गुरुवार, 16 दिसंबर 2010

राघोगढ़ का रावण


द्वापर के रावण और कलियुग के दिग्विजय सिंह में आश्चर्यजनक रूप से समानताएं हैं. दोनों ही राजा हैं. दोनों में पांडित्य है. लेकिन जैसे रावण आसुरी शक्ति के शीर्ष पर था वैसे ही दिग्विजय सिंह भी आसुरी मानसिकता के शीर्ष पर हैं. मध्य प्रदेश में रहते हुए उन्होंने अपनी आसुरी बुद्धि से न केवल प्रदेश को रसातल में पहुंचाया बल्कि अपनी ही पार्टी को हाशिये पर फेंककर दिल्ली चले गये. अब दिल्ली में बैठकर राष्ट्रीय स्तर पर राजनीतिक विषवमन के जरिए अपनी प्रासंगिकता खोज रहे हैं.

राजनीतिक समीक्षक कहते हैं दिग्गी दूसरे दलों में अपने समर्थक पैदा करते हैं और अपनी पार्टी के भीतर अपने विरोधियों को पैदा नहीं होने देते, अगर पैदा हो गए तो उन्हें बढ़ने नहीं देते, अगर इक्का-दुक्का विरोधी बढ़ भी गए तो उनका तत्काल खात्मा करते हैं। मध्यप्रदेश और देश की राजनीति में ऐसे अनेक उदाहरण हैं। दिग्विजय सिंह सामंती स्वभाव के राजेनता माने जाते हैं। मध्यप्रदेश में अपने 10 वर्षों के राज में वे जनता को कुशासन देने के रूप में जाने जाते हैं। अपने जमाने में उन्होंने नारा दिया - चुनाव विकास से नहीं, प्रबंधन से जीते जाते हैं। उन्होंने एक पत्रकारों से चर्चा करते हुए कहा था कि जब लालू बिना बिजली और सड़क के तीसरी बार सत्ता में आ सकते हैं तो मैं क्यों नहीं। हालांकि 2003 में उनका चुनावी प्रबंधन बुरी तरफ फेल हो गया था। अपने राज में उन्होंने प्रदेश में सांप्रदायिकता का हौव्वा खड़ा कर दिया था। एक तरफ वे हिन्दुओं का दमन करते रहे वहीं ईसाइय-मुसलमानों को शह देते रहे। गौरतलब है कि 22 दिसंबर, 1998 को झाबुआ के नवापाड़ा में जब एक नन के साथ बलात्कार हुआ था तब भी दिग्विजय सिंह ने हिन्दुओं और हिन्दू संगठनों पर ही आरोप मढ़ दिए थे। लेकिन बाद में बलात्कार के कई आरोपी मतान्तरित ईसाई ही पाए गए थे। विपक्ष सहित कई पार्टियों की मांग और राज्यपाल द्वारा सीबीआई जांच के लिए पत्र लिखने के बाद भी मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने पूरे मामले से मुह मोड़ लिया था। वे सिर्फ घटना का राजनैतिक लाभ उठाना चाहते थे। दिग्विजय सिंह ने झाबुआ नन बलात्कार कांड के एक आरोपी को कांग्रेस का टिकट भी दिया था।

अपने मुख्यमंत्री के कार्यकाल में जब उन पर सोम डिस्लरी से घूस लेने का आरोप लगा और वे विपक्ष के आक्रामक तेवरों से घिर गए तो अचानक तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की प्रशंसा करने लगे। वे अचानक ही राजग की शिक्षा नीति के प्रशंसक बन गए। ज्योतिष को विज्ञान मान लिया। लेकिन जब-जब उनको मौका हाथ लगा हिन्दुत्व पर आक्रमण करने से कभी नहीं चूके। महाराष्ट्र एटीएस के मुखिया हेमंत करकरे की आतंकी हत्या को लेकर दिए गए बयान पर दिग्गी बुरी तरह घिर गए हैं। अपनी किरकिरी होते देख कांग्रेस ने भी उनके बयान से पल्ला झाड़ लिया है। लेकिन विपक्ष कांग्रेस प्रमुख सोनिया गांधी और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और गृहमंत्री चिदंबरम से दिग्विजय के बयान पर उनकी प्रतिक्रया पूछ रहा है। कांग्रेस में अलग-थलग पड़े दिग्विजय सिंह को उत्तर प्रदेश कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष और सांसद जगदंबिका पाल के बयान से एक और झटका लगेगा। दिग्गी जिस प्रदेश के प्रभारी हैं उसी प्रदेश के कांग्रेसी नेता अब उनके खिलाफ हो गए हैं। जाहिर है दिग्विजय की ओछो राजनीति से कांगेस का धर्मरिपेक्षता का राग भी कमजोर पड़ता दिख रहा है। कांग्रेसी सांसद जगदंबिका पाल ने एक कार्यक्रम में कहा कि दिग्विजय सिंह का बयान गैर जरूरी था। मुम्बई हादसे के बाद गृहमंत्री ने इस मुद्दे पर पाकिस्तान के खिलाफ जिस तरह का माहौल बनाया, उस पर ऐसे बयान से प्रतिकूल असर पड़ेगा। दरअसल अपने बड़बोलेपन से वे कई बार पूरी पार्टी को संकट में डाल चुके हैं। हो सकता है दिग्विजय सिंह का बयान रूवयं को पार्टी में स्थापित करने या अपना कद बढ़ाने के लिए हो। यह भी संभव है कि वे अपने बयानों से पार्टी का भला करना चाहते हों। लेकिन उनके बयानों से हर बार पार्टी को नुकसान ही होता रहा है। ऐसे में पार्टी के भीतर भी वे आलोचना और निन्दा के पात्र बनते हैं। अंततः उनके स्वयं का नुकसान भी होता है। लेकिन दिग्विजय सिंह है कि अपनी करनी से बाज नहीं आते।

मध्यप्रदेश की राजनीति में ‘बुआजी’ के नाम से चर्चित और वर्तमान विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष रही जमुना देवी ने वर्ष 1995 में कांग्रेस के वर्तमान महासचिव और तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के बारे में टिप्पणी की थी, ‘‘ मैं आजकल मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के तंदूर में जल रही हूं।’’ इन्हीं बुआजी ने एक बार कहा था - मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह अपने सलाहकार और वामपंथी विचारधारा के समर्थक संगठनों को विशेष महत्व दे रहे हैं, जिससे नक्सली गतिविधियां फल-फूल रही हैं।

जानकारों के मुताबिक राघोगढ़ ने हमेशा ही अंग्रेजों का साथ दिया। राजा अजीत सिंह के दरम्यान राघोगढ़ के ब्रिटिश राज के ही अधीन रहा। 1904 में राघोगढ़ सिंधिया राज के अधीन हो गया। राघोगढ़ के तब के राजा सिंधिया को नजराना दिया करते थे। राघोगढ़ के राजा बहादुर सिंह भारतीय राजाओं में अंग्रेजों के सबसे वफादार थे। इनकी इच्छा थी कि वे प्रथम विश्व युद्ध में अंग्रेजों की तरफ से लड़ते हुए मारे जायें। अंग्रेजों की इस वफादारी के लिए राघोगढ़ राजघराने को वायसराय का धन्यवाद भी मिला। इतिहास के पन्नों में इस बात का उल्लेख है कि राघोगढ़ सामंत ने अपने क्षेत्र अंग्रेजों के खिलाफ भारतीयों की हर आवाज को दबाया। 1857 के गदर के दौरान भी यह राजघराना भारतीयों की बजाए अंग्रेजों के ही साथ था। दिग्विजय सिंह को यह अवसर मिला था कि वे राघोगढ़ पर लगने वाले आरोपों का जवाब देते, लेकिन उन्होंने न तो अपने 10 वर्षों के अपने शासन में और न ही अब ऐसा कोई प्रयास किया। बजाए इसके वे लगतार ऐसे बयान दे रहे हैं जिससे आतंवादियों और उनके पोषक शक्तियों को ही मदद मिल रही है। मामला चाहे बटला हाउस का हो या आजमगढ़ जाकर आतंकियों के परिजनों से मुलाकात का, हर बार दिग्विजय सिंह पर आतंकियों की मदद करने का आरोप लगा।
मध्यप्रदेश भाजपा ने दिग्विजय सिंह और खूखंार अपराधियों के गठजोर को केन्द्र में रखकर एक पुस्तिका प्रकाशित की थी। ‘एक संदिग्ध मुख्यमंत्री’ नाम से प्रकाशित इस पुस्तिका में मालवा क्षेत्र के खूंखार अपराधी खान बन्धुओं और दिग्विजय के संबंधों को उजागर किया गया था। मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने 15 अगस्त, 1995 को स्वतंत्रता दिवस पर भेापाल में बोलते हुए कहा कि ‘‘यहां अल्पसंख्यक असुरक्षा की भावना से पीड़ित होते हैं, और इसीलिए वे हथियारों का जमाव करते हैं।’’ दरअसल दिग्गी अपने उपर लगे आरोपों को ही जायज ठहरा रहे थे। भाजपा ने उन पर संगीन आरोप लगाए थे। गौरतलब है कि 1994-95 में जब गुजरात पुलिस ने मालवा के उज्जैन जिले से पप्पू पठान की गिरफ्तारी की तब विदेशी हथियार कांड का भांडा फूटा। यह भी पता चला कि इसमें रतलाम नगर पालिका निगम का पार्षद भी शामिल है जो दिग्विजय सिंह के पैनल से चुनाव लड़ा था। इस पार्षद का नाम आर.आर खान बताया गया। महिदपुर निवासी पप्पू पठान की जानकारी के आधार पर आर.आर खान के छोटे भाई महमूद खान के पास से कार्बाइन सहित अनेक विदेशी हथियार बरामद हुआ। पकड़े गए आरोपियों का संबंध तस्कर छोटा दाउद और सोहराब पठान से भी पाया गया। पुलिस की तफतीश में यह भी पता चला कि इन सभी आरोपियों को दिग्विजय सरकार के कई मंत्रियों और स्वयं मुख्यमंत्री तथा अल्पसंख्यक आयोग के तत्कालीन अध्यक्ष इब्राहीम कुरैशी का संरक्षण भी प्राप्त है। मीडिया और विपक्ष ने दिग्विजय सिंह द्वारा मेहमूद खान और उसके बड़े भाई आर.आर खान के बचाव में दिए गए बयान को खूब उछाला था। यह भी आरोप लगा कि इंदौर स्थित खंडवा रोड पर मालवा फार्म हाउस, जहां से देशी-विदेशी हथियारों का जखीरा पकड़ा गया था, तत्कालीन दिग्विजय सरकार के मंत्रीमंडल के कई सदस्यों द्वारा अय्याशी के लिए उपयोग किया जाता था। यह गठजोड़ न सिर्फ अखबारों की सुर्खियों में आया, बल्कि मध्यप्रदेश की विधानसभा में भी गूंजा।

मध्यप्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती ने भोपाल में पत्रकारों से बात करते हुए कहा- दिग्विजय सिंह सिर्फ दया के पात्र हैं। वर्ष 2003 में वे मध्यप्रदेश से बेदखल कर दिए गए थे। इस बेदखली में संघ को दोषी मानते हैं। बकौल सुश्री भारती दिग्विजय सिंह को लगता है कि मध्यप्रदेश से कांग्रेस और उनको बेदखल करने में संघ की ही भूमिका थी। इसीलिए वे हर बात में संघ का नाम घसीटते हैं। दिग्विजय सिंह ने हमेशा ही संघ को कटघरे में खड़े करने की कोशिश की है। हिन्दू आतंकवाद का नारा उछालने और संघ को आतंकी संगठन सिद्ध करने के लिए उन्होने हर संभव कोशिश की। हालांकि दिग्विजय सिंह का दामन स्वयं ही दागदार है। कुछ दिन पहले ही माकपा-माओवादी के केन्द्रीय समिति सदस्य तुषारकांत भट्टाचार्य ने एक साप्ताहिक पत्रिका को बताया था कि दिग्विजय सिंह ने पिछले साल अगस्त में उनकी पार्टी से संपर्क साधा था। यह कोशिश हैदराबाद के एक कांगेेसी नेता के जरिए की गई थी। भट्टाचार्य के मुताबिक उस वक्त वह वारंगल जेल में था। गौरतलब है कि दिग्विजय सिंह ने गृहमंत्री चिदंबरम की नक्सल विरोधी नीति की आलोचना की थी।
मध्यप्रदेश की राजनीति में ‘बुआजी’ के नाम से चर्चित और वर्तमान विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष रही जमुना देवी ने वर्ष 1995 में कांग्रेस के वर्तमान महासचिव और तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के बारे में टिप्पणी की थी, ‘‘ मैं आजकल मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के तंदूर में जल रही हूं।’’ इन्हीं बुआजी ने एक बार कहा था - मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह अपने सलाहकार और वामपंथी विचारधारा के समर्थक संगठनों को विशेष महत्व दे रहे हैं, जिससे नक्सली गतिविधियां फल-फूल रही हैं।

दिग्विजय सिंह का ताजा बयान यही बयां करता है कि उन्होंने देशभक्ति का कोई सबक नहीं सीखा है, बल्कि इसके उलट वे अंग्रेजो से लेकर आतंकियों और देश विरोधियों के समर्थक के तौर पर उभरे हैं। अब यह सच भी उजागर होन लगा है कि उन्हीं के राज में सिमी, नक्सली गतिविधियां, बांग्लादेशी घुसपैठ और आतंकी गतिविधियों को बढ़ावा मिला, बल्कि अरुंधती राय जैसी देश विरोधी बुद्धिजीवियों को भी शह मिला। इतिहास के पन्नों में यह दर्ज है कि दिग्विजय सिंह के पुरखे अंग्रेजों के प्रति वफादार रहे। अब अखबारों में यह दर्ज हो रहा है कि दिग्विजय सिंह ने आर.आर खान से लेकर अजमल कसाब तक की रहनुमाई राजनीति कैसे की। इन सब से कांग्रेस और दिग्विजय की धर्मनिरपेक्ष छवि को कितना बल मिला या उनके वोट बैंक में कितना इजाफा हुआ यह तो नहीं मालूम, लेकिन तब प्रदेश का और अब पूरे देश का नुकसान जरूर हो रहा है।

गुरुवार, 9 दिसंबर 2010

खजुराहो में अन्तरराष्ट्रीय विज्ञान संचार सम्मेलन की शुरुआत


भारत में 4 से 11 दिसंबर तक दुनिया के पचास से अधिक देशों विज्ञान संचार विशेषज्ञ इकट्ठा हुए। दुनिया भर के संचार विशेषज्ञों का जुटान विज्ञान एवं प्रौद्योगकिी विभाग की ईकाई राष्ट्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संचार परिषद् ने किया है। आधुनिक समाज में विज्ञान की भूमिका पर आयोजित इस 11 वें ‘‘पब्लिक कम्युनिकेशन आॅफ साईंस एंड टेक्नोलॉजी’ के आयोजन में मध्यप्रदेश विज्ञान एंव प्रौद्योगिकी परिषद् ने भी काफी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। गौरतलब है कि खजुराहो में 4 और 5 दिसंबर को आयोजित ‘‘प्री कांफ्रेरेंस’’ की मेजबानी मध्यप्रदेश विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद् ने की। 6 से 10 दिसंबर तक मुख्य सम्मेलन दिल्ली में और समापन 11 दिसंबर को जयपुर में होगा। मध्यप्रदेश की ऐतिहासिक नगरी खजुराहो न सिर्फ मंदियों और मूर्तियों के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि इतिहास, धर्म और कला-संस्कृति के संचार के लिए भी जाना जाता है। संचार नगरी खजुराहो विज्ञान संचार के प्रति नई सोच और दृष्टि उत्पन्न करने के लिए आयोजित अन्तरराष्ट्रीय सम्मेलन का साक्षी बना। यहां आयोजित प्री-कांफ्रेंस में विज्ञान भारती के संगठन सचिव जयकुमार, मध्यप्रदेश विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद् के महानिदेशक प्रो. प्रमोद कुमार वर्मा, योजना आयोज के सलाहकार ए.के. वर्मा, एनसीएसटीसी के निदेशक डॉ. मनोज पटैरिया, समाज विज्ञानी डॉ. जितेन्द्र बजाज, संचार विशेषज्ञ शशिधर कपूर, संदीप भट्ट और काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के डॉ. पी. के. मिश्रा मुख्यरूप से उपस्थित थे। इस सम्मेलन में विदेशी संचार विशेषज्ञ भी बड़ी संख्या में उपस्थित थे। इन सम्मेलन में आस्ट्रेलिया, इंग्लैंड, फिलीपींस सहित कई देशों के अंतरराष्ट्रीय प्रतिभागियों हिस्सा लिया।

