नयी दिल्ली। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ नेता नानाजी देश मुख का शनिवार को निधन हो गया।
1975 में गठित गैरकांग्रेसी सरकार में मंत्री रहने के बाद नानाजी ने सक्रिय राजनीति से संन्यास ले लिया था। उसके बाद उन्होंने समाज सेवा शुरू कर दिया था। पिछले कुछ दिनों से बीमार चल रहे नानाजी आजकल चित्रकूट में रह रहे थे।
मूलगामी दृष्टि - नानाजी देशमुख
नानाजी देशमुख
(ग्राम विकास के पुरोधा)
विभिन्न विवादा- स्पद विषयों पर भी गुरुजी सहज भाव से समाधान बता दिया करते थे। जब कभी कोई मार्ग नहीं सूझता था, गुरुजी का मार्गदर्शन काम आता था।
बात उस समय की है, जब पंजाब में भाषा विवाद खड़ा हुआ था। संयोग से दीनदयाल जी की और मेरी नागपुर में गुरुजी से भेंट हुई। कई स्थानीय कार्यकर्ता भी थे। गुरुजी बोले - 'अरे भाई क्या चल रहा है पंजाब में? तुम्हारे नेता लोग क्या कह रहे हैं पंजाबी भाषा के बारे में?'
स्पष्ट विचार
हममे से काई कुछ नहीं बोला। कुछ देर बाद गुरुजी स्वयं बोले - 'क्या राजनीति में काम करने वालों का दृष्टिकोण सीमित (दलगत) हो जाता है? वह (दृष्टिकोण) व्यापक नहीं रह पाता? हिन्दी राष्ट्रभाषा है, स्वाभाविक रूप से उसके प्रति मोह, उसके विकास के लिए प्रयत्न होना चाहिए। लेकिन पंजाबी भाषा क्या विदेशी भाषा है? क्या वह सांप्रदायिक भाषा है? पंजाबी भाषा एक क्षेत्रीय भाषा है और हमारी अपनी भाषा है। उसका अभिमान होना चाहिए न कि उसका उपहास। यह सिर्फ केशधारियों की भाषा नहीं है। यह कहना भी गलत है कि यह सिर्फ नानकपंथियों की भाषा है। 'गुरुग्रंथ साहब' आदि धार्मिक ग्रंथों में क्या केवल पंजाबी भाषा है? अनेक भाषाएँ मिलती हैं। उन्हें किसी भाषा से नफरत नहीं थी। किसी और को भी उनकी भाषा से नफरत नहीं होनी चाहिए।' कितना स्पष्ट विचार था!'
श्रीगुरुजी द्वारा किया जाने वाला समस्या का विश्लेषण और निदान सत्य की कसौटी पर भी खरा उतरता था। आंध्र विवाद जब शुरू हुआ तो हमारे लोगों ने वहाँ एक अध्ययन दल भेजा। गुरुजी उन दिनों इंदौर में विश्राम कर रहे थे। मैं भी संयोग से इंदौर में था। उनसे भेंट हुई तब वे बोले - 'तुम्हारा अध्ययन दल वहाँ क्या कर रह है? आंध्र और तेलंगाना के अलग होने से कोई कठिनाई नहीं आयेगी? इससे राष्ट्रीय एकता खंडित नहीं होगी? लोगों को सुविधा हो, आर्थिक विकास में पोषण हो और प्रशासनिक दृष्टि से सुविधाजनक हो तो आवश्यकतानुसार प्रान्तों की पुनर्रचना राष्ट्रीय एकात्मता के लिए भी आवश्यक रहती है। इसमें अध्ययन करने का क्या प्रश्न है? यह तो स्वयं स्पष्ट हैं। आंध्र-तेलंगाना के प्रश्न को विवादास्पद बनाकर लोगों में असंतोष व हिंसक वृत्ति को बल मिले, ऐसी हठवादिता का क्या अर्थ है?
गुरुजी के सान्निध्य में जो भी आता था, गुरुजी के व्यक्तित्व से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकता था।
डा. सम्पूर्णानन्द का आकलन
बात शायद सन् 1946 या 1947 की है। काशी के डी.ए.वी. कालेज में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का शिक्षण शिविर लगा था। स्व. डा. सम्पूर्णानंद जी से मेरे बहुत पहले से संबंध थे। वे इस शिविर के समापन समारोह में पधारे थे। गुरुजी भी थे। उस समय उनसे (डा. संपूर्णानंद से) बातचीत नहीं हो सकी, पर बाद में उनसे मिलने का संयोग हुआ तो वे बोले - 'हम तुम्हारे संघ को देख आए हैं।'
मैंने कहा - 'मैं भी वहाँ था।'
वे बोले - 'हाँ, तुम उस दिन मिलिट्री कमाण्डर जैसे लग रहे थे।'
मैंने पूछा - 'क्या आपको हमारे कमांडर बनने में कुछ एतराज है?'
उन्होंने जवाब दिया - 'नहीं भाई, ऐसी कोई बात नहीं है। मैं तो कह रहा था कि तुम्हारे यहाँ बड़ा गजब का अनुशासन है। इस संगठन के पीछे जो तुम्हारे गुरुजी हैं, उनका बड़ा विशिष्ट व्यक्तित्व है, बहुत ही गतिशील और प्रभावोत्पादक व्यक्तित्व है। मतभेद की बात दिखने के बाद भी उनसे विवाद करने की इच्छा नहीं होती। उनसे मिलकर एक आश्चर्य की बात अनुभव हुई कि विवादास्पद विषय का पूर्ण अनुमान कर गुरुजी ऐसा मत प्रकट करते थे कि सामने बैठे व्यक्तियों को एक नये ढंग से सोचने के लिए प्रेरणा मिल जाती है।'
मैंने पूछा - 'बाबूजी, आपने यह सब कहा तो सही, पर बात क्या हुई?'
वे बोले - 'खैर छोड़ो, तुम्हारे गुरुजी के बारे में मेरी ऐसी धारणा बन गई है। सही या गलत मैं नहीं जानता, यह तुम जानो।'
श्री श्रीप्रकाश के विचार
गुरुजी के सान्निध्य में ही नहीं उनके विचारों और भाषणों से भी अनेक विद्वान और नेता अभिभूत हुए हैं। श्री श्रीप्रकाश जी का संस्मरण समीचीन रहेगा।
महाराष्ट्र के राज्यपाल पद से निवृत्त होकर श्रीप्रकाश जी देहरादून में एक कुटिया बनाकर रह रहे थे। उन्होंने मुझे मिलने के लिए बुलाया। बाद में पता चला कि डा. सम्पूर्णानंद ने उन्हें लिखा था कि तुम नाना जी को मिलो। गुरुजी की 'बंच ऑफ थॉट्स' पुस्तक को अवश्य पढ़ो। डा. सम्पूर्णानंद जी ने ही मेरा परिचय श्रीप्रकाश जी से कराया था। उनकी इच्छा देख मैंने 'बंच ऑफ थॉट्स' उन्हें भी भेज दी।
जब मेरा श्री श्रीप्रकाश से साक्षात्कार हुआ तो वे बोले: 'मैं गुरुजी के व्यक्तित्व से प्रभावित अवश्य था, किन्तु उनका व्यक्तित्व इतना सर्वव्यापी है, इसकी मुझे कल्पना नहीं थी। हो सकता है, कुछ मामलों में मतभेद हो, पर उनका चिंतन बड़ा मौलिक और जड़ को छूने वाला है। इसका आप लोग व्यापक प्रचार क्यों नहीं करते? कई चीजें तो ऐसी हैं, जिनको व्यवहार में लाया जाये तो हिन्दुस्थान की सब समस्याएँ हल हो जाएँगी। मैं नहीं समझता था कि तुम्हारे गुरुजी धर्म परिवर्तन किए बिना मुसलमान और ईसाइयों को राष्ट्रजीवन का अंग मानने के लिए तैयार हो सकते हैं। गुरुजी के सारे विचार देखकर लगता है कि यदि मुसलमानों ने थोड़ा-सा भी दृष्टिकोण में परिवर्तन किया और हिन्दुस्थान की गौरवमयी राष्ट्रीय परम्परा का अभिमान रखा, तो तुम्हारे गुरुजी को उन्हें राष्ट्रीय एकात्मता के अंग मानने में कोई एतराज नहीं होगा। यह एक बहुत बड़ी बात मैं गुरुजी की समझ पाया हूँ। गुरुजी के उस विचार से मतभेद नहीं रखा जा सकता। मेरे मन में उनके प्रति आदर बढ़ गया है।'
दीनदयाल जी के प्रति स्नेह-विश्वास
दीनदयाल जी के प्रति गुरुजी के मन में बड़ा स्थान था, बड़ा स्नेह और अटूट विश्वास।
बात उस समय की है जब कालीकट के अधिवेशन के पूर्व दीनदयाल जी जनसंघ के अधयक्ष निर्वाचित हुए। कालीकट के अधिवेशन के बाद हम लोग कार से बंगलौर होते हुए डोंडबल्लापुर पहुँचे। वहाँ संघ कार्यकर्ताओं का एक वर्ग लग रहा था। गुरुजी संघ कार्यकर्ताओं को मार्गदर्शन दे रहे थे।
नानाजी का जन्म महाराष्ट्र के परभानी जिले के कदोली नामक छोटे से कस्बे में सन् १९११ में हुआ था। नानाजी का बचपन अभावों में बीता। उनके पास शुल्क देने और पुस्तकें खरीदने के लिये पैसे नहीं थे किन्तु उनके अन्दर शिक्षा और ज्ञानप्राप्ति की उत्कट अभिलाषा थी। अत: इस कार्य के लिये उन्होने शब्जी बेचकर पैसे की व्यवस्था की। उनका निधन चित्रकूट में २७ फरवरी २०१० को हो गया।
कार में दीनदयाल जी, सुन्दरसिंह जी भण्डारी, जगन्नाथराव जी जोशी भी थे। हम लोगों को देखते ही गुरुजी बोले - 'तुम सब नेता लोग यहाँ कहाँ आ गए?'
