पू. सरसंघचालक
श्रीरामजन्मभूमि को लेकर चलते आए न्यायिक विवाद मंे अलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा दि. 30 सितम्बर 2010 को घोषित निर्णय से मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम तथा उनकी जन्मभूमि अयोध्या के प्रति भारत के जनमानस की सनातन आस्था को अनुमोदित व सम्मानित किया है। इसलिए निर्णयकर्ता न्यायाधीशोंका, न्यायिक प्रक्रिया में सहभागी अधिवक्ताओं का, श्रीरामजन्मभूमि आंदोलन का नेतृत्व करनेवाले सभी संतांे का, आंदोलन करनेवाली जनता सहित सभी सहयोगियों का हम हार्दिक अभिनन्दन करते हंै। उस आस्था की प्रतिष्ठापना के लिए चले श्रीरामजन्मभूमि आंदोलन मंे अपने प्राणों का बलिदान देनेवाले कोठारी बंधुओं जैसे सभी कारसेवकों की पवित्र व तेजस्वी स्मृति में हम अपनी श्रद्धावनत आदरांजलि अर्पण करते हैं।
मंदिर का निर्माण इस देश की पहचान, अस्मिता, स्वातंत्र्याकांक्षा तथा विजिगीषा का गौरव हंै। अपने इस भारतवर्ष की सनातन, सर्वसमावेशक, सबके प्रति आत्मीय व सहिष्णु संस्कृति के आचरण की मर्यादा के मानक श्रीराम हंै। मंदिर निर्माण का आंदोलन किसी वर्गविशेष के विरोध अथवा प्रतिक्रिया मंे नहीं हंै।
अतएव रामजन्मभूमिपर मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के भव्य मंदिर के निर्माण की प्रक्रिया का मार्ग प्रशस्त करनेवाले न्यायालय के इस निर्णय को समाज के किसी वर्ग की विजय अथवा पराजय के रूप में नही देखा जाना चाहिए। अपने हर्ष को संयमित, ‘ाांतिपूर्ण, विधि व संविधान की मर्यादा में ही, अकारण उत्तेजना से बचते हुए समझदारी से व्यक्त करना चाहिए। राष्ट्रीय संस्कृति की सहिष्णुता व सर्वसमावेशकता की प्रतिष्ठा को ध्यान में रखते हुए, पुरानी घटनाओंको भूलकर, एक भव्य व पवित्र लक्ष्य के आधारपर, अनेक भौगोलिक, भाषिक व पांथिक विविधताओंसे सुशोभित अपने समाज को एकात्मता व मर्यादा के दृढ सूत्र में गूँथकर भेदरहित बनाने का यह अवसर मिला हंै। इसीलिये इस अवसर पर इस देशके मुसलमानोंसहित अपने समाज के सभी वर्गोको हमारा हार्दिक तथा आत्मीयतापूर्ण आवाहन हैं कि गत द‘ाकों में चले अनेक विवादों की कटुता, हृदयोंकी विषमता व असहजता को भूलकर न्यायालय के निर्णय का स्वागत करते हुए श्रीरामजन्मभूमिपर मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के भव्य मंदिर के निर्माण की संवैधानिक व व्यावहारिक व्यवस्थाएँ निर्माण करने के अभियान में मिलजुलकर सहयोगी बने।
गुरुवार, 30 सितंबर 2010
मंगलवार, 28 सितंबर 2010
विश्व हिन्दू परिषद के अन्तरराष्ट्रीय अध्यक्ष अशोक सिंहल का मन्दिर मामले पर बयान
उच्चतम न्यायालय के आज के निर्णय का हम स्वागत करते हैं । इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ खण्डपीठ द्वारा दिनांक 24 सितम्बर को आने वाले फैसले पर ठीक एक दिन पूर्व सर्वोच्च न्यायालय द्वारा लगाये गये रोक से लोगों के मन में बहुत बड़ा सन्देह उत्पन्न हो गया था कि यदि यह फैसला 30 तारीख तक नही आ पाया और तीन में से एक जज न्यायमूर्ति श्री धर्मवीर शर्मा 1 अक्टूबर 2010 को सेवानिवृत्त हो गये तब एक नयी पीठ का निर्माण होकर नये सिरे से वाद को सुना जायेगा और इसमें बहुत लम्बा समय लग जायेगा । जो पक्ष इसको रोकने में लगे थे उनकी अपकीर्ति भी चारों ओर हो रही थी । इस बात का भी पता लगाने की आवश्यकता है कि कौन से तत्व और शक्तियां निर्णय रोकने के पीछे लगी थीं । किन्तु आज के उच्चतम न्यायालय के निर्णय से जन्म भूमि से जुड़े लगभग सभी पक्षों को समाधान हुआ होगा और संदेह का वातावरण अब समाप्त होगा। यही पीठ यह निर्णय सुनायेगी तथा जो प्रतीक्षा पूरे भारत के द्वारा की जा रही है वह अब पूर्ण हो सकेगी, ऐसा जानकर सभी को अवश्य अच्छा लगा होगा ।
हमारे सन्तों ने बहुत ही स्पष्ट रूप से कहा है कि हमें हमारे पक्ष में या विपक्ष में चाहे जैसा भी निर्णय आता है देश में सर्वत्र शान्ति बनाये रखनी है । सन्तों के वचन का पालन सब हिन्दू समाज करे ऐसा इस अवसर पर मेरा निवेदन है ।
निर्णय आने के पश्चात सन्तों के द्वारा एक निर्देश जारी होगा ऐसा निर्णय 24 सितम्बर को सन्त उच्चाधिकारी समिति की बैठक में उदासीन आश्रम नई दिल्ली में लिया गया था । सन्तों के उस निर्देश का सभी पालन करेंगे और सर्वत्र शान्ति का वातावरण बना रहेगा ऐसा मुझे विश्वास है । श्री हनुमत् शक्ति जागरण का कार्यक्रम बिना किसी अवरोध के पूर्व निर्धारित कार्यक्रम अनुसार सभी स्थानों पर यथावत चलता रहेगा । चार महीने के कार्यक्रम में हनुमान चालीसा, पारायण के यज्ञ, शान्ति के साथ सम्पन्न होंगे ।
हमारे सन्तों ने बहुत ही स्पष्ट रूप से कहा है कि हमें हमारे पक्ष में या विपक्ष में चाहे जैसा भी निर्णय आता है देश में सर्वत्र शान्ति बनाये रखनी है । सन्तों के वचन का पालन सब हिन्दू समाज करे ऐसा इस अवसर पर मेरा निवेदन है ।
निर्णय आने के पश्चात सन्तों के द्वारा एक निर्देश जारी होगा ऐसा निर्णय 24 सितम्बर को सन्त उच्चाधिकारी समिति की बैठक में उदासीन आश्रम नई दिल्ली में लिया गया था । सन्तों के उस निर्देश का सभी पालन करेंगे और सर्वत्र शान्ति का वातावरण बना रहेगा ऐसा मुझे विश्वास है । श्री हनुमत् शक्ति जागरण का कार्यक्रम बिना किसी अवरोध के पूर्व निर्धारित कार्यक्रम अनुसार सभी स्थानों पर यथावत चलता रहेगा । चार महीने के कार्यक्रम में हनुमान चालीसा, पारायण के यज्ञ, शान्ति के साथ सम्पन्न होंगे ।
शुक्रवार, 24 सितंबर 2010
'Huji, not Hindu group, behind Mecca Masjid blast'
HINDUSTAN TIMES, NEW DELHI | ABHISHEK SHARAN | Fri, Sep 24, 1:41 AM
Sept. 24--NEW DELHI -- Though the CBI has sought to establish the hand of a Hindu terror group in the 2007 Mecca Masjid blast, a US counter-terrorism agency thinks otherwise. According to the National Counterterrorism Center (NCTC), the blast was allegedly executed by a Pakistan-sponsored terror outfit, the Harkat ul-Jehad-e-Islami (HuJI).
NCTC director Michael Leiter, submitted as much in his 'Statement for the Record' before the Senate Homeland Security and Governmental Affairs Committee, on Wednesday.
Before the CBI took over the case, the Hyderabad police too had named the HuJI as the blast's alleged executor.
"The group also has been involved in multiple, high-casualty attacks... in India in May 2007 that killed 16," read Leiter's statement.
He added, "HuJI has collaborated with Al-Qaeda on attacks and training for HuJI members. In January 2009, a federal grand jury indicted HUJI commander Mohammad Ilyas Kashmiri in absentia for a disrupted terrorist plot against a newspaper in Denmark."
The group was also allegedly involved in an attack against Pakistani intelligence and police facilities in Lahore in 2009 that killed 23, according to Leiter.
CBI's probe findings, however, have claimed that an Indore-based terror outfit whose members were allegedly linked to the Rashtriya Swayamsevak Sangh perpetrated the mosque attack.
The agency has arrested two accused in the case -- Lokesh Sharma and Devender Gupta -- and is looking for the alleged bomb makers, Sandeep Dange and Ramchandra Kalsangra.
"The NCTC does not seem to be updated with the developments in the case, which is surprising," said a senior CBI investigator when HT asked him about the US agency's version on the attack's suspected perpetrators.
Sept. 24--NEW DELHI -- Though the CBI has sought to establish the hand of a Hindu terror group in the 2007 Mecca Masjid blast, a US counter-terrorism agency thinks otherwise. According to the National Counterterrorism Center (NCTC), the blast was allegedly executed by a Pakistan-sponsored terror outfit, the Harkat ul-Jehad-e-Islami (HuJI).
NCTC director Michael Leiter, submitted as much in his 'Statement for the Record' before the Senate Homeland Security and Governmental Affairs Committee, on Wednesday.
Before the CBI took over the case, the Hyderabad police too had named the HuJI as the blast's alleged executor.
"The group also has been involved in multiple, high-casualty attacks... in India in May 2007 that killed 16," read Leiter's statement.
He added, "HuJI has collaborated with Al-Qaeda on attacks and training for HuJI members. In January 2009, a federal grand jury indicted HUJI commander Mohammad Ilyas Kashmiri in absentia for a disrupted terrorist plot against a newspaper in Denmark."
The group was also allegedly involved in an attack against Pakistani intelligence and police facilities in Lahore in 2009 that killed 23, according to Leiter.
CBI's probe findings, however, have claimed that an Indore-based terror outfit whose members were allegedly linked to the Rashtriya Swayamsevak Sangh perpetrated the mosque attack.
The agency has arrested two accused in the case -- Lokesh Sharma and Devender Gupta -- and is looking for the alleged bomb makers, Sandeep Dange and Ramchandra Kalsangra.
"The NCTC does not seem to be updated with the developments in the case, which is surprising," said a senior CBI investigator when HT asked him about the US agency's version on the attack's suspected perpetrators.
कामनवेल्थ : स्वतन्त्रता के प्रति धोखेबाजी
गणराज्य भी हो और उपनिवेश भी !
क्या आपको कामनवेल्थ खेलों के इस आयोजन में देश की राष्ट्र भाषा , राज्य भाषा और राष्ट्र गौरव का कही एहसास हो रहा है..., इसमें प्रान्तीय भाषाओँ और उनसे जुड़े गौरव कहीं दिख रहे हैं..., नहीं तो आप ही फैसला की जिए कि इस संगठन में रह कर हमने क्या खोया क्या पाया...!!!!!
कोमंवेल्थ का सामान्य परिचय यह है कि :-
राष्ट्रकुल, या राष्ट्रमण्डल देश (अंग्रेज़ी:कॉमनवेल्थ ऑफ नेशंस) (पूर्व नाम ब्रितानी राष्ट्रमण्डल), ५३ स्वतंत्र राज्यों का एक संघ है जिसमे सारे राज्य अंग्रेजी राज्य का हिस्सा थे ( मोज़ाम्बीक और स्वयं संयुक्त राजशाही को छोड़ कर )। इसका मुख्यालय लंदन में स्थित है। इसका मुख्य उद्देश्य लोकतंत्र, साक्षरता, मानवाधिकार, बेहतर प्रशासन, मुक्त व्यापार और विश्व शांति को बढ़ावा देना है। इंग्लैंड की महारानी एलिजाबेथ द्वितीय प्रत्येक चार वर्ष में होने वाले राष्ट्रमंडल खेलों और बैठक में भाग लेती हैं। इसकी स्थापना १९३१ में हुई थी, लेकिन इसका आधुनिक स्वरूप १९४७ में भारत और पाकिस्तान के स्वतंत्र होने के बाद निश्चित हुआ। लंदन घोषणा के तहत ब्रिटेन की महारानी एलिजाबेथ द्वितीय राष्ट्रमंडल देशों के समूह की प्रमुख होती हैं। राष्ट्रमंडल सचिवालय की स्थापना १९६५ में हुई थी। इसके महासचिव मुख्य कार्यकारी के तौर पर काम करते हैं। वर्तमान में कमलेश शर्मा इसके महासचिव हैं। उनका चयन नवंबर, २००७ को हुआ। इसके पहले महासचिव कनाडा के आर्नल्ड स्मिथ थे।
पुनः गलामी का प्रतीक
संविधान सभा में इस मुद्दे पर बहस हुई थी कि हम ने कोमनवेल्थ की सदस्यता को क्यों बने रहने दिया उसे त्यागा क्यों नहीं .., वरिष्ठ कांग्रेसीयों ने इसे देश हित के विरुद्ध बताते हुए राष्ट्र कि पुनः गलामी का प्रतीक माना था जो कई मायनों में सही साबित हुआ...! इस संगठन ने ज्यादातर मौकों पर पाकिस्तान का फेवर किया और भारत को बेवजह दबाया गया , यह भारत की राष्ट्र भाषा और अन्य प्रादेशिक भाषों के लिए हानीकारक रहा और अनुसन्धान के लिए ही नही वरन सामरिक हितों पर भी दगाबाज साबित हुआ ..! सच सिर्फ यह है कि यह आज भी ब्रटिश गुलाम देशों कि ब्रिटश ग़ुलामी को निरंतर बनाये रखने का उपकरण मात्र है...! ब्रिटेन की विश्व व्यापी अधिनायकत्व को वर्तमान में बनाये रखने का उद्धम है..!!