उद्घाटन सत्र में बोलते हुए विज्ञान भारती के संगठन सचिव जयकुमार ने कहा कि विज्ञान संचार पर बात करते हुए हमें यह भी विचार करना चाहिए कि वैदिक साहित्य कैसे आया यह कैसे विकसित हुआ। वर्षों तक लिखने-पढ़ने की पद्धति विकसित न होने के बावजूद हमारे देश में ज्ञान-विज्ञान का संचार होता आया है। भारतीय समाज साहित्य, विज्ञान और ज्ञान का संचार श्रुति संचार के द्वारा वर्षों तक करता रहा है। पीढ़ी दर पीढ़ी ज्ञान का हस्तांतरण भी एक विशिष्ट भारतीय पद्धति से होता रहा। जब दुनिया अज्ञान के अंधेरे में थी तब भी भारत ने सभी क्षेत्रों में ज्ञान-विज्ञान का संचार किया।
जयकुमार ने कहा कि वैज्ञानिक का मतलब सिर्फ टाई-कार्ट नहीं है। यहां के किसान और वनवासी वास्तविक वैज्ञानिक हैं। भारत का वनवासी कैंसर का उपचार कर रहा है। अशिक्षित और निरक्षर लोगों ने भी अनेक क्षेत्रों में उत्तम संचार किया है और आज भी कर रहे हैं। भारतीय समाज ने टीवी, विडियो और एलसीडी जैसे उपकरण और तकनीक न होने के बाद भी यह सब किया। यहां अनेक गांवों में आज भी बिजली नहीं है, अंधेरे में आधुनिक संचार कैसे काम करेगा। हम सिर्फ सूचना संचार तकनीक से ही समस्याओं का निदान नहीं कर सकते। मीडिया क्षेत्र में कार्यरत लोगों को भी विज्ञान संचार के बारे में नए सिरे से सोचने की जरूरत है। आज भी अपने देश में एक भी विज्ञान केन्द्रित समाचार पत्र नहीं है।
उन्होंने कहा कि भारतीय समाज की समस्याओं और आवश्यकताओं को जानने-समझने की कोशिश होनी चाहिए, फिर इसी के अनुकूल विज्ञान संचार को विकसित किया जाना चाहिए। भारत में भारतीय द्ष्टि से विज्ञान संचार की रूपरेखा बनानी होगी। भारतीय ऋषियों ने ध्वनि विज्ञान, भाषा विज्ञान पर काफी काम किया है।
योजना आयोग के सलाहकार ए.के. वर्मा ने कहा कि सभी सफल प्रधानमंत्रियों ने विज्ञान के महत्व की बात स्वीकर करते हुए इसे बढावा दिया है। आज मोबाइल, कम्प्युटर और टीवी जैसे आधुनिक संचार साधन गरीब और पिछड़े लोगों को भी मदद दे रहे हैं। आज इस बात पर विचार करने की जरूरत है कि विकास और संचार को कैसे जोड़ा जाए। वैज्ञानिकों और संचारकों को मिल कर काम करने की जरूरत है। विज्ञान को लोकप्रिय बनाना भी एक चुनौती है, खासकर भारत जैसे देश में जहां अनेक भाषा, समुदाय और भिन्न-भिन्न संस्कृतियों का समाज है। श्री वर्मा ने कहा कि भारत सरकार का योजना आयोग 12 वीं योजना की तैयारी कर रहा है। इसमें भी विज्ञान और विज्ञान संचार को देश की जरूरतों के मुताकिब शामिल किया जा सकता है। विज्ञान के क्षेत्र में लोक जागरण और लोक जिम्मेदारी को बढ़ावा देने में मीडिया की बड़ी भूमिका हो सकती है।
मध्यप्रदेश विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद्के महानिदेशक प्रो. प्रमोद कुमार वर्मा ने कहा कि हमें लोगों में वैज्ञानिक मनोवृत्ति का विकास करना है। हमारी संचार की विशिष्ट परंपरा रही है। इस परंपरा को संरक्षित और विकसित करने की जरूरत है। हमारी दादी ने ‘काजल’ बनाना और आंखों में लगाना हमारी मां को सिखाया। झारखंड राज्य में बनने वाले हंडिया और मध्यप्रदेश के मंडला जिले के वैद्यों द्वारा किए जाने वाले उपचार विधियों का उल्लेख करते हुए डॉ. वर्मा ने भारतीय परंपराओं में विज्ञान और विज्ञान संचार से प्रतिभातियों को रूबरू कराया। उन्होंने कहा कि भारत ने वैज्ञानिक दृष्टि अपनाते हुए समय, सामग्री, प्रक्रिया और उत्पाद को हमेशा महत्व दिया। भारत में ओझा-वैद्य शायद पढ़ना-लिखना नहीं जानते लेकिन उपचार की श्रेष्ठ विधियों से वे भलि-भांति परिचित थे। हमारे पास आज संचार के अनेक आधुनिक साधन उपलब्ध हो गए हैं लेकिन अभी भी संचार की कमी है। बच्चों के लिए विज्ञान शिक्षा के लिए काुी समय से प्रयास चल रहा है। अभी इस दिशा में वांछित सफलता के लिए और भी बहुत कुछ करने की जरूरत है। विज्ञान की जटिलताओं को सहज और सर्वसुलभ बनाने की काफी आवश्यकता है। मध्यप्रदेश सरकार इस दिशा में काफी प्रयास कर रही है। सरकार के प्रयासों से विज्ञान को एक वर्ग विशेष से आम लोगों का विषय बनाने में काफी सफलता मिली है। मध्यप्रदेश विज्ञान एवं प्रौैद्योगिकी परिषद् की कोशिश है कि विज्ञान सबके लिए हो, विकास के प्रत्येक पहलू में विज्ञान को शामिल किया जाये। देश के विभिन्न हिस्सों से आए विशेषज्ञों ने विज्ञान संचार से संबंधित अनेक प्रस्तुतियां भी दी। कार्यक्रम का संचालन परिषद् के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. संदीप गोयल ने किया।
खजुराहो से अनिल सौमित्र

मंगलवार, 30 नवंबर 2010

कांग्रेसी कमीनापन कहाँ से लाओगे

सुरेश चिपलूनकर
Friday 26 November 2010
भाजपा के लिये "जगीरा डाकू" का एक सामयिक संदेश…

पहले कृपया यह वीडियो क्लिप देखिये, फ़िल्म का नाम है “चाइना गेट”, राजकुमार संतोषी की फ़िल्म है जिसमें विलेन अर्थात डाकू जगीरा के साथ एक गाँव वाले की लड़ाई का दृश्य है… जिसमें उस ग्रामीण को धोखे से मारने के बाद जागीरा कहता है… “मुझसे लड़ने की हिम्मत तो जुटा लोगे, लेकिन कमीनापन कहाँ से लाओगे…”… फ़िर वह आगे कहता है… “मुझे कुत्ता भाया तो मैं कुत्ता काट के खाया, लोमड़ी का दूध पीकर बड़ा हुआ है ये जगीरा…”… असल में डाकू जागीरा द्वारा यह संदेश भाजपा नेताओं और विपक्ष को दिया गया है, विश्वास न आता हो तो आगे पढ़िये -

डायरेक्ट लिंक - http://www.youtube.com/watch?v=KRyH0eexMpE
भाजपा से पूरी तरह निराश हो चुके लोगों से अक्सर आपने सुना-पढ़ा होगा कि भाजपा अब पूरी तरह कांग्रेस बन चुकी है और दोनों पार्टियों में कोई अन्तर नहीं रह गया है, मैं इस राय से "आंशिक" सहमत हूं, पूरी तरह नहीं हूं… जैसा कि ऊपर "भाई" डाकू जगीरा कह गये हैं, अभी भाजपा को कांग्रेस की बराबरी करने या उससे लड़ने के लिये, जिस "विशिष्ट कमीनेपन" की आवश्यकता होगी, वह उनमें नदारद है। 60 साल में कांग्रेस शासित राज्यों में कम से कम 200 दंगों में हजारों मुसलमान मारे गये और अकेले दिल्ली में 3000 से अधिक सिखों को मारने वाली कांग्रेस बड़ी सफ़ाई से "धर्मनिरपेक्ष" बनी हुई है, जबकि गुजरात में "न-मो नमः" के शासनकाल में सिर्फ़ एक बड़ा दंगा हुआ, लेकिन मोदी "साम्प्रदायिक" हैं, अरे भाजपाईयों, तुम क्या जानो ये कैसी ट्रिक है। अब देखो ना, गुजरात में तुमने "परजानिया" फ़िल्म को बैन कर दिया तो तुम लोग साम्प्रदायिक हो गये, लेकिन कांग्रेस ने "दा विंसी कोड", "मी नाथूराम गोडसे बोलतोय" और "जो बोले सो निहाल" को बैन कर दिया, फ़िर भी वे धर्मनिरपेक्ष बने हुए हैं…, "सोहराबुद्दीन" के एनकाउंटर पर कपड़े फ़ाड़-फ़ाड़कर आसमान सिर पर उठा लिया लेकिन महाराष्ट्र में "ख्वाज़ा यूनुस" के एनकाउंटर को "पुलिस की गलती" बताकर पल्ला झाड़ लिया…। महाराष्ट्र में तो "मकोका" कानून लागू करवा दिया, लेकिन गुजरात में "गुजकोका" कानून को मंजूरी नहीं होने दी… है ना स्टाइलिश कमीनापन!!!

इनके "पुरखों" ने कश्मीर को देश की छाती पर नासूर बनाकर रख दिया, देश में लोकतन्त्र को कुचलने के लिये "आपातकाल" लगा दिया, लेकिन फ़िर भी तुम लोग "फ़ासिस्ट" कहलाते हो, कांग्रेस नहीं… बोलो, बराबरी कर सकते हो कांग्रेस की? नहीं कर सकते… अब देखो ना, कारगिल की लड़ाई को "भाजपा सरकार की असफ़लता" बताते हैं और एक "चेन स्मोकर" द्वारा पंचशील-पंचशील का भजन गाते-गाते जब चीन ने धुलाई कर डाली, तो कहते हैं "यह तो धोखेबाजी थी, सरकार की असफ़लता नहीं"…। चलो छोड़ो, अन्तर्राष्ट्रीय नहीं, देश की ही बात कर लो, संसद पर हमला हुआ तो भाजपा की असफ़लता, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के बावजूद अफ़ज़ल को फ़ाँसी नहीं दी तो इसे "मानवता" बता दिया…। एक बात बताओ भाजपाईयों, तुम्हारे बंगारू और जूदेव कहाँ हैं किसी को पता नहीं, लेकिन उधर देखो… 26/11 हमले का निकम्मा विलासराव देशमुख केन्द्र में मंत्री पद की मलाई खा रहा है, CWG में देश की इज्जत लुटवाने वाला कलमाडी चीन में एशियाई खेलों में ऐश कर रहा है, जल्दी ही अशोक चव्हाण की गोटी भी कहीं फ़िट हो ही जायेगी… तुम लोग क्या खाकर कांग्रेस से लड़ोगे? ज्यादा पुरानी बात नहीं करें तो हाल ही में अरुंधती ने भारत माता का अपमान कर दिया, कोई कांग्रेसी सड़क पर नहीं निकला… पर जब सुदर्शन ने सोनिया माता के खिलाफ़ बोल दिया तो सब सड़क पर आ गये, बोलो "भारत माता" बड़ी कि "सोनिया माता"?

हजारों मौतों के जिम्मेदार वॉरेन एण्डरसन को देश से भगा दिया, कोई जवाब नहीं… देश के पहले सबसे चर्चित बोफ़ोर्स घोटाले के आरोपी क्वात्रोची को छुड़वा दिया, फ़िर भी माथे पर कोई शिकन नहीं…। अब देखो ना, जब करोड़ों-अरबों-खरबों के घोटाले सामने आये, जमकर लानत-मलामत हुई तब कहीं जाकर कलमाडी-चव्हाण-राजा के इस्तीफ़े लिये, और तुरन्त बाद बैलेंस बनाने के लिये येदियुरप्पा के इस्तीफ़े की मांग रख दी… अरे छोड़ो, भाजपा वालों, तुम क्या बराबरी करोगे कमीनेपन की…। क्या तुम लोगों ने कभी केन्द्र सरकार में सत्ता होते हुए "अपने" राज्यपाल द्वारा कांग्रेस की राज्य सरकारों के "कान में उंगली" की है? नहीं की ना? जरा कांग्रेस से सीखो, देखो रोमेश भण्डारी, बूटा सिंह, सिब्ते रजी, हंसराज भारद्वाज जैसे राज्यपाल कैसे विपक्षी राज्य सरकारों की "कान में उंगली" करते हैं, अरे भाजपाईयों, तुम क्या जानो कांग्रेसी किस मिट्टी के बने हैं।

एक चुनाव आयुक्त को रिटायर होते ही "ईनाम" में मंत्री बनवा दिया, फ़िर दूसरे चमचे को चुनाव आयुक्त बनवा लिया, वोटिंग मशीनों में हेराफ़ेरी की, जागरुक नागरिक ने आवाज़ उठाई तो उसे ही अन्दर कर दिया… भ्रष्टाचार की इतनी आदत पड़ गई है कि एक भ्रष्ट अफ़सर को ही केन्द्रीय सतर्कता आयुक्त बना दिया… कई-कई "माननीय" जजों को "ईनाम" के तौर पर रिटायर होते ही किसी आयोग का अध्यक्ष वगैरह बनवा दिया…। भाजपा वालों तुम्हारी औकात नहीं है इतना कमीनापन करने की, कांग्रेस की तुम क्या बराबरी करोगे।

डाकू जगीरा सही कहता है, "लड़ने की हिम्मत तो जुटा लोगे, लेकिन कमीनापन कहाँ से लाओगे…?" गाय का दूध पीने वालों, तुम लोमड़ी का दूध पीने वालों से मुकाबला कैसे करोगे? अभी तो तुम्हें कांग्रेस से बहुत कुछ सीखना है…

सोमवार, 29 नवंबर 2010

मीडिया को भी आर.टी.आई.के दायरे में लाया जाए

सेवा में,
विषय: लोकतंत्र के चौथे खंभे (पत्रकारिता) को सूचना के अधिकार के दायरे में लाने के संदर्भ में
महोदय/महोदया,
मैं अफ़रोज़ आलम साहिल पत्रकार के साथ-साथ एक आर.टी.आई. एक्टिविस्ट हूं। मेरी मांग है कि लोकतंत्र के चौथे खंभे यानी मीडिया को सूचना के अधिकार अधिनियम-2005 के दायरे में लाया जाए। लोकतंत्र के पहले तीनों खंभे सूचना के अधिकार अधिनियम-2005 के दायरे में आते हैं। यह कानून कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका तीनों पर लागू होता है। इसका मक़सद साफ है कि लोकतंत्र को मज़बूत किया जा सके। इसी मक़सद की मज़बूती की खातिर मेरी ये मांग है कि लोकतंत्र के चौथे खंभे यानी मीडिया को भी सूचना के अधिकार अधिनियम-2005 के दायरे में लाया जाए, ताकि लोकतंत्र में जवाबदेही और पारदर्शिता को हर स्तर पर लागू किया जा सके।

दरअसल, पिछले कुछ दिनों में कई ऐसे वाक़्यात हुए हैं, जिन्होंने मीडिया में पारदर्शिता को लेकर सवाल खड़े किए हैं। ऐसे कई मीडिया समूह हैं, जिनकी आमदनी और निवेश संदेह के दायरे में है। ऐसे कई पत्रकार भी हैं जिनकी संपत्ति उनकी आय के ज्ञात स्त्रोतों से कई गुना ज़्यादा है और ये सब उसी मीडिया के हिस्सा हैं, जो समाज के तमाम तबकों से लोकतंत्र में पारदर्शिता और जवाबदेही की मांग करता है। ये उसी मीडिया के लोग हैं, जो राजनेताओं से लेकर अधिकारियों और न्यायपालिका के प्रतिनिधियों की आय के स्त्रोतों की छानबीन में खासी दिलचस्पी दिखाता है और उस पर तमाम तरह के सवाल खड़े करता है। मीडिया इस बात की वकालत करता है कि समाज और लोकतंत्र के ये तमाम तबके अपनी आय का ब्यौरा सार्वजनिक करें। सार्वजनिक तौर पर अपनी ईमानदारी और पारदर्शिता का सबूत दें। फिर सवाल ये उठता है कि आखिर ये मानक खुद मीडिया पर लागू क्यों न हो। समाज और लोकतंत्र के दूसरे तबकों की खातिर जवाबदेही और पारदर्शिता की वकालत करने वाला मीडिया अपनी जवाबदेही और अपनी पारदर्शिता के सवाल से क्यों बचना चाहता है। आख़िर मीडिया इस बात की मांग क्यों नहीं करता कि ख़ुद उसे भी सूचना के अधिकार अधिनियम-2005 के दायरे में लाया जाए।
यहां हाल की कुछ घटनाओं के जरिये मैं कुछ सवाल आपके सामने रख रहा हूँ-
1. अगर NDTV 24X7 की ग्रुप एडिटर बरखा दत्त और हिन्दुस्तान टाईम्स ग्रुप के एडिटर वीर सांघवी का नाम टेलीकॉम घोटाले के मामले में सीबीआई के दस्तावेज़ों में बतौर दलाल दर्ज है, तो इन लोगों की आय का ब्यौरा सार्वजनिक क्यों नहीं किया जाना चाहिए या इस घटना (या दुर्घटना) के सामने आने के बाद सभी पत्रकारों और माडिया हाउस को स्वेच्छा से अपनी संपत्ति का ब्यौरा सार्वजनिक क्यों नहीं कर देना चाहिए?
2. अगर संसद नोटकांड मामले में CNN-IBN के एडिटर-इन-चीफ और मालिक राजदीप सरदेसाई का नाम बतौर सीडी मैनेजर सामने आता है तो उनकी संपत्ति की छानबीन क्यों नहीं की जानी चाहिए? एक पत्रकार के मालिक बनने की राह में लिए गए तमाम फायदों की कलई सूचना के अधिकार अधिनियम-2005 के ज़रिए क्यों नहीं खुलनी चाहिए? क्या पत्रकारों को पत्रकार होने के नाते सूचना के अधिकार का इस्तेमाल सिर्फ दूसरों के खिलाफ करने का कोई विशेषाधिकार हासिल है?
3. अगर इंडिया टुडे के ग्रुप एडिटर रहे प्रभु चावला अमर सिंह की चर्चित सीडी में डिलींग करते हुए सुनाई दे रहे हैं और उनके बेटे अंकुर चावला का नाम सीबीआई के दस्तावेजों में बतौर वित्तीय घालमेल के दलाल के तौर पर दर्ज है तो क्यों नहीं प्रभु चावला की वित्तीय और ज़मीनी संपत्तियों का ब्यौरा सामने लाया जाए?