भोजन, विश्राम के बाद गुरुजी के साथ चाय के लिए बैठे। गुरुजी का बौध्दिक होने वाला था। चाय के समय गुरुजी बोले - 'आज दीनदयाल बोलेगा।' हम सब आश्चर्यचकित रह गए। किसी ने कहा कि वर्ग में सभी लोग आपसे मार्गदर्शन पाने के लिए एकत्रित हुए हैं। सभी कार्यक्रम आप ही को लेने हैं।
गुरुजी बोले - 'नहीं भाई, दीनदयाल ही बोलेगा।' फिर किसी ने कहा, 'गुरुजी वे तो जनसंघ के अध्यक्ष हैं।' गुरुजी ने तत्काल उत्तर दिया - 'नहीं, दीनदयाल स्वयंसेवक है। स्वयंसेवक के नाते बोलेगा, जनसंघ अध्यक्ष के रूप में नहीं।' और वस्तुत: दीनदयाल जी का जब बौध्दिक हुआ, तो गुरुजी ने भी बहुत सराहा।
प्रसिद्ध समाजसेवी नानाजी देशमुख नहीं रहे
नई दिल्ली। प्रसिद्ध समाजसेवी और भारतीय जन संघ के पूर्व नेता नानाजी देशमुख का आज दिल का दौरा पड़ने के कारण निधन हो गया। नानाजी 94 वर्ष के थे। वे दो बार राज्यसभा के सदस्य रहे तथा समाजसेवा, विशेषकर चित्रकूट क्षेत्र में रेन वाटर हार्वेस्टिंग के लिए काम करने के लिए उन्हें पद्म विभूषण से नवाजा गया
नानाजी देशमुख का जन्म 11 अक्टूबर 1916 को महाराष्ट्र के परभनी जिले में हुआ था। नानाजी देशमुख एक समाजसेवक होने के साथ-साथ भारतीय राजनीति में भी रहे तथा राज्यसभा सांसद के रूप में काम किया। जनसंघ की स्थापना और इसके बाद गठबंधन की राजनीति के सूत्रपात में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही।
मूलत: राष्ट्रीय स्वयसेवक संघ के प्रचारक रहे देशमुख ने चित्रकूट में खासा काम किया। पूर्व प्रधानमंत्री अटलबिहारी वाजपेयी उनसे खासे प्रभावित रहे हैं। जब वाजपेयी ने पत्रकारिता के क्षेत्र में कदम रखा था तो देशमुख ही उनके मार्गदर्शक की भूमिका में रहे। चित्रकूट में समाजसेवा के रूप में उनके किए कार्यों की पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम ने भी तारीफ की थी।
प्रख्यात समाजसेवी नानाजी देशमुख का यहाँ लम्बी बीमारी के बाद निधन हो गया। वह 97 वर्ष के थे। उनके परिवार के सदस्यों के अनुसार उनका निधन शाम यहाँ एक अस्पताल में हुआ।
नानाजी देशमुख दो बार राज्यसभा के सदस्य रहे तथा समाजसेवा विशेषकर चित्रकूट क्षेत्र में रेन वॉटर हार्वेस्टिंग के लिए काम करने के लिए उन्हें पद्म विभूषण से नवाजा गया था। वह राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के संस्थापक सदस्यों में से एक थे।
नानाजी अटल बिहारी वाजपेयी समेत सभी भाजपा के बड़े नेताओं के पथप्रदर्शक रहे। उन्होंने चित्रकूट में जो कार्य किया, उसकी प्रशंसा पूर्व राष्ट्रपति डॉ. अब्दुल कलाम आजाद ने भी की थी। कलाम ने कहा था कि नानाजी ने कभी सत्ता की राजनीति नहीं की।
महाराष्ट्र में जन्में नानाजी देशमुख ने सादगी और ईमानदारी की मिसाल पेश की। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सबसे वृद्ध प्रचारक नानाजी की दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में कितनी आस्था दृढ़ थी, इसकी मिसाल 2000 में उस वक्त देखने को मिली जब वे व्हीलचेयर पर बैठकर मतदान करने पहुँचे।
नानाजी की भारतीय लोकतंत्र में गहरी आस्था थी और वे कहते थे कि देश के हर नागरिक को मतदान का उपयोग करके अपना कर्तव्य निभाना चाहिए। यही कारण था कि चलने-फिरने में लाचार होने के बावजूद उन्होंने मतदान में हिस्सा लिया था। (वेबदुनिया/वार्ता)
शनिवार, 27 फ़रवरी 2010
सद्भावना बैठक और हिन्दू समागम
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहनराव भागवत भोपाल में
सद्भावना बैठक और हिन्दू समागम में शामिल हुए
भोपाल 26 फरवरी। अपने तीन दिवसीय प्रवास पर 26 फरवरी को सांय 7ः25 बजे मुंबई से भोपाल पधार रहे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के परम पूज्य सरसंघचालक डॉ. मोहनराव भागवत शनिवार, 27 फरवरी को सुबह 10ः00 बजे सामाजिक सद्भावना बैठक में भाग लेंगे। सद्भावना बैठक को सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवतजी संबोधित करेंगे। बैठक का आयोजन शहीद भवन, विधायक विश्राम गृह के पास, मालवीय नगर, में किया गया है। बैठक में 100 से अधिक विभिन्न जाति, धर्म, संप्र्रदाय के भोपाल जिले के पदाधिकारी उपस्थित रहेंगे। हिन्दू समागम आयोजन समिति के महासचिव श्री दीपक शर्मा ने बताया कि सरसंघचालक श्री मोहनजी भागवत रविवार, 28 फरवरी को सांय 4 बजे लाल परेड मैदान में होने जा रहे हिन्दू समागम को संबोधित करेंगे। इस दौरान उनके साथ अखिल भारतीय सह शारीरिक प्रमुख श्री अनिल ओक, अखिल भारतीय सम्पर्क प्रमुख श्री हस्तीमलजी, क्षेत्र संघचालक श्रीकृष्ण माहेश्वरी सहित समिति व संघ के पदाधिकारी भी उपस्थित रहेंगे।
इस अवसर पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के विभाग संघचालक कांतिलाल चतर ने बताया कि हिन्दू समागम के लिये भोपाल महानगर के 40 हजार परिवारों से सीधा संपर्क किया जा चुका है। विभिन्न समूह बनाकर सामाजिक व धासद्भावना समाज और राष्ट्र को विकसित और सुरक्षित करने का आधार है ः परम पूज्य सरसंघचालक डॉ. मोहनराव भागवत
भोपाल 27 फरवरी। समाज में सुधार, विकास, सेवा का कार्य करते हुए अपने कार्य में अन्य समाज के लोगों को बुलाने से समाज में सामाजिक सद्भाव उत्पन्न किया जा सकता है। समाज को विकसित और सुरक्षित रखने के लिये एक रहना आवश्यक है। सद्भावना समाज और राष्ट्र को विकसित और सुरक्षित करने का आधार है। मनुष्य को आपस में भेदभाव नहीं करनी चाहिये। उक्त बातें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के परम पूज्य सरसंघचालक डॉ. मोहनराव भागवत जी ने आज यहां सामाजिक सद्भावना बैठक में प्रस्ताविक उद्बोधन देते हुए कही। यह उनकी 24वीं बैठक थी इसके पूर्व 23 प्रांतों के प्रांतीय मुख्यालयों इसी तरह की बैठकों को सम्बोधित कर चुके हैं। कार्यक्रम में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के क्षेत्र संचालक श्री श्रीकृष्ण माहेश्वरी, क्षेत्रीय प्रचारक विनोद कुमार, मध्य भारत प्रांत के संघचालक श्री शशिभाई सेठ, विभाग संघचालक श्री कांतिलाल चतर, हिन्दू समागम आयोजन समिति के अध्यक्ष न्यायमूर्ति आर.डी. शुक्ला, महासचिव दीपक शर्मा सहित हिन्दू समाज के संत, धर्माचार्य तथा 100 से अधिक सामाजिक संगठनों के सैकड़ों पदाधिकारी व प्रतिनिधि उपस्थित थे।