संविधान सभा में ....
१६ मई १९४९ से संविधान सभा का नया सत्र प्रारंभ हुआ और उसमें पहले ही दिन तत्कालीन प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरु ने " राष्ट्रमंडल की सदस्यता सम्बन्धी निर्णय के अनुमोदन के बारे में प्रस्ताव " सभा के समक्ष रखा, तथा वे उसे बिना बहस के कुछ ही मिनिट में पास करवा लेना चाहते थे..,, उनके प्रस्ताव के बहुत थोड़े अंश निम्न प्रकार से हैं..-
जवाहरलाल नेहरु :- "....यह निश्चित किया जाता है कि यह सभा भारत के राष्ट्र मंडल का सदस्य बने रहने के बारे में उस घोषणा का अनुसमर्थन करती है जिसके लिय भारत के प्रधान मंत्री (नेहरु जी ) सहमत हुए थे और जिसका उल्लेख उस सरकारी बयान में किया गया था जो २७ अप्रैल १९४९ को राष्ट्र मंडल के प्रधानमंत्रीयों के सम्मलेन के समाप्त होने पर निकाला गया था | "
स्वंय नेहरु जी ने स्वीकार करते हुए कहा है " ... इसमें ब्रिटिश राष्ट्रमंडल का और इस बात का जिक्र है कि इस राष्ट्र मंडल के लोग साझेतौर पर ' क्राउन ' के प्रती निष्ठावान है | .... "उन्होंने आगे कहा "... भारत शीघ्र ही एक प्रभुसत्ता संपन्न स्वतंत्र गणराज्य बनने जा रहा है और यह कि वह राष्ट्र मंडल का पूर्ण सदस्य बने रहने का इच्छुक है और ' सम्राट ' को स्वतंत्र साहचर्य के प्रतीक के रूप में मानता है... "
"...हमने पहले प्रतिज्ञाएँ कीं थी उन सभी को ध्यान में रख कर और अंततः इस माननीय सदन के संकल्प को ध्यान में रख कर, 'उद्देश्य संकल्प' को और बाद में जो कुछ हुआ उसे ध्यान में रख कर तथा उस संकल्प में अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी ने जो आदेश मुझे दिया था उसे सामने रख कर मैं वहां गया और मैं पूरी नम्रता से आपसे कहना चाहता हूँ कि मैंने उसे आदेश का अक्षरशः पालन किया है | ... "
कुल मिला कर नेहरु जी ने अपने प्रस्ताव भाषण को सदन के सदस्यों को समझाने की द्रष्टि से इतना लंबा पढ़ा कि वे लिखित में १६ पेज का है | मगर कुछ जागरूक सदस्यों ने संशोधन पेश कर इस पर बहस का रास्ता खोला , हालांकी नेहरु जी ने ' अंतर्राष्ट्रीय संधियों पर बहस नहीं होने का तर्क यह कहते हुए रखा कि इस तरह की चर्चा से कोई संशोधन नहीं किया जा सकता ' मगर सभा के अध्यक्ष बाबू राजेन्द्र प्राशाद ने बहस कि अनुमती सभा के नियमों का हवाला देते हुए दे दी .., जिस अनुमोदन को नेहरु जी ने दस मिनिट का काम समझा था उस पर पूरे दो दिन बहस चली.., संविधान सभा में हुई चर्चा दोनों तरफ की थी , पहले दिन विरोध करने वालों का बोलवाला रहा तो दूसरे दिन समर्थकों की पौ बाहर रही..,
- प्रो. शिब्बनलाल सक्सेना ( संयुक्त प्रांत के सामान्य वर्ग के सदस्य )
"... में समझता हूँ कि यह घोषणा उन चुनावी प्रतिज्ञाओं का उल्लंघन है जो कांग्रेस पार्टी के चुनाव घोषणा पत्र में की गई थीं , और जिनके आधार पर इस सदन के अधिकाँश सदस्य चुने गए थे और इस कारण यह सदन इस घोषणा का अनुसमर्थन करने के लिए सक्षम नहीं हैं | "
सक्सेना ने अपनी बात के समर्थन के लिए नेहरु जी के ही १९ मार्च १९३७ के उस भाषण को पढ़ कर सुनाया जो तब चुने गए विधायकों को संबोधित नेहरु जी द्वारा दिया गया था | इसी क्रम में नेहरु जी के १० अगस्त १९४० को लिखे गए लेख ' द पार्टिंग आफ द वेज ' का अंतिम भाग को भी सुनाया |
( सक्सेना ने ) आगे उन्होंने कहा "... जैसे ही प्रधानमंत्री जी ने (नेहरु जी ) इस घोषणा पर हस्ताक्षर किये उसी समय मलाया के मजदूर संघों के बहादुर भारतीय नेता गणपती को फांसी दे दी गई और आज जब हम इस संकल्प को पास करने जा रहे हैं तो मलाया में एक अन्य बहादुर भारतीय साम्ब शिवम् को या तो आज सुबह फांसी पर चढ़ा दिया होगा या फिर शायद आज किसी भी समय फांसी पर चढ़ा दिया जाएगा | में समझता हूँ कि ब्रिटिश साम्राराज्यवाद अपने ही रास्ते पर चल रहा है और वह अपने रास्ते से हटेगा नहीं भले ही हम उसे फुसलाने की या जीतने की कितनी ही कोशिशें क्यों न करें |..." उन्होंने अपने तर्क पूर्ण भाषण में विविध प्रकार से इस कोमनवेल्थ संघ में बने रहने की अनावश्यकता को चिन्हीत किया ...!
लक्ष्मी नारायण साहू ( उडीसा प्रांत के सामान्य वर्ग के सदस्य )
"..हमें यह प्रतीत होता है कि हम अनजाने में उस जाल में के फंडों में फांस गए हैं जो कि अंग्रेजों ने इतनी चालाकी से तथा इतने गुप्त रूप से हमारे लिए बिछाया है |... "
हरि विष्णु कामत ( मध्य प्रांत और बरार के सामान्य वर्ग के सदस्य )
"...कुछ समय पूर्व जब मैंने हाउस आफ कामन्स में २ मई ( सन 1949) को मि. एटली द्वारा दिए गए एक प्रश्न के उत्तर को पढ़ा तो क्षुब्ध रह गया | जिस कागज़ पर इस घोषणा का प्रारुप तैयार लिया गया था और हस्ताक्षर हुए थे, उसकी स्याही अभी मुश्किल से ही सूखी होगी कि इसके केवल पांच दिन बाद ही एक प्रश्न के उत्तर में श्री एटली ने कहा कि राष्ट्रों के इस समूह के नाम में कोई परीवर्तन नहीं हुआ है |... "
एटली ने एक बार फिर इस तीनों अर्थात राष्ट्रमण्डल , ब्रिटिश राष्ट्रमण्डल तथा साम्राज्य का उल्लेख किया है |....
उन्होंने आगे कहा "... भारत को राष्ट्र मण्डल की आवश्यकता की अपेक्षा राष्ट्र मण्डल को भारत की आवश्यकता कहीं अधिक है | यदी इस मनोवैज्ञानिक तथ्य को ध्यान में रखा गया होता, तो बातचीत का शायद हम अधिक अच्छा परिणाम प्राप्त कर सकते थे | ....."
"... उत्साह ही है जिससे कि अंततोगत्वा अंतर पड़ता है | आज पराजयवाद की जिस भावना ने हमें जकड लिया है | उसका परित्याग करना होगा | यह दुर्बलता है , यह हमारे मन , मस्तिष्क तथा ह्रदय में बैठी कायरता है | मेरे विचार में आज जिस बात की आवश्यकता है , वह है कुरुक्षेत्र का युद्ध होने से पूर्व की वह मंत्रणा जो कि श्री कृष्ण ने अर्जुन को युद्ध भूमि में दी _
क्लैब्यं मा स्म गमः पार्थ नैतत्त्वय्युपपद्यते।
क्षुद्रं हृदयदौर्बल्यं त्यक्त्वोत्तिष्ठ परन्तप॥२- ३॥
..... इस श्लोक का सारांश प्रस्तुत करता हूँ | यहाँ श्री कृष्ण अर्जुन से कह रहे हैं कि वह दुर्वलता तथा कायरता के आगे न झुके | वह कहते हैं ' अर्जुन , यह तुम्हे शोभा नहीं देता | ह्रदय की यह दुर्वलता लज्जाजनक है | इसका इसी क्षण परित्याग करो | उठो और युद्ध करो || ' ..."
दामोदर स्वरूप सेठ (संयुक्त प्रान्त )
".... जिन परिस्थितियों में यह सभा निर्वाचित हुई थी उनसे मैं पूरी तरह परिचित हूँ | यह लगभग एक दलीय संस्था है तथा इससे आसानी से वह सब कुछ करवाया जा सकता है जो सत्ताधारी सरकार करवाना चाहे | परन्तु फिरभी मैं यह कहूंगा कि संविधान सभा द्वारा इस प्रश्न पर अंतिम निर्णय लिए बिना प्रधानमंत्री को राष्ट्रमंडल में बने रहने पर सहमत नहीं होना चाहिए था |..."
सेठ गोविन्द दास (मध्य प्रांत और बरार )
"..... मैं मानता हूँ कि जिस कामनवेल्थ में हम शामिल हुए हैं वह कामनवेल्थ अभी सच्चा कामनवेल्थ नहीं है | मैं जानता हूँ कि अफ्रीका में हमारे निवासियों की जो स्थिती है , वह हमारे लिए तो दुःख कि बात है ही पर अफ्रीका निवासियों के लिए वह लज्जा की बात होनी चाहिए | मैं यह मानता हूँ कि आस्ट्रेलिया की जो व्हाईट पालिसी , जो श्वेतांगी नीति है , वह भी कामनवेल्थ के लिए शोभाप्रद नहीं |..."
मौलाना हसरत मोहानी ( संयुक्त प्रान्त से मुस्लिम )
".....मैं किसी ऐसे पिशाच का स्वागत नहीं कर सकता जो गणराज्य भी हो और उपनिवेश भी ! यह प्रत्यक्षतः एक अनर्गल बात है |....."
"....मेरे मित्र तथा सहयोगी शरत बोस ने इस घोषणा के बारे में कहा है कि यह एक बहुत बड़ी धोकेबाजी है और मैं उनके इस मत से पूर्णतया सहमत हूँ | में उनसे एक कदम आगे बढ़ कर यह कहना चाहता हूँ कि यह न केवल भारतीय स्वतन्त्रता के प्रति धोकेबाजी है किन्तु एशिया के उन सभी देशों के प्रयत्नों के प्रति भी धोकेबाजी है जो स्वतंत्रता प्राप्ती के लिए सचेष्ट हैं |..... "
निष्कर्स :-
सभा में कांग्रेस का प्रचंड बहुमत था .., जवाहरलाल नेहरु प्रधानमन्त्री थे , सभा द्वारा उनके रखे प्रस्ताव को स्वीकार करना ही था , सो स्वीकार कर लिया गया मगर इसमें उन्हें पशीना आ गया था.., बाद में बहस के समापन में भी उन्होंने १० पेज का भाषण पढ़ कर यह कोशिश कि यह सब कुछ देश हित में है, मगर इसके परिणाम बहुत घातक हुए... आज तक जो यूरोपवाद भारत पर सवार है.., उसके मूल में यही पराजित मानसिकता है..!
प्रस्तुतकर्ता अरविन्द सिसोदिया,कोटा,
क्या आपको कामनवेल्थ खेलों के इस आयोजन में देश की राष्ट्र भाषा , राज्य भाषा और राष्ट्र गौरव का कही एहसास हो रहा है..., इसमें प्रान्तीय भाषाओँ और उनसे जुड़े गौरव कहीं दिख रहे हैं..., नहीं तो आप ही फैसला की जिए कि इस संगठन में रह कर हमने क्या खोया क्या पाया...!!!!!