ये तीन सवाल तो सिर्फ उदहारण भर हैं। ऐसे न जाने कितने मीडिया हाउस और पत्रकार हैं, जिन्होंने लोकतंत्र के चौथे खंभे की आड़ में भ्रष्टाचार की गंगोत्री बहा रखी है। इन तमाम तथ्यों और लोकतंत्र की प्रतिबद्धता के नाम पर मेरी आपसे ये मांग है कि कृपया मीडिया को भी सूचना के अधिकार अधिनियम-2005 के दायरे में लाने की पहल की जाए। ये लोकतंत्र की आत्मा के हक़ में होगा।
आपके सकारात्मक जवाब का आकांक्षी
अफ़रोज़ आलम साहिल
leaksehatkar@gmail.com

शनिवार, 20 नवंबर 2010

सुदर्शन के आरोप और सोनिया की चुप्पी !

अनिल सौमित्र
10 नवम्बर को राष्ट्रव्यापी धरने के दौरान भोपाल में संघ के पूर्व प्रमुख सुदर्शन ने जो कुछ कहा उसके बाद बहुत कुछ बदल गया। संघ जो चाहता था नहीं हुआ। जो नहीं चाहता था, वही हो गया। सोनिया संबंधी अपने वक्तव्य के बाद सुदर्शन चुप हो गए। मीडिया के लाख प्रयासों के बावजूद वे उपलब्ध नहीं हुए। सुदर्शन जिसके कभी प्रमुख हुआ करते थे, उसने भी उनके बयान को निजी करार दिया। बाद में संघ के सरकार्यवाह का खेद प्रकट करने वाला आधिकारिक बयान जारी हुआ। लेकिन मामला शांत नहीं हुआ। कांग्रेस के महासचिव और कांग्रेसी सेक्यूलरिज्म के नए ठेकेदार दिग्विजय सिंह ने कहा - संघ प्रमुख मोहन भागवत और भाजपा को देश की जनता को यह बताना चाहिए कि वे श्री सुदर्शन के बयान से सहमत हैं या असहमत हैं। कांग्रेस पार्टी के मीडिया प्रकोष्ठ प्रमुख और प्रवक्ता जनार्दन द्विवेदी ने आग में बारूद डालने का काम किया। उन्होंने कांग्रेस कार्यकर्ताओं को उकसाते हुए कहा - ऐसे लोगों के खिलाफ समाज की प्रतिक्रया ऐसी होनी चाहिए कि भविष्य में कोई भी इस तरह की भाषा का इस्तेमाल करने की हिम्मत न कर पाए। द्विवेदी ने कहा कि इस तरह की बातों से अगर देशभर में कांग्रेसजन उत्तेजित होते हैं तो इसकी जिम्मेदारी किस पर होगी? कांग्रेस के नेताओं पवन कुमार बंसल से लेकर रीता बहुगुणा, अशोक गहलोत, सुरेश पचैरी और कल्पना परुलेकर तक सभी में बयान देने और कांग्रेस कार्यकर्ताओं को उकसाने की होड़ लग गई। जनार्दन द्विवेदी के बयान के तत्काल बाद कांग्रेसियों ने संघ के दिल्ली स्थित कार्यालय केशवकुंज पर हमला कर दिया। कांग्रेस ये भूल गए कि जहां जूते-चप्पल और पत्थर फेंक रहे हैं वहां भारतमाता का चित्र भी है। लेकिन उन्हें कांग्रेस-माता के समक्ष भारतमाता की केाई कद्र नहीं। मध्यप्रदेश समेत कई प्रदेशों में कांग्रेस के नेता बड़बोले हो गए। वे अपना विरोध सोनिया-माता तक पहुचाने के लिए इतने उतावले हो गए कि एक ही स्थान पर कई-कई दफे पुतले जलाए जाने लगे। कांग्रेस के जहां जितने गुट वहां उतने ही पुतले जलाए गए। केन्द्र सरकार में राज्यमंत्री अरुण यादव ने कांग्रेस के कार्यकर्ताओं को सलाह दी कि वे पार्टी के झंडे के साथ डंडा लेकर सडकों उतरें।
इधर संघ और भाजपा के नेता कांग्रेसी योजना की सफलता पर सिर पीटते रहे। भ्रष्टाचार के मुद्दे पर संसद में और संसद के बाहर हिन्दू विरोधी दुष्प्रचार की राजनीति को लेकर कांग्रेस की घेरेबंदी हवा हो गई। कांग्रेसियों को पता था कि सुदर्शन के बयान पर जितना हल्ला मचेगा विपक्षी घेरेबंदी उतनी ही कमजोर होगी। भाजपा के मध्यप्रदेश अध्यक्ष से लेकर राष्ट्रीय प्रवक्ता तक सुदर्शन के बयान को तूल न देने की सलाह कांग्रेस को देते रहे। कांग्रेसियों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा।
संघ और भाजपा के नेता यह भूल गए कि जिसे फांसने चले थे, उसी ने अपनी चाल में फंसा लिया। कांग्रेस के नेताओं के बयान पहले से ही भड़काउ थे। चाहे वह गृहमंत्री चिदंबरम का हिन्दू-भगवा आतंकवाद संबंधी बयान हो या दिग्विजय सिंह का संघ पर आईएसआई से पैसा लेने का आरोप। बाद में राहुल गांधी ने संघ को सिमी जैसा कह दिया। यह सब कुछ हिन्दू संगठनों को उत्तेजित करने के लिए ही था। कांग्रेस चाहती थी कि संघ या अन्य हिन्दू संगठन उत्तेजित हो जाएं और कुछ ऐसा कर बैठें कि उन्हें अपने आरोपों को जायज ठहराने का बहाना मिल जाये। एक टीवी चैनल पर चर्चा करते हुए मध्यप्रदेश सरकार के मंत्री और भाजपा नेता कैलाश विजयवर्गीय बार-बार कह रहे थे कि संघ का हिंसा में विश्वास नहीं है। संघ कांग्रेस के लाख भड़काने के बावजूद शांति से अपना कार्य कर रहा है। संघ रचनात्मक कार्यों और लोकतांत्रिक पक्रिया में भरोसा रखता है। लेकिन दूारी तरफ कांग्रेस के नता सज्जन वर्मा लगातार चुनौती दे रहे थे। वे बार-बार ललकार रहे थे - भाजपा-संघ में दम हो तो राजस्थान, महाराष्ट्र या फिर आंध्रप्रदेश में हमले करके देखें। वे चाहते हैं कि कांग्रेस के लोगों ने जैसे देशभर में संघ कार्यालयों पर हमले, प्रदर्शन और पथराव किए वैसा ही कुछ संघ के कार्यकर्ता भी करें। फिर उनके दिग्विजय सिंह जैसे नेता यह कहते फिरें कि देखो ये संघी आतंकी कैसा आतंक फैला रहे हैं। बहरहाल कांग्रेस के इतना सब प्रयास करने के बावजूद भी देश में कोई बड़ा तूफान खड़ा नहीं हुआ। संघ के वरिष्ठ लोगों ने कांग्रेसी आग में पानी डाल दिया। कांग्रेस के नेता ऐसा कुछ चाहते थे जिसे देख कर मुस्लिम समुदाय भड़क जाये। वे समर्थक मुसलमानों का धु्रवीकरण चाहते हैं। शायद यह अभी तक हो नहीं सका।
एक समाचार पत्र ने लिखा कि कांग्रेसियों को तो सोनिया गांधी और राहुल गांधी के प्रति निष्ठा दिखाने का बहाना चाहिए। आरएसएस नेता सुदर्शन ने सोनिया के खिलाफ टिप्पणी क्या कि, पार्टी के नेता सोनिया और राहुल के दफ्तर में फैक्स भेजकर बताने लगे कि उन्होंने आरएसएस के दफ्तर और उनके नेता सुदर्शन के खिलाफ किस-किस तरह से विरोध प्रदर्शित करने की योजना बनाई है। समाचार पत्र के मुताबिक कांग्रेसियों ने अपने नेता को इतने सारे फैक्स भेजे कि कई बार फैक्स रोल बदलने पड़े। सोनिया के दफ्तर में तो फैक्स मशीन को सामान्य फैक्स नम्बर से हटाकर दूसरे नम्बर में लगाना पड़ा। जब नेताओं ने सोनिया-राहुल को फोन करके अपने विरोध कार्यक्रमों के बारे में बताया तो सोनिया-राहुल ने इसमें कोई रूचि नहीं दिखाई। पार्टी से जुड़े वकीलों ने भी हमदर्दी दिखाते हुए आरएसएस और उनके नेता सुदर्शन के खिलाफ मुकदमा दायर करने की अनुमति चाही तो उस पर भी सोनिया खामोश बनी रही।
खबर यह भी है कि सोनिया गांधी को अगले कुछ दिनों में अपनी नई टीम का ऐलान करना है। इसी महीने पार्टी की बैठक में सोनिया ने कई नेताओं को टीम से बाहर रखने का संकेत दे दिया था। इन नेताओं के लिए सुदर्शन का बयान संजीवनी की तरह है। आरएसएस नेता सुदर्शन के बयान के बहाने दिल्ली में जगदीश टाइटलर, भोपाल में सुरेश पचैरी और जयसवाल जैसे नेताओं ने संघ विरोध की कमान संभाल ली। अखबारों की कटिंग ‘कांग्रेस-माता सोनिया निवास तक पहुचायी गई। लेकिन सोनिया ने न तो कांग्रेस नेताओं के इस दिखावटी विरोध को तवज्जो दी और ना ही आगे बढ़कर मानहानि की शिकायत ही की। बयान के बाद जैसे सुदर्शन ने चुप्पी साध ली वैसे ही सोनिया ने भी।
यह सच है कि कांग्रेस-माता सोनिया के बारे में कांग्रेसियों को पता हो या न हो स्वयं सोनिया अपने बोर में तो जानती हैं। वे जानती हैं कि सुदर्शन के वक्तव्य की भाषा, शैली और उनके वक्तव्य की परिस्थितियों पर ही हंगामा मचाया जा सकता है, उनकी कही बातों पर नहीं। सोनिया के बारे में दुनियाभर के लोग, खुफिया एजेंसियां बहुत कुछ जानती हैं। आखिर कांग्रेसी सोनिया के बारे में सच का सामना क्यों नहीं करते! कांग्रेस के नेता-कार्यकर्ताओं ने सुदर्शन-संघ को जितना भला-बुरा कहना था कह दिया। किसी ने उन्हें पागल कहा तो किसी ने मानसिक दिवालिया। लेकिन कांग्रेस के नेता तो मानसिक श्रेष्ठता का परिचय दें। एक बार तो बतायें कि जिसे वे पूजते हैं, जिनके लिए एक बार नहीं बार-बार मरने की कसमें खाते हैं उस कांग्रेस-माता का चलताउ नहीं, असली और पूरा नाम क्या है? कांग्रेसी क्या उन सोनिया माता जिनके लिए वे पलक-पांवडे बिछाए रहते हैं उनके मां-बाप के बारे में भी उतने गर्व और स्वाभिमान से दूसरों को बता सकते हैं? संघ के स्वयंसेवक भारतमाता के आराधक डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार, श्री माधव सदाशिवराव गोलवरकर, श्री कुप्पहल्ली सीतारमैया सुदर्शन या फिर डॉ. मोहनराव मधुकर भागवत को अपना नेता मानते हैं। वे गर्व और स्वाभिमान से इसे सार्वजनिक रूप से बताते भी हैं। क्या इतने ही गर्व और स्वाभिमान से कांग्रेसी भी यह स्वीकार करते हैं कि उनकी नेता स्टीफेनो माइनो की पुत्री एंटोनिया सोनिया माइनो हैं। सोनिया शायद इसलिए चुप हैं कि उन्हें अपना सच मालूम है। वे भले ही अपने भक्तों से ये सच छुपा लें। लेकिन इस लोकतांत्रिक देश में जहां सूचना का अधिकार हरेक नागरिक को प्राप्त है कोई भी सच ज्यादा दिन छुपाया नहीं जा सकता। कांग्रेसी भले ही सच का सामना करते हुए अपनी आंखें भींच लें, हरेक भारतीय सोनिया के सच को जानने के लिए उतावला है। कांग्रेस के विरोधी भी तो जानें कि एक सोनिया भक्त कांग्रेसी अपने नेता की जीवनी कैसे लिखता, पढ़ता और सुनता है। कांग्रेस के नेता संघ-सुदर्शन को कोसने, उन्हें भला-बुरा कहने और उनका पुतला-अर्थी जलाने से उबर गए होंगे। चाहें तो भले ही कुछ पुतले और जला लें, एकाध मुकदमे और कर दें, लेकिन एक बार हिम्मत करके सोनिया के सच का सामना जरूर करें। भले ही सुदर्शन चुप रहें, सोनिया तो अपनी रहस्यमयी चुप्पी तोडें!
(लेखक पत्रकार और मीडिया एक्टिीविस्ट हैं। )