प.पू. सरसंघचालक श्री भागवतजी ने सामाजिक समरसता के लिये दलितों, पिछड़ों, उपेक्षितों, अनुसूचित जाति@जनजाति की उपेक्षा नहीं करने, उन्हें मुख्यधारा में शामिल करने तथा उनके दुःख में शामिल होते हुए उन्हें समाज में यथोचित सम्मान और सत्कार दिये जाने की अपील की।
डॉ. भागवतजी ने कहा कि भारत आक्रमणग्रस्त है। यदि हिन्दू समाज एकजुट होकर खड़ा हो जाता है तो भविष्य में भारत किसी भी आक्रमण को सहन कर सकता है। इनसे भली-भांति परिचित विदेशी ताकतें अपने स्वार्थ और एकाधिकार के चलते हिन्दू समाज को तोड़ने का प्रयास कर रही हैं जो कदापि नहीं होने दिया जायेगा। इसके लिए उन्होंने हिन्दू समाज को एकजुट होने का आव्हान किया।
श्री भागवतजी ने प्रांत स्तर पर वर्ष में दो बार सामाजिक सद्भावना बैठक करने और उसे विकासखण्ड स्तर से नीचे गांवों तक ले जाने की बात पर जोर दिया।
कार्यक्रम में समाज के विभिन्न संगठनों के पदाधिकारियों और प्रतिनिधियों ने सामाजिक कार्यों के बारे में जानकारी दी और समाज को एकजुट रखने के लिये सुझाव भी दिये।
प्रारंभ में आमंत्रित संतों, धर्माचार्यों को श्री कांतिलालजी चतर द्वारा तिलक लगाकर सम्मानित किया गया। कार्यक्रम का समापन वंदेमातरम् गीत से किया गया जिसे बालिका पूर्वी सप्रे ने प्रस्तुत किया। संचालन सोमकांत उमालकर ने किया।
र्मिक संगठनों, इंजीनियरों, डॉक्टरों, अधिवक्ताओं, सीए, शिक्षकों, प्रोफेसरों, पत्रकारों, लेखकों, रंगकर्मियों, विद्यार्थियों आदि से सम्पर्क किया जा चुका है। हिन्दू समागम में नारी शक्ति की विशेष सहभागिता दिखाई दें इसके लिये सभी क्षेत्रों में कार्यरत् बहिनों से सम्पर्क हेतु अब तक महिलाओं की 50 बैठकें की जा चुकी हैं।
सद्भावना बैठक और हिन्दू समागम में शामिल हुए
भोपाल 26 फरवरी। अपने तीन दिवसीय प्रवास पर 26 फरवरी को सांय 7ः25 बजे मुंबई से भोपाल पधार रहे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के परम पूज्य सरसंघचालक डॉ. मोहनराव भागवत शनिवार, 27 फरवरी को सुबह 10ः00 बजे सामाजिक सद्भावना बैठक में भाग लेंगे। सद्भावना बैठक को सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवतजी संबोधित करेंगे। बैठक का आयोजन शहीद भवन, विधायक विश्राम गृह के पास, मालवीय नगर, में किया गया है। बैठक में 100 से अधिक विभिन्न जाति, धर्म, संप्र्रदाय के भोपाल जिले के पदाधिकारी उपस्थित रहेंगे। हिन्दू समागम आयोजन समिति के महासचिव श्री दीपक शर्मा ने बताया कि सरसंघचालक श्री मोहनजी भागवत रविवार, 28 फरवरी को सांय 4 बजे लाल परेड मैदान में होने जा रहे हिन्दू समागम को संबोधित करेंगे। इस दौरान उनके साथ अखिल भारतीय सह शारीरिक प्रमुख श्री अनिल ओक, अखिल भारतीय सम्पर्क प्रमुख श्री हस्तीमलजी, क्षेत्र संघचालक श्रीकृष्ण माहेश्वरी सहित समिति व संघ के पदाधिकारी भी उपस्थित रहेंगे।
इस अवसर पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के विभाग संघचालक कांतिलाल चतर ने बताया कि हिन्दू समागम के लिये भोपाल महानगर के 40 हजार परिवारों से सीधा संपर्क किया जा चुका है। विभिन्न समूह बनाकर सामाजिक व धासद्भावना समाज और राष्ट्र को विकसित और सुरक्षित करने का आधार है ः परम पूज्य सरसंघचालक डॉ. मोहनराव भागवत
भोपाल 27 फरवरी। समाज में सुधार, विकास, सेवा का कार्य करते हुए अपने कार्य में अन्य समाज के लोगों को बुलाने से समाज में सामाजिक सद्भाव उत्पन्न किया जा सकता है। समाज को विकसित और सुरक्षित रखने के लिये एक रहना आवश्यक है। सद्भावना समाज और राष्ट्र को विकसित और सुरक्षित करने का आधार है। मनुष्य को आपस में भेदभाव नहीं करनी चाहिये। उक्त बातें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के परम पूज्य सरसंघचालक डॉ. मोहनराव भागवत जी ने आज यहां सामाजिक सद्भावना बैठक में प्रस्ताविक उद्बोधन देते हुए कही। यह उनकी 24वीं बैठक थी इसके पूर्व 23 प्रांतों के प्रांतीय मुख्यालयों इसी तरह की बैठकों को सम्बोधित कर चुके हैं। कार्यक्रम में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के क्षेत्र संचालक श्री श्रीकृष्ण माहेश्वरी, क्षेत्रीय प्रचारक विनोद कुमार, मध्य भारत प्रांत के संघचालक श्री शशिभाई सेठ, विभाग संघचालक श्री कांतिलाल चतर, हिन्दू समागम आयोजन समिति के अध्यक्ष न्यायमूर्ति आर.डी. शुक्ला, महासचिव दीपक शर्मा सहित हिन्दू समाज के संत, धर्माचार्य तथा 100 से अधिक सामाजिक संगठनों के सैकड़ों पदाधिकारी व प्रतिनिधि उपस्थित थे।
प.पू. सरसंघचालक श्री भागवतजी ने सामाजिक समरसता के लिये दलितों, पिछड़ों, उपेक्षितों, अनुसूचित जाति@जनजाति की उपेक्षा नहीं करने, उन्हें मुख्यधारा में शामिल करने तथा उनके दुःख में शामिल होते हुए उन्हें समाज में यथोचित सम्मान और सत्कार दिये जाने की अपील की।
डॉ. भागवतजी ने कहा कि भारत आक्रमणग्रस्त है। यदि हिन्दू समाज एकजुट होकर खड़ा हो जाता है तो भविष्य में भारत किसी भी आक्रमण को सहन कर सकता है। इनसे भली-भांति परिचित विदेशी ताकतें अपने स्वार्थ और एकाधिकार के चलते हिन्दू समाज को तोड़ने का प्रयास कर रही हैं जो कदापि नहीं होने दिया जायेगा। इसके लिए उन्होंने हिन्दू समाज को एकजुट होने का आव्हान किया।
श्री भागवतजी ने प्रांत स्तर पर वर्ष में दो बार सामाजिक सद्भावना बैठक करने और उसे विकासखण्ड स्तर से नीचे गांवों तक ले जाने की बात पर जोर दिया।
कार्यक्रम में समाज के विभिन्न संगठनों के पदाधिकारियों और प्रतिनिधियों ने सामाजिक कार्यों के बारे में जानकारी दी और समाज को एकजुट रखने के लिये सुझाव भी दिये।
प्रारंभ में आमंत्रित संतों, धर्माचार्यों को श्री कांतिलालजी चतर द्वारा तिलक लगाकर सम्मानित किया गया। कार्यक्रम का समापन वंदेमातरम् गीत से किया गया जिसे बालिका पूर्वी सप्रे ने प्रस्तुत किया। संचालन सोमकांत उमालकर ने किया।