कोमंवेल्थ का सामान्य परिचय यह है कि :-
राष्ट्रकुल, या राष्ट्रमण्डल देश (अंग्रेज़ी:कॉमनवेल्थ ऑफ नेशंस) (पूर्व नाम ब्रितानी राष्ट्रमण्डल), ५३ स्वतंत्र राज्यों का एक संघ है जिसमे सारे राज्य अंग्रेजी राज्य का हिस्सा थे ( मोज़ाम्बीक और स्वयं संयुक्त राजशाही को छोड़ कर )। इसका मुख्यालय लंदन में स्थित है। इसका मुख्य उद्देश्य लोकतंत्र, साक्षरता, मानवाधिकार, बेहतर प्रशासन, मुक्त व्यापार और विश्व शांति को बढ़ावा देना है। इंग्लैंड की महारानी एलिजाबेथ द्वितीय प्रत्येक चार वर्ष में होने वाले राष्ट्रमंडल खेलों और बैठक में भाग लेती हैं। इसकी स्थापना १९३१ में हुई थी, लेकिन इसका आधुनिक स्वरूप १९४७ में भारत और पाकिस्तान के स्वतंत्र होने के बाद निश्चित हुआ। लंदन घोषणा के तहत ब्रिटेन की महारानी एलिजाबेथ द्वितीय राष्ट्रमंडल देशों के समूह की प्रमुख होती हैं। राष्ट्रमंडल सचिवालय की स्थापना १९६५ में हुई थी। इसके महासचिव मुख्य कार्यकारी के तौर पर काम करते हैं। वर्तमान में कमलेश शर्मा इसके महासचिव हैं। उनका चयन नवंबर, २००७ को हुआ। इसके पहले महासचिव कनाडा के आर्नल्ड स्मिथ थे।
पुनः गलामी का प्रतीक
संविधान सभा में इस मुद्दे पर बहस हुई थी कि हम ने कोमनवेल्थ की सदस्यता को क्यों बने रहने दिया उसे त्यागा क्यों नहीं .., वरिष्ठ कांग्रेसीयों ने इसे देश हित के विरुद्ध बताते हुए राष्ट्र कि पुनः गलामी का प्रतीक माना था जो कई मायनों में सही साबित हुआ...! इस संगठन ने ज्यादातर मौकों पर पाकिस्तान का फेवर किया और भारत को बेवजह दबाया गया , यह भारत की राष्ट्र भाषा और अन्य प्रादेशिक भाषों के लिए हानीकारक रहा और अनुसन्धान के लिए ही नही वरन सामरिक हितों पर भी दगाबाज साबित हुआ ..! सच सिर्फ यह है कि यह आज भी ब्रटिश गुलाम देशों कि ब्रिटश ग़ुलामी को निरंतर बनाये रखने का उपकरण मात्र है...! ब्रिटेन की विश्व व्यापी अधिनायकत्व को वर्तमान में बनाये रखने का उद्धम है..!!
संविधान सभा में ....
१६ मई १९४९ से संविधान सभा का नया सत्र प्रारंभ हुआ और उसमें पहले ही दिन तत्कालीन प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरु ने " राष्ट्रमंडल की सदस्यता सम्बन्धी निर्णय के अनुमोदन के बारे में प्रस्ताव " सभा के समक्ष रखा, तथा वे उसे बिना बहस के कुछ ही मिनिट में पास करवा लेना चाहते थे..,, उनके प्रस्ताव के बहुत थोड़े अंश निम्न प्रकार से हैं..-
जवाहरलाल नेहरु :- "....यह निश्चित किया जाता है कि यह सभा भारत के राष्ट्र मंडल का सदस्य बने रहने के बारे में उस घोषणा का अनुसमर्थन करती है जिसके लिय भारत के प्रधान मंत्री (नेहरु जी ) सहमत हुए थे और जिसका उल्लेख उस सरकारी बयान में किया गया था जो २७ अप्रैल १९४९ को राष्ट्र मंडल के प्रधानमंत्रीयों के सम्मलेन के समाप्त होने पर निकाला गया था | "
स्वंय नेहरु जी ने स्वीकार करते हुए कहा है " ... इसमें ब्रिटिश राष्ट्रमंडल का और इस बात का जिक्र है कि इस राष्ट्र मंडल के लोग साझेतौर पर ' क्राउन ' के प्रती निष्ठावान है | .... "उन्होंने आगे कहा "... भारत शीघ्र ही एक प्रभुसत्ता संपन्न स्वतंत्र गणराज्य बनने जा रहा है और यह कि वह राष्ट्र मंडल का पूर्ण सदस्य बने रहने का इच्छुक है और ' सम्राट ' को स्वतंत्र साहचर्य के प्रतीक के रूप में मानता है... "
"...हमने पहले प्रतिज्ञाएँ कीं थी उन सभी को ध्यान में रख कर और अंततः इस माननीय सदन के संकल्प को ध्यान में रख कर, 'उद्देश्य संकल्प' को और बाद में जो कुछ हुआ उसे ध्यान में रख कर तथा उस संकल्प में अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी ने जो आदेश मुझे दिया था उसे सामने रख कर मैं वहां गया और मैं पूरी नम्रता से आपसे कहना चाहता हूँ कि मैंने उसे आदेश का अक्षरशः पालन किया है | ... "
कुल मिला कर नेहरु जी ने अपने प्रस्ताव भाषण को सदन के सदस्यों को समझाने की द्रष्टि से इतना लंबा पढ़ा कि वे लिखित में १६ पेज का है | मगर कुछ जागरूक सदस्यों ने संशोधन पेश कर इस पर बहस का रास्ता खोला , हालांकी नेहरु जी ने ' अंतर्राष्ट्रीय संधियों पर बहस नहीं होने का तर्क यह कहते हुए रखा कि इस तरह की चर्चा से कोई संशोधन नहीं किया जा सकता ' मगर सभा के अध्यक्ष बाबू राजेन्द्र प्राशाद ने बहस कि अनुमती सभा के नियमों का हवाला देते हुए दे दी .., जिस अनुमोदन को नेहरु जी ने दस मिनिट का काम समझा था उस पर पूरे दो दिन बहस चली.., संविधान सभा में हुई चर्चा दोनों तरफ की थी , पहले दिन विरोध करने वालों का बोलवाला रहा तो दूसरे दिन समर्थकों की पौ बाहर रही..,
- प्रो. शिब्बनलाल सक्सेना ( संयुक्त प्रांत के सामान्य वर्ग के सदस्य )
"... में समझता हूँ कि यह घोषणा उन चुनावी प्रतिज्ञाओं का उल्लंघन है जो कांग्रेस पार्टी के चुनाव घोषणा पत्र में की गई थीं , और जिनके आधार पर इस सदन के अधिकाँश सदस्य चुने गए थे और इस कारण यह सदन इस घोषणा का अनुसमर्थन करने के लिए सक्षम नहीं हैं | "
सक्सेना ने अपनी बात के समर्थन के लिए नेहरु जी के ही १९ मार्च १९३७ के उस भाषण को पढ़ कर सुनाया जो तब चुने गए विधायकों को संबोधित नेहरु जी द्वारा दिया गया था | इसी क्रम में नेहरु जी के १० अगस्त १९४० को लिखे गए लेख ' द पार्टिंग आफ द वेज ' का अंतिम भाग को भी सुनाया |
( सक्सेना ने ) आगे उन्होंने कहा "... जैसे ही प्रधानमंत्री जी ने (नेहरु जी ) इस घोषणा पर हस्ताक्षर किये उसी समय मलाया के मजदूर संघों के बहादुर भारतीय नेता गणपती को फांसी दे दी गई और आज जब हम इस संकल्प को पास करने जा रहे हैं तो मलाया में एक अन्य बहादुर भारतीय साम्ब शिवम् को या तो आज सुबह फांसी पर चढ़ा दिया होगा या फिर शायद आज किसी भी समय फांसी पर चढ़ा दिया जाएगा | में समझता हूँ कि ब्रिटिश साम्राराज्यवाद अपने ही रास्ते पर चल रहा है और वह अपने रास्ते से हटेगा नहीं भले ही हम उसे फुसलाने की या जीतने की कितनी ही कोशिशें क्यों न करें |..." उन्होंने अपने तर्क पूर्ण भाषण में विविध प्रकार से इस कोमनवेल्थ संघ में बने रहने की अनावश्यकता को चिन्हीत किया ...!
लक्ष्मी नारायण साहू ( उडीसा प्रांत के सामान्य वर्ग के सदस्य )
"..हमें यह प्रतीत होता है कि हम अनजाने में उस जाल में के फंडों में फांस गए हैं जो कि अंग्रेजों ने इतनी चालाकी से तथा इतने गुप्त रूप से हमारे लिए बिछाया है |... "
हरि विष्णु कामत ( मध्य प्रांत और बरार के सामान्य वर्ग के सदस्य )
"...कुछ समय पूर्व जब मैंने हाउस आफ कामन्स में २ मई ( सन 1949) को मि. एटली द्वारा दिए गए एक प्रश्न के उत्तर को पढ़ा तो क्षुब्ध रह गया | जिस कागज़ पर इस घोषणा का प्रारुप तैयार लिया गया था और हस्ताक्षर हुए थे, उसकी स्याही अभी मुश्किल से ही सूखी होगी कि इसके केवल पांच दिन बाद ही एक प्रश्न के उत्तर में श्री एटली ने कहा कि राष्ट्रों के इस समूह के नाम में कोई परीवर्तन नहीं हुआ है |... "
एटली ने एक बार फिर इस तीनों अर्थात राष्ट्रमण्डल , ब्रिटिश राष्ट्रमण्डल तथा साम्राज्य का उल्लेख किया है |....
उन्होंने आगे कहा "... भारत को राष्ट्र मण्डल की आवश्यकता की अपेक्षा राष्ट्र मण्डल को भारत की आवश्यकता कहीं अधिक है | यदी इस मनोवैज्ञानिक तथ्य को ध्यान में रखा गया होता, तो बातचीत का शायद हम अधिक अच्छा परिणाम प्राप्त कर सकते थे | ....."
"... उत्साह ही है जिससे कि अंततोगत्वा अंतर पड़ता है | आज पराजयवाद की जिस भावना ने हमें जकड लिया है | उसका परित्याग करना होगा | यह दुर्बलता है , यह हमारे मन , मस्तिष्क तथा ह्रदय में बैठी कायरता है | मेरे विचार में आज जिस बात की आवश्यकता है , वह है कुरुक्षेत्र का युद्ध होने से पूर्व की वह मंत्रणा जो कि श्री कृष्ण ने अर्जुन को युद्ध भूमि में दी _
क्लैब्यं मा स्म गमः पार्थ नैतत्त्वय्युपपद्यते।
क्षुद्रं हृदयदौर्बल्यं त्यक्त्वोत्तिष्ठ परन्तप॥२- ३॥
..... इस श्लोक का सारांश प्रस्तुत करता हूँ | यहाँ श्री कृष्ण अर्जुन से कह रहे हैं कि वह दुर्वलता तथा कायरता के आगे न झुके | वह कहते हैं ' अर्जुन , यह तुम्हे शोभा नहीं देता | ह्रदय की यह दुर्वलता लज्जाजनक है | इसका इसी क्षण परित्याग करो | उठो और युद्ध करो || ' ..."
दामोदर स्वरूप सेठ (संयुक्त प्रान्त )
".... जिन परिस्थितियों में यह सभा निर्वाचित हुई थी उनसे मैं पूरी तरह परिचित हूँ | यह लगभग एक दलीय संस्था है तथा इससे आसानी से वह सब कुछ करवाया जा सकता है जो सत्ताधारी सरकार करवाना चाहे | परन्तु फिरभी मैं यह कहूंगा कि संविधान सभा द्वारा इस प्रश्न पर अंतिम निर्णय लिए बिना प्रधानमंत्री को राष्ट्रमंडल में बने रहने पर सहमत नहीं होना चाहिए था |..."
सेठ गोविन्द दास (मध्य प्रांत और बरार )
"..... मैं मानता हूँ कि जिस कामनवेल्थ में हम शामिल हुए हैं वह कामनवेल्थ अभी सच्चा कामनवेल्थ नहीं है | मैं जानता हूँ कि अफ्रीका में हमारे निवासियों की जो स्थिती है , वह हमारे लिए तो दुःख कि बात है ही पर अफ्रीका निवासियों के लिए वह लज्जा की बात होनी चाहिए | मैं यह मानता हूँ कि आस्ट्रेलिया की जो व्हाईट पालिसी , जो श्वेतांगी नीति है , वह भी कामनवेल्थ के लिए शोभाप्रद नहीं |..."
मौलाना हसरत मोहानी ( संयुक्त प्रान्त से मुस्लिम )
".....मैं किसी ऐसे पिशाच का स्वागत नहीं कर सकता जो गणराज्य भी हो और उपनिवेश भी ! यह प्रत्यक्षतः एक अनर्गल बात है |....."
"....मेरे मित्र तथा सहयोगी शरत बोस ने इस घोषणा के बारे में कहा है कि यह एक बहुत बड़ी धोकेबाजी है और मैं उनके इस मत से पूर्णतया सहमत हूँ | में उनसे एक कदम आगे बढ़ कर यह कहना चाहता हूँ कि यह न केवल भारतीय स्वतन्त्रता के प्रति धोकेबाजी है किन्तु एशिया के उन सभी देशों के प्रयत्नों के प्रति भी धोकेबाजी है जो स्वतंत्रता प्राप्ती के लिए सचेष्ट हैं |..... "
निष्कर्स :-
सभा में कांग्रेस का प्रचंड बहुमत था .., जवाहरलाल नेहरु प्रधानमन्त्री थे , सभा द्वारा उनके रखे प्रस्ताव को स्वीकार करना ही था , सो स्वीकार कर लिया गया मगर इसमें उन्हें पशीना आ गया था.., बाद में बहस के समापन में भी उन्होंने १० पेज का भाषण पढ़ कर यह कोशिश कि यह सब कुछ देश हित में है, मगर इसके परिणाम बहुत घातक हुए... आज तक जो यूरोपवाद भारत पर सवार है.., उसके मूल में यही पराजित मानसिकता है..!