गुरुवार, 18 नवंबर 2010

राहुल गांधी, सुदर्शन जी और कांग्रेस

प्रो. रामेश्वर मिश्र पंकज

कांग्रेस पार्टी सुदर्शन जी की टिप्पणिय्ाों को लेकर प्रचण्ड रोष में है। कांग्रेस के प्रवक्ताओं में से सर्वाधिक सौम्य्ा और सुशील श्री जनार्दन द्विवेदी जी तक ने प्रेसवार्ता में य्ाह कह दिय्ाा बताते है कि य्ादि कांग्रेस कायर््ाकर्ता राष्ट्रीय्ा स्वय्ांसेवक संघ पर सुदर्शन जी की टिप्पणिय्ाों के कारण हमले करते हैं तो इसकी जवाबदेही कांग्रेस पार्टी की नहीं होगी।
कांग्रेस देश की सबसे पुरानी राष्ट्रीय्ा पार्टी है। हालांकि उसकी निरंतरता नाई के उस प्रसिद्ध उस्तरे की भांति है जिसे उक्त नाई ने कभी बेंट और कभी उस्तरा बदलते हुए दसों बार बदल लिय्ाा था, परन्तु फिर भी वह उसे बाप-दादों का पुराना उस्तरा ही बताता था। कांग्रेस पार्टी दस बार बदली गई है और उसके नेतृत्व, संगठन के ढांचे, दल के लक्ष्य्ा, राष्ट्र संबंधी धारणा, समाजवाद के आदर्श आदि विषय्ाों में पचासों परिवर्तन अब तक लाए जा चुके हैं। तब भी एक राजनैतिक दल के रूप में भारत की जनता उसे पुरानी कांग्रेस से किसी न किसी प्रकार संबद्ध ही मानती है । अतः हर एक को उसे इसी रूप में देखना चाहिए। ऐसी पुरानी राष्ट्रीय्ा पार्टी के कई राष्ट्रीय्ा दाय्ाित्व होते हैं। सर्वप्रथम तो य्ाह कि उसका नेतृत्व जो कुछ कहे और दूसरों के लिए जो भी आचरण की कसौटिय्ाां तय्ा करे, उस पर वह स्वय्ां श्रद्धा रखे।
राहुल गांधी देश के राष्ट्रीय्ा नेता हैं, क्य्ाोंकि कांग्रेस ने उन्हें अपना महासचिव बनाया है। उन्हें जो लोग य्ाुवा कहते हैं, वह उनका शौक है, परन्तु आय्ाु की दृष्टि से वे एक प्रौढ नेता हैं। 40 वर्ष की उम्र प्रौढता की उम्र कही जाती है। डॉ. राममनोहर लोहिय्ाा 32 वर्ष के थे जब उन्हांेने भारत छोडो आन्दोलन में महत्वपूर्ण राष्ट्रीय्ा भूमिका निभाई थी। जब वे 40 वर्ष के थे तब तक वे एक परिपक्व विचारक के रूप में ’ख्य्ााति पा चुके थे और माक्र्सवादी दर्शन को जड-मूल से नकार चुके थे। जब वे 42 वर्ष के थे, तब उन्हें माक्र्सवाद के विरोध के कारण ही श्री जय्ाप्रकाश नाराय्ाण और आचायर््ा नरेंद्र देव ने सोशलिस्ट पार्टी से निकाल दिय्ाा था और तब उन्होंने एक नए राजनैतिक दल का गठन किय्ाा था, जिसने भारतीय्ा इतिहास में देशभक्ति और समतामूलक राजनीति के क्षेत्र्ा में अत्य्ांत महत्वपूर्ण राष्ट्रीय्ा भूमिका निभाई। फिर राहुल गांधी तो देश के सबसे पुराने राजनैतिक दल के एक पूर्णतः प्रौढ राजपुरुष हैं। उन्हें हजारों लोगों से ’फीड बैक‘ मिलता रहता है। कांग्रेस की परम्परा है कि उसके सभी प्रमुख नेता नेहरू परिवार के उत्तराधिकारिय्ाों को अपनी सम्पूर्ण बुद्धि और हृदय्ा से सेवा समर्पित करते रहते हैं तथा पार्टी के हित में परामर्श देते रहते हैं। अतः राहुल गांधी जो भी कहते हैं वह कांग्रेस पार्टी की आवाज है, कांग्रेस की नीति है। उसे हल्के से नहीं लिय्ाा जा सकता। अगर वह कोई अनुचित बात कहते हैं तो वह अत्य्ांत गंभीरता से लिए जाने य्ाोग्य्ा है, क्य्ाांेकि उसमें देश के सबसे बडे राजनैतिक दल द्वारा अनुचित राजनीति की नई तैय्ाारी का लक्षण और प्रमाण दिखता है।
राहुल गांधी ने कहा कि राष्ट्रीय्ा स्वय्ांसेवक संघ और सिमी दोनों ही समान रूप से देश के लिए खतरनाक संगठन हैं। उनसे प्रेरणा लेकर रीता बहुगुणा, दिग्विजय्ा सिंह सहित अनेक कांग्रेसी राजपुरुष नितांत अमयर््ाादित और आपत्तिजनक अपशब्दों का प्रय्ाोग राष्ट्रीय्ा स्वय्ांसेवक संघ के लिए करते आए हैं। य्ाह अत्य्ाधिक आपत्तिजनक है। डॉ. राममनोहर लोहिय्ाा, श्री जय्ाप्रकाश नाराय्ाण, आचायर््ा कृपलानी, श्री नीलम संजीव रेड्डी, डॉ. अब्दुल कलाम सहित सैकडों शीर्षस्थ राष्ट्रीय्ा नेताओं, महापुरुषों के साथ ही हिन्दू धर्म के शीर्षस्थ धर्माचायर््ा, संस्कृति पुरुष और ज्ञानीजन राष्ट्रीय्ा स्वय्ांसेवक संघ को एक अद्वितीय्ा देशभक्त संगठन मानते हैं। उसकी राष्ट्रभक्ति असंदिग्ध है। भारत वर्ष में देशभक्तों का उससे अधिक बडा कोई भी संगठन नहीं है। राष्ट्रीय्ा स्वय्ांसेवक संघ के प्रचारक समर्पित देशभक्त हैं। उसके अब तक के सरसंघचालक भारत वर्ष के अद्वितीय्ा महापुरुष हुए हैं। पूजनीय्ा सुदर्शन जी एक धर्मज्ञ तत्ववेत्ता, इतिहास के विद्वान और समर्पित देशभक्त हैं। लाखों नवय्ाुवक उनके चरणों में भक्तिभाव से नत होते हैं। मेरी दृष्टि में भी वे एक प्रणम्य्ा महापुरुष हैं। साथ ही मेरी दृष्टि में श्री राहुल गांधी से भारतीय्ा राजनीति को बडी आशाएं हैं, बडी अपेक्षाएं हैं। उनसे गंभीर जिम्मेदारी भरे राजनीतिक व्य्ावहार की ही आशा की जाती है।
य्ादि किसी एक व्य्ाक्ति के विषय्ा में कोई आपत्तिजनक बात कहना अनुचित है तो किसी एक विराट संगठन के विषय्ा में अप्रमाणित, असत्य्ा और अत्य्ांत आपत्तिजनक टिप्पणी करना उससे भी अधिक अनुचित है। देश में सुव्य्ावस्था और सदाचार की प्रतिष्ठा के लिए आचरण की सार्वभौम कसौटिय्ााँ तय्ा की जानी चाहिए। य्ादि सुदर्शनजी की किसी टिप्पणी के लिए उनसे माफी की उम्मीद की जा रही है तो फिर श्री राहुल गांधी को राष्ट्रीय्ा स्वय्ांसेवक संघ जैसे देशभक्त संगठन के विरुद्ध टिप्पणी के लिए तो अविराम एक वर्ष तक क्षमा मांगनी चाहिए। आखिर किस आधार पर य्ाह सब चल रहा है। कांग्रेस देश से बडी नहीं है। हालांकि वह एक बडी पार्टी है। इसलिए उससे अच्छे आचरण की ही अपेक्षा है। विराट देशभक्त संगठन को देश के लिए खतरनाक बताना सार्वजनिक संवाद और विमर्श की सभी मयर््ाादाओं को तोड डालना है। केवल तोड-फोड में विश्वास रखने वाले कम्य्ाुनिस्टों को य्ाह देश कभी भी गंभीरता से नहीं लेता। परन्तु कांग्रेस के नेतृत्व से गंभीर आचरण की अपेक्षा है। आप इस प्रकार एक विराट संगठन को अनाप-शनाप बोलकर समाज में सार्वजनिक संवाद की सभी संभावनाओं को रौंद रहे हैं। एक तरह से खुली मुठभेड और मारपीट को उकसावा दे रहे हैं। य्ाह भारतीय्ा विधान के अनुसार तो अनुचित है ही, राष्ट्रीय्ा सांस्कृतिक परम्परा के अनुसार अत्य्ाधिक आपत्तिजनक है, निंदनीय्ा है। य्ादि आज आप राष्ट्रीय्ा स्वय्ांसेवक संघ को देश के लिए खतरनाक बता रहे हैं तो कल य्ादि प्रखर हिन्दुत्वनिष्ठ लोग कांग्रेस को हिन्दू धर्म की विनाशक, हिन्दूद्रोही, संस्कृत भाषा और भारतीय्ा गषिय्ाों-मुनिय्ाों की सम्पूर्ण महान परम्परा की उच्छेदक और इस प्रकार राष्ट्रद्रोही कहते हैं तो आप किस मुंह से उनकी निंदा कर पाएंगे। आज आप सुदर्शन जी के बय्ाान के विरुद्ध जगह-जगह मानहानि के मुकदमे दाय्ार करने को अपने कायर््ाकर्ताओं को उकसा रहे हैं तो कल सारे देश में जगह-जगह श्री राहुल गांधी के विरुद्ध इसी प्रकार के मुकदमे य्ादि दाय्ार किए जाएं और य्ाही सिलसिला चल पडे तो फिर राजनैतिक संवाद कैसे होगा। राजनैतिक वक्तव्य्ाों का उत्तर राजनैतिक वक्तव्य्ा ही हैं। न मुकदमेबाजी और न ही गाली-गलौज।
जहां तक क्रिश्चिय्ान चर्च के षडय्ांत्र्ाों की बात है, संपूर्ण य्ाूरोपीय्ा इतिहास इसका साक्षी है कि वहां मध्य्ाय्ाुगीन चर्च ने ऐसे भय्ांकर पापाचार और षडय्ांत्र्ा किए कि अंततः प्रबुद्ध य्ाूरोप को उसके लिए लांछित होना पडा और उस सम्पूर्ण य्ाुग को ’अंधकारय्ाुग‘ घोषित करना पडा। आज भी सेंट टेरेसा जैसी महिला मृत्य्ाु के क्षण तक इस बात को दोहराती गई हैं कि धरती चपटी है क्य्ाांेकि बाइबिल में य्ाही लिखा है और मरते हुए व्य्ाक्ति को भी किसी प्रकार समझ्ाा-बुझ्ााकर ईसाई बपतिस्मा दिलाना एक पुण्य्ा कायर््ा है क्य्ाोंकि इससे वह व्य्ाक्ति ईसा के साम्राज्य्ा का अंग बन जाएगा और ’लास्ट डे आॅफ जजमेंट‘ के दिन शैतान के साम्राज्य्ा में कम आत्माएं होंगी तथा ईसा के साम्राज्य्ा में अधिक आत्माएँ होंगी। इसका अर्थ है कि शैतान क्रिश्चिय्ान ’गॉड‘ का प्रतिस्पर्धी है। भारतीय्ा दृष्टि से इसे नास्तिकता कहा जाएगा। स्वय्ां महात्मा गांधी ने य्ाह बात कही है। इसी प्रकार गांधी जी ने गैर ईसाई लोगों को सामूहिक रूप से बपतिस्मा दिलाकर ’प्रोसिलिटाईजेशन‘ (धर्मांतरण) करने को मानवता के लिए हलाहल विष से भी अधिक भय्ांकर क्रूर-कर्म और अक्षम्य्ा पाप कहा है। गांधी जी ने तो य्ाह भी कहा था कि मैं स्वाधीन भारत में धर्मांतरण पर कानूनन पाबंदी लगी देखना चाहूंगा। मध्य्ाय्ाुगीन चर्च ने य्ाूरोप में जो अमानवीय्ा पाप किए हैं उसी के कारण आज प्रबुद्ध य्ाूरोप मध्य्ाय्ाुगीन ईसाइय्ात में तनिक भी आस्था नहीं रखता। परन्तु पोप भारत आकर इस सहस्त्र्ााब्दी में भारत सहित सम्पूर्ण एशिय्ाा को ईसाई बनाने की अपनी य्ाोजना की सार्वजनिक घोषणा करते हैं। जबकि चीन में ईसाई मिशनरी निरंतर ठोंके-पीटे जाते रहे हैं, इसी कारण वहां ईसाइय्ात नहीं बढ पाई। भारत के प्रति सभी ईसाइय्ाों को गहरी कृतज्ञता रखनी चाहिए कि य्ाहां उन्हें पंथ प्रचार की सुविधा प्राप्त है। य्ाह कृतज्ञता भाव य्ादि सच्चा हो तो कभी-कभार किसी दुखी य्ाा क्षुब्ध हिन्दू नेता द्वारा उनके ऊपर की जाने वाली कोई भी टिप्पणी सर्वथा सहनीय्ा है, क्य्ाोंकि ऐसी छिटपुट टिप्पणिय्ाों तक को न सहना उस कृतज्ञता के भाव का सर्वथा अभाव है जो कि एक हिन्दू बहुल राष्ट्र में उन्हें प्राप्त सुविधाओं से सहज ही मनुष्य्ाता के नाते उनके भीतर जागना चाहिए।
कृतज्ञता के इस भाव का प्रमाण न मिलने पर किसी भी गंभीर हिन्दू विचारक को कभी-कभी भारत में ईसाई षडय्ांत्र्ाों की आशंका होना सामान्य्ा मानवीय्ा प्रवृत्ति है। न्य्ाू टेस्टामेंट, विशेषकर ’सर्मन आॅन द माउंट‘ के उपदेशों को मानने वाले ईसाइय्ाों को ऐसी आशंका को दूर करने के लिए बडी विनम्रता से आगे आना चाहिए, सौम्य्ा और मधुर ढंग से स्पष्टीकरण देना चाहिए। इसके स्थान पर भारत में कुछ ईसाई पादरी नक्सलिय्ाों तथा अन्य्ा आतंकवादिय्ाों से गहरी साजिशन मिली भगत कर सच्ची, सौम्य्ा और विनम्र’ ईसाइय्ात को कलंकित कर रहे हैं। अतः किसी हिन्दू विचारक के चित्त में उपजने वाली ऐसी किसी भी आशंका की पूर्ण जिम्मेदारी उन गलत किस्म के ईसाई पादरिय्ाों की है जो नक्सलियो सहित विभिन्न आतंकवादियो से सांठ-गांठ कर तथा वामपंथी उग्रवाद की भाषा बोलते हुए हिन्दू नेतृत्व पर आए दिन अपशब्दों की बौछार करते हैं। य्ाह उन्हें शोभा नहीं देता। य्ाह सच्ची ईसाइय्ात की निशानी भी नहीं है। य्ाह क्षमाभाव के सम्पूर्ण विलोप का भी प्रमाण है और सच्ची विनय्ा के अभाव का भी प्रमाण है। सुदर्शन जी ने यदि किसी प्रकार की आशंका व्यक्त की है तो उस पर पूरी गंभीरता और विनम्रता के साथ प्रतिवाद करना ही शोभाजनक है। यदि उसके विरुद्ध कोई राजनैतिक वक्तव्य वैचारिक स्तर पर दिया जाता है तो यह् उचित है। परन्तु अपशब्दों की भरमार, कार्यकर्ताओं को आक्रमण और तोडफोड के लिए उकसावा तथा घृणामूलक प्रचार का सहारा लेना देश में गृहयुद्ध की ज्वाला भडकाने की कोशिश है, जो लोकतंत्र्ा को नष्ट करने का प्रय्ाास सिद्ध होगा। भारतीय राज्य केवल भारतीय राजपुरुषों की वस्तु नहीं है। वह कार्यपालिका, न्यायपालिका और संपूर्ण भारतीय जनता का भी उतना ही अपना है। राजपुरुषों को राज्य का दुरुपयोग नहीं करना चाहिए।
स्पंदन फीचर्स । लेखक धर्मपाल शोधपीठ के निदेशक हैं।

Demand for Commission of Inquiry to expose KGB agents in India

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"Demand for Commission of Inquiry to expose KGB agents in India"

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At PetitionOnline, we host the petition you've signed, but we didn't
create it. If you would like to comment on the petition, or otherwise
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Here's some text you can just copy and paste into your own email message
to help spread the word about this petition:

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Dear Friends,

I have just read and signed the online petition:

"Demand for Commission of Inquiry to expose KGB agents in India"

hosted on the web by PetitionOnline.com, the free online petition
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I personally agree with what this petition says, and I think you might
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signing yourself.

Best wishes,

Anil Saumitra

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A note along those lines, sent from you to your friends, can make an
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petition is a grassroots collaborative effort, and now it's your turn.
The power of the Internet is in your hands -- so spread the word!

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By the way, we don't keep any email distribution lists associated with petition signers at PetitionOnline.com, so there is never any mail list here you'd need to be unsubscribed from.

We honor you for the courage of your convictions. And we thank you for participating in the free and open expression of public opinion.

Best wishes,

Kevin Matthews
Director
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मंगलवार, 16 नवंबर 2010

COMMUNIST INFILTRATION IN GANDHIAN INSTITUTION: DANGERS AHEAD

Prof. Rameshwar Mishra Pankaj
There are symptoms of grave danger of taking over of all the Gandhian Institutions by Communist infiltrators. As per their well known strategy the Communists have infiltrated in Gandhian Institutions gradually for last four decades. Jawaharlal Nehru was an admirer of communism but he thought himself as the best communist of India & therefore he ridiculed contemporary communist leaders of his time. He preferred only his disciples like V. K. Menon etc. On the other side the communist international treated him as a fellow traveler but also abused him of being a spokesperson of Indian capitalism of which Gandhiji was the supreme leader according to the U.S.S.R. policy makers.

Earlier there was a secret Govt. order to investigate as also to enquire about the activities of communist movement in India. Communists were banned for high post of officers. But later on, during the infighting in Congress Nehru depended on the help of U.S.S.R. of which the later took advantage and managed to infiltrate the Soviet spies in India as writer, intellectuals, journalists and academicians etc.

Peter Sager in his well written document “Masco’s hand in India” has demonstrated the fact regarding this and now Mitrokhin documents are the solid proof of the whole story.

When U.S.S.R. launched a fake peace movement worldwide, Nehru also became the propagandist of ‘communist-brand peace’. While earlier during Gandhiji’s life time, he was advocating for an international war between capitalists and the proletariat in which the flames of violence were sure to spread world wide as per Nehru’s own confessions and he was all to be in the side of proletariat in this most violent struggle.

Anyhow, during the Land Reform programme in accordance with soviet collectivist farming, Nehru found that such an agrarians reform is very difficult in India as the peasants are powerful unit of society here and Leftists agrarian reforms would not be that easy like Zamindari abolition Act. So Nehru consulted Vinoba Bhave and both of them prepared a detailed programme of launching the Bhudaan movement through which the peasant were inspired to make way for land reforms. The whole government machinery joined the propaganda mission for Bhudaan Movement which has ultimately failed bitterly.

Acharya Vinoba Bhave was a great Sanskrit Scholar but he knew nothing about International Political Scenario and the nature of political ideologies of modern Europe. He gave many Childish formulas like removing violence from communism which will ultimately lead to a utopian world of SAMYAYOGA, which was never defined by him actually.

The poor Acharya knew nothing of the communist ideology and of the basic principles of Newtonian decortian model from which communism has took the inspiration. The basic theory was that the society can be transformed as per the programme and in the direction of The Ideologues as the masses can be transformed in the conditioned systems of the laboratory as per the hypothesis of the “scientist” prescribing the experiment. In this belief-system the party workers were expected to work as the catalytic agent to the desired conditioning of the society.

An important gathering was convened at Delhi by veteran congress workers with the inspiration of Jawaharlal Nehru and Vinoba was invited as chief consultant and thus the Sarva Seva Sangh was formed. The Sarva Seva Sangh workers were expected to work as catalytic agent for the transformation of peasantry in the direction of land-reforms as per communist models and a nickname as also an Indian Face was given to it with the name of Bhudaan Movement which pleaded for charity and land donations but which never discussed the nature of Indian state as continuation of colonial structure of a state. Thus, in this structure, the state was the lord of all the property of Indian Nation and the peasants as well as all the citizens were given or prescribed their rights and duties by the state. In this sense the state was the real lord of real property including all the land of Nations. The peasants were not the real legal lord of their lands. But the Bhudaan Movement was asking them to donate as if they are the lord of their land. The effort was just to facilitate the “communist type land reform” which was supposed to lead towards collectivist forming in future for which a nick name “cooperative farming” was coined.

In this process a fake Gandhian movement evolved and gradually thoughtless peace worker and Bhudaan worker full of blissful ignorance started to serve the cause of left oriented congress. Now this was the golden opportunity for the communist infiltrators to creep in, to spread gradually and then to capture the whole movement.

The process was strengthened during Indira Gandhi’s regime when she collaborated to communists to save her power position. Gradually the whole vocabulary of the leader less Gandhian movement was filled with communist idioms, slogans and phraseology. Many communists card holders like Amarnath Mishra, Ramamurthy and their petty followers like Ram Chandra Rahi, Deepak malik, Muniza khan, Sunil Sahastrabuddhe, etc. captured positions in Sarva Seva Sangh, Gandhi Smarak Nidhi etc. They are good property managers but know nothing about Gandhiji’s thoughts and ideas.