र्मिक संगठनों, इंजीनियरों, डॉक्टरों, अधिवक्ताओं, सीए, शिक्षकों, प्रोफेसरों, पत्रकारों, लेखकों, रंगकर्मियों, विद्यार्थियों आदि से सम्पर्क किया जा चुका है। हिन्दू समागम में नारी शक्ति की विशेष सहभागिता दिखाई दें इसके लिये सभी क्षेत्रों में कार्यरत् बहिनों से सम्पर्क हेतु अब तक महिलाओं की 50 बैठकें की जा चुकी हैं।
सद्भावना बैठक और हिन्दू समागम में शामिल हुए
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहनराव भागवत भोपाल में
सद्भावना बैठक और हिन्दू समागम में शामिल हुए
भोपाल 26 फरवरी। अपने तीन दिवसीय प्रवास पर 26 फरवरी को सांय 7ः25 बजे मुंबई से भोपाल पधार रहे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के परम पूज्य सरसंघचालक डॉ. मोहनराव भागवत शनिवार, 27 फरवरी को सुबह 10ः00 बजे सामाजिक सद्भावना बैठक में भाग लेंगे। सद्भावना बैठक को सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवतजी संबोधित करेंगे। बैठक का आयोजन शहीद भवन, विधायक विश्राम गृह के पास, मालवीय नगर, में किया गया है। बैठक में 100 से अधिक विभिन्न जाति, धर्म, संप्र्रदाय के भोपाल जिले के पदाधिकारी उपस्थित रहेंगे। हिन्दू समागम आयोजन समिति के महासचिव श्री दीपक शर्मा ने बताया कि सरसंघचालक श्री मोहनजी भागवत रविवार, 28 फरवरी को सांय 4 बजे लाल परेड मैदान में होने जा रहे हिन्दू समागम को संबोधित करेंगे। इस दौरान उनके साथ अखिल भारतीय सह शारीरिक प्रमुख श्री अनिल ओक, अखिल भारतीय सम्पर्क प्रमुख श्री हस्तीमलजी, क्षेत्र संघचालक श्रीकृष्ण माहेश्वरी सहित समिति व संघ के पदाधिकारी भी उपस्थित रहेंगे।
इस अवसर पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के विभाग संघचालक कांतिलाल चतर ने बताया कि हिन्दू समागम के लिये भोपाल महानगर के 40 हजार परिवारों से सीधा संपर्क किया जा चुका है। विभिन्न समूह बनाकर सामाजिक व धार्मिक संगठनों, इंजीनियरों, डॉक्टरों, अधिवक्ताओं, सीए, शिक्षकों, प्रोफेसरों, पत्रकारों, लेखकों, रंगकर्मियों, विद्यार्थियों आदि से सम्पर्क किया जा चुका है। हिन्दू समागम में नारी शक्ति की विशेष सहभागिता दिखाई दें इसके लिये सभी क्षेत्रों में कार्यरत् बहिनों से सम्पर्क हेतु अब तक महिलाओं की 50 बैठकें की जा चुकी हैं।
सद्भावना बैठक और हिन्दू समागम में शामिल हुए
भोपाल 26 फरवरी। अपने तीन दिवसीय प्रवास पर 26 फरवरी को सांय 7ः25 बजे मुंबई से भोपाल पधार रहे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के परम पूज्य सरसंघचालक डॉ. मोहनराव भागवत शनिवार, 27 फरवरी को सुबह 10ः00 बजे सामाजिक सद्भावना बैठक में भाग लेंगे। सद्भावना बैठक को सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवतजी संबोधित करेंगे। बैठक का आयोजन शहीद भवन, विधायक विश्राम गृह के पास, मालवीय नगर, में किया गया है। बैठक में 100 से अधिक विभिन्न जाति, धर्म, संप्र्रदाय के भोपाल जिले के पदाधिकारी उपस्थित रहेंगे। हिन्दू समागम आयोजन समिति के महासचिव श्री दीपक शर्मा ने बताया कि सरसंघचालक श्री मोहनजी भागवत रविवार, 28 फरवरी को सांय 4 बजे लाल परेड मैदान में होने जा रहे हिन्दू समागम को संबोधित करेंगे। इस दौरान उनके साथ अखिल भारतीय सह शारीरिक प्रमुख श्री अनिल ओक, अखिल भारतीय सम्पर्क प्रमुख श्री हस्तीमलजी, क्षेत्र संघचालक श्रीकृष्ण माहेश्वरी सहित समिति व संघ के पदाधिकारी भी उपस्थित रहेंगे।
इस अवसर पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के विभाग संघचालक कांतिलाल चतर ने बताया कि हिन्दू समागम के लिये भोपाल महानगर के 40 हजार परिवारों से सीधा संपर्क किया जा चुका है। विभिन्न समूह बनाकर सामाजिक व धार्मिक संगठनों, इंजीनियरों, डॉक्टरों, अधिवक्ताओं, सीए, शिक्षकों, प्रोफेसरों, पत्रकारों, लेखकों, रंगकर्मियों, विद्यार्थियों आदि से सम्पर्क किया जा चुका है। हिन्दू समागम में नारी शक्ति की विशेष सहभागिता दिखाई दें इसके लिये सभी क्षेत्रों में कार्यरत् बहिनों से सम्पर्क हेतु अब तक महिलाओं की 50 बैठकें की जा चुकी हैं।
बुधवार, 10 फ़रवरी 2010
हिन्दू समागम को सफल बनाने में महिलाएं प्राणपण से जुटेंगी
राष्ट््रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक श्री मोहनराव भागवत के भोपाल आगमन पर 28 फरवरी को भोपाल में आयोजित किये जा रहे हिन्दू समागम की तैयारियंा जोर शोर से जारी हैं। कार्यक्रम की सफलता के लिए स्थान स्थान पर बैठकों के दौर शुरू हो गए हैं। इसी तारतम्य में विभिन्न समाजों की महिला पदाधिकारियों की एक बैठक आयोजित की गई जिसमें आयोजन समिति की सदस्य महापौर श्रीमती कृष्णा गौर ने कहा कि हिन्दू समागम भोपाल के इतिहास में एक यादगार कार्यक्रम होगा। श्रीमती गौर ने कहा कि महिलाएं परिवार की धुरी हैं और परिवार हिन्दू समाज का आधार है। इसीलिए इस आयोजन की सफलता में महिलाओं को बहुत महती भूमिका निभानी है। इस अवसर पर श्रीमती कृष्णा गौर ने कहा कि देश तीन चीजों से चलता है शक्ति बुद्धि और समृद्धि । और भारतीय चिंतन में इन तीनों शक्तियों की प्रतीक लक्ष्मी सरस्वती और दुर्गा ही हैं। उन्होंने कहा कि 28 फरवरी का हिन्दू समागम एक ऐसा अवसर है जब हिन्दू मातृशक्ति बडी संख्या में लाल परेड मैदान में एकत्रित हो कर अपने सामाजिक दायित्व को पूरा करने की दिशा में आगे बढ सकती है।
उन्होंने कहा कि जैसे महिलाओं का परिवार के प्रति दायित्व है वैसे ही उनका देश व समाज के प्रति भी एक दायित्व है और हिन्दू समागम इस दायित्व को निभाने का एक महत्वपूर्ण माध्यम है। श्रीमती गौर ने महिलाओं से आव्हान किया कि 28 फरवरी को वे मातृशक्ति का भव्य स्वरूप उपस्थित करने मेे प्राणपण से जुट जाएं।
उन्होंने कहा कि जैसे महिलाओं का परिवार के प्रति दायित्व है वैसे ही उनका देश व समाज के प्रति भी एक दायित्व है और हिन्दू समागम इस दायित्व को निभाने का एक महत्वपूर्ण माध्यम है। श्रीमती गौर ने महिलाओं से आव्हान किया कि 28 फरवरी को वे मातृशक्ति का भव्य स्वरूप उपस्थित करने मेे प्राणपण से जुट जाएं।
सोमवार, 8 फ़रवरी 2010
न्यायमूर्ति आर डी शुक्ला हिन्दू समागम आयोजन समिति के नए अध्यक्ष होंगे