प्रस्तुतकर्ता अरविन्द सिसोदिया,कोटा,
मंगलवार, 21 सितंबर 2010
स्वाभिमानी राष्ट्र गुलामी के कलंकों को बर्दाश्त नहीं करते : आर्नोल्ड टॉयन्बी
आर्नोल्ड टॉयन्बी आधुनिक युग के सर्वश्रेष्ठ इतिहासकार माने जाते हैं। सन 1960 में श्री टॉयन्बी ‘एक व्याख्यानमाला’ में बोलने के लिए दिल्ली आये। ‘भारत और एक विश्व’ विषय पर उनके तीन भाषण हुए। ‘नेशनल बुक ट्रस्ट’ ने ये तीनों भाषण एक पुस्तक के रूप में प्रकाशित किये हैं। श्री टॉयन्बी ने अपने भाषण में पोलैंड का एक उदाहरण दिया कि किस प्रकार पोलैंड ने स्वतंत्र होते ही रूसियों द्वारा बनवाया गया चर्च ध्वस्त कर दिया। श्री टॉयन्बी के शब्दों में,
”सन् 1914-15 में रूसियों ने पोलैंड की राजधानी वार्सा को जीत लिया तो उन्होंने शहर के मुख्य चौक में एक चर्च बनवाया। रूसियों ने यह पोलैंडवासियों को निरन्तर याद करवाने के लिए बनवाया कि पोलैंड में रूस का शासन है। जब पोलैंड 1918 में आजाद हुआ तो पोलैंडवासियों ने पहला काम उस चर्च को ध्वस्त करने का किया, हालांकि नष्ट करने वाले सभी लोग ईसाई मत को मानने वाले ही थे। मैं जब पोलैंड पहुंचा तो चर्च ध्वस्त करने का काम समाप्त हुआ ही था। मैं एक चर्च को ध्वस्त करने के लिए पोलैंड को दोषी नहीं मानता क्योंकि रूस ने वह चर्च राजनीतिक कारणों से बनवाया था। उनका मन्तव्य पोल लोगों का अपमान करना था।‘’
उसी भाषण में श्री टॉयन्बी ने आगे कहा कि, ‘इसी सिलसिले में मैं काशी और मथुरा की मस्जिदों का जिक्र करना चाहूंगा। औरंगजेब ने अपने दुश्मनों को अपमानित करने के लिए जान-बूझकर इन मंदिरों को मस्जिदों में बदल डाला, उसी दुर्भावना के कारण जिसके कारण कि रूसियों ने वार्सा में चर्च बनाया था। इन मस्जिदों का उद्देश्य यह सिद्ध करना था कि हिन्दुओं के पवित्रतम स्थानों पर भी मुसलमानों की हुकूमत चलती है।”
श्री टॉयन्बी के अनुसार पोलिश लोगों ने समझदारी का काम किया क्योंकि चर्च ध्वस्त करने से रूस और पोलैंड के बीच की शत्रुता की भावना समाप्त हो गई। वह चर्च पोल लोगों को रूस के आक्रमण की याद दिलाता रहता था। आर्नोल्ड टॉयन्बी ने इस बात पर खेद प्रकट किया कि हिन्दुस्थान के लोग हिन्दू और मुस्लिमों में तनाव की जड़ इन मस्जिदों को हटा नहीं रहे हैं। उन्होंने यह कह कर अपनी बात समाप्त की कि, ‘’भारत की इस सहिष्णुता से मैं स्तभ्भित हूं साथ इससे मुझे अपार पीड़ा भी हुई है।‘’
नास्तिक रूसियों ने मूर्तियां स्थापित कीं
यह उन दिनों की घटना है जब रूस में साम्यवाद अपने उफान पर था। सन 1968 में भारत के सांसदों का एक प्रतिनिधिमंडल लोकसभा के तत्कालीन अध्यक्ष नीलम संजीव रेड्डी के नेतृत्व में रूस गया। रूसी दौरे के समय सांसदों को लेनिनग्राद शहर का एक महल दिखाने भी ले जाया गया। वह रूस के ‘जार’ (राजा) का सर्दियों में रहने के लिए बनवाया गया महल था। महल को देखते समय संसद सदस्यों के ध्यान में आया कि पूरा महल तो पुराना लगता था किन्तु कुछ मूर्तियां नई दिखाई देती थीं। पूछताछ करने पर पता लगा कि वे मूर्तियां ग्रीक देवी-देवताओं की हैं। सांसदों में प्रसिद्ध विचारक तथा भारतीय मजदूर संघ के संस्थापक श्री दत्तोपंत ठेंगड़ी भी थे। उन्होंने सवाल किया कि, ‘आप तो धर्म और भगवान के खिलाफ हैं, फिर आपकी सरकार ने देवी-देवताओं की मूर्तियों को फिर से बनाकर यहां क्यों रखा है?’ इस पर साथ चल रहे रूसी अधिकारी ने उत्तर दिया, ‘इसमें कोई शक नहीं कि हम घोर नास्तिक हैं किन्तु महायुद्ध के दौरान जब हिटलर की सेनाएं लेनिनग्राद पर पहुंच गई तो वहां हम लोगों ने उनसे जमकर संघार्ष किया। इस कारण जर्मन लोग चिढ़ गये और हमारा अपमान करने के लिए उन्होंने यहां की देवी-देवताओं की प्राचीन मूर्तियां तोड़ दी। इसके पीछे यही भाव था कि रूस का राष्ट्रीय अपमान किया जाये। हमारी दृष्टि में हमें ही नीचा दिखाया जाये। इस कारण हमने भी प्रणा किया कि महायुद्ध में हमारी विजय होने के पश्चात् राष्ट्रीय सम्मान की पुनर्स्थापना करने के लिए हम इन देवताओं की मूर्तियां फिर से स्थापित करेंगे।
रूसी अधिकारी ने आगे कहा कि, ‘हम तो नास्तिक हैं ही किन्तु मूर्ति भंजन का काम हमारा अपमान करने के लिए किया गया था और इसलिए इस राष्ट्रीय अपमान को धो डालने के लिए हमने इन मूर्तियों का पुनर्निर्माण किया।‘
ये मूर्तियां आज भी जार के ‘विन्टर पैलेस’ में रखी हैं और सैलानियों के मन में कौतुहल जगाती हैं।
दक्षिण कोरिया की कैपिटल बिल्डिंग
दक्षिण कोरिया अनेक वर्षों तक जापान के कब्जे में रहा है। जापानी सत्ताधारियों ने अपनी शासन सुविधा के लिए राजधानी सिओल के बीचों-बीच एक भव्य इमारत बनाई और उसका नाम ‘कैपिटल बिल्डिंग’ रखा। इस समय इस भवन में कोरिया का राष्ट्रीय संग्रहालय है। इस संग्रहालय में अनेक प्राचीन वस्तुओं के साथ जापानियों के अत्याचारों के भी चित्रा हैं।
वर्ष 1995 में दक्षिण कोरिया को आजाद हुए पचास वर्ष पूरे हो रहे हैं। अत: वहां की सरकार आजादी का स्वर्ण जयंती वर्ष’ धूमधाम से मनाने की तैयारी कर रही है। इस स्वतंत्राता प्राप्ति की स्वर्णा जयंती महोत्सव का एक प्रमुख कार्यक्रम होगा ‘कैपिटल बिल्डिंग’ को ध्वस्त करना। दक्षिण कोरिया की सरकार ने इस विशाल भवन को गिराने का निर्णय ले लिया है। इसमें स्थित संग्रहालय को नये बन रहे दूसरे भवन में ले जाया जायेगा। इस पूरी कार्रवाई में 1200 करोड़ रुपये खर्च होंगे।
यह समाचार 2 मार्च 1995 को बी.बी.सी. पर प्रसारित हुआ था। कार्यक्रम में ‘कैपिटल बिल्डिंग’ को भी दिखाया गया। इस भवन में स्थित ‘राष्ट्रीय वस्तु संग्रहालय’ के संचालक से बीबीसी संवाददाता की बातचीत भी दिखाई गई। जब उनसे इस इमारत को नष्ट करने का कारण पूछा गया तो संचालक महोदय ने बताया कि, ‘इस इमारत को देखते ही हमें जापान द्वारा हम पर लादी गई गुलामी की याद आ जाती है। इसको गिराने से जापान और दक्षिण कोरिया के बीच सम्बंधों का नया दौर शुरु हो सकेगा। इसके पीछे बना हमारे राजा का महल लोगों की नजरों से ओझल रहे यही इसको बनाने का उद्देश्य था और इसी कारण हम इसको गिराने जा रहे हैं।‘
दक्षिण कोरिया की जनता ने भी सरकार के इस निर्णय का उत्साहपूर्वक स्वागत किया। (यह भवन उसी वर्ष ध्वस्त कर दिया गया।)
पांच सौ साल पुराने गुलामी के निशान मिटाये कुछ वर्ष पहले तक युगोस्लाविया एक राज्य था जिसके अन्तर्गत कई राष्ट्र थे। साम्यवाद के समाप्त होते ही ये सभी राष्ट्र स्वतंत्र हो गये तथा सर्बिया, क्रोशिया, मान्टेनेग्रो, बोस्निया हर्जेगोविना आदि अलग-अलग नाम से देश बन गये। बोस्निया में अभी भी काफी संख्या में सर्ब लोग हैं। ऐसे क्षेत्रों में जहां सर्ब काफी संख्या में हैं, इस समय (सन् 1995) सर्बियाई तथा बोस्निया की सेना में युद्ध चल रहा है। इस साल के शुरु में सर्ब सैनिकों ने बोस्निया के कब्जे वाला एक नगर ‘इर्वोनिक’ अपने अधिकार में ले लिया।
इर्वोनिक की एक लाख की आबादी में आधे सर्ब हैं और शेष मुसलमान। सर्ब फौजों के कब्जे के बाद मुसलमान इस शहर से भाग गये तथा बोस्निया के ईसाई यहां आ गये। ब्रंकों ग्रूजिक नाम के एक सर्ब नागरिक को शहर का महापौर भी बना दिया गया। महापौर ने सबसे पहले यह काम किया कि नगर के बाहर बहने वाली ड्रिना नदी के किनारे बनी एक टेकड़ी पर एक ‘क्रास’ लगा दिया। महापौर ने बताया कि, ‘इस स्थान पर हमारा चर्च था जिसे तुर्की के लोगों ने सन् 1463 में ध्वस्त कर डाला था। अब हम उस चर्च को इसी स्थान पर पुन: नये सिरे से खड़ा करेंगे।‘ श्री ग्रूजिक ने यह भी कहा कि तुर्कों की चार सौ साल की सत्ता में उनके द्वारा खड़े किये गये सारे प्रतीक मिटाये जाएंगे। उसी टेकड़ी पर पुराने तुर्क साम्राज्य के रूप में एक मीनार खड़ी थी उसे सर्बों ने ध्वस्त कर दिया। टेकड़ी के नीचे ‘रिजे कॅन्स्का’ नाम की एक मस्जिद को भी बुलडोजर चलाकर मटियामेट कर दिया गया।
यह विस्तृत समाचार अमरीकी समाचार पत्र हेरल्ड ट्रिब्युन में 8 मार्च 1995 को छपा। समाचार लाने वाला संवाददाता लिखता है कि उस टेकड़ी पर पांच सौ साल पहले नष्ट किये गये चर्च की एक घंटी पड़ी हुई थी। महापौर ने अस्थायी क्रॉस पर घंटी टांककर उसको बजाया। घंटी गुंजायमान होने के बाद महापौर ने कहा कि, ‘मैं परमेश्वर से प्रार्थना करता हूं कि वह क्लिंटन (अमरीकी राष्ट्रपति) को थोड़ी अक्ल दे ताकि वह मुसलमानों का साथ छोड़कर उसके सच्चे मित्र ईसाइयों का साथ दे।
सोमनाथ का कलंक मिटाया गया
भारत में जब तक सत्ता की भूख नेताओं के सर पर सवार नहीं हुई थी, गुलामी के प्रतीकों को मिटाने का प्रयत्न किया गया। नागपुर के विधानसभा भवन के सामने लगी रानी विक्टोरिया की संगमरमर की मूर्ति आजादी के बाद हटा दी गई। मुम्बई के काला घोड़ा स्थान पर घोड़े पर सवार इंग्लैंड के राजा की प्रतिमा हटाई गई। विक्टोरिया, एंडवर्ड और जार्ज पंचम से जुड़े अस्पताल, भवन, सड़कों आदि तक के नाम बदले गये। लेकिन जब सत्ता का स्वार्थ और चाहे जैसे हो सत्ता में बने रहने की अंधी लालसा जगी तो दिल्ली की सड़कों के नाम अकबर, जहांगीर, शाहजहां तथा औरंगजेब रोड तक रख दिये गये।
भारत के आजाद होते ही सरदार पटेल ने सोमनाथ का जीर्णोद्धार कराया। उस स्थान पर बनी मस्जिदों व मजारों को ध्वस्त कर भव्य मंदिर का निर्माण कराया गया। मंदिर की प्राण-प्रतिष्ठा के समारोह में सेकुलरवादी पं. नेहरु के विरोध के बावजूद तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद सम्मिलित हुए। उस समय किसी ने मुस्लिम भावनाओं की या मस्जिदें नष्ट न करने की बात नहीं उठाई। इसलिए कि उस समय सरदार पटेल जैसे राष्ट्रवादी नेता थे और देश की जनता में भी आजाद के आंदोलन का कुछ जोश बाकी था। (पाथेय कण)