At present there is no single famous Gandhian in Northern India who has ever read all the hundred volumes of collected works of Mahatma Gandhi. Ranganath Ramchandra Diwakar was the last Gandhian who had read it all. These so called Gandhian Institutions of Northern India are not following a single Vrata of eleven vows of M.G. Cow protection had been left totally by these Institutions. Now, only the followers of Vinoba Bhabe are following it. Not a single office bearer of these Institutions chants Ramanama or reads Geeta or Upanisads. They have nothing to do with Brahmacharya. For last 10yrs Ramchandra Rahi and Amarnath are alleging each other for illicit relations with their closest relatives i.e. in-laws and other family members, news of which were widely published in renowned newspapers of Varanasi and also the demonstrations have been held by public at Sarva Seva Sangh against them.

Late Mr. Ramamurthy was emphasizing that Gandhiji had told once that Indian culture is full of violence. When and where Gandhiji had said this, he never replied. He pleaded openly in favour of naxalite violence and other violent groups of communism. Charges were also made against him for corruption and other shameful activities. He tried his best along with his group to capture the government property of Gandhian Institute of studies Rajghat, Varansi and forged fake documents of his being the office bearer of the institute. Ultimately the honorable court held all his documents as forged and all his claims as illegal. He openly lead the mob breaking the lock of the main gate of Gandhian Institute of Studies, Rajghat, Varanasi and when the police raided the gang lead by him, he approached to senior police officers to leave only him and left all his comrades to be beaten by the police in June 2003. Such a Gandhian Leader he was! He many times led the mob with stones and lock-breaking instruments, iron rods etc. attacking the institute and the Director’s bungalow. He captured illegally properties and houses at Varanasi sarva seva sangh and at some places in Bihar. He remained very close to many violent communist groups life long.

Ramamurthy was a college teacher of history at Queen’s college Varanasi. He came in touch with Jaypakash Narayan. When J.P. turned away from communism especially after the new inventions in the field of thermodynamics, he saluted finally to communism saying that “No moral society is possible or can be built upon the principles of dialectical materialism”. Then J.P. was inclined towards Indian Philosophy, spirituality and Gandhian thoughts. He worked with Vinoba Bhave. Later on he launched the total revolution movement. Comrades like Ramamurthy claimed that they have also changed and now they have faith in Indian philosophy and culture. But that was not true.

They remain communists lifelong and associating with J.P., they infiltrated into the Gandhian Institutions and captured them gradually and finally. They deceived J.P. and they had no faith in Gandhi ji ever.

In their leadership, these Gandhian institutions have become the centres of atheists and many types of anti-national elements. Occasionally the naxalite workers, the Muslim fundamentalist workers and other terrorist groups take shelters in these institutions which are normally looked upon as peace centre. The statements are issued by these so called Gandhians in favour of all type of violence, violent demonstrations, anti-state activities and the activities defaming the Indian nation. They often joined hands with all such groups and organize public meetings with them. Whenever their corruptions are caught red handed, they immediately raised bogey of R.S.S. and propagate that there is a conspiracy of R.S.S. behind the story of corruption.

Truthfulness and non-stealing has nothing to do with such Gandhians. For them non-violence is to be observed by the Hindus only. The Muslim, the Christian and communist violence are a sacred thing for them. They adore and glorify it as well as also plead in favour of it. For them spirituality is a phrase only. None of them has any philosophical depth, none of them observe any yoga practice or meditation, none of them have any faith in divine force or soul force and none of them believe in re-birth. Actually Mr. Amarnath Mishra emphatically says that Gandhiji committed a blunder when he said “I am a Sanatani Hindu”. According to Amarnath, Gandhiji was neither a Hindu nor a Muslim nor a Christian. He was the representative of the whole nation but Hindus have a special duty to observe non-violence. Muslims and Communists need not observe non-violence as their faith permits them violence. Amarnath is of the view that India is not of Hindus. Hindus have no special right over it but they have special duties towards the country. Muslims, Christians and Communists have no such special duties towards Indian Nation but they have a special right over it. When asked by me that whom do you (or other Gandhians like you) really represent he replied-“Only a selected few”. When again asked that “Why the whole nation should abide by the selected few individuals?” Are they some divine entity? Why should you not be disciplined by the Hindu Society? He couldn’t answer.

For Gandhiji non-violence implied inner peace which comes with a sense of rootedness, knowing one’s own boundaries, but not excluding others, not fearing others, not seeing others as a threat of one’s security and identity but people like Amarnath, Ramamurthy, Rahi fear the Hindu Society and the Hindu organizations and exclude them from their notion of humanity. These people are not rooted in their society. Their sense of exclusion of Hindu organizations is a potential source of psychological violence. Their notion of humanity excludes the traditional religious Hindus. They never search their own minds which possesses such a deep sense of hatred, enmity and violence towards traditional Hindus. Thus, according to them only the Muslims, Christians, Communists and Secularists are the part of Indian humanity which means that more than 70% Indians are not the parts of Indian humanity as or their notions. They easily pass judgments on traditional Hindu Society but never apply the same criteria on their own organizations. They claim to be moralistic but they lack any real moral strength. They have become a poor fellow traveler of communism and are doing their best to ruin these institutions from within. Their sense of authority is not Gandhi, not the Gandhian thought but the opt repeated communist phraseology. They are full of lust and greed, fear and hatred and are engaged in such activities which are constantly breaking the nation. All these in the name of GANDHI. This is to avoid the normal legal actions against them that they have taken shelter under Gandhian cover but their whole conduct is anti-Gandhian.
Director, Dharmapal Shodh Peeth, B-12, Akriti Garden, Bhopal
E-Mail: prof.rameshwar@gmail.com, Cell: o9425602596

शुक्रवार, 12 नवंबर 2010

सोनिया का सच जान बेकाबू क्यों होते हो?


अनिल सौमित्र
एक बार फिर लोकतंत्र पर आपातकाल मंडरा पड़ा है. राजमाता सोनिया गांधी के सिपहसालारों ने कांग्रेसी गुण्डों, माफियाओं और लोकतंत्र के हत्यारों का आह्वान किया है कि वह देशभर में संघ कार्यालयों पर धावा बोल दे. इसका तत्काल प्रभाव हुआ और कांग्रेसी गुण्डों ने संघ के दिल्ली मुख्यालय पर धावा भी बोल दिया. ठीक वैसे ही जैसे इंदिरा गांधी की मौत के बाद सिखों को निशाना बनाया गया था. हिंसक और अलोकतातंत्रिक मानसिकता से ग्रस्त कांग्रेसी सोनिया का सच जानकर आखिर इस तरह बेकाबू क्यों हो रहे हैं?

10 नवम्बर को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने देशभर में अनेक स्थानों पर धरना दिया। संघ सूत्रों के अनुसार यह धरना लगभग 700 से अधिक स्थानों पर हुआ। इनमें लगभग 10 लाख से अधिक लोगों ने भाग लिया। हिन्दू विरोधी दुष्प्रचार की राजनीति के खिलाफ आयोजित इस धरने में संघ के छोट -बड़े सभी नेता-कार्यकताओं ने हिस्सा लिया। संघ प्रमुख मोहनराव भागवत लखनउ में तो संघ के पूर्व प्रमुख कुप्. सी. सुदर्शन भोपाल में धरने में बैठे। इसी धरने में मीडिया से बात करते हुए संघ के पूर्व प्रमुख ने यूपीए और कांग्रेस प्रमुख सोनिया गांधी के बारे में कुछ बातें कही। इसमें मोटे तौर पर तीन बातें थी - पहली यह कि सोनिया गांधी एंटोनिया सोनिया माइनो हैं। दूसरी यह कि सोनिया के जन्म के समय उनके पिता जेल में थे और तीसरी बात यह कि उनका संबंध विदेशी खुफिया एजेंसी से है और वे राजीव और इंदिरा की हत्या के बारे में जानती हैं। गौरतलब है कि ये तीनों बातें पहली बार नहीं कही गई हैं। जनता पार्टी के नेता सुब्रह्मण्यम स्वामी सार्वजनिक रूप से कई बार इन बातों को बोल चुके हैं। गौर करने लायक बात यह है कि हिन्दू आतंक, भगवा आतंक का नारा बुलंद करने वाले और संघ की तुलना सिमी से करने वाले कांग्रेसी अपने नेता के बारे में कड़वी सच्चाई सुनकर बौखला क्यों गए? लोकतंत्र की दुहाई देने वाली पार्टी अपनी नेता के समर्थन में अलोकतांत्रिक क्यों हो गई? क्या कांग्रेस स्वभाव से ही फासिस्ट है?
कांग्रेस के नेता सुदर्शन के बयान की भाषा पर विरोध जता रहे हैं। लेकिन उनकी कही बातों पर नहीं। भाषा चाहे जैसी भी हो, लेकिन कांग्रेस को मालूम है कि उसके नहले पर संघ का दहला पड़ गया है। कांग्रेस के नेता ने भी तो संघ की तुलना आतंकी संगठन सिमी से की थी। उसी कांग्रेस के नेताओं ने भगवा आतंक और हिन्दू आतंकवादी कह कर संघ को लांछित किया था। यह जरूर है कि कांग्रेस के हाथ में केन्द्रीय सत्ता की बागडोर है। संघ के हाथ में ऐसी कोई सत्ता नहीं है। कांग्रेस के बड़े नेता और केन्द्र सरकार में कांग्रेस के मंत्री चाहे तो जांच एजेंसियों और पुलिस को इशारा कर सकते हैं। उनके एक इशारे पर जांच की दिशा तय हो सकती है। आईबी, सीबीआई और अब एटीएस को ऐसे इशारे कांग्रेसी नेता-मंत्री करते रहे हैं। जैसे गृहमंत्री पी. चिदंबरम ने पुलिस प्रमुखों की बैठक में भगवा आतंक का सिद्धांत गढ़ने की कोशिश की, जैसे दिग्विजय सिंह ने पत्रकारों से चर्चा में संघ पर आईएसआई से पैसा लेने का आरोप लगा दिया, जैसे किसी लेखक ने पूर्व प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी पर सीआईए से पैसा लेने का उल्लेख किया ठीक वैसे ही सुदर्शन ने कांग्रेस प्रमुख सोनिया के बारे में कुछ रहस्योद्घाटन कर दिया। कांग्रेस सड़कों पर क्यों उतर रही है? क्यों नहीं सुदर्शन के रहस्योद्घाटन की जांच करवा लेती? देश के सामने सोनिया का सच आना ही चाहिए। अगर सुदर्शन झूठे होंगे तो वे या फिर सोनिया बेनकाब हो जायेंगी। लेकिन कांग्रेस माता सोनिया के खिलाफ कांग्रेसी कुछ सुन नहीं सकते, कुछ भी नहीं।
कांग्रेस आदर्श घोटाले, कॉमनवेल्थ घोटाले, स्पेक्ट्रम घोटाले, कश्मीर, अयोध्या, नक्सलवाद और हिन्दू-भगवा आतंक के सवाल पर बुरी तरह घिर चुकी है। कर्नाटक में उसका खेल बिगड़ चुका है। बिहार चुनाव में उसकी हालत बिगड़ने वाली है। ऐसे में संघ का देशव्यापी आन्दोलन और जन-जागरण्, कांग्रेस के नाक में दम करने वाला है। संघ काफी समय बाद सड़कों पर आया है। कांग्रेस का घबराना स्वाभाविक है। कांग्रेसियों को सड़कों पर लाने और संघ के मुद्दे को दिग्भ्रमित करने का इससे अच्छा मौका और कोई नहीं हो सकता। इसलिए सोनिया माता के अपमान के नाम पर कांग्रेसियों को सड़कों पर उताने की तैयारी हो गई। इस तैयारी की भी संघ ने हवा निकाल दी। सुदर्शन के बयान को संघ की बजाए उनका व्यक्तिगत बयान कह कर संघ ने कांग्रेसी विरोध पर पानी फेर दिया।
हालांकि आज नही तो कल सोनिया गांधी पर उठे सवाल का जवाब तो कांग्रेस को ढूंढना ही होगा। कांग्रेस चाहे न चाहे, उसे देश को यह बताना ही होगा कि सोनिया, एंटोनिया सोनिया माइनो है कि नहीं? वे एक बिल्डिंग कांट्रेक्टर स्टीफेनो माइनो की पुत्री है कि नहीं? माइनों एक रूढ़िवादी कैथोलिक परिवार से है कि नहीं? सोनिया के पिता इटली के फासिस्ट तानाशाह बेनिटो मुसोलिनी के प्रशंसक थे कि नही? क्या सोनिया पर अपने पिता का प्रभाव नहीं था? माइनों ने दूसरे विश्व युद्ध में रूसी मोर्चे पर नाजियों के खिलाफ लड़ाई लड़ी। लेखक व स्तंभकार ए.सूर्यप्रकाश द्वारा संपादित पुस्तक ‘सोनिया का सच’ में यह उद्धृत है कि सन् 1977 में, जब एक भारतीय पत्रकार जावेद लैक ने देखा कि श्री माइनो के ड्राइंगरूम में मुसोलिनी के सिद्धांतों का संग्रह था और उन्होंने अच्छे पुराने दिनों को याद किया। उन्होंने लैक को बताया कि नव-फासिस्टों को छोड़कर लोकतांत्रिक इटली में किसी अन्य राजनीतिक दल के लिए उनके मन में कोई सम्मान नहीं है। उन्होंने भारतीय पत्रकार को कहा कि ये सभी दल ‘देशद्राही’ हैं। कांग्रेस के नेताओं को यह भी बताना चाहिए कि क्या सोनिया माइनो का राजनैतिक संस्कार ऐसे ही वातावरण में नहीं हुआ था?
किसी की भाषा, मर्यादा, संस्कृति, और शैली पर आक्षेप करने के साथ ही कांग्रेस को देश की जनता के सामने यह सच भी रखने का प्रयास करना चाहिए कि सोनिया माइनो ने राजीव गांधी से विवाह के पूरे पन्द्रह वर्ष बाद 7 अप्रैल, 1983 को भारतीय नागरिकता के लिए आवेदन किया। आखिर भारतीय नागरिकता के प्रति वे इतने संशय में क्यों रही? कांग्रेस के नेता कांग्रेस माता के प्रति भले ही सिजदा करें, लेकिन वे देश को यह भी बतायें कि सोनिया अपने विवाह के पन्द्रह वर्ष तक अपनी इटालियन नागरिकता के साथ रही, लेकिन आश्चर्यजनक रूप से वह भारत में मतदान का अधिकार प्राप्त करने के लिए उत्सुक थीं। वे जनवरी, 1980 में ही नई दिल्ली की मतदाता सूची में कैसे शामिल हो गई? जब किसी ने इस धोखाधड़ी को पकड़ लिया और मुख्य निर्वाचक अधिकारी को शिकायत कर दी तब 1982 में उनका नाम मतदाता सूची से निकाला गया। 1 जनवरी, 1983 को वे बिना भारतीय नागरिकता के ही भारत के मतदाता सूची में शामिल हो गई। किसी भी सभ्य, सुसंस्कृत, मर्यादित और कांग्रेसी शैली में कांग्रेस का कोई नेता यह सब देश के सामने क्यों नहीं रखता?
जाने-अंजाने ही सही, असामयिक ही सही लेकिन सुदर्शन ने कांग्रेस की दुखती रग पर चिकोटी काट ली है। सघ भले ही आहत हिन्दुओं को लामबंद करने, अयोध्या, कश्मीर और कांग्रेसी आदर्श भ्रष्टाचार के आगे ‘सोनिया के सच’ को नजरअंदाज कर दे, लेकिन आज नहीं तो कल उसे ही घांदी, नेहरू, माइनो और ‘बियेन्का-रॉल’ परिवार के सच को सामने तो रखना ही होगा। देश के पूर्व प्रधानमंत्री, भावी प्रधानमंत्री और श्यूडो प्रधानमंत्री के परिवार-खानदान के बारे में जानने-समझने का हक हर भारतीय का है। राजीव गांधी के नाना-नानी के साथ उनके दादा-दादी के बारे में देश को मालूम होना चाहिए। देश अपने जैसे भावी प्रधानमंत्री राहुल-प्रियंका (बियेन्का-रॉल) के दादा-दादी की तरह उनके नाना-नानी के बारे में भी कैसे अंजान रह सकता है। आखिर इस परिवार-खानदान, नाते-रिश्तेदारे के धर्म-पंथ बार-बार बदलते क्यों रहे हैं?
कांग्रेसी भले ही संघ-सुदर्शन का पुतला फूंके, लेकिन जिनके सामने वे सिजदा करते हैं उनके बारे में अपना ज्ञान जरूर दुरूस्त कर लें। संजय गांधी, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, माधवराव सिंधिया, राजेश पायलट सिर्फ कांग्रेस के ही नेता, बिल्क देश के भी नेता थे। एक-एक कर कौंग्रेस के सभी होनहार नेताओ की हत्या या सन्देहास्पद मृत्यु हो गई. किसी प्रकार की जांच नही हुई. एलटीटीई ने राजीव गांधी की हत्या की। दक्षिण की राजनेतिक पार्टियां एमडीएमके, पीएमके और डीएमके लिट्टे समर्थक रहे हैं, आज भी हैं. लेकिन हत्यारों के समर्थकों के साथ कांग्रेस का कैसा संबंध है? कांग्रेस जवाब दे, न दे, देश तो सवाल पूछेगा ही कि जब इंदिरा को गोली लगी तो उनके साथ और कौन-कौन था, किसी एक को भी, एक भी गोली क्यों नहीं लगी? घायल अवस्था में देश की प्रधानमंत्री इंदिराजी को पास के अस्पताल की बजाए इतना दूर क्यों ले जाया गया कि तब तक उनके प्राण-पखेरू ही उड़ गए? इन सब स्थितियों में महफूज और दिन-दूनी रात चैगुनी वृद्धि किसकी हुई, सिर्फ और सिर्फ सोनिया की! कौन भारतीय है जसे संदेश नहीं होगा! कांग्रेसी भी अगर अंधभक्ति छोड़ भारतीय बनकर देखें तो उन्हें भी सुदर्शन के सवालों में कुछ राज नजर आयेगा। वैसे भी सुदर्शन ने कुछ नया नहीं कहा है, बस जुबान अलग है, बातें वहीं है जो कभी एस गुरूमूर्ति ने कही, कई बार सुब्रमण्यम स्वामी ने लिखा-कहा और पत्रकार कंचन गुप्ता ने लिखा। आज तक कांग्रेस ने किसी प्रकार के मानहानि का आरोप नहीं लगाया, कभी सड़कों पर नहीं उतरे। कांगेस कभी तो हंगामे की बजाए सवालों का जवाब दे।