राष्ट््रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक श्री मोहनराव भागवत के भोपाल आगमन पर हिन्दू समागम आयोजित करने हेतु एक आयोजन समिति का गठन किया गया है जिसके अध्यक्ष पद पर प्रदेश के पूर्व पुलिस महानिदेशक श्री एच एम जोशी का निर्वाचन किया गया था । श्री जोशी द्वारा निजी कारणों से अध्यक्ष के रूप में कार्य करने में असमर्थता व्यक्त किये जाने के उपरंात आयोजन समिति की कार्यकारिणी की बैठक में प्रदेश के पूर्व विधि सचिव एवं मानवाधिकार आयोग के पूर्व अध्यक्ष श्री आर. डी शुक्ला का निर्वाचन किया गया है । श्री पी एल चतुर्वेदी ने श्री शुक्ल का नाम प्रस्तावित किया एवं वरिष्ठ अधिवक्ता श्रीपति खिरवडकर ने इसका समर्थन किया । इस मौके पर नवनियुक्त अध्यक्ष श्री शुक्ला ने सहर्ष यह दायित्व स्वीकार करते हुए हिन्दू समाज को जातिभेद से मुक्त और समरसता से युक्त बनाने की आवश्यकता प्रतिपादित की और यह विश्वास व्यक्त किया कि सभी के सहयोग से यह हिन्दू समागम एक सफल आयोजन सिद्ध होगा।
गुरुवार, 4 फ़रवरी 2010
संघ की ओर समाज की नज़र
यह पुराना आलेख है। यह आलेख तब लिखा गया था जब श्री मोहनराव भागवत संघ के सरसंघचालक बने थे।
अनिल सौमित्र
नागपुर में संघ की बहुप्रतीक्षित प्रतिनिधि सभा की बैठक चल रही है। औपचारिक तौर पर यह बैठक 21 से 23 तक होगी। संघ की परंपरा और संविधान के मुताबिक प्रतिनिधि सभा की बैठक प्रतिवर्ष होती है। लेकिन इस साल की बैठक का विशेष महत्व इसलिए है कि यह वर्ष संघ का चुनावी वर्ष है। प्रत्येक तीन साल पर संघ में सरकार्यवाह का चुनाव होता है। पहले प्रांत और उसके नीचे की इकाइयों में संघचालक का चुनाव होता है, तत्पश्चात् विभिन्न इकाइयों के प्रतिनिधि अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा की बैठक में सरकार्यवाह का चुनाव करते हैं। इस वर्ष यह बैठक इसलिए भी विशेष चर्चा में है कि काफी समय पहले से ही सरसंघचालक श्री कुप्पहल्ली सीतारमैया सुदर्शन के पदमुक्त होने का अनुमान लगाया जा रहा था।
मीडिया और समाज का अनुमान सच सिद्ध हुआ। प्रतिनिधि सभा बैठक के दूसरे दिन 21 मार्च को श्री सुदर्शन जी ने अपने दायित्व से मुक्त होने का निर्णय करते हुए वर्तमान सरकार्यवाह श्री मोहनराव भागवत को सरसंघचालक नियुक्त करने की घोषणा कर दी। यह घोषणा देश-दुनिया के लिए बड़ा और महत्वपूर्ण निर्णय है। ऐसा होना भी स्वाभाविक है, क्योंकि दुनिया के सबसे बड़े स्वयंसेवी संगठन के प्रमुख का मनोनयन और दूसरे सबसे बड़े पद का निर्वाचन हुआ है। लेकिन यह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में ही संभव है कि इतने विशाल संगठन के मुखिया और अन्य पदाधिकारियों का मनोनयन ओर निर्वाचन इतने सरल और सहज तरीके से हो पाता है।
श्री मोहनराव भागवत, संघ के छठे सरसंघचालक होंगे। संघ के पहले सरसंघचालक, संघ के संस्थापक डाॅ. केशव बलिराम हेडगेवार हुए। इसके पश्चात् श्री माधव सदाशिवराव गोलवलकर (श्रीगुरूजी), श्री बालासाहब देवरस, प्रो. श्री राजेन्द्र सिंह (रज्जू भैया) और श्री कृप्पहल्ली सीतारमैया सुदर्शन सरसंघचालक बने। उल्लेखनीय है कि 1939 डाॅ. हेडगेवार के जीवन काल में सिंदी संघ के शिविर में ही कार्यकर्ता जान चुके थे कि श्रीगुरूजी ही सरसंघचालक होंगे। वैसे ही, बल्कि उससे कहीं अधिक कल्पना देश के संघ कार्यकर्ताओं को श्री गुरूजी के बाद बालासाहब देवरस के सरसंघचालक बनने की हो गई थी। श्री गुरू जी 33 वर्षों तक सरसंघचालक रहे जबकि बालासाहब देवरस 21 वर्षों तक। श्री रज्जू भैया वर्ष 1994 से 2000 तक सरसंघचालक रहे। जबकि श्री सुदर्शन जी वर्ष 2000 से 2009 तक।
कार्य की दृष्टि से सरसंघचालकों के कार्यकाल का विश्लेषण काफी कठिन है। संघ का मूल कार्य तो शाखा कार्य विस्तार है। इस दृष्टि से शाखा कार्य का विस्तार तो सतत होता गया है। लेकिन विभिन्न सरसंघचालकों के कार्यकाल को देशकाल-परिस्थिति और तत्कालीन सामाजिक-आर्थिक और राजनीतिक संदर्भों में देखने पर समीचीन विश्लेषण संभव होगा।
संघ के स्वयंसेवक और प्रचारक रहे मोरेश्वर गणेश तपस्वी ने अपनी पुस्तक ‘ राष्ट्राय नमः’ में लिखा है - संघकार्य के वास्तविक शुरूआत के कुछ महीनों बाद एक दिन डाॅ. हेडगेवार जब संघ के शाखा स्थान पर पहंुचे तो स्वयंसेवकों ने उन्हें अकल्पित रूप से ‘सरसंघचालक प्रणाम’ कहा। तभी से डाॅक्टर जी सरसंघचालक बन गए। पन्द्रह वर्षों तक उन्होंने अपना खून-पसीना एक कर संघ का विस्तार किया, उसे देश के सुदूर क्षेत्रों तक विस्तार दिया। एक तरफ साम्राज्यवादी शक्तियों से संघर्ष और दूसरी तरफ समाज को असन्न संकटों से जूझने के लिए समर्थ और सशक्त बनाने का दोहरा दायित्व डाॅ. हेडगेवार के जिम्मे था। श्रीगुरूजी के 33 वर्षों के कार्यकाल में संघ को देश के प्रत्येक जिले में विस्तार मिला, वहीं राजनीति सहित समाज जीवन से जुड़ी लगभग बीस से अधिक संगठनों की शुरूआत भी हुई। आज जिस ‘संघ परिवार’ शब्दावली की चर्चा होती है उसकी शुरूआत इसी समय हुई। श्रीगुरूजी के समय ही संघ को सर्वाधिक विषम परिस्थितियों का सामना करना पड़ा। गांधी-हत्या का ठीकरा संघ पर फोड़ा गया। तत्कालीन कांग्रेस की सरकार ने कलुषित राजनीति का परिचय देते हुए संघ पर प्रतिबंध लगा दिया। एक विजयी योद्धा की तरह श्रीगुरूजी ने संघ को सामाजिक-राजनीतिक झंझावातों से बाहर निकाला।
श्री बाला साहब देवरस ने इक्कीस वर्षो। तक संघ को नेतृत्व दिया। इस दौरान संघ, समाजव्यापी बना। संघ परिवार अब समाज के विभिन्न वर्गों तक पहुंचने लगा। देवरस जी के समय ही संघ को आपातकाल के दौरान दूसरे प्रतिबंध का सामना करना पड़ा। निष्ठुर शासक वर्ग के खिलाफ जनांदोलन का शंखनाद संघ के अदृश्य नेतृत्व में ही हुआ। अस्वास्थ्य के कारण उन्होंने संघ प्रवाह का कार्य 1994 में श्री रज्जू भैया को सौंप दिया। श्री रज्जू भैया लगभग छह वर्षों तक सरसंघचालक के रूप में अपनी सेवाएं दे पाए। इस दौरान संघ कार्य का विस्तार दुनिया के अन्य देशों में काफी फैला। संघ के बारे में यह धारणा भी निर्मूल हुई कि संघ मराठी और उसमें भी एक विशेष ब्राह्मण समाज का संगठन है। जाति, भाषा और क्षेत्र आधारित धारणाएं इस दौरान मिथक सिद्ध हुई। संघ के वास्तविक रूप के बारे में समाज के सभी वर्गोंं में सकारात्मक संदेश गया। मीडिया भी संघ के बारे में सकारात्मक हुआ। संघ विचारों से प्रेरित राजनीतिक कार्यकर्ता भी उंचे शिखरों तक पहंचे। निवर्तमान सरसंघचालक श्री सुदर्शन जी ने अपने कार्यकाल में ग्रामीण विकास, सामाजिक समरसता और संस्कृत व हिन्दी के विकास पर विशेष बल दिया। संघ विचारों से प्रेरित भारतीय जनता पार्टी का राजनैतिक उत्कर्ष भी उल्लेखनीय है।