”सन् 1914-15 में रूसियों ने पोलैंड की राजधानी वार्सा को जीत लिया तो उन्होंने शहर के मुख्य चौक में एक चर्च बनवाया। रूसियों ने यह पोलैंडवासियों को निरन्तर याद करवाने के लिए बनवाया कि पोलैंड में रूस का शासन है। जब पोलैंड 1918 में आजाद हुआ तो पोलैंडवासियों ने पहला काम उस चर्च को ध्वस्त करने का किया, हालांकि नष्ट करने वाले सभी लोग ईसाई मत को मानने वाले ही थे। मैं जब पोलैंड पहुंचा तो चर्च ध्वस्त करने का काम समाप्त हुआ ही था। मैं एक चर्च को ध्वस्त करने के लिए पोलैंड को दोषी नहीं मानता क्योंकि रूस ने वह चर्च राजनीतिक कारणों से बनवाया था। उनका मन्तव्य पोल लोगों का अपमान करना था।‘’
उसी भाषण में श्री टॉयन्बी ने आगे कहा कि, ‘इसी सिलसिले में मैं काशी और मथुरा की मस्जिदों का जिक्र करना चाहूंगा। औरंगजेब ने अपने दुश्मनों को अपमानित करने के लिए जान-बूझकर इन मंदिरों को मस्जिदों में बदल डाला, उसी दुर्भावना के कारण जिसके कारण कि रूसियों ने वार्सा में चर्च बनाया था। इन मस्जिदों का उद्देश्य यह सिद्ध करना था कि हिन्दुओं के पवित्रतम स्थानों पर भी मुसलमानों की हुकूमत चलती है।”
श्री टॉयन्बी के अनुसार पोलिश लोगों ने समझदारी का काम किया क्योंकि चर्च ध्वस्त करने से रूस और पोलैंड के बीच की शत्रुता की भावना समाप्त हो गई। वह चर्च पोल लोगों को रूस के आक्रमण की याद दिलाता रहता था। आर्नोल्ड टॉयन्बी ने इस बात पर खेद प्रकट किया कि हिन्दुस्थान के लोग हिन्दू और मुस्लिमों में तनाव की जड़ इन मस्जिदों को हटा नहीं रहे हैं। उन्होंने यह कह कर अपनी बात समाप्त की कि, ‘’भारत की इस सहिष्णुता से मैं स्तभ्भित हूं साथ इससे मुझे अपार पीड़ा भी हुई है।‘’
नास्तिक रूसियों ने मूर्तियां स्थापित कीं
यह उन दिनों की घटना है जब रूस में साम्यवाद अपने उफान पर था। सन 1968 में भारत के सांसदों का एक प्रतिनिधिमंडल लोकसभा के तत्कालीन अध्यक्ष नीलम संजीव रेड्डी के नेतृत्व में रूस गया। रूसी दौरे के समय सांसदों को लेनिनग्राद शहर का एक महल दिखाने भी ले जाया गया। वह रूस के ‘जार’ (राजा) का सर्दियों में रहने के लिए बनवाया गया महल था। महल को देखते समय संसद सदस्यों के ध्यान में आया कि पूरा महल तो पुराना लगता था किन्तु कुछ मूर्तियां नई दिखाई देती थीं। पूछताछ करने पर पता लगा कि वे मूर्तियां ग्रीक देवी-देवताओं की हैं। सांसदों में प्रसिद्ध विचारक तथा भारतीय मजदूर संघ के संस्थापक श्री दत्तोपंत ठेंगड़ी भी थे। उन्होंने सवाल किया कि, ‘आप तो धर्म और भगवान के खिलाफ हैं, फिर आपकी सरकार ने देवी-देवताओं की मूर्तियों को फिर से बनाकर यहां क्यों रखा है?’ इस पर साथ चल रहे रूसी अधिकारी ने उत्तर दिया, ‘इसमें कोई शक नहीं कि हम घोर नास्तिक हैं किन्तु महायुद्ध के दौरान जब हिटलर की सेनाएं लेनिनग्राद पर पहुंच गई तो वहां हम लोगों ने उनसे जमकर संघार्ष किया। इस कारण जर्मन लोग चिढ़ गये और हमारा अपमान करने के लिए उन्होंने यहां की देवी-देवताओं की प्राचीन मूर्तियां तोड़ दी। इसके पीछे यही भाव था कि रूस का राष्ट्रीय अपमान किया जाये। हमारी दृष्टि में हमें ही नीचा दिखाया जाये। इस कारण हमने भी प्रणा किया कि महायुद्ध में हमारी विजय होने के पश्चात् राष्ट्रीय सम्मान की पुनर्स्थापना करने के लिए हम इन देवताओं की मूर्तियां फिर से स्थापित करेंगे।
रूसी अधिकारी ने आगे कहा कि, ‘हम तो नास्तिक हैं ही किन्तु मूर्ति भंजन का काम हमारा अपमान करने के लिए किया गया था और इसलिए इस राष्ट्रीय अपमान को धो डालने के लिए हमने इन मूर्तियों का पुनर्निर्माण किया।‘
ये मूर्तियां आज भी जार के ‘विन्टर पैलेस’ में रखी हैं और सैलानियों के मन में कौतुहल जगाती हैं।
दक्षिण कोरिया की कैपिटल बिल्डिंग
दक्षिण कोरिया अनेक वर्षों तक जापान के कब्जे में रहा है। जापानी सत्ताधारियों ने अपनी शासन सुविधा के लिए राजधानी सिओल के बीचों-बीच एक भव्य इमारत बनाई और उसका नाम ‘कैपिटल बिल्डिंग’ रखा। इस समय इस भवन में कोरिया का राष्ट्रीय संग्रहालय है। इस संग्रहालय में अनेक प्राचीन वस्तुओं के साथ जापानियों के अत्याचारों के भी चित्रा हैं।
वर्ष 1995 में दक्षिण कोरिया को आजाद हुए पचास वर्ष पूरे हो रहे हैं। अत: वहां की सरकार आजादी का स्वर्ण जयंती वर्ष’ धूमधाम से मनाने की तैयारी कर रही है। इस स्वतंत्राता प्राप्ति की स्वर्णा जयंती महोत्सव का एक प्रमुख कार्यक्रम होगा ‘कैपिटल बिल्डिंग’ को ध्वस्त करना। दक्षिण कोरिया की सरकार ने इस विशाल भवन को गिराने का निर्णय ले लिया है। इसमें स्थित संग्रहालय को नये बन रहे दूसरे भवन में ले जाया जायेगा। इस पूरी कार्रवाई में 1200 करोड़ रुपये खर्च होंगे।
यह समाचार 2 मार्च 1995 को बी.बी.सी. पर प्रसारित हुआ था। कार्यक्रम में ‘कैपिटल बिल्डिंग’ को भी दिखाया गया। इस भवन में स्थित ‘राष्ट्रीय वस्तु संग्रहालय’ के संचालक से बीबीसी संवाददाता की बातचीत भी दिखाई गई। जब उनसे इस इमारत को नष्ट करने का कारण पूछा गया तो संचालक महोदय ने बताया कि, ‘इस इमारत को देखते ही हमें जापान द्वारा हम पर लादी गई गुलामी की याद आ जाती है। इसको गिराने से जापान और दक्षिण कोरिया के बीच सम्बंधों का नया दौर शुरु हो सकेगा। इसके पीछे बना हमारे राजा का महल लोगों की नजरों से ओझल रहे यही इसको बनाने का उद्देश्य था और इसी कारण हम इसको गिराने जा रहे हैं।‘
दक्षिण कोरिया की जनता ने भी सरकार के इस निर्णय का उत्साहपूर्वक स्वागत किया। (यह भवन उसी वर्ष ध्वस्त कर दिया गया।)
पांच सौ साल पुराने गुलामी के निशान मिटाये कुछ वर्ष पहले तक युगोस्लाविया एक राज्य था जिसके अन्तर्गत कई राष्ट्र थे। साम्यवाद के समाप्त होते ही ये सभी राष्ट्र स्वतंत्र हो गये तथा सर्बिया, क्रोशिया, मान्टेनेग्रो, बोस्निया हर्जेगोविना आदि अलग-अलग नाम से देश बन गये। बोस्निया में अभी भी काफी संख्या में सर्ब लोग हैं। ऐसे क्षेत्रों में जहां सर्ब काफी संख्या में हैं, इस समय (सन् 1995) सर्बियाई तथा बोस्निया की सेना में युद्ध चल रहा है। इस साल के शुरु में सर्ब सैनिकों ने बोस्निया के कब्जे वाला एक नगर ‘इर्वोनिक’ अपने अधिकार में ले लिया।
इर्वोनिक की एक लाख की आबादी में आधे सर्ब हैं और शेष मुसलमान। सर्ब फौजों के कब्जे के बाद मुसलमान इस शहर से भाग गये तथा बोस्निया के ईसाई यहां आ गये। ब्रंकों ग्रूजिक नाम के एक सर्ब नागरिक को शहर का महापौर भी बना दिया गया। महापौर ने सबसे पहले यह काम किया कि नगर के बाहर बहने वाली ड्रिना नदी के किनारे बनी एक टेकड़ी पर एक ‘क्रास’ लगा दिया। महापौर ने बताया कि, ‘इस स्थान पर हमारा चर्च था जिसे तुर्की के लोगों ने सन् 1463 में ध्वस्त कर डाला था। अब हम उस चर्च को इसी स्थान पर पुन: नये सिरे से खड़ा करेंगे।‘ श्री ग्रूजिक ने यह भी कहा कि तुर्कों की चार सौ साल की सत्ता में उनके द्वारा खड़े किये गये सारे प्रतीक मिटाये जाएंगे। उसी टेकड़ी पर पुराने तुर्क साम्राज्य के रूप में एक मीनार खड़ी थी उसे सर्बों ने ध्वस्त कर दिया। टेकड़ी के नीचे ‘रिजे कॅन्स्का’ नाम की एक मस्जिद को भी बुलडोजर चलाकर मटियामेट कर दिया गया।
यह विस्तृत समाचार अमरीकी समाचार पत्र हेरल्ड ट्रिब्युन में 8 मार्च 1995 को छपा। समाचार लाने वाला संवाददाता लिखता है कि उस टेकड़ी पर पांच सौ साल पहले नष्ट किये गये चर्च की एक घंटी पड़ी हुई थी। महापौर ने अस्थायी क्रॉस पर घंटी टांककर उसको बजाया। घंटी गुंजायमान होने के बाद महापौर ने कहा कि, ‘मैं परमेश्वर से प्रार्थना करता हूं कि वह क्लिंटन (अमरीकी राष्ट्रपति) को थोड़ी अक्ल दे ताकि वह मुसलमानों का साथ छोड़कर उसके सच्चे मित्र ईसाइयों का साथ दे।
सोमनाथ का कलंक मिटाया गया
भारत में जब तक सत्ता की भूख नेताओं के सर पर सवार नहीं हुई थी, गुलामी के प्रतीकों को मिटाने का प्रयत्न किया गया। नागपुर के विधानसभा भवन के सामने लगी रानी विक्टोरिया की संगमरमर की मूर्ति आजादी के बाद हटा दी गई। मुम्बई के काला घोड़ा स्थान पर घोड़े पर सवार इंग्लैंड के राजा की प्रतिमा हटाई गई। विक्टोरिया, एंडवर्ड और जार्ज पंचम से जुड़े अस्पताल, भवन, सड़कों आदि तक के नाम बदले गये। लेकिन जब सत्ता का स्वार्थ और चाहे जैसे हो सत्ता में बने रहने की अंधी लालसा जगी तो दिल्ली की सड़कों के नाम अकबर, जहांगीर, शाहजहां तथा औरंगजेब रोड तक रख दिये गये।
भारत के आजाद होते ही सरदार पटेल ने सोमनाथ का जीर्णोद्धार कराया। उस स्थान पर बनी मस्जिदों व मजारों को ध्वस्त कर भव्य मंदिर का निर्माण कराया गया। मंदिर की प्राण-प्रतिष्ठा के समारोह में सेकुलरवादी पं. नेहरु के विरोध के बावजूद तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद सम्मिलित हुए। उस समय किसी ने मुस्लिम भावनाओं की या मस्जिदें नष्ट न करने की बात नहीं उठाई। इसलिए कि उस समय सरदार पटेल जैसे राष्ट्रवादी नेता थे और देश की जनता में भी आजाद के आंदोलन का कुछ जोश बाकी था। (पाथेय कण)
इस्लाम और जापान के बारे मे क्या यह सच है ?
क्या आपने कभी यह समाचार पढ़ा कि किसी मुस्लिम राष्ट्र का कोई प्रधानमंत्री या बड़ा नेता तोकियो की यात्रा पर गया हो?
क्या आपने कभी किसी अखबार में यह भी पढ़ा कि ईरान अथवा सऊदी अरब के राजा ने जापान की यात्रा की हो?