गुरुवार, 11 नवंबर 2010

अपने गुनाहों पर पर्दा डालने के लिए गुनाहगारों ने संतों के उपर उंगली उठाई है : पूर्व सांसद आरिफ बेग


संघ के धरने में उमड़ा विशाल जन समूह
भोपाल। यूपीए सरकार के हिंदू विरोधी दुष्प्रचार के खिलाफ संघ के आह्वान पर देशभर में धरने का आयोजन किया गया। भोपाल सहित मध्यप्रदेश के सभी जिला केन्द्रों और कुछ तहसीलों में भी धरने का आयोजन किया गया। इस धरने में सभी स्थानों पर आम लोगों ने भी काफी बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। भोपाल में दोपहर 12 बजे से 2 बजे तक धरने का आयोजन था।
इस अवसर पर निर्वतमान सरसंघचालक श्री कुप्प सी सुदर्शन ने दीप प्रज्जवलित कर धरने की शुरूआत की। लगभग 10 हजार से अधिक लोग उपस्थित हुए। इस धरने में मुसलमानों ने भी काफी तादाद में भागीदारी की। धरने में वृद्धों, युवाओं और महिलाओं समेत सभी आयु वर्ग के लोगों ने अपना समर्थन खुलकर संघ के पक्ष में दिया।
वक्ताओं ने केंद्र और कांग्रेस की सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि वह प्रशासनिक तंत्र का दुरूपयोग संघ एवं अन्य हिन्दू संगठनों तथा संतों के खलाफ खुलकर कर प्रयोग कर रही है। संघ के क्षेत्रीय प्रचार प्रमुख नरेंद्र जैन ने कहा कि धरना, प्रदर्शन और भाषण संघ का मूल काम नहीं है। संघ तो देश और समाज को संस्कारित कर जागृत करने में लगा है। संघ व्यक्ति-निर्माण कर देश को परम वैभव तक पहुंचाने के लिए कृत संकल्पित है। लेकिन जब राष्ट्र की भावना को आहत कर ’भगवा आतंक’ और ’हिंदू आतंक’ के नाम पर देश की आत्मा पर हमला किया गया तब संघ ने सड़क पर उतर कर इसका प्रतिकार करने का निर्णय लिया। उन्होंने कहा कि 1947 में जब देश आजाद हुआ तब सोचा गया था कि देश अपनी जड़ों की ओर लौटेगा, लेकिन चंद महीनों में ही लोगों के हाथ निराशा ही हाथ लगी। जब राष्ट्रगान की बात आई तो देश की आत्मा और आजादी के गान वंदेमातरम को लेकर विरोध किया गया। यह सब काम वह लोग कर रहे थे जिनकी आस्था देश में नहीं बल्कि मास्को और चीन पर है। आज जब संघ देश की एकात्माकता केे सूत्र में बांधने का काम कर रहा है तब उसका मनोबल तोड़ने के लिए बदनाम किया जा रहा है।
इस अवसर पर पूर्व सांसद आरिफ बेग ने कहा कि मैने इंद्रेश जी के साथ काम किया है। मैं जिस इंद्रेश कुमार को जानता हूं वह उस कश्मीर में बिना सुरक्षा के अकेले ही घूमते हैं जहां बहन सोनिया और प्रधानमंत्री सुरक्षा बलों के साथ जाने से भी कतराते हैं। वहां पर इंदे्रश कुमार मुसलमानों के घर बिना किसी सुरक्षा निवास करते हैं और खाना खाते हैं। उन्होंने कहा कि श्री सुदर्शन जी के नेतृत्व में संघ ने मुसलमानों को राष्ट्रीय धारा से जोड़ने का काम किया गया। आज करोड़ों मुसलमान अपने वतन की मिट्टी से जुड़ गए हैं। इससे घबराए कांग्रेसियों ने अपने वोट बैंक को बनाए रखने का प्लान बर्बाद होते देख संघ और इंदे्रश कुमार को बदनाम करने की साजिश रची है। उन्हांेने कहा कि अपने गुनाहोंे पर पर्दा डालने के लिए गुनाहगारों ने संतों के उपर उंगली उठाई है। लेकिन उनका बाल भी बांका नहीं होगा। वसुधैव कुटुंबकम का संदेश देने वाली संस्कृति को बदनाम करने की यह कोशिश बेनाकाब होगी। उन्होंने कहा कि हमारी पूजा पद्धति अलग-अलग हो सकती है, लेकिन सबका मालिक एक है। हम हिंदुस्थान का गौरव फिर स्थापित करके रहेंगे।
गायत्री परिवार के डॉ शंकरलाल पाटीदार ने इस मौके पर कहा कि दुनिया में हिंदुत्व जैसा कोई दूसरा विचार नहीं है। हम सब एक जुट होकर देश की अस्मिता और गौरव के लिए काम करते रहेंगे। इस अवसर पर भारतीय किसान संघ के महामंत्री प्रभाकर केलकर ने कहा कि यह धरना केवल संघ पर लगे आरोपों के लिए नहींं बल्कि हिंदूत्व को कलंकित करने के लिए रचे गए षड़यंत्र के खिलाफ है।
धरने को संबोधित करते हुए भारतीय जनता पार्टी के प्रदेशाध्यक्ष प्रभात झा ने कहा कि मैं यहां पर स्वयंसेवक के नाते आया हूं, क्योंकि भारत की आत्मा पर हमला किया गया है। विचारधारा को समाप्त करने के लिए आतंकवादियों का साथ सरकार ले रही है। उन्होंने कांग्रेस को कठघरे में खड़ा करते हएु कहा कि विचारधारा की लड़ाई लडे़ लेकिन झूठे आरोप नहीं लगाए। कुछ छोटी मोटी घटनाओं से हमें दबाने की कोशिश की जा रही है। इससे हम दबने वाले नहीं हैं। उन्होंने कहा कि संघ देश और समाज की बढ़ती शक्ति है, संघ वंदेमातरम् है। संघ इस देश का प्राण है।
श्री प्रभात झा, मा. शशिभाई सेठ, श्री प्रभाकर केलकर, श्री आरिफ बेग सहित सभी वक्ताओं ने मंच से यूपीए सरकार को ललकारते हुये कहा कि यह धरना एक चेतावनी है। इस अवसर पर संघ के प्रांत संघचालक शशि भाई सेठ ने सरकार्यवाह भैयाजी जोशी का वक्तव्य पढ़ा।
धरने में निर्वतमान सरसंघचालक कुप्प सी सुदर्शन जी, क्षेत्र प्रचारक विनोद कुमार, क्षेत्र प्रचार प्रमुख नरेंद्र जैन, पूर्व मुख्यमंत्री सुंदरलाल पटवा, पूर्व सांसद कैलाश नारायण सारंग, भाजपा सह संगठन मंत्री भगवत शरण माथुर, भोपाल की महापौर कृष्णा गौर, प्रदेश महिला मार्चा की अध्यक्षा नीता पटैरिया, उपाध्यक्ष साधना सिंह, प्रांत संघचालक शशि भाई सेठ, प्रांत कार्यवाह अशोक अग्रवाल, सह प्रांत कार्यवाह हेमंत मुक्ति बोध, किसान संघ के राष्ट्रीय संगठन मंत्री प्रभाकर केलकर, विहिप के प्रांत संगठननमंत्री रोहित भाई, सांसद अनिल माधव दवे, विभाग संघचालक कांतिलाल चतर भी उपस्थित हुए।
मध्यप्रदेश के अन्य जिलों में भी इसी प्रकार के धरने आयोजित हुए। इंदौर में आयोजित धरने को मालवा प्रांत के संघचालक कृष्ण कुमार आष्ठाना और प्रांत प्रचारक पराग अभ्यंकर ने धरने को संबोधित किया। इसी प्रकार ग्वालियर में आयोजित धरने को मध्यक्षेत्र के संघचालक श्रीकृष्ण माहेश्वरी ने संबोधित किया। धरने को ग्वालियर जिला भाजपा अध्यक्ष वेदप्रकाश शर्मा और पूर्व विभाग संघचालक वैद्यनाथ शर्मा ने भी संबोधित किया। प्रदेशभर में आयोजित धरने में लाखों की संख्या में लोगों ने भागीदारी कर केन्द्र की कांग्रेसनी यूपीए सरकार के खिलाफ अपना आक्रोश व्यक्त किया।


देश का अब और बंटवारा स्वीकार नहीं : माहेश्वरी

भोपाल। केन्द्र की कांग्रेसनीत यूपीए सरकार अपनी नाकामी छिपाने और जनता का ध्यान मूल समस्याओं से बंटाने के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को बदनाम करने का दुष्प्रयास कर रही है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मध्यक्षेत्र संघचालक श्रीकृष्ण माहेश्री ने भोपाल में पत्रकारों से यह बात कही। श्री माहेश्वरी ने देशभर में आयोजित होने वाले धरने के दो दिन पहले पत्रकारों को संबोधित कर रहे थे।
उन्होंने कहा कि वर्तमान केन्द्र सरकार के रवैये से देश एक और बंटवारे की ओर अग्रसर हो रहा है। लेकिन संघ इसे किसी भी हालत में बर्दाश्त नहीं करेगा। कश्मीर में जिस तरह के हालात हैं, वहां के लिए स्वायत्ता की मांग की जा रही है, यह एक और बंटवारे की तैयारी है। वहां की राज्य सरकार भी केन्द्र की शह पर अलगाववादियों का साथ दे रही है। उन्होंने कहा कि 1947 में जब देश का बंटवारा हुआ तब संघ की ताकत कम थी। लेकिन अब संघ देश का दूसरा बंटवारा होने नहीं देगा। संघ इस प्रकार के किसी प्रयास का पुरजोर विरोध करेगा। विरोध के स्वरूप के बारे में श्री माहेश्वरी ने कहा कि संघ किसी प्रकार की हिंसा में विश्वास नहीं करता। संघ का विश्वास देश की जनशक्ति में है।
संघ के क्षेत्र. संघचालक ने केन्द्र सरकार पर अपनी नाकामी छिपाने के लिए हिन्ुदओं और संघ को बदनाम किए जाने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि वोट की राजनीति के कारण ऐसा किया जा रहा है। देश के कुछ हिस्सों में बम विस्फोट में संघ के वरिष्ठ कार्यकर्ता इन्द्रेश कुमार का नाम एक राजनैतिक षड्यंत्र के तहत जोड़ा गया है। एटीएस बिना किसी सबूत के संघ और संघ कार्यकर्ताओं का नाम घसीट रही है। यह सब कांग्रेस के इशारे पर हो रहा है।
श्री माहेश्वरी ने कहा कि आतंकवाद के नाम पर संघ और हिन्दुओं को बदनाम की सरकारी साजिश को अब सहन नहीं किया जायेगा। देश विरोधी, हिन्दुत्व विरोधी और संघ विरोधी ताकतों का हर स्तर पर मुकाबला किया जायेगा, मैदान में उतर कर इसका मुंहतोड़ जवाब दिया जायेगा।
श्री माहेश्वरी ने कहा कि हिन्दू पद भगवा आतंकवाद का आरोप, हिन्दू संगठनों व संतों पर लांछन और हाल में संघ व उसके कार्यकर्ताओं को देश में कुछ स्थानों पर घसीअना हिन्दू विरोधी राजनीति ही है। इन षड्यंत्रों के खिलाफ देशभर में बड़े पैमाने पर जन-जागरण किया जायेगा। संघ की अखिल भारतीय कार्यकारी मंडल की बैठक में भाग लेकर लौटने के बाद श्री माहेश्वरी बैठक के निर्णयों से अवगत कराते हुए कहा कि हिन्दू समाज कि विरुद्ध हो रहे षड्यंत्र के खिलाफ स्वयंसेवक सड़कों पद उतरकर जन-जागरण और विरोध प्रदर्शन करेंगें। श्री माहेश्वरी ने राजस्ािान की कोंग्रेस सरकार द्वारा संघ के केन्द्रीय कार्यकारिणी सदस्य इन्देश कुमार के खिलाफ लगाये गए सभी आरोप निराधार हैं। राजस्थान एटीएस के आरोप पत्र से ही साफ जाहिर होता है कि इन्द्रेश के खिलाफ न तो कोई आरोप है और न ही उन्हें आरोपी बनाया गया है। जांच के दौरान राजस्थान एटीएस ने पिछले महीनों में एक बार भी बातचीत नहीं की। संघ राजस्थान एटीएस से तीन बार आग्रह कर चुका है कि इंदे्रश कुमार को कब उनके पास भेजा जाए। लेकिन एटीएस ने अभी संघ को जवाब नहीं दिया है। इन्द्रेश कुमार के खिलाफ आजतक कोई सबूत भी पेश नहीं किया गया है। इसके बावजूद कांग्रेस सरकार बार-बार संघ और इंदे्रश कुमार का नाम घसीट रही है। श्री माहेश्वरी ने कहा कि संघ और उनके कार्यकर्ताओं के खिलाफ राजनैतिक साजिश के तहत किए जा रहे दुष्प्रचार को संघ न्यायालय समेत सभी मंचों पर चुनौती देगा। श्री माहेश्वरी ने ग्वालियर में पत्रकार-वार्ता को संबोधित किया।

मंगलवार, 9 नवंबर 2010



"आतंकवाद का रंग और मीडिया"
पर एक समसामयिक और वैचारिक संकलन .
आपके लिये भी उपयोगी होगा. सम्पर्क किजिये
अनिल सौमित्र
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गुरुवार, 4 नवंबर 2010

हिन्दू विरोधी दुष्प्रचार की राजनीति के विरूद्ध भोपाल मे 10 नवंबर को विशाल धरना

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रांत संघचालक श्री शशिभाई शेठ की प्रेस विज्ञप्ति
हिन्दू विरोधी दुष्प्रचार की विद्वेषपूर्ण राजनीति के विरूद्ध राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के देशव्यापी धरने के कार्यक्रम के तहत मध्यभारत प्रांत में भी प्रत्येक जिला केन्द्र पर 10 नवंबर को धरना दिया जाएगा। संघ के मध्यभारत प्रंात संघचालक श्री शशिभाई शेठ ने आज एक प्रेस विज्ञप्ति में यह जानकारी दी है। श्री शेठ ने कहा है कि विगत कुछ वर्षों से लगातार कतिपय राजनीतिक दलों और पंथनिरपेक्षता की गलत और मनमानी व्याख्या करने वाले निहित स्वार्थी तत्वों द्वारा वोट बैंक की राजनीति के तहत हिन्दू संतों, संगठनों और हिन्दू समाज की छवि खराब करने का षडयंत्र किया जा रहा है। केन्द्र सरकार में तथा अनेक राजनीतिक दलों में मौजूद कुछ व्यक्तियों द्वारा ‘भगवा‘ या ‘हिन्दू आतंकवाद‘ की दुर्भावनापूर्ण चर्चा छेड कर हिन्दू संगठनों, साधु-संतों व मंदिरों को लंाछित करने का कुत्सित प्रयास किया जा रहा है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक पर लगाये जा रहे सारे आरोप उसी व्यापक षडयंत्र का हिस्सा है। श्री शेठ ने कहा कि इन सारे षडयंत्रों से न केवल संघ के स्वयंसेवक बल्कि सारी हिन्दुत्व निष्ठ सात्विक शक्तियंा आहत, अपमानित और आक्रोशित हैं। हिन्दू समाज की इन्हीं भावनाओं को प्रदर्शित करने के लिए सारे देश की तरह मध्यभारत प्रांत के जिला केन्द्रों पर भी 10 नवंबर को धरनों का आयोजन किया जाएगा । श्री शेठ ने कहा कि भोपाल में लिली टॉकीज के समीप दोपहर 12 से 02 बजे तक संघ द्वारा धरना दिया जाएगा जिसमें संघ के स्वयंसेवक और संघ हितैषी सम्मिलित होंगे। प्रंात संघचालक श्री शेठ ने हिन्दू समाज से आव्हान किया है कि हिन्दू समाज की छवि खराब करने के इस व्यापक षडयंत्र के विरूद्ध वह जाग्रत हो तथा धरने में शामिल हो कर अपनी भावनाओं को प्रदर्शित करे।