नए सरसंघचालक श्री मोहनराव भागवत के बारे में विभिन्न प्रकार के कयास लगाए जा रहे हैं। संघ और संघ के माध्यम से राष्ट्रीय फलक पर राजनैतिक-सामाजिक स्थितियों में बड़े युगान्तकारी परिवर्तन की अपेक्षा की जा रही है। श्री भागवत, संगठन और जमीनी काम को अन्य सभी कार्यों की शक्ति मानते हैं। इसलिए यह स्वाभावित है कि उनका ध्यान संघ के मूल कार्य, शाखा विस्तार की ओर होगा। संघ में शाखा कार्य और स्वयंसेवकों की गुणवत्ता को लेकर काफी चर्चा होती रही है। स्वयंसेवकों और शाखाकार्य में गुणात्मक विस्तार है देश के समक्ष आसन्न संकटों का समाधान दे सकेगा। श्री भागवत सरल और सहज व्यक्तित्व के धनी हैं। वे मीतभाषी और मृदुभाषी हैं। न दिखना और काम करते जाना उनके स्वाभाव में है। कार्यकर्ताओं के साथ वे छाया की तरह होते हैं, लेकिन मीडिया को ढूंढने पर भी नहीं मिलते। वे जानते हैं कार्य का विस्तार होगा तो उसका प्रचार भी होगा, प्रचार से कार्य का विस्तार नहीं। शायद इसीलिए वे अपने व्यक्तित्व को छुपाकर, गलाकर, मिटाकर संघ का व्यक्तिव गढ़ रहे हैं। वे सरकार्यवाह के रूप में संघ के कार्यकारी प्रमुख थे, अब सरसंघचालक के रूप में संवैधनिक प्रमुख के नाते संघ के दर्शन और नीतियों अभिव्यक्त करेंगे। संघ, संघ परिवार और संघ विचार को वही परंपरागत वैचारिक प्रतिबद्धता, अनुशासन और राष्ट्रधर्म का पुनस्र्मरण होगा। श्री भागवत के नेतृत्व मे संघ को न सिर्फ चतुर्दिक विस्तार मिलेगा, बल्कि देश को सभी क्षेत्रों में नई दिशा भी मिलेगी। देश और समाज को संघ से यही अपेक्षा है। संघ के नूतन सरसंघचालक का हार्दिक अभिनंदन!
अनिल सौमित्र
नागपुर में संघ की बहुप्रतीक्षित प्रतिनिधि सभा की बैठक चल रही है। औपचारिक तौर पर यह बैठक 21 से 23 तक होगी। संघ की परंपरा और संविधान के मुताबिक प्रतिनिधि सभा की बैठक प्रतिवर्ष होती है। लेकिन इस साल की बैठक का विशेष महत्व इसलिए है कि यह वर्ष संघ का चुनावी वर्ष है। प्रत्येक तीन साल पर संघ में सरकार्यवाह का चुनाव होता है। पहले प्रांत और उसके नीचे की इकाइयों में संघचालक का चुनाव होता है, तत्पश्चात् विभिन्न इकाइयों के प्रतिनिधि अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा की बैठक में सरकार्यवाह का चुनाव करते हैं। इस वर्ष यह बैठक इसलिए भी विशेष चर्चा में है कि काफी समय पहले से ही सरसंघचालक श्री कुप्पहल्ली सीतारमैया सुदर्शन के पदमुक्त होने का अनुमान लगाया जा रहा था।
मीडिया और समाज का अनुमान सच सिद्ध हुआ। प्रतिनिधि सभा बैठक के दूसरे दिन 21 मार्च को श्री सुदर्शन जी ने अपने दायित्व से मुक्त होने का निर्णय करते हुए वर्तमान सरकार्यवाह श्री मोहनराव भागवत को सरसंघचालक नियुक्त करने की घोषणा कर दी। यह घोषणा देश-दुनिया के लिए बड़ा और महत्वपूर्ण निर्णय है। ऐसा होना भी स्वाभाविक है, क्योंकि दुनिया के सबसे बड़े स्वयंसेवी संगठन के प्रमुख का मनोनयन और दूसरे सबसे बड़े पद का निर्वाचन हुआ है। लेकिन यह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में ही संभव है कि इतने विशाल संगठन के मुखिया और अन्य पदाधिकारियों का मनोनयन ओर निर्वाचन इतने सरल और सहज तरीके से हो पाता है।
श्री मोहनराव भागवत, संघ के छठे सरसंघचालक होंगे। संघ के पहले सरसंघचालक, संघ के संस्थापक डाॅ. केशव बलिराम हेडगेवार हुए। इसके पश्चात् श्री माधव सदाशिवराव गोलवलकर (श्रीगुरूजी), श्री बालासाहब देवरस, प्रो. श्री राजेन्द्र सिंह (रज्जू भैया) और श्री कृप्पहल्ली सीतारमैया सुदर्शन सरसंघचालक बने। उल्लेखनीय है कि 1939 डाॅ. हेडगेवार के जीवन काल में सिंदी संघ के शिविर में ही कार्यकर्ता जान चुके थे कि श्रीगुरूजी ही सरसंघचालक होंगे। वैसे ही, बल्कि उससे कहीं अधिक कल्पना देश के संघ कार्यकर्ताओं को श्री गुरूजी के बाद बालासाहब देवरस के सरसंघचालक बनने की हो गई थी। श्री गुरू जी 33 वर्षों तक सरसंघचालक रहे जबकि बालासाहब देवरस 21 वर्षों तक। श्री रज्जू भैया वर्ष 1994 से 2000 तक सरसंघचालक रहे। जबकि श्री सुदर्शन जी वर्ष 2000 से 2009 तक।
कार्य की दृष्टि से सरसंघचालकों के कार्यकाल का विश्लेषण काफी कठिन है। संघ का मूल कार्य तो शाखा कार्य विस्तार है। इस दृष्टि से शाखा कार्य का विस्तार तो सतत होता गया है। लेकिन विभिन्न सरसंघचालकों के कार्यकाल को देशकाल-परिस्थिति और तत्कालीन सामाजिक-आर्थिक और राजनीतिक संदर्भों में देखने पर समीचीन विश्लेषण संभव होगा।
संघ के स्वयंसेवक और प्रचारक रहे मोरेश्वर गणेश तपस्वी ने अपनी पुस्तक ‘ राष्ट्राय नमः’ में लिखा है - संघकार्य के वास्तविक शुरूआत के कुछ महीनों बाद एक दिन डाॅ. हेडगेवार जब संघ के शाखा स्थान पर पहंुचे तो स्वयंसेवकों ने उन्हें अकल्पित रूप से ‘सरसंघचालक प्रणाम’ कहा। तभी से डाॅक्टर जी सरसंघचालक बन गए। पन्द्रह वर्षों तक उन्होंने अपना खून-पसीना एक कर संघ का विस्तार किया, उसे देश के सुदूर क्षेत्रों तक विस्तार दिया। एक तरफ साम्राज्यवादी शक्तियों से संघर्ष और दूसरी तरफ समाज को असन्न संकटों से जूझने के लिए समर्थ और सशक्त बनाने का दोहरा दायित्व डाॅ. हेडगेवार के जिम्मे था। श्रीगुरूजी के 33 वर्षों के कार्यकाल में संघ को देश के प्रत्येक जिले में विस्तार मिला, वहीं राजनीति सहित समाज जीवन से जुड़ी लगभग बीस से अधिक संगठनों की शुरूआत भी हुई। आज जिस ‘संघ परिवार’ शब्दावली की चर्चा होती है उसकी शुरूआत इसी समय हुई। श्रीगुरूजी के समय ही संघ को सर्वाधिक विषम परिस्थितियों का सामना करना पड़ा। गांधी-हत्या का ठीकरा संघ पर फोड़ा गया। तत्कालीन कांग्रेस की सरकार ने कलुषित राजनीति का परिचय देते हुए संघ पर प्रतिबंध लगा दिया। एक विजयी योद्धा की तरह श्रीगुरूजी ने संघ को सामाजिक-राजनीतिक झंझावातों से बाहर निकाला।
