में अखिल भारतीय और प्रादेशिक पुरस्कार प्रदान किए गए। कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में पूर्व राज्यपाल श्री त्रिलोकीनाथ चुतुर्वेदी उपस्थित हुए। श्री चतुर्वेदी ने अपने उद्बोधन में कहा कि संस्कृति के क्षेत्र में कार्यरत विभिन्न संस्थाओं और संगठनों के बीच अच्छा तालमेल है, इसी के कारण शासन अच्छा परिणाम दे पा रही है। शासन के मंत्री के रूप में श्री लक्ष्मीकांत शर्मा के सकारात्मक और सहयोगी प्रयासों की श्री चतुवेर्दी ने सराहना की। यहां के संस्थान कम लागत में अच्छे साहित्य उपलब्ध कराने के लिए साधुवाद के पात्र हैं। इससे साहित्य को लोकप्रियता मिलेगी और साहित्य जन सामान्य के बीच पहुंच पायेगा। अलंकरण हेतु साहित्यकारों के चयन की प्रक्रिया भी काफी पारदर्शी और स्पष्ट है। अलंकरण समारोह कार्यक्रम की अध्यक्षता मध्यप्रदेश शासन के संस्कृति मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा ने की। श्री शर्मा ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में कहा साहित्य अकादमी के प्रयासों सराहना करते हुए कहा कि इन प्रयासों के कारण प्रदेश में संस्कृति को एक नया आयाम और गति मिली है। उन्होंने कार्यक्रमों के विकेन्द्रित आयोजन की भी प्रशंसा की। उन्होंने कहा कि साहित्य और सांस्कृतिक गतिविधयों को आयोजित करने के मामले में देश का सर्वोत्तम प्रदेश है। लेकिन हम अभी भी असंतुष्ट हैं, अभी और भी बहुत अधिक काम करना है। माननीय मुख्यमंत्री जी ने जो दायित्व दिया है उसे पूरी निष्ठा और उत्साह से पूरा करना है। भाजपा सरकार ने सांस्कृतिक गतिविधियों के लिए भरपूर वित्तीय प्रावधान किया है। धन की कमी पहले भी नहीं हुइ्र्र आगे भी नहीं होने दिया जायेगा। मराठी प्रभाग और बाल साहित्य शोध पीठ की स्थापना मध्यप्रदेश सरकार की ऐतिहासिक पहल है। हमारा यह प्रयास सतत जारी रहेगा। साहित्यकारों और विद्वानों के सुझावों पर शासन अमल करने का प्रयास करेगी। माननीय मुख्यमंत्री जी ने कला पंचायत के आयोजन की मंशा भी व्यक्त की है। आप सब के सहयोग से हमारा यह प्रयास जरूर सफल होगा। कार्यक्रम के प्रारंभ में अलंकरण समारोह की प्रस्तावना रखते हुए साहित्य अकादमी के निदेशक डाॅ. देवेन्द्र दीपक ने कहा कि शासन द्वारा लेखकों के हित में प्रमुख निर्णय लिए जिसमें राष्टीय पुरस्कार की राशि 25 हजार रुपये प्रादेशिक राशि 21 हजार रुपये करने तथा दो वर्ष की बजाय प्रति वर्ष श्रेष्ठ कृतियों को पुरस्कृत किया जाएगा। विकेन्द्रीकरण के नीति के तहत प्रत्येक जिला मुख्यालय पर अकादमी द्वारा वर्ष में एक कार्यक्रम आयोजन किया जा रहा है। श्री दीपक ने अकादमी द्वारा किए गए अभिनव कार्यक्रम प्रज्ञाचक्षु कवियों का काव्यपाठ, अनुसूचित जाति/जनजाति कवियों का काव्यपाठ और प्रशिक्षण तथा श्रम रचनाकारों की कार्यशाला की जानकारी दी। साथ ही 3 अगस्त को मैथिलीशरण गुप्त की जन्मतिथि को कवि दिवस और प्रदेश के तीन महान कवियों जन्मतिथि के अवसर पर उनके जन्म स्थान पर कार्यक्रमों को आयोजित किया गया। कार्यक्रम उपस्थित अतिथियों को स्मृतिचिन्ह भेंट किया गया। मुख्य अतिति श्री त्रिलोकीनाथ चतुर्वेदी और कार्यक्रम के अध्यक्ष श्री लक्ष्मीकांत शर्मा को अकादमी के निदेशक डाॅ. देवेन्द्र दीपक ने स्मृतिचिन्ह भेंट किया। साहित्यकार श्री सुरेशचन्द्र श्ुाक्ल ने अपने उद्गार और आभार व्यक्त किया। कार्यक्रम का संचालन सुश्री सुधा शर्मा ने किया। कार्यक्र में बड़ी संख्या में प्रदेश के साहित्यकार और संस्कृतिकर्मियों ने हिस्सा लिया। भाजपा के वरिष्ठ नेता कप्तान सिंह सेालंकी, वरिष्ठ पत्रकार राजेन्द्र शर्मा, समाजसेवी देवकीनंदन मिश्र भी कार्यक्रम में उपस्थित थे।
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