रविवार, 31 अक्टूबर 2010

मुसलमानों की संवाद रचना बनी कांग्रेस की आंख की किरकिरी

-डॉ. कुलदीपचंद अग्निहोत्री
केन्द्र की कांग्रेस सरकार ने संघ को बदनाम करने की अभियान को अपनी कार्यसूची में प्राथमिक स्थान दे दिया है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक और कांग्रेस की विचार भिन्नता जगजाहिर है। कांग्रेस भारत का सांस्कृतिक और आर्थिक विकास ब्रिटिश शासकों द्वारा निर्धारित कारकों और मानदण्डों के आधार पर करना चाहती है जबकि संघ इस देश की सांस्कृतिक विरासत, अस्मिता, स्वभाव, प्रकृति के अनुसार देश को आगे ले जाना चाहती है। कांग्रेस के वैचरिक मॉडल का सबसे बडा नुकसान यह है इससे देश तरक्की तो कर सकता है लेनिक उसी पहचान मिट जाएगी। डॉ. मोहम्मद इकबाल जिस यूनान, मिस्र, और रोम के मिटने की बात कह रहे हैं उसमें हिन्दुस्थान का नाम भी जुड जाएगा। संघ के वैचारिक मॉडल की खूबसूरती यह है कि इससे देश में विकास भी होगा और उसकी पहचान भी कायम रहेगी। साम्यवादी टोला कांग्रेस के आर्थिक मॉडल से तो असहमत है लेकिन सांस्कृतिक क्षेत्र में कांग्रेस के वैचारिक मॉडल को ही वह सर्वश्रेष्ठ मानता है। इसमें कहीं न कहीं भीतर से कांग्रेस एवं साम्यवादी आपस में जुडे रहते हैं।

इस पृष्ठभूमि में मुसलमान या इस्लामपंथी विवाद का मुद्दा बन जाते हैं। कांग्रेस एवं साम्यवादियों की दृष्टि में इस देश के मुसलमान एक अलग राष्टृ है, इसलिए उनको सावधानीपूर्वक इस देश की छूत से बचाना यह टोला जरुरी मानता है। साम्यवादी यह बात खुलकर कहते हैं और कांग्रेस इसे अपने व्यवहार से सिद्ध करती है। इस वैचारिक अवधारणा के आधार पर ये दोनों देश के मुसलमानों को अलग-थलग करके स्वयं को उनके रक्षक की भूमिका में उपस्थित करते हैं। जाहिर है इस भूमिका में रहने पर दम्भ भी आएगा। अतः ये दोनों दल मुसलमानों के तुष्टीकरण की ओर चल पडते हैं। चूंकि इस देश में लोकतांत्रिक प्रणाली है इसलिए मुसलमानों को यदि बहुसंख्यक भारतीयों में डराए रखा जाएगा जो जाहिर है कि वे अपने वोट भी एकमुश्त उन्हीं की झोली में डालेंगे। अब लोकतांत्रिक में प्रणाली ज्यों-ज्यों सत्ता के दावेदार बढ रहे है त्यो-त्यों मुसलमानों के रक्षक होने का दावा करने वालों की संख्या भी बढती जा रही है। लालू यादव, मुलायम सिह यादव और रामविलास पासवानों का इस क्षेत्र में प्रवेश ‘लेटर स्टेज’ पर हुआ है। परन्तु जो देर से आएगा वो यकीनन हो हल्ला ज्यादा मचाएगा। इसलिए मुसलमानों की रक्षा करने के लिए इन देर से आए रक्षकों के तेवर भी उतने ही तीखे हैं।

इधर जब पिछल पाचं -छह दशकों में दन सभी ने मुसलमानों के दिमान में यह डाल दिया है कि मामला सिर्फ उनकी रक्षा का है और बाकी चीजें तो गौण है तो उनमें से भी कुछ संगठन उठ आए हैं जिन्होंने यह कहना शुरु कर दिया है अब हमें बाहरी रक्षकों की जरुरत नहीं है हम अपनी रक्षा खुद कर सकते हैं। सुरक्षा का काल्पनिक भय कांग्रेस एवं कम्युनिस्टों ने मुसलमानों के मन में बैठा दिया था और सत्ता में भागीदारी का आसान रास्ता देखकर इन मुस्लिम संगठनों ने भी हाथ में हथियार उठा लिए। यह तक सब ठीक-ठाक चल रहा था केवल मुस्लिम वोटों पर छापेमारी का प्रश्न था जिसके हिस्से जितना आ जाय उतना ही सही।

इस मोड पर ‘स्क्रिप्ट ’ में अचानक कुछ गडबड होने लगी। कांग्रेस एवं कम्युनिस्ट जिन लोगों से मुसलमानों को डरा रहे थे उन्ही लोगों ने मुसलमानों से बिना दलालों एवं एजेंटों की सदस्यता से सीघे -सीधे संवाद रचना शुरु कर दी। 1975 की आपात स्थिति में राष्ट्रीय स्वयसेवक संघ और मुसलमानों के बीच जो संवाद रचना नेताओं के स्तर पर प्रारम्भ हुई थी उसे इक्कीसवीं शताब्दी के शुरु में संघ के एक प्रचारक इन्द्रेश कुमार आम मुसलमान तक खीचं ले गए। ऐस एक प्रयास कभी महात्मा गांधी ने किया था लेकिन वह प्रयास खिलाफत के माध्यम से हुआ था जो वस्तुतः इस देश के मुसलमानों की राष्ट्रीय भावना को कही न कही खण्डित करता था। इसलिए इसका असफल होना निश्चित ही था।जो इक्का -दुक्का प्रयास दूसरे प्रयास हुए लेकिन उनका उद्देश्य तात्कालिक लाभों के लिए तुष्टीकरण ही ज्यादा था।

इन्द्रेश कुमार ने संघ के धरातल पर मुसलमानों से जो संवाद रचना प्रारम्भ की उसका उद्देश्य न तो राजनीतिक था औैर न ही तात्कालिक लाभ उठाना। चूंकि राष्ट्रीय स्वयसेवक संघ को चुनाव नही लडना था। इन्द्रेश कुमार की संवाद रचना से जो हिन्दू मुसलमानों का व्यास आसन निर्मित हुआ। वह इसे देश का वही सांस्कृतिक आसन है जिसके कारण लाखों सालों से इस देश की पहचान बनी हुई है। इस संवाद रचना में स्वयं मुसलमानों ने आगे आकर कहना शुरु किया कि हमारे पुरखे हिंदू थे और उकनी जो सांस्कृतिक थाती थी वही सांस्कृतिक थाती हमारी भी है। इन संवाद रचनाओं में इन्द्रेश कुमार का एका वाक्य बहुत प्रसिद्ध हुआ कि हम ‘सिजदा तो मक्का की ओर करेंगे लेकिन गर्दन कटेगी तो भारत के लिए कटेगी। देखते ही देखते इस संवाद की अंतर्लहरें देश भर में फैली और मुसलमानों की युवा पीढी में एक नई सुगबुगाहट प्रारम्भ हो गयी। वे धीरे -धीरे उस चहारदीवारी से निकलकर जिस उनके तथाकथित रक्षकों ने पिछले 60 सालों से यत्नपूर्वक निर्मित किया था, खुली हवा में सांस लेने के लिए आने लगे। इन्द्रेश कुमार की मुसलमानों से इसे संवाद रचना ने देखते ही देखते ‘ मुस्लिम राष्ट्रीय मंच’ का आकार ग्रहण कर लिया जाहिर है मुसलमानों के भीतर संघ की इस पहल से कांग्रेसी खेमे एवं साम्यवादी टोले में हडबडी मचती। जिसे संघ के बारे में आज तक मुसलमानों को यह कहकर डराया जाता रहा कि उनको सबसे ज्यादा खतरा संघ से है उस संघ को लेकर मुसलमानों का भ्रम छंटने लगा। यह स्पष्ट होने लगा कि संघ मुसलमानों के खिलाफ नहीं है । संघ भारत की इस विशेषता में पूर्ण विश्वास रचना है कि ईश्वर की पूजा करने के हजारों तरीके हो सकते हैं और वास्तव में संघ इसी विचार की आगे बढाना चाहता है जब संघ ईश्वर या अल्लाह के हजारों तरीक में विश्वास करते है तो उसे कुछ लोगों द्वारा इस्लामी तरीके से ईश्वर की पूजा के तरीके से भला कैसे ऐतराज हो सकता था। संघ को लेकर मुसलमानों के भीतर कोहरा छंटने की प्रारम्भिक प्रक्रिया शुरु हो गयी है।

इस मरहले पर कांग्रेस ने अपनी रणनीति बडी होशियारी से तय की। मालेगांव, हैदराबाद और अजमेर बम विस्फोट में सरकार ने कुछ तथाकथित षडयंत्रकारियों को गिरफ्तार किया इनमें जिन लोगों के नाम शामिल है उनमें से कुछ का सम्बंध कभी संघ से भी रहा होगा। उनका अपराध है या नहीं है इसका निर्णरूा तो अदालत ही करेगी लेकिन सराकार को लगता था कि जैसे ही इन तथाकथित लोगों की जांच होगी तो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ इन लोगों के पीछे हो हल्ला मचाएगा लेकिन कांग्रेस का यह षडयंत्र तब विफल हो गया जब राष्ट्रीय स्वयसेवक संघ ने कहा कि सरकार को इस मामले की सफाई से जांच करनी चाहिए औश्र जो भी दोषी जाया जाए उसे दण्ड मिलना चाहिए। संघ ने आधिकारिक रुप से यह भी कहा िकवह जांच एजेंसियों को संगठन का पूरा सहयोग मिलेगा। संघ स्वयं चाहता है कि अपराधी पकडे जाएं और उन्हें सजा मिले। संघ को बदनाम करने का कांग्रेस का सारा षडयंत्र एक झटके में ही विफल हो गया। सरकार एक तीर से दो निशाने करना चाहती थी। वह मुसलमानों को यह संदेश देना चाहती थी कि आतंकवाद को लेकर मुस्लिम समाज जिस कटघरो में खडा दिखायी देता है उससे उन्हें भयभीत होने की जरुरत नहीं है। उनकी मानसिक संतुष्टि के लिए सरकार हिन्दू आतंकवाद की अवधारणा को स्थापित कर रही थी जिसे बाद में पी चिदम्बरम में कांग्रेस की रणनीति के अनुसर भगवा आतंकवाद कहना प्रारम्भ कर दिया। इससे मुसलमानों में कांग्रेस के रक्षक होने का भ्रम भी बना रहता औश्र हिन्दू आतंकवाद की अवधारणा के प्रचलन से आतंकवाद के मनौवैज्ञानिक अपराधिक बोध के भाव से भी मुक्ति मिलती। दूसरे संघ को मुसलमानों की दृष्टि में एक बार फिर अपराधी सिद्ध किया जा सकता था लेकिन संघ भारत सरकार और कांग्रेस के बिछाए गए इस जाल में भी नहीं फंसा औश्र उसने स्पष्ट ही यह मांग की ईमानदारी से जांच के बाद अपराधियोें के दण्ड दिया जाएग। कारण भी स्पष्ट था संघ ने कोई भूमिगत संगठन है और न ही उद्देश्य की प्राप्ति के लिए आतंकवाद में विश्वास करता है। आतंकवाद कायारों का ही हथियार होता है और वैचारिक नपुंसकता वाले संगठन ही इसका उपयोग करते हैं। संघ एक सांस्कृतिक आंदोलन है। आतंकवादस से सांस्कृतिक आदोलनों को उर्जा नहीं मिलती बल्कि उसके उजास्त्रोत सूखने लगते हैं। आतंकवाद से तानाशाही और एकाधिकारवादी प्रवृत्तियांे को भी बढावा मिलता है। कांग्रेस एवं कम्युनिस्ट टोले में यह प्रवृत्तियां पायी जाती हैं। इतिहास इसका गवाह है। यही कारण है कि कांग्रेस एंव कम्युनिस्ट आतंकवाद से लडने के बजाय उसे अप्रत्यक्ष समर्थन देते हैं।

अपनी इन्हीं प्रवृत्तियों के कारण कांग्रेस ने राष्ट्रीय स्वयसेवक संघ को बदनाम करने के लिए, मुसलमानों के मन में उसका भय पुनः सृजित करने के लिए दूसरी व्यूह रचना की। इस बार जांच एजेंसियों के माध्यम से इन्द्रेश कुमार का नाम जोड दिया गया। सरकार जानती थी आठ सौ पृष्ठों की जांच रिपोर्ट में एकाध बार संघ और इन्द्रेश कुमार का नाम आ जाने से मीडिया के एक वर्ग को मनमाफिक मशाला मिल जाएगा और संघ और इन्द्रेश कुमार की आतंकवाद में संलिप्तता की मशालेदार कहानियां इधर -उधर तैरने लगेंगी। कहानी का अंत क्या होगा इसकी न कांग्रेस को चिंता है और न सरकार को। लेकिन इस बीच जब मीडिया से संघ एवं इन्द्रेश कुमार का नाम उछलेगा तो मुसलमानों के मन में संघ को लेकर भ्रम पैछा हो सकेगा और आम भारतीय भी संघ को लेकर प्रश्न खडा कर सकता है। इसी रणनीति के तहत सरकार अजमेर बम विस्फोट के मामले में सुनियोजित प्रयास कर रही है। संघ और इन्द्रेश कुमार के नाम का उपयोग कर रही ह।। जबकि लगभग आठ सौ पृष्ठों की जांच रिपोर्ट में संगठन के नाते संघ और व्यक्ति के नामे इन्द्रेश कुमार पर कोई आरोप नहीं हैं।

लेकिन जांच एजेंसी का उद्देश्य सत्य की तह तक पहुचना नही है बिल्क उसका नाटक करते हुए संघ को बदनाम करना है। इन्द्रेश कुमार का नाम लेने से कांग्रेस एक और फायदे की सम्भावना देखती है। उसे लगता है कि इन्द्रेश के नाम पर विवाद पैदा करने से मुस्लिम राष्ट्रीय मंच का जो सांस्कृतिक आसन निर्मित हुआ है उसमें दरारें पड सकती है। संघ को बदनाम करने की भारत सरकार के ठन सभी प्रयासों का यदि नामकारण करना हो तो उसे ‘सरकारी आतंकवाद’ कहा जा सकता है। लेकिन कांग्रेस औ सरकार अपने इस प्रयास में सफल नहीं होंगे। पंजाब के इतिहास में भी मन्नू का उद्धरण सामने आता है। इस विदेशी आका्रंता ने पंजाबियों पर अमानुषिक अत्याचार किए , उन्हें मौत के घाट उतारा। तब पंजाब में एक लाोक उक्ति प्रसिद्ध हुई -

मन्नू असाडी दातरी , असी मन्नू दे सोये।

ज्यूं -ज्यूं मन्ने बड्ढ दा , असी दूणे चौणे होए।

सोया सरसो की जाति का एक पौधा होता है उसे जितना काटा जाता है वह उतना ही फलता फूलता है। इसी तरह मन्नू पंजाबियों को जैसे मारता काटता था वैसे-वैसे उनका उत्साह बढता, वे फलते-फूलते।

सरकार ज्यों-ज्यों संघ पर प्रहार करगी त्यो-त्यों संघ फलेगा-फूलेगा। यह भारतीय इतिहास की परम्परा है। लेकिन दुर्भाग्य से साम्यवादियों का भारतीय इतिहास से कुछ लेना-देना नहीं है और कांग्रेस धीरे-धीरे भारतीय इतिहास से कटती जा रही है। सरकार द्वारा संघ पर किया गया यह प्रहार भारतीय परम्परा पर किया गया प्रहार है और भारतीय परम्परा इस प्रहार को निष्प्रभावी कर देगी।

शुक्रवार, 29 अक्टूबर 2010

संघ के इन्द्रेश मुसलमानों के शत्रु हैं या उनके चहेते ?

-मंगलमय
संघ के वरिष्ठ प्रचारक इन्द्रेश को जो लोग थोडा बहुत जानते हैं, वे उनके नाम का उच्चारण करने से पहले स्वतः ही आदरणीय शब्द लगा लेते हैं. जो उनके बारे में काफी कुछ जानते हैं, वे उन्हें परम आदरणीय कहते हुए उनका नाम लेते हैं तथा उनके निरंतर संपर्क में रहने वाले उन्हें माननीय इन्द्रेश जी कहा करते हैं.
हरियाणा स्थित कैथल के अपने अत्यंत प्रतिष्ठित और धनाढ्य परिवार से लगभग चार दशक पूर्व विरक्त होकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक के रूप में जीवन भर अविवाहित रहते हुए देश सेवा का संकल्प लेने वाले इन्द्रेश देश हित के विभिन्न कार्यों में सदैव सक्रिय रहते हैं और संघ के अनेक बड़े प्रकल्पों से जुड़े रहते हैं. वे अपनी बहु आयामी प्रतिभा के दम पर अपने हाथ में लिए गए लगभग सभी कठिन कार्यों को कुशलतापूर्वक संपन्न कर दिखाते हैं. उन्होंने पिछले कुछ ही वर्षों में लाखों देशभक्त मुसलमानों को राष्ट्रहित में एकजुट करके दिखाया है.

अपने देश के वे सभी नेता, जो आजकल एक नए छद्म सेकुलर धर्म के अनुयायी बन गए हैं, एक ही सामूहिक एजेंडे को लेकर चल रहे हैं और वह है- देश में विभिन्न मत, सम्प्रदाय और जातियों के लोगों में अलगाव की भावना उत्पन्न करना, समाज को तोड़ना और लोगों को मूर्ख बनाकर उन्हें आपस में लड़वाते हुए सत्ता से चिपके रहना.