श्री बाला साहब देवरस ने इक्कीस वर्षो। तक संघ को नेतृत्व दिया। इस दौरान संघ, समाजव्यापी बना। संघ परिवार अब समाज के विभिन्न वर्गों तक पहुंचने लगा। देवरस जी के समय ही संघ को आपातकाल के दौरान दूसरे प्रतिबंध का सामना करना पड़ा। निष्ठुर शासक वर्ग के खिलाफ जनांदोलन का शंखनाद संघ के अदृश्य नेतृत्व में ही हुआ। अस्वास्थ्य के कारण उन्होंने संघ प्रवाह का कार्य 1994 में श्री रज्जू भैया को सौंप दिया। श्री रज्जू भैया लगभग छह वर्षों तक सरसंघचालक के रूप में अपनी सेवाएं दे पाए। इस दौरान संघ कार्य का विस्तार दुनिया के अन्य देशों में काफी फैला। संघ के बारे में यह धारणा भी निर्मूल हुई कि संघ मराठी और उसमें भी एक विशेष ब्राह्मण समाज का संगठन है। जाति, भाषा और क्षेत्र आधारित धारणाएं इस दौरान मिथक सिद्ध हुई। संघ के वास्तविक रूप के बारे में समाज के सभी वर्गोंं में सकारात्मक संदेश गया। मीडिया भी संघ के बारे में सकारात्मक हुआ। संघ विचारों से प्रेरित राजनीतिक कार्यकर्ता भी उंचे शिखरों तक पहंचे। निवर्तमान सरसंघचालक श्री सुदर्शन जी ने अपने कार्यकाल में ग्रामीण विकास, सामाजिक समरसता और संस्कृत व हिन्दी के विकास पर विशेष बल दिया। संघ विचारों से प्रेरित भारतीय जनता पार्टी का राजनैतिक उत्कर्ष भी उल्लेखनीय है।
नए सरसंघचालक श्री मोहनराव भागवत के बारे में विभिन्न प्रकार के कयास लगाए जा रहे हैं। संघ और संघ के माध्यम से राष्ट्रीय फलक पर राजनैतिक-सामाजिक स्थितियों में बड़े युगान्तकारी परिवर्तन की अपेक्षा की जा रही है। श्री भागवत, संगठन और जमीनी काम को अन्य सभी कार्यों की शक्ति मानते हैं। इसलिए यह स्वाभावित है कि उनका ध्यान संघ के मूल कार्य, शाखा विस्तार की ओर होगा। संघ में शाखा कार्य और स्वयंसेवकों की गुणवत्ता को लेकर काफी चर्चा होती रही है। स्वयंसेवकों और शाखाकार्य में गुणात्मक विस्तार है देश के समक्ष आसन्न संकटों का समाधान दे सकेगा। श्री भागवत सरल और सहज व्यक्तित्व के धनी हैं। वे मीतभाषी और मृदुभाषी हैं। न दिखना और काम करते जाना उनके स्वाभाव में है। कार्यकर्ताओं के साथ वे छाया की तरह होते हैं, लेकिन मीडिया को ढूंढने पर भी नहीं मिलते। वे जानते हैं कार्य का विस्तार होगा तो उसका प्रचार भी होगा, प्रचार से कार्य का विस्तार नहीं। शायद इसीलिए वे अपने व्यक्तित्व को छुपाकर, गलाकर, मिटाकर संघ का व्यक्तिव गढ़ रहे हैं। वे सरकार्यवाह के रूप में संघ के कार्यकारी प्रमुख थे, अब सरसंघचालक के रूप में संवैधनिक प्रमुख के नाते संघ के दर्शन और नीतियों अभिव्यक्त करेंगे। संघ, संघ परिवार और संघ विचार को वही परंपरागत वैचारिक प्रतिबद्धता, अनुशासन और राष्ट्रधर्म का पुनस्र्मरण होगा। श्री भागवत के नेतृत्व मे संघ को न सिर्फ चतुर्दिक विस्तार मिलेगा, बल्कि देश को सभी क्षेत्रों में नई दिशा भी मिलेगी। देश और समाज को संघ से यही अपेक्षा है। संघ के नूतन सरसंघचालक का हार्दिक अभिनंदन!
विराट हिन्दू समागम के लिये आयोजन समिति गठित
भोपाल,विश्व संवाद केन्द्र. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ द्वारा भोपाल में हिन्दू समागम का आयोजन किया जा रहा है। इस आयोजन के लिये एक आयोजन समिति का गठन किया गया है। 28 फरवरी को आयोजित होने वाले इस विराट हिन्दू समागम के सफल आयोजन हेतु इस समिति में भोपाल के विभिन्न वर्गों के नागरिकों का सहयोग संरक्षण, मार्गदर्शन एवं सहयोग लिया जा रहा है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, मध्यभारत प्रांत के संघचालक श्री शशिभाई सेठ की उपस्थिति में आयोजन समिति की पहली बैठक आज सम्पन्न हुई है। इस बैठक में उपस्थित सभी विशिष्ठ नागरिकों की सहमति से तय हुआ कि आयोजन समिति में विभिन्न मत-पंथ एवं सम्प्रदायों के धर्माचार्य इस आयोजन समिति के संरक्षण होंगे। वरिष्ठ नागरिक एवं पूर्व पुलिस महानिदेशक श्री एच.एम. जोशी की अध्यक्षता में गठित आयोजन समिति में एयर मार्शल विक्रम पेठिया, श्री हेमन्त सोनी, श्री विजय रामानी, डाॅ. मृणाली गोरे,, श्री श्रीपति खिरवडकर, श्री विशम्भर राजदेव, श्री कृष्णन, श्री संजीव अग्रवाल, श्री अजय गोयनका, श्री राजेश जैन और डाॅ. दीपक शाह उपाध्यक्ष होंगे। समिति के महासचिव श्री दीपक शर्मा एवं श्री राजूल अग्रवाल, श्री नैमेष सेठ, श्री विष्णु खत्री, श्री सुधीर दाते, श्रीमती सुप्रीत कौर एवं श्रीमती साधना जैन सचिव के रुप में कार्य करेंगे।
आयोजन समिति की बैठक में हिन्दू समागम के आयोजन एवं इसके महत्व के बारे में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संघचालक श्री शशिभाई सेठ ने बताया कि उन्होंने कहा कि यह संघ का नहीं बल्कि सम्पूर्ण हिन्दू समाज का कार्यक्रम होगा। कार्यक्रम को व्यापक एवं विराट स्वरुप देने के लिये इस समिति का गठन किया गया है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से बड़ी संख्या में लोग प्रत्यक्ष जुड़े हैं, लेकिन बहुत बड़ी संख्या में अभी भी ऐसे लोग है जो संघ को प्रसार माध्यमों या अन्य तरीकों से जानते हैं। श्री सेठ ने ऐसे सभी बन्धुओं से संघ के निकट आने व जानने समझने का आग्रह किया है। उन्होंने कहा कि आज देश में देशभक्त और देशविरोधी लोगों का ध्रुवीकरण हो रहा है। देश में आज देवासुर संग्राम जैसी स्थिति उत्पन्न हो गई है। संघ ने समाज के सज्जन और सात्विक शक्ति को संगठित करने का कार्य किया है । इस दिशा में अन्य अनेक संगठन भी कार्यरत् है।
हिन्दू समागम के अवसर पर भोपाल में सज्जन हिन्दू शक्ति के व्यापक प्रकटीकरण का प्रयास किया जायेगा। 28 फरवरी भोपाल के लिये ऐतिहासिक दिन बने हम सब इसका मिलकर प्रयास करें। इसके लिये अधिकाधिक लोगों तक सूचना, संदेश और सम्पर्क करने का आव्हान श्री सेठ ने किया। बैठक के अन्त में संघ के कार्यों से संबंधित छोटी सी फिल्म का प्रदर्शन भी हुआ।
बैठक में श्री सिद्धभाऊ जी, श्री बाबूलाल गौर,, डाॅ. अजय नारंग, डाॅ. शंकरलालजी पाटीदार,, श्री संतोष अग्रवाल, श्री महेन्द्र शुक्ला आदि विशेष रुप से उपस्थित थे।