कारण·
जापान में अब किसी भी मुसलमान को स्थायी रूप से रहने की इजाजत नहीं दी जाती है।·
जापान में इस्लाम के प्रचार-प्रसार पर कड़ा प्रतिबंध है।·
जापान के विश्वविद्यालयों में अरबी या अन्य इस्लामी राष्ट्रों की भाषाएं नहीं पढ़ायी जातीं।·
जापान में अरबी भाषा में प्रकाशित कुरान आयात नहीं की जा सकती है।
इस्लाम से दूरी·
सरकारी आंकड़ों के अनुसार, जापान में केवल दो लाख मुसलमान हैं। और ये भी वही हैं जिन्हें जापान सरकार ने नागरिकता प्रदान की है।·
सभी मुस्लिम नागरिक जापानी बोलते हैं और जापानी भाषा में ही अपने सभी मजहबी व्यवहार करते हैं।·
जापान विश्व का ऐसा देश है जहां मुस्लिम देशों के दूतावास न के बराबर हैं।·
जापानी इस्लाम के प्रति कोई रुचि नहीं रखते हैं।·
आज वहां जितने भी मुसलमान हैं वे ज्यादातर विदेशी कम्पनियों के कर्मचारी ही हैं।·
परन्तु आज कोई बाहरी कम्पनी अपने यहां से मुसलमान डाक्टर, इंजीनियर या प्रबंधक आदि को वहां भेजती है तो जापान सरकार उन्हें जापान में प्रवेश की अनुमति नहीं देती है।
अधिकतर जापानी कम्पनियों ने अपने नियमों में यह स्पष्ट लिख दिया है कि कोई भी मुसलमान उनके यहां नौकरी के लिए आवेदन न करे।·
जापान सरकार यह मानती है कि मुसलमान कट्टरवाद के पर्याय हैं इसलिए आज के इस वैश्विक दौर में भी वे अपने पुराने नियम नहीं बदलना चाहते हैं।·
जापान में किराए पर किसी मुस्लिम को घर मिलेगा, इसकी तो कल्पना भी नहीं की जा सकती है।
यदि किसी जापानी को उसके पड़ोस के मकान में अमुक मुस्लिम के किराये पर रहने की खबर मिले तो सारा मोहल्ला सतर्क हो जाता है।·
जापान में कोई इस्लामी या अरबी मदरसा नहीं खोल सकता है।
मतांतरण पर रोक·
जापान में मतान्तरण पर सख्त पाबंदी है।·
किसी जापानी ने अपना पंथ किसी कारणवश बदल लिया है तो उसे और साथ ही मतान्तरण कराने वाले को सख्त सजा दी जाती है।·
यदि किसी विदेशी ने यह हरकत की होती है उसे सरकार कुछ ही घंटों में जापान छोड़कर चले जाने का सख्त आदेश देती है।·
यहां तक कि जिन ईसाई मिशनरियों का हर जगह असर है, वे जापान में दिखाई नहीं देतीं।
वेटिकन के पोप को दो बातों का बड़ा अफसोस होता है। एक तो यह कि वे 20वीं शताब्दी समाप्त होने के बावजूद भारत को यूनान की तरह ईसाई देश नहीं बना सके। दूसरा यह कि जापान में ईसाइयों की संख्या में वृध्दि नहीं हो सकी।
·जापानी चंद सिक्कों के लालच में अपने पंथ का सौदा नहीं करते। बड़ी से बड़ी सुविधा का लालच दिया जाए तब भी वे अपने पंथ के साथ धोखा नहीं करते हैं।·
जापान में 'पर्सनल ला' जैसा कोई शगूफा नहीं है। यदि कोई जापानी महिला किसी मुस्लिम से विवाह कर लेती है तो उसका सामाजिक बहिष्कार कर दिया जाता है। जापानियों को इसकी तनिक भी चिंता नहीं है कि कोई उनके बारे में क्या सोचता है। तोकियो विश्वविद्यालय के विदेशी अध्ययन विभाग के अध्यक्ष कोमिको यागी के अनुसार, इस्लाम के प्रति जापान में हमेशा यही मान्यता रही है कि वह एक संकीर्ण सोच का मजहब है। उसमें समन्वय की गुंजाइश नहीं है।
स्वतंत्र पत्रकार मोहम्मद जुबेर ने 9/11 की घटना के पश्चात अनेक देशों की यात्रा की थी। वह जापान भी गए, लेकिन वहां जाकर उन्होंने देखा कि जापानियों को इस बात पर पूरा भरोसा है कि कोई आतंकवादी उनके यहां पर भी नहीं मार सकता।
सन्दर्भ·
जापान सम्बंधी इस चौंका देने वाली जानकारी के स्रोत हैं शरणार्थी मामले देखने वाली संस्था 'सॉलीडेरिटी नेटवर्क' के महासचिव जनरल मनामी यातु।
मुजफ्फर हुसैन द्वारा लिखित लेख के कुछ मुख्य बिन्दु जो कि पांचजन्य, के 30 मई, 2010 के अंक से लिए गए हैं।
क्या आपने कभी किसी अखबार में यह भी पढ़ा कि ईरान अथवा सऊदी अरब के राजा ने जापान की यात्रा की हो?
कारण·
जापान में अब किसी भी मुसलमान को स्थायी रूप से रहने की इजाजत नहीं दी जाती है।·
जापान में इस्लाम के प्रचार-प्रसार पर कड़ा प्रतिबंध है।·
जापान के विश्वविद्यालयों में अरबी या अन्य इस्लामी राष्ट्रों की भाषाएं नहीं पढ़ायी जातीं।·
जापान में अरबी भाषा में प्रकाशित कुरान आयात नहीं की जा सकती है।
इस्लाम से दूरी·
सरकारी आंकड़ों के अनुसार, जापान में केवल दो लाख मुसलमान हैं। और ये भी वही हैं जिन्हें जापान सरकार ने नागरिकता प्रदान की है।·
सभी मुस्लिम नागरिक जापानी बोलते हैं और जापानी भाषा में ही अपने सभी मजहबी व्यवहार करते हैं।·
जापान विश्व का ऐसा देश है जहां मुस्लिम देशों के दूतावास न के बराबर हैं।·
जापानी इस्लाम के प्रति कोई रुचि नहीं रखते हैं।·
आज वहां जितने भी मुसलमान हैं वे ज्यादातर विदेशी कम्पनियों के कर्मचारी ही हैं।·
परन्तु आज कोई बाहरी कम्पनी अपने यहां से मुसलमान डाक्टर, इंजीनियर या प्रबंधक आदि को वहां भेजती है तो जापान सरकार उन्हें जापान में प्रवेश की अनुमति नहीं देती है।
अधिकतर जापानी कम्पनियों ने अपने नियमों में यह स्पष्ट लिख दिया है कि कोई भी मुसलमान उनके यहां नौकरी के लिए आवेदन न करे।·
जापान सरकार यह मानती है कि मुसलमान कट्टरवाद के पर्याय हैं इसलिए आज के इस वैश्विक दौर में भी वे अपने पुराने नियम नहीं बदलना चाहते हैं।·
जापान में किराए पर किसी मुस्लिम को घर मिलेगा, इसकी तो कल्पना भी नहीं की जा सकती है।
यदि किसी जापानी को उसके पड़ोस के मकान में अमुक मुस्लिम के किराये पर रहने की खबर मिले तो सारा मोहल्ला सतर्क हो जाता है।·
जापान में कोई इस्लामी या अरबी मदरसा नहीं खोल सकता है।
मतांतरण पर रोक·
जापान में मतान्तरण पर सख्त पाबंदी है।·
किसी जापानी ने अपना पंथ किसी कारणवश बदल लिया है तो उसे और साथ ही मतान्तरण कराने वाले को सख्त सजा दी जाती है।·
यदि किसी विदेशी ने यह हरकत की होती है उसे सरकार कुछ ही घंटों में जापान छोड़कर चले जाने का सख्त आदेश देती है।·
यहां तक कि जिन ईसाई मिशनरियों का हर जगह असर है, वे जापान में दिखाई नहीं देतीं।
वेटिकन के पोप को दो बातों का बड़ा अफसोस होता है। एक तो यह कि वे 20वीं शताब्दी समाप्त होने के बावजूद भारत को यूनान की तरह ईसाई देश नहीं बना सके। दूसरा यह कि जापान में ईसाइयों की संख्या में वृध्दि नहीं हो सकी।
·जापानी चंद सिक्कों के लालच में अपने पंथ का सौदा नहीं करते। बड़ी से बड़ी सुविधा का लालच दिया जाए तब भी वे अपने पंथ के साथ धोखा नहीं करते हैं।·
जापान में 'पर्सनल ला' जैसा कोई शगूफा नहीं है। यदि कोई जापानी महिला किसी मुस्लिम से विवाह कर लेती है तो उसका सामाजिक बहिष्कार कर दिया जाता है। जापानियों को इसकी तनिक भी चिंता नहीं है कि कोई उनके बारे में क्या सोचता है। तोकियो विश्वविद्यालय के विदेशी अध्ययन विभाग के अध्यक्ष कोमिको यागी के अनुसार, इस्लाम के प्रति जापान में हमेशा यही मान्यता रही है कि वह एक संकीर्ण सोच का मजहब है। उसमें समन्वय की गुंजाइश नहीं है।
स्वतंत्र पत्रकार मोहम्मद जुबेर ने 9/11 की घटना के पश्चात अनेक देशों की यात्रा की थी। वह जापान भी गए, लेकिन वहां जाकर उन्होंने देखा कि जापानियों को इस बात पर पूरा भरोसा है कि कोई आतंकवादी उनके यहां पर भी नहीं मार सकता।
सन्दर्भ·
जापान सम्बंधी इस चौंका देने वाली जानकारी के स्रोत हैं शरणार्थी मामले देखने वाली संस्था 'सॉलीडेरिटी नेटवर्क' के महासचिव जनरल मनामी यातु।
मुजफ्फर हुसैन द्वारा लिखित लेख के कुछ मुख्य बिन्दु जो कि पांचजन्य, के 30 मई, 2010 के अंक से लिए गए हैं।
शुक्रवार, 17 सितंबर 2010
इंडियन मीडिया सेंटर की बैठक में मीडिया में भारतीय मूल्यों तलाश
प्रेस कौंसिल की जगह नई मीडिया कौंसिल बनाने की वकालत
भोपाल। भौतिकता से दग्ध मानवता को शांति और दिशा देने का काम भारतीय मूल्य और दर्शन ही करेंगे। भारतीय मूल्यों और राष्ट्रीय भावना को संरक्षित करने और प्रसारित करने की जिम्मेदारी मीडिया को निभानी होगी। आज भारतीय मूल्यों और परंंपराओं को तोड़ने का प्रयास किया जा रहा है। मीडिया भी इसमें शामिल है। मीडिया को मर्यादित होना होगा। मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चैहान ने इंडियन मीडिया सेंटर की बैठक में समापन उद्बोधन देते हुए ये बातें कही। श्री चैहान ने आजादी के पूर्व और बाद के मीडिया की सकारात्मक और संर्घषशील भूमिका की चर्चा करते हुए कहा कि आज मीडिया व्यावसायिक हो रहा है जिसके कारण वह संकट के दौर से गुजर रहा है। श्री चौहान ने पेड न्यूज की चर्चा करते हुए इसे समाज के लिए जहर के समान बताया। उन्होंने कहा कि देश तब मजबूत होगा जब नागरिक राष्ट्रीय भावना से ओतप्रोत होंगे। मीडिया को समाज में राष्ट्रीयता की भावना जागृत करने का कार्य करना चाहिए।
मीडिया के बाजारीकरण और व्यापारीकरण से सभी परेशान हैं - क्या नेता और क्या पत्रकार! पेड न्यूज के रोग ने पत्रकारिता ही नही, बल्कि तो समूची मीडिया को ही बदनाम कर दिया है। लेकिन इन सब के बीच एक शुभ लक्षण भी दिख रहे हैंं। जिन हाथों की उंगलियां दूसरों की ओर उठती थी, अब अपनी ओर उठी उंगलियों को भी देखने लगी हैं। मीडिया और पत्रकारों के बीच भी आत्मनिरीक्षण व आत्मावलोकन का दौर शुरु हो गया है। भोपाल में इंडियन मीडिया सेंटर की गवर्निंग बोर्ड की दो दिवसीय बैठक में यही सब कुछ हुआ।
आईएमसी की संगठनात्मक बैठक के बहाने आयोजकों, देशभर के प्रतिनिधि पत्रकारों और मीडिया से जुड़े विशेषज्ञों ने मीडिया की चुनौतियों से लेकर पत्रकारों के हितों से जुड़े सवालों पद गंभीर चर्चा की। उद्घाटन सत्र में मध्यप्रदेश के जनसंपर्क और संस्कृति मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा और समापन में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चैहान ने आज की मीडिया को लेकर अपनी राय व्यक्त की।