संघ के इन्द्रेश देश के समाजभंजक नेताओं के राष्ट्रविरोधी एजेंडे की राह में एक बहुत बड़ा रोड़ा हैं. वे देश के छद्म सेकुलर नेताओं की आँखों में सदा से ही रड़कते रहे हैं, परन्तु आजकल तो वे मानों उनकी आँखों की किरकिरी ही बन गए हैं. इसका मुख्य कारण यह है कि कुछ ही वर्ष पहले इन्द्रेश ने देश में हिंदू-मुसलमान के बीच पनपने वाले शत्रु भाव को मिटाने का बीड़ा उठाया था और इन दिनों वे देश में हिंदू-मुसलमान के बीच वैमनस्य की दीवारें गिराने में जुटे हुए हैं और अपने लक्ष्य में लगातार सफलता प्राप्त करते जा रहे हैं. इन्द्रेश ने हज़ारों मुस्लिम परिवारों को संघ के राष्ट्रवादी एजेंडे के साथ जोड़ लिया है. वे आज के छद्म सेकुलरों के लिए एक बड़ी चुनौती इसलिए हैं, क्योंकि यदि देश में हिंदू और मुसलमान दोनों सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के नाम पर एकमत होकर एक ही दिशा में चलने लगेंगे तो सेकुलरों की दुकानों पर ग्राहक आने बंद हो जाएँगे. तब हिंदू-मुसलमान के बीच घृणा फैलाने वालों का बाज़ार भाव गिर जाएगा और ऐसे में संभव है देशवासी इन छद्म सेकुलरों पर देशद्रोह के दावे ठोकने लगें और उन्हें सलाखों के पीछे भिजवा दें.

अतः आर एस एस के इन्द्रेश उन सब लोगों के लिए एक मुसीबत बन चुके हैं, जो देशवासियों को हिंदू-मुस्लिम के नाम पर हमेशा लड़वाते रहना चाहते हैं, क्योंकि इन्द्रेश ने देशभक्त मुसलमान बंधुओं का संगठन करने की दिशा में बड़ी सफलता प्राप्त कर ली है. उन्होंने ‘मुस्लिम राष्ट्रीय मंच’ के साथ हज़ारों मौलानाओ और मुस्लिम बुद्धिजीवियों को भी जोड़ दिया है.

इसका एक बड़ा प्रमाण हमने अपनी आँखों से तब देखा, जब दो वर्ष पहले अमरनाथ आन्दोलन के समय जब उमर अब्दुल्ला ने (दुर्योधन की तरह) संसद में घोषणा कर डाली थी कि ‘हम’ कश्मीर की एक इंच भी भूमि अमरनाथ के तीर्थयात्रियों के लिए नहीं देंगे और वहीं पर बैठे हुए राहुल और उसकी गोरी मम्मी सोनिया माइनो (गाँधी?) ने उसकी बात का मौन समर्थन कर दिया था, तो इन्हीं इन्द्रेश के नेतृत्व में देश के हज़ारों राष्ट्रवादी मुसलमान आंदोलित हो उठे थे और वे बाबा अमरनाथ के भक्तों व जम्मू के लोगों को अपना पूरा समर्थन देने के लिए कश्मीर की ओर उमड़ पड़े थे.

उस समय ‘मुस्लिम राष्ट्रीय मंच’ के बैनर तले मुसलमानों का एक विशाल काफिला मार्ग में स्थान-स्थान पर अमरनाथ आन्दोलन के लिए जन-जागरण करता हुआ कश्मीर की ओर चल निकला. उसी दौरान हरियाणा के अम्बाला में देर रात उस काफिले ने अपना पड़ाव डालने का फैसला किया. पड़ाव डालने का निर्णय अचानक होने के कारण ठीक से खाने-सोने की व्यवस्था नहीं थी. कुछ स्थानीय लोगों ने उस काफिले के भोजन की व्यवस्था की. काफिले में शामिल बहुत से मुस्लिम बंधुओं को रात साढ़े ग्यारह बजे के बाद भी सिर्फ रूखा-सूखा भोजन ही उपलब्ध कराया जा सका. व्यवस्था की कमी के कारण काफिले में शामिल जो लोग ओढ़ने-बिछाने का कपड़ा पाए बिना नीचे दरी पर ही सो गए थे, उनमे बहुत से बुद्धिजीवी, मौलाना और हज कमेटियों के प्रमुख भी थे.

इन्द्रेश उस काफिले के साथ नहीं थे. हमें कई घंटे उस काफिले के प्रमुख लोगों के साथ रहने का अवसर मिला और उनसे बातचीत हुई. हमने उस दिन तक संघ के किसी इन्द्रेश का नाम सुना भी न था, परन्तु काफिले के उन मुसलमान भाइयों के मन में इन्द्रेश के प्रति अपार श्रद्धा को देखकर अद्भुत आनंद हुआ और ‘आर एस एस के इन्द्रेश’ से मिलने की प्रबल इच्छा जाग उठी. बाबा अमरनाथ आन्दोलन के समर्थन में मुसलमान बंधुओं के कश्मीर की ओर कूच करने के समाचार कई दिनों तक अख़बारों में प्रकाशित होते रहे.

आगे पहुँचकर, उन मुसलमान बंधुओं को सरकारी दमन के कारण जम्मू-कश्मीर की सीमा पर लाठियां खानी पड़ी और उनमे से बहुत थोड़े ही लोगों को श्रीनगर तक जाने की अनुमति दी गयी थे, शेष सभी को गिरफ्तार कर लिया गया.

हज़ारों मुसलमानों को देशहित में एकजुट करने का यह कार्य इन्द्रेश जी ने कर दिखाया है. कांग्रेस सरकार द्वारा उन पर आरोप लगाने का मुख्य कारण मुसलमानों में उनकी छवि को खराब करने का घिनौना प्रयास ही है. कांग्रेस का यह बेशर्म सिद्धांत है कि राजनीति में सब जायज़ है. इस नाजायज़ राजनीति के फेर में सोनिया के चेलों ने अब देश हित के बारे में सोचना लगभग छोड़ ही दिया है.

संघ के अखिल भारतीय कार्यकारी मंडल के सदस्य इन्द्रेश पर लगाए गए आरोपों में कोई दम नहीं है. ये आरोप भले ही देशद्रोही राजनेताओं के कुत्सित इशारों पर घड़े गए हों, परन्तु इन झूठे आरोपों को तैयार करने के लिए जिन पुलिस अधिकारियों पर दबाव डाला गया है, उनमे भी तो देशभक्ति का अंश हैं. वैसे भी झूठ तो झूठ ही रहता है, इसलिए इन झूठे आरोपों में से कोई भी आरोप अदालत में टिका रहने वाला नहीं है.

कांग्रेस ने संघ के वरिष्ठ प्रचारक इन्द्रेश पर आरोप लगाकर संघ को बदनाम करने के लिए यही समय क्यों चुना, उसके तीन तात्कालिक कारण हैं-

1 . बिहार के चुनाव में गोरी के लाल राहुल की थोड़ी-बहुत इज्ज़त बचाने के लिए स्वयं को आर एस एस का घोर विरोधी सिद्ध करके मुस्लिम वोटों का अपने पक्ष में ध्रुवीकरण करने का प्रयास करना.

2 . गुलाममंडल खेलों के नाम पर हुई लूट में शीला की दिल्ली सरकार लपेटे में आ रही है, इससे लोगों का ध्यान हटाना.

3 . गुजरात में कांग्रेस का सूपड़ा साफ़ हो गया और सभी मुस्लिम और दलितों ने नरेन्द्र मोदी को अपना निर्विवाद नेता घोषित करके सेकुलरों के मुह पर कालिख ही पोत दी, बिहार के लोगों का इस खबर पर ध्यान न जाए, इसलिए मीडिया में एक नया बवाल खड़ा करना.

कांग्रेस के आयातित नेता उस इतिहास की ओर से आँखें मूंदे बैठे हैं, जो कांग्रेस को यह सीख दे सकता है कि संघ पर झूठे आरोप लगाओगे और इसे अनुचित तरीके से दबाने का प्रयास करोगे तो यह पहले से भी अधिक प्रखर और ताकतवर होकर सामने आ खड़ा होगा.

गुरुवार, 28 अक्टूबर 2010

पाकिस्तानी कब्जे से कश्मीर को मुक्त कराइये : मेजर जनरल (से.नि.) गगनदीप बक्शी


आतंकवादियों के खिलाफ युद्ध के अलावा कोई विकल्प नहीं - मुख्यमंत्री श्री चौहान

भोपाल। अरुंधती राय अगर महिला न होती तो सेना उनसे अलग तरीके से निपटती। सुश्री राय, चेतन भगत और पडगांवकर जैसे बुद्धिजीवी अलगाववाद की भाषा बोल रहे हैं। इससे देशद्रोहियों का ही मनोबल बढ़ेगा। हरेक भारतीय को जागरुक होकर सरकार से पूछना होगा कि हम पाकिस्तान के सामने इतने कमजोर क्यों हो गए हैं। अब हमें अपनी संसद के प्रस्ताव पर अमल करते हुए पाकिस्तानी कब्जे से कश्मीर को मुक्त कराना होगा। कश्मीर पर राजनेताओं और सरकार के ढुल-मुल रवैये के कारण समस्या बढ़ती जा रही है। सेना तैयार है, लेकिन उसे आदेश देने वाले मुंह पर पट्टी बांधे बैठे हैं। आखिर हम कब तक चुप्पी साधे रहेंगे। सेना ने हमेशा युद्ध जीत कर दिया है। कश्मीर को बचाने में सेना ने अपनी कुर्बानी दी है। देश का हजारों करोड़ रू. कश्मीर पर लगा है। क्या यह सब इसीलिए किया गया कि कश्मीर पाक को सौंप दिया जाए। जम्मू और लेह-लददाख सहित अनेक हिस्सों से आजादी या स्वायत्ता की कोई मांग नहीं हो रही है। सिर्फ श्रीनगर और कश्मीर के आस-पास के कुछ जिले पाकिस्तान प्रेरित आजादी की मांग कर रहे हैं। केन्द्र सरकार देश के करोड़ों मुसलमानों की बजाए इन मुट्ठीभर कश्मीरी मुसलमानों की के आगे क्यों नतमस्तक हो रही है। ‘कश्मीर ः समस्या एवं समाधन’ विषय पर व्याख्यान देते हुए सेवानिवृत्त मेजर जनरल गगनदीप बख्शी ने यह बात कही। श्री बक्शी भोपाल में स्पंदन, प्रज्ञा प्रवाह, भारत विकास परिषद् और म.प्र. राष्ट्रीय एकता समिति द्वारा आयोजित संगोष्ठी में बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान को कश्मीर के लोगों से हमदर्दी नहीं है। उसे कश्मीर के लोग नहीं वहां के संसाधन चाहिए। कश्मीर समस्या के समाधान के लिए भारत को अपनी बर्दाश्त की सीमा निर्धारित करनी चाहिए। उन्होंने कहा कि हमें अपनी रेड लाइन डिफाइन करनी होगी। लेकिन दुर्भाग्य है कि केन्द्र सरकार के इशारे पर कश्मीर के वार्ताकारों ने यह कहा हे कि हमारी कोई रेडलाइन नहीं है।
पाकिस्तान कश्मीर में सेना का मनोबल तोड़ने की साजिश कर रहा है। योजनाबद्ध तरीके से उसने पहले भारतीय पुलिस का मनोबल तोड़ा अब वह सेना पर मानवाधिकार हनन के झूठे आरोप लगवाकर सेना का ध्यान कश्मीर से हटाना चाह रहा है। मेजर जनरल बक्शी ने मानवाधिकार संगठनों को कटघरे में खडा करते हुए कहा कि सेना पर लगाए गए मानवाधिकार हनन के 94 प्रतिशत मामले गलत पाए गए हैं। सही आरोपों पर तत्काल सुनवाई और कार्यवाई की गई है। उन्होंने कहा कि दुनिया में सिर्फ भारत ही एक ऐसा देश है जो आतंकवाद से लड़ने में भारी हथियारों का उपयोग नहीं कर रहा है। अमेरिका, पाकिस्तान, चीन, रूस और श्रीलंका जैसे देशों ने हमेेंशा आतंकवाद से लड़ने में बड़ और भारी हथियारों का उपयोग किया है। इसके बावजूद भारतीय सेना पर मानवाधिकार हनन के सबसे ज्यादा आरोप लगे।
मेे.जे. बक्शी ने अपने कार्यकाल के अनुभवों के आधार पर कश्मीर की आज की समस्या और उसके समाधान की चर्चा की। उन्होंने कहा कि कश्मीर में आतंकवाद के अंत के लिये एक स्पष्ट नीति के साथ कार्य करने की जरूरत है। कश्मीर राज्य के कुछ जिलों में ही उपद्रवी तत्व सक्रिय है। वहाँ भी शांतिप्रिय लोग है जिसका सबसे प्रामाणिक तथ्य है कि 60 प्रतिशत से अधिक नागरिकों ने जम्मू-कश्मीर के निर्वाचन में भाग लेकर भारत की प्रजातांत्रिक व्यवस्था में भरोसा व्यक्त किया है। उन्होंने कहा कि हमें कश्मीर समस्या को व्यापक परिदृश्य में देखना होगा। कश्मीर को छोड़ने की बात देश में रहने वाले 15 करोड़ लोकतांत्रिक मुसलमानों के सम्मान को चोट पहुँचाना है। उन्होंने कश्मीर के सामरिक महत्व को समझाते हुए पाकिस्तान और चीन के सामरिक गठजोड़ की आशंकाओं पर भी प्रकाश डाला। श्री बक्शी ने कहा कि पाक से जल्दी नहीं निपटा गया तो उसका सहयोगी चीन हमारे लिए बड़ी चुनौती खडी कर देगा। हमें पाक के सामने घुटने टेकना बंद कर देना चाहिए। अब मुहतोड जवाब देने का समय आ गया है।
कार्यक्रम के मुख्यअतिथि मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चैहान ने कहा कि हिन्दुस्तान की सरकार इतनी कमजोर हो गई कि पाकिस्तान को सबक सिखने की बजाये समझौतों में अटकी हुई है। भारत को ग्लोबल पावर बनाने का सपना देख रहे हैं लेकिन हदय से देशभक्ति की भावना लुप्त होती जा रही है। कश्मीर विलय दिवस पर श्री चैहान ने कहा कि वोट बैंक की राजनीति ने देश को आतंकवाद से ज्यादा नुकसान पहुंचाया है। हमारे यहां ऐसे -ऐसे चिंतक हो गए हैं जो पाक को कश्मीर देकर समस्या सुलझाने की बात करते हैंं। उन्होंने सवाल किया कि क्या अरुंधती राय का बयान चीन में बर्दाश्त किया जाता? कश्मीर के विलय पर उंगली उठाने वाले जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला और कश्मीर को पाक का हिस्सा बताने वाले गिलानी को तो जेल में होना चाहिए। जबकि उन्हें सम्मान दिया जा रहा है। जिनके हदय में देशप्रेम नहीं वे ही ऐसा राज कर सकते हैं। मुख्यमंत्री ने कहा कि जल्दी सत्ता की चाह में भारतमाता को आजादी के समय ही ख्ंाडित कर दिया गया। आज अखंड भारत कहां है। पांच नदियों के कारण पंजाब कहलाने वाले राज्य में अब दो ही नदियां हैं। उन्होंने कहा कि सेना के साथ ठीक सलूक नहीं हो रहा है। उसे आजादी के साथ काम करने देना होगा। श्री चैहान ने कहा कि आतंकवाद की लडाई में अगर कुछ निर्दोष मर भी जाएं तो गम नहीं, लेकिन आतंकी नहीं छूटने चाहिए। दुष्ट बिना भय के काबू में नहीं आते हैंं।
मुख्यमंत्री ने कहा कि नक्सलवाद आतंकवादियों के तो मानव अधिकार हैं लेकिन सेना व जनता के मानव अध्किारों का क्या? अरुंधती राय और मेधा पाटकर कश्मीरी पंडितों के मानव अधिकार की लड़ाई लड़ें। सोनिया राहुल गांधी से देशभक्ति के जज्बे की उम्मीद नहीं की जा सकती। कश्मीर बचाने के लिए जनता आगे आए। मैं हमेशा उनके साथ हूं। हम आतंकवादियों को पाक में घुसकर क्यों नहीं मार सकते। उन्होंने कहा कि अगर भारत पाक अधिकृत कश्मीर के लिये पुरजोर आवाज उठाता तो आज जम्मू-कश्मीर की स्वायत्तता का मुद्दा नहीं उठता। देश बचाने के लिए कड़े कदम उठाने होंगे। उन्होंने कहा कि कश्मीर के लिये अब वार्ता की नहीं दृढ़ता की जरूरत है। भारत ने उदारता एवं शांति का संदेश दिया है लेकिन अखण्डता के लिये अब शक्ति प्रदर्शन की जरूरत है। मुख्यमंत्री ने कहा कि जम्मू-कश्मीर की समस्या देश की समृद्ध सांस्कृतिक अखंडता से अपरिचित नीति नियंत्रकों के ढुलमुल रवैये का परिणाम है। इसे सिर्फ विलय नहीं, बल्कि संकल्प दिवस के रूप में भी मनाएं। उन्होंने कहा कि धारा 370 खत्म कर वहां सेना के सेवानिवृत्त अधिकारियों को बसा दिया जाए, वहां की हालत सुधर जायेगी। देशभक्ति वोट बैंक का हिस्सा क्यों नहीं बन सकती है? अब समय आ गया है कि जनता देश की सत्ता पर देशभक्तों को बैठाये। अखंडभारत का सपना साकार करने के लिए सेना को पूरे अधिकार मिलने चाहिए। उन्होंने सेना को स्वतंत्र करने को कहा।
श्री शिवराजसिंह चैहान ने कहा कि देश की एकता और अखंडता के लिये वोट की राजनीति आतंकवाद से ज्यादा खतरनाक है। जिस दिन जनता जाग गई सत्ता लोलुप कुर्सी पर नहीं रह पायेंगे।
इस अवसर पर राष्ट्रीय एकता समिति के उपाध्यक्ष रमेंश शर्मा और महेश श्रीवास्तव, प्रज्ञा प्रवाह संयोजक बालकृष्ण दवे, स्पंदन के उपाध्यक्ष जी.के. छिब्बर उपस्थित थे। कार्यक्रम का संचालन दीपक शर्मा ने किया।
अनिल सौमित्र, भोपाल