भोपाल,विश्व संवाद केन्द्र. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ द्वारा भोपाल में हिन्दू समागम का आयोजन किया जा रहा है। इस आयोजन के लिये एक आयोजन समिति का गठन किया गया है। 28 फरवरी को आयोजित होने वाले इस विराट हिन्दू समागम के सफल आयोजन हेतु इस समिति में भोपाल के विभिन्न वर्गों के नागरिकों का सहयोग संरक्षण, मार्गदर्शन एवं सहयोग लिया जा रहा है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, मध्यभारत प्रांत के संघचालक श्री शशिभाई सेठ की उपस्थिति में आयोजन समिति की पहली बैठक आज सम्पन्न हुई है। इस बैठक में उपस्थित सभी विशिष्ठ नागरिकों की सहमति से तय हुआ कि आयोजन समिति में विभिन्न मत-पंथ एवं सम्प्रदायों के धर्माचार्य इस आयोजन समिति के संरक्षण होंगे। वरिष्ठ नागरिक एवं पूर्व पुलिस महानिदेशक श्री एच.एम. जोशी की अध्यक्षता में गठित आयोजन समिति में एयर मार्शल विक्रम पेठिया, श्री हेमन्त सोनी, श्री विजय रामानी, डाॅ. मृणाली गोरे,, श्री श्रीपति खिरवडकर, श्री विशम्भर राजदेव, श्री कृष्णन, श्री संजीव अग्रवाल, श्री अजय गोयनका, श्री राजेश जैन और डाॅ. दीपक शाह उपाध्यक्ष होंगे। समिति के महासचिव श्री दीपक शर्मा एवं श्री राजूल अग्रवाल, श्री नैमेष सेठ, श्री विष्णु खत्री, श्री सुधीर दाते, श्रीमती सुप्रीत कौर एवं श्रीमती साधना जैन सचिव के रुप में कार्य करेंगे।
आयोजन समिति की बैठक में हिन्दू समागम के आयोजन एवं इसके महत्व के बारे में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संघचालक श्री शशिभाई सेठ ने बताया कि उन्होंने कहा कि यह संघ का नहीं बल्कि सम्पूर्ण हिन्दू समाज का कार्यक्रम होगा। कार्यक्रम को व्यापक एवं विराट स्वरुप देने के लिये इस समिति का गठन किया गया है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से बड़ी संख्या में लोग प्रत्यक्ष जुड़े हैं, लेकिन बहुत बड़ी संख्या में अभी भी ऐसे लोग है जो संघ को प्रसार माध्यमों या अन्य तरीकों से जानते हैं। श्री सेठ ने ऐसे सभी बन्धुओं से संघ के निकट आने व जानने समझने का आग्रह किया है। उन्होंने कहा कि आज देश में देशभक्त और देशविरोधी लोगों का ध्रुवीकरण हो रहा है। देश में आज देवासुर संग्राम जैसी स्थिति उत्पन्न हो गई है। संघ ने समाज के सज्जन और सात्विक शक्ति को संगठित करने का कार्य किया है । इस दिशा में अन्य अनेक संगठन भी कार्यरत् है।
हिन्दू समागम के अवसर पर भोपाल में सज्जन हिन्दू शक्ति के व्यापक प्रकटीकरण का प्रयास किया जायेगा। 28 फरवरी भोपाल के लिये ऐतिहासिक दिन बने हम सब इसका मिलकर प्रयास करें। इसके लिये अधिकाधिक लोगों तक सूचना, संदेश और सम्पर्क करने का आव्हान श्री सेठ ने किया। बैठक के अन्त में संघ के कार्यों से संबंधित छोटी सी फिल्म का प्रदर्शन भी हुआ।
बैठक में श्री सिद्धभाऊ जी, श्री बाबूलाल गौर,, डाॅ. अजय नारंग, डाॅ. शंकरलालजी पाटीदार,, श्री संतोष अग्रवाल, श्री महेन्द्र शुक्ला आदि विशेष रुप से उपस्थित थे।
मंगलवार, 2 फ़रवरी 2010
राजा कृष्णदेव राय के राज्याभिषेक का ५०० वां वर्ष
हिंदुस्तान की महान विरासत का उत्सव
विजयनगर साम्राज्य एवं राजा कृष्णदेव राय के 500 वें राज्याभिषेक का आज शुभदिन है । कर्नाटक में इस त्रिदिविसीय समारोह के रूप में मनाया जा रहा है।
सर्वश्रेष्ठ राजा, महान शासक और एक न्याय-पुरुष।’ यह लिखा था सोलहवीं शताब्दी में भारत की यात्रा पर आए एक पुर्तगाली यात्री डॉमिंगोज पेस ने। राजा थे कृष्णदेव राय, जो १५क्९ में विजयनगर की गद्दी पर बैठे थे और चालीस की उम्र में किसी अज्ञात बीमारी के कारण उनकी मृत्यु हो गई थी। उनके गद्दी पर बैठने के लगभग आधी सहस्राब्दी के बाद उनके राज्याभिषेक का उत्सव मनाया जा रहा है।वे महान योद्धा थे, लेकिन एक योग्य प्रशासक, सहिष्णु राजनीतिज्ञ और कलाओं के महान संरक्षक भी थे। 20 साल की अवधि में कृष्णदेव राय ने विजयनगर को एक विशालकाय साम्राज्य में तब्दील कर दिया था। उनके राज्य की राजधानी और अब विश्व की विरासतों में से एक हम्पी में कृष्णदेव राय की महानता घुली-मिली है। वस्तुत: लगातार हम्पी की तुलना अब रोम से की जाती है।उनके समय में दक्षिण भारत की कला और स्थापत्य अपनी पराकाष्ठा पर पहुंच गया था। वास्तव में यहां के मिले-जुले स्थापत्य में हिंदू और इस्लामिक, दोनों ही कलाओं के तत्व मिलते हैं। हम्पी के लोटस महल में इस कला के दर्शन किए जा सकते हैं। भले ही कर्नाटक ने उनके राज्याभिषेक के ५०० वें varsh का समारोह मनाने की पहल की हो, लेकिन उनकी कभी न खत्म होने वाली महानता के दर्शन आंध्रप्रदेश और तमिलनाडु में भी किए जा सकते हैं। सम्पूर्ण राष्ट्र इसे समारोह पूर्वक मनाये ।
विजयनगर साम्राज्य एवं राजा कृष्णदेव राय के 500 वें राज्याभिषेक का आज शुभदिन है । कर्नाटक में इस त्रिदिविसीय समारोह के रूप में मनाया जा रहा है।
सर्वश्रेष्ठ राजा, महान शासक और एक न्याय-पुरुष।’ यह लिखा था सोलहवीं शताब्दी में भारत की यात्रा पर आए एक पुर्तगाली यात्री डॉमिंगोज पेस ने। राजा थे कृष्णदेव राय, जो १५क्९ में विजयनगर की गद्दी पर बैठे थे और चालीस की उम्र में किसी अज्ञात बीमारी के कारण उनकी मृत्यु हो गई थी। उनके गद्दी पर बैठने के लगभग आधी सहस्राब्दी के बाद उनके राज्याभिषेक का उत्सव मनाया जा रहा है।वे महान योद्धा थे, लेकिन एक योग्य प्रशासक, सहिष्णु राजनीतिज्ञ और कलाओं के महान संरक्षक भी थे। 20 साल की अवधि में कृष्णदेव राय ने विजयनगर को एक विशालकाय साम्राज्य में तब्दील कर दिया था। उनके राज्य की राजधानी और अब विश्व की विरासतों में से एक हम्पी में कृष्णदेव राय की महानता घुली-मिली है। वस्तुत: लगातार हम्पी की तुलना अब रोम से की जाती है।उनके समय में दक्षिण भारत की कला और स्थापत्य अपनी पराकाष्ठा पर पहुंच गया था। वास्तव में यहां के मिले-जुले स्थापत्य में हिंदू और इस्लामिक, दोनों ही कलाओं के तत्व मिलते हैं। हम्पी के लोटस महल में इस कला के दर्शन किए जा सकते हैं। भले ही कर्नाटक ने उनके राज्याभिषेक के ५०० वें varsh का समारोह मनाने की पहल की हो, लेकिन उनकी कभी न खत्म होने वाली महानता के दर्शन आंध्रप्रदेश और तमिलनाडु में भी किए जा सकते हैं। सम्पूर्ण राष्ट्र इसे समारोह पूर्वक मनाये ।
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