राजनेता और मध्यप्रदेश शासन में मंत्री श्री लक्ष्मीकांत शर्मा ने कहा कि पहले जो पत्रकारिता भारतीय मूल्यों को लेकर की जाती थी आज उसके स्वरूप मे व्यापारिक मूल्य अधिक हावी होते जा रहे है इसे देखते हुए मीडिया की कार्यप्रणाली में सुधार की जरुरत है और मीडिया को स्वयं ही इसकी शुुरुआत करनी होगी। उन्होंने कहा कि आज मीडिया में नकारात्मक बातों को विशेष रूप से प्रभावी बनाया जा रहा है। सरकार व प्रशासन में जो गलत हो रहा है उसे मीडिया को जरुर छापना व दिखाना चाहिये। पर जब अच्छा काम हो तो वह भी सामने लाने का प्रयत्न करना चाहिये। उन्होंने मीडिया में भारतीय मूल्यों का समावेश करने के लिए मीडिया के लोगों से भारतीय साहित्य के अध्ययन का आग्रह भी किया।
इंडियन मीडिया सेंटर के अध्यक्ष डॉ. चंदन मित्रा ने कहा कि पत्रकारिता में हो रहे अवमूल्यन को रोकने के लिए हमें समाज का नैतिक अवमूल्यन रोकना होगा। इस लिहाज से हमें मीडिया की कमजोरियों पर व्यापक दृष्टिकोण से विचार करना चाहिये। मीडिया की विकृतियों पर अंकुश लगाने के लिये मीडिया को स्वयं रास्ता तलाशना होगा। पेड न्यूज की बढती प्रवृत्ति पर चिंता व्यक्त करते हुये उन्होंने कहा कि पिछले चुनावों में मीडिया की इस प्रवृत्ति के सामने राजनैतिक दल झुक गये, यदि वे ऐसा नहीं करते तो इस पर अंकुश लग सकता था। उन्होंने कहा कि अकेले पत्रकार यह लडाई नहीं लड़ पायेंगे। इसके लिये समाज और राजनीतिक दलों को जागरुक करना होगा।
वरिष्ठ पत्रकार और राज्यसभा सदस्य डॉ मित्रा ने कहा कि भारतीय मूल्यों की रचना में गौरवशाली इतिहास का महत्वपूर्ण योगदान रहा है पर आज उस इतिहास की उपेक्षा हो रही है जिसके परिणामस्वरूप भारतीय मूल्यों में गिरावट आ रही है। नई पीढ़ी इतिहास और परम्पराओं से अनभिज्ञ है। मीडिया भी भारतीय मूल्यों पर हमला कर रहा है। उन्होंने आरोप लगाया कि पत्रकारिता में राष्ट्रीय भावना को हीन करने की कोशिशें की जा रही हैं। उन्होंने मीडिया से शाश्वत भारतीय मूल्यों को सामने लाने का आहवान किया। .श्री मित्रा ने नई पीढ़ी को भारतीय इतिहास और मूल्यों से परिचित करवाने हेतु इसे पाठ्यक्रमों में शामिल करने की बात कही।
इंडियन मीडिया सेंटर के निदेशक और वरिष्ठ पत्रकार श्री श्याम खोसला ने कहा कि पत्रकारिता नाजुक और चुनौती से भरे दौर से गुजर रही है और यह खतरे बाहर के नहीं मीडिया के भीतर से ही पैदा हुये हैं। मीडिया को अपने इन संकटों और कमजोरियों को पहचानना होगा। और आत्म निरीक्षण करना होगा। श्री खोसला ने कहा कि मीडिया की विश्वसनीयता घटी है। पत्रकारों में सच्चाई ढूंढने की प्रवृत्ति कम हुई है। पेड न्यूज की चर्चा करते हुये श्री खोसला ने कहा कि प्रेस कौंसिल के वर्तमान स्वरुप में बदलाव करते हुए एक नई मीडिया कौंसिल बनाये जाने की जरुरत पर जोर दिया। एक शक्तिशाली और प्रभावी कौंसिल ही मीडिया को नियंत्रित करने में कारगर हो सकती है।। उन्होंनेे कहा कि इंडियन मीडिया संंेटर समर्पित व्यक्तियों के माध्यम से मीडिया को बदलने का एक प्रयास है।
इस अवसर पर माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार वि.वि. के कुलपति प्रो. बृज किशोर कुठियाला ने कहा कि जिस तरह का बदलाव हो रहा है उसे देखते हुए भविष्य में समाज की रचना मीडिया संवाद पर ही निर्भर करेगी। इसलिए यदि समाज को सुनियोजित करना है तो मीडिया को सुनियोजित करना होगा। इसके लिए मीडिया और समाज दोनों को मिलकर भी कार्य करना होगा। प्रो. कुठियाला ने कहा कि आज देश में जो पत्रकारिता की जा रही है वह भारत के लिए तो है लेकिन भारतीयों के लिए नहीं है। इस प्रवृत्ति का कारण बताते हुए उन्होंने कहा कि भारतीय मीडिया की उत्पत्ति, सिद्धांत और आधार पश्चिमी रहे हैं। उन्होंने कहा कि पत्रकारिता का आधार सत्य है पर आज की पत्रकारिता अप्रिय और अधूरे सत्य को अभिव्यक्त कर रही है। श्री कुठियाला ने कहा कि पत्रकारिता का व्यापारीकरण उचित नहीं है समाज उसे बल देकर सामाजिक उददेश्यों की प्राप्ति का साधन बना सकता है।
इंडियन मीडिया सेंटर के संयोजक और मध्यप्रदेश राष्ट्रीय एकता समिति के उपाध्यक्ष श्री रमेश शर्मा ने कहा कि आज देश का मीडिया भारत की प्राथमिकताओं के साथ नहीं है वह विदेशी ताकतोंे के साथ दिखता है। मीडिया राष्ट्र और राष्ट्रवाद को अनदेखा कर रहा है जो कि हमारी मानसिक दासता का द्योतक है।
कार्यक्रम में, पेड न्यूज और मीडिया में भारतीय मूल्यों का समावेश - दो विषयों पर प्रस्तुति और चर्चा भी हुई। मीडिया में भारतीय मूल्यों का समावेश पर श्री रमेश शर्मा और प्रो. कुठियाला ने अपनी प्रस्तुति दी। जबकि पेड न्यूज वरिष्ठ पत्रकार श्री के. जी सुरेश और भारतीय जनसंचार संस्थान के प्रोफेसर पदीप माथुर ने प्रस्तुति दी। के जी सुरेश ने कहा कि आज विज्ञापनों और पेड न्यूज को बतौर समाचार दिखाया जा रहा है। आज पत्रकारों को आत्ममंथन की आवश्यकता है क्योंकि उनकी इस कमजोरी के कारण राजनेता उनको कटघरे में खड़ा कर रहे हैं। इस विषय पर पत्रकारों को सोचना होगा कि यदि उन्होंेने अपनी इस कमजोरी को खत्म नहीं किया तो हमारी विश्वनीयता समाप्त हो जाएगी। प्रो.प्रदीप माथुर ने कहा कि मीडिया में आ रही गिरावट के लिए सिर्फ पत्रकार ही जिम्मेदार नहीं हैं बल्कि समाज को भी इसकी जिम्मेदारी लेनी होगी। समाज को घटिया सामग्री वाले मीडिया को नकारना होगा। उन्होंने कहा कि पेड न्यूज के लिए पैसे देने वाला भी उतना ही जिम्मेदार है जितना कि लेने वाला। इसलिए मीडिया और पत्रकारों के साथ ही समाज को भी जिम्मेदारी का निर्वहन करना होगा।
बैठक के अंतिम दिन इंडियन मीडिया सेंटर के मध्यप्रदेश चैप्टर का गठन भी हुआ। राष्ट्रीय उपाध्यक्ष पीसी डोगरा और निदेशक श्याम खोसला की उपस्थिति में हुई बैठक में वरिष्ठ पत्रकार श्री रमेश शर्मा अध्यक्ष, श्री राघवेन्द्र सिंह उपाध्यक्ष, श्री अनिल सौमित्र महासचिव और श्री अनिल शर्मा कोषाध्यक्ष निर्वाचित किए गए।
गुरुवार, 16 सितंबर 2010
गुलामी के द्योतक शब्द इंडिया से छुटकारा पाए भारत
- अरविन्द सीसोदिया
गोवा से कांग्रेस के राज्य सभा सांसद , शांताराम नाईक ने एक गैर सरकारी संविधान संशोधन विधेयक के माध्यम से २७ अगुस्त २०१० को सदन में भारत के संविधान से इंडिया शब्द हटाने की मांग की , संसद में दोनों सदनों में बहुत सारे गैर सरकारी विधेयक रखे जाते रहते हैं और वे अंततः वापिस ले लिए जाते हैं , मुख्य रूप से किसी विसंगती या सुधार विशेष के लिए ये लाए जाते हैं , यह भी ध्यानकर्षण का एक तरीका है..!
Rajya Sabha , August 27, 2010
Shantaram Naik, Congress MP from Goa , on Friday sought a Constitution amendment bill in the Rajya Sabha to call the country simply 'Bharat' and not 'India'
His private member bill seeks to amend the Preamble and Article 1 of the Constitution of India to drop India and use 'Bharat'. It says the words 'India, that is Bharat' in sub-clause 1 of Article be replaced with just 'Bharat'.The grounds for changing the name of the country into simply 'Bharat' are many but, more than the grounds or reasons, it is the sense of patriotism that the name generates and electrifies the people of this country that is relevant, Naik noted.The Congress MP quoted a lyric from the 1965 film Sikandar-E-Aazam to buttress his case: "Jahan daal daal par sone ki chidiyan karti hai basera, woh Bharat desh hai mera."
What are your views on the debate? Should India be called just 'Bharat'?
मुझे लगा कि इस विषय पर संविधान सभा के समय की कुछ बातें सामनें रखीं जाएँ ...
ज्ञात रहे कि भारत के संविधान निर्माण के दौरान कांग्रेस और जवाहरलाल नेहरु ही सर्वे सर्वा थे , उनकी ही हर बात मानी जाती थी अडंगा लगाने वाले मुस्लिम लीग के सदस्य संविधान सभा में आये ही नहीं वे पाकिस्तान की मांग में ही व्यस्त थे और उन्हें पाकिस्तान मिल भी गया था! कुल मिला कर पूर्ण स्वतंत्र स्थिती थी , इस के बावजूद संविधान भारतीयता का प्रतीरूप नहीं बन पाया इसके लिए जवाहरलाल नेहरु और उस समय की कांग्रेस को ही अपराधी माना जाएगा...!
भारतीय संविधान को सामान्यतः विधि क्षैत्र और लोक प्रसाशन के विद्यार्थी गंभीरता से पढ़ते हैं , मगर जो इस संविधान सभा के वाद विवाद को पढ़ते हैं वे सहज ही समझ जाते हैं कि संविधान निर्माण के दौरान कांग्रेस और जवाहर लाल नेहरु जी ने , बड़ी ही निर्ममता से अपनी मनमानी की..! जिसका नतीजा यह हुआ कि देश को आजाद हुए जितने साल नहीं हुए उससे ज्यादा उसमें संविधान - संसोधन हो गए...!!
संविधान सभा में जब अनुच्छेदवार विचार हुआ तो आपको आश्चर्य होगा कि अनुच्छेद - १ पर , जो कि देश के नाम से संम्बन्धित था , पहला अनुच्छेद था उस पर , आखिरी में विचार हुआ, और उससे भी अधिक आश्चर्य की बात यह है कि डॉ. भीमराव अम्बेडकर जी की देखरेख में बनें संविधान की प्रथम मसौदा प्रती में देश का नाम भारत कहीं दर्ज नहीं था... उसमें सिर्फ इण्डिया शब्द मात्र था..! जब यह बात उजागर हो गई तब पूरे देश में आलोचनाएँ हुई सर्व व्यापी निंदा के बाद, कहीं प्रारूप समीति के अध्यक्ष डॉ. भीमराव अम्बेडकर ने संशोधन प्रस्तुत किया जिसकी भाषा भी भारत नाम के प्रती अपमान जनक थी , यह संशोधन निम्न प्रकार से है " India , that is, Bhart shall be a Union of states " अर्थात " इण्डिया अर्थात भारत राज्यों का संघ होगा |" इससे पूर्व राष्ट्रवादी विचारधारा वाले सदस्यों ने एक संशोधन पेश कर भारत शब्द कि इज्जत बनाये रखने की कोशिश की थी " भारत अथवा अंग्रेजी भाषा में इण्डिया राज्यों का संघ होगा | " मगर यह संशोधन ३८ मतों के मुकावले ५१ मतों से हार गया , देखिये दुर्भाग्य की इण्डिया शब्द भारतवासियों के मत से ही जीता , वे वही लोग थे जिन्हें कांग्रेस और जवाहरलाल नेहरु ने चुनवा कर संविधान सभा में लाया गया था , साफतौर पर बात यह है कि नेहरूजी चाहते तो संविधान में इण्डिया शब्द नहीं होता...!
इस मुद्दे पर जो बहस हुई और उसमे जो भारत के पक्षधर सदस्यों ने तर्क दिए उनमें से कुछ इस प्रकार से हैं ....
१- हरिविष्णु कामत :-
संविधान सभा में डॉ. अम्बेडकर के द्वारा प्रस्तुत संशोधन पर अपना संशोधन प्रस्तुतइस प्रकार प्रस्तुत किया ' भारत अथवा अंग्रेजी भाषा में इण्डिया , राज्यों का संघ होगा | ' विकल्प के तौर पर उन्होंने यह भी सुझाया कि ' हिंद अथवा अंग्रेजी भाषा में इण्डिया , राज्यों का संघ होगा |' उन्होंने अपने तर्क में कहा 'में समझता हूँ कि "इण्डिया अर्थात भारत " पद का अर्थ "इण्डिया जिसको भारत कहा जाता है " है , यह संविधान में कुछ भद्दा सा लगेगा | ' इस तर्क के पक्ष में उन्होंने आयरलैंड के संविधान की धारा को बताया जिसमें लिखा है ' राज्य का नाम एयर अथवा अंग्रेजी भाषा में आयरलैंड है | '
२- सेठ गोविन्द दास :-
उन्होंने सुझाव देते हुए कहा " हमारे देश का प्राचीन नाम है , वह हम रख सकते हैं , परन्तु वह जिस सुन्दर तरीके से रखा जाना चाहिए था, डॉ. अम्बेडकर मुझे क्षमा करेंगे , उस तरह से नहीं रखा जा रहा |" उन्होंने आगे कहा '.......वेदों , उपनिषदों तथा ब्राह्मण ग्रंथो के पश्चात हमारा सबसे प्राचीन और महान ग्रन्थ जो 'महा भारत 'है, हमको उससे भारत का नाम मिलता है | '
" अथते कीर्ति पष्यामी , वर्ष भारत भारतं | " - भीष्म पर्व , महाभारत
'गायन्तिः देवा किल गीत कानी , धन्यान्तु ने भारत भूमि भागे ' - विष्णु पुराण
" भरणाच्य प्रजानावै मनुर्भरत उच्यते |
निरुक्त वाचनाचेव वर्ष तद भारतं स्मृतं || " - ब्रम्हांड पुराण
चीनी यात्री इत्सिग ने देश के रूप में अपने यात्रा वृतांत में 'भारत ' नाम ही प्रयोग किया है |
३- कल्लूर सुब्बा राव :-
मद्रास के इस सम्मानीय सदस्य ने तर्क उपस्थित करते हुए कहा , मैं भारत नाम का हार्दिक समर्थन करता हूँ , जो प्राचीन है , भरत नाम ऋग्वेद में है, ३, ४, २३.४ में है | ' इम इंद्र भरतस्य पुत्रा '
४- हरगोविंद पन्त :-
उत्तर प्रदेश के इस सदस्य ने ठोस तर्क देते हुए कहा.., " भारत वर्ष या भारत यह नाम तो हमारे दैनिक धार्मीक संकल्प में कहा जाता है जो नित्य स्नान में भी काम आता है : जम्बू दीपे भरत खण्डे आर्यावते...... "
उन्होंने इण्डिया शब्द का विरोध करते हुए कहा था "... इण्डिया नाम , इस शब्द से न जाने क्यों हमारी ममता सी हो गई है, यह नाम इस देश को विदेशियों ने दिया है , यह नामकरण भी विदेशियों ने ही किया है , उनको इस देश के वैभव का हाल सुन का लालच हुआ था, और अपनी लालसा को पूरा करने के लिए उन्होंने हमारी स्वाधीनता पर आक्रमण किया था , अगर हाँ इण्डिया शब्द को अब भी अपने ह्रदय से लगाए रखें तो इसके माने यह होता है कि हमको इस नाम से , जो हमारे लिए अपमान जनक है , जिस नाम को विदेशियों ने हमारे ऊपर थोपा है , और जिसका नामकरण उन्होंने किया है , उससे हमको कोई दुःख नहीं है | मेरी समझ में यह बातें नहीं आती कि क्यों हम इस नाम को अपने पास रख रहे हैं..? "
".....यह हमारे लिए लज्जा का विषय होगा |"=====
मेरा मत
मेरा मानना है कि जब हम बहुत से नामों को देश में उनकी पुरानी पहचान के कारण संसोधित कर पुनः बहाल चुके हैं , तो हब संविधान से इण्डिया शब्द हटा कर पूरे विश्व को भारत लिखने के लिए मजबूर कर सकते हैं , अभी इण्डिया शब्द हमारे भारत को रोक लेता है , अर्थात हमें संविधान से इण्डिया शब्द तुरत हटाना चाहिए..!
भारत की किसीभी राष्ट्रिय वंदना में , कहीं भी इण्डिया शब्द की कोई आराधना नहीं है.., हमारे अधिकृत राष्ट्रगान में भी भारत शब्द ही है , ऐसी स्थिती में इण्डिया शब्द का क्या ओचित्य है..?
गोवा से कांग्रेस के राज्य सभा सांसद , शांताराम नाईक ने एक गैर सरकारी संविधान संशोधन विधेयक के माध्यम से २७ अगुस्त २०१० को सदन में भारत के संविधान से इंडिया शब्द हटाने की मांग की , संसद में दोनों सदनों में बहुत सारे गैर सरकारी विधेयक रखे जाते रहते हैं और वे अंततः वापिस ले लिए जाते हैं , मुख्य रूप से किसी विसंगती या सुधार विशेष के लिए ये लाए जाते हैं , यह भी ध्यानकर्षण का एक तरीका है..!
Rajya Sabha , August 27, 2010
Shantaram Naik, Congress MP from Goa , on Friday sought a Constitution amendment bill in the Rajya Sabha to call the country simply 'Bharat' and not 'India'
His private member bill seeks to amend the Preamble and Article 1 of the Constitution of India to drop India and use 'Bharat'. It says the words 'India, that is Bharat' in sub-clause 1 of Article be replaced with just 'Bharat'.The grounds for changing the name of the country into simply 'Bharat' are many but, more than the grounds or reasons, it is the sense of patriotism that the name generates and electrifies the people of this country that is relevant, Naik noted.The Congress MP quoted a lyric from the 1965 film Sikandar-E-Aazam to buttress his case: "Jahan daal daal par sone ki chidiyan karti hai basera, woh Bharat desh hai mera."
What are your views on the debate? Should India be called just 'Bharat'?
मुझे लगा कि इस विषय पर संविधान सभा के समय की कुछ बातें सामनें रखीं जाएँ ...
ज्ञात रहे कि भारत के संविधान निर्माण के दौरान कांग्रेस और जवाहरलाल नेहरु ही सर्वे सर्वा थे , उनकी ही हर बात मानी जाती थी अडंगा लगाने वाले मुस्लिम लीग के सदस्य संविधान सभा में आये ही नहीं वे पाकिस्तान की मांग में ही व्यस्त थे और उन्हें पाकिस्तान मिल भी गया था! कुल मिला कर पूर्ण स्वतंत्र स्थिती थी , इस के बावजूद संविधान भारतीयता का प्रतीरूप नहीं बन पाया इसके लिए जवाहरलाल नेहरु और उस समय की कांग्रेस को ही अपराधी माना जाएगा...!
भारतीय संविधान को सामान्यतः विधि क्षैत्र और लोक प्रसाशन के विद्यार्थी गंभीरता से पढ़ते हैं , मगर जो इस संविधान सभा के वाद विवाद को पढ़ते हैं वे सहज ही समझ जाते हैं कि संविधान निर्माण के दौरान कांग्रेस और जवाहर लाल नेहरु जी ने , बड़ी ही निर्ममता से अपनी मनमानी की..! जिसका नतीजा यह हुआ कि देश को आजाद हुए जितने साल नहीं हुए उससे ज्यादा उसमें संविधान - संसोधन हो गए...!!
संविधान सभा में जब अनुच्छेदवार विचार हुआ तो आपको आश्चर्य होगा कि अनुच्छेद - १ पर , जो कि देश के नाम से संम्बन्धित था , पहला अनुच्छेद था उस पर , आखिरी में विचार हुआ, और उससे भी अधिक आश्चर्य की बात यह है कि डॉ. भीमराव अम्बेडकर जी की देखरेख में बनें संविधान की प्रथम मसौदा प्रती में देश का नाम भारत कहीं दर्ज नहीं था... उसमें सिर्फ इण्डिया शब्द मात्र था..! जब यह बात उजागर हो गई तब पूरे देश में आलोचनाएँ हुई सर्व व्यापी निंदा के बाद, कहीं प्रारूप समीति के अध्यक्ष डॉ. भीमराव अम्बेडकर ने संशोधन प्रस्तुत किया जिसकी भाषा भी भारत नाम के प्रती अपमान जनक थी , यह संशोधन निम्न प्रकार से है " India , that is, Bhart shall be a Union of states " अर्थात " इण्डिया अर्थात भारत राज्यों का संघ होगा |" इससे पूर्व राष्ट्रवादी विचारधारा वाले सदस्यों ने एक संशोधन पेश कर भारत शब्द कि इज्जत बनाये रखने की कोशिश की थी " भारत अथवा अंग्रेजी भाषा में इण्डिया राज्यों का संघ होगा | " मगर यह संशोधन ३८ मतों के मुकावले ५१ मतों से हार गया , देखिये दुर्भाग्य की इण्डिया शब्द भारतवासियों के मत से ही जीता , वे वही लोग थे जिन्हें कांग्रेस और जवाहरलाल नेहरु ने चुनवा कर संविधान सभा में लाया गया था , साफतौर पर बात यह है कि नेहरूजी चाहते तो संविधान में इण्डिया शब्द नहीं होता...!
इस मुद्दे पर जो बहस हुई और उसमे जो भारत के पक्षधर सदस्यों ने तर्क दिए उनमें से कुछ इस प्रकार से हैं ....
१- हरिविष्णु कामत :-
संविधान सभा में डॉ. अम्बेडकर के द्वारा प्रस्तुत संशोधन पर अपना संशोधन प्रस्तुतइस प्रकार प्रस्तुत किया ' भारत अथवा अंग्रेजी भाषा में इण्डिया , राज्यों का संघ होगा | ' विकल्प के तौर पर उन्होंने यह भी सुझाया कि ' हिंद अथवा अंग्रेजी भाषा में इण्डिया , राज्यों का संघ होगा |' उन्होंने अपने तर्क में कहा 'में समझता हूँ कि "इण्डिया अर्थात भारत " पद का अर्थ "इण्डिया जिसको भारत कहा जाता है " है , यह संविधान में कुछ भद्दा सा लगेगा | ' इस तर्क के पक्ष में उन्होंने आयरलैंड के संविधान की धारा को बताया जिसमें लिखा है ' राज्य का नाम एयर अथवा अंग्रेजी भाषा में आयरलैंड है | '
२- सेठ गोविन्द दास :-
उन्होंने सुझाव देते हुए कहा " हमारे देश का प्राचीन नाम है , वह हम रख सकते हैं , परन्तु वह जिस सुन्दर तरीके से रखा जाना चाहिए था, डॉ. अम्बेडकर मुझे क्षमा करेंगे , उस तरह से नहीं रखा जा रहा |" उन्होंने आगे कहा '.......वेदों , उपनिषदों तथा ब्राह्मण ग्रंथो के पश्चात हमारा सबसे प्राचीन और महान ग्रन्थ जो 'महा भारत 'है, हमको उससे भारत का नाम मिलता है | '
" अथते कीर्ति पष्यामी , वर्ष भारत भारतं | " - भीष्म पर्व , महाभारत
'गायन्तिः देवा किल गीत कानी , धन्यान्तु ने भारत भूमि भागे ' - विष्णु पुराण
" भरणाच्य प्रजानावै मनुर्भरत उच्यते |
निरुक्त वाचनाचेव वर्ष तद भारतं स्मृतं || " - ब्रम्हांड पुराण
चीनी यात्री इत्सिग ने देश के रूप में अपने यात्रा वृतांत में 'भारत ' नाम ही प्रयोग किया है |
३- कल्लूर सुब्बा राव :-
मद्रास के इस सम्मानीय सदस्य ने तर्क उपस्थित करते हुए कहा , मैं भारत नाम का हार्दिक समर्थन करता हूँ , जो प्राचीन है , भरत नाम ऋग्वेद में है, ३, ४, २३.४ में है | ' इम इंद्र भरतस्य पुत्रा '
४- हरगोविंद पन्त :-
उत्तर प्रदेश के इस सदस्य ने ठोस तर्क देते हुए कहा.., " भारत वर्ष या भारत यह नाम तो हमारे दैनिक धार्मीक संकल्प में कहा जाता है जो नित्य स्नान में भी काम आता है : जम्बू दीपे भरत खण्डे आर्यावते...... "
उन्होंने इण्डिया शब्द का विरोध करते हुए कहा था "... इण्डिया नाम , इस शब्द से न जाने क्यों हमारी ममता सी हो गई है, यह नाम इस देश को विदेशियों ने दिया है , यह नामकरण भी विदेशियों ने ही किया है , उनको इस देश के वैभव का हाल सुन का लालच हुआ था, और अपनी लालसा को पूरा करने के लिए उन्होंने हमारी स्वाधीनता पर आक्रमण किया था , अगर हाँ इण्डिया शब्द को अब भी अपने ह्रदय से लगाए रखें तो इसके माने यह होता है कि हमको इस नाम से , जो हमारे लिए अपमान जनक है , जिस नाम को विदेशियों ने हमारे ऊपर थोपा है , और जिसका नामकरण उन्होंने किया है , उससे हमको कोई दुःख नहीं है | मेरी समझ में यह बातें नहीं आती कि क्यों हम इस नाम को अपने पास रख रहे हैं..? "
".....यह हमारे लिए लज्जा का विषय होगा |"=====
मेरा मत
मेरा मानना है कि जब हम बहुत से नामों को देश में उनकी पुरानी पहचान के कारण संसोधित कर पुनः बहाल चुके हैं , तो हब संविधान से इण्डिया शब्द हटा कर पूरे विश्व को भारत लिखने के लिए मजबूर कर सकते हैं , अभी इण्डिया शब्द हमारे भारत को रोक लेता है , अर्थात हमें संविधान से इण्डिया शब्द तुरत हटाना चाहिए..!
भारत की किसीभी राष्ट्रिय वंदना में , कहीं भी इण्डिया शब्द की कोई आराधना नहीं है.., हमारे अधिकृत राष्ट्रगान में भी भारत शब्द ही है , ऐसी स्थिती में इण्डिया शब्द का क्या ओचित्य है..?
Sarsanghachalak interacts: Indian women's press corp PDF Print E-mail
Written by Administrator
Wednesday, 15 September 2010
कानून व संविधान के तहत ही मंदिर बने
नई दिल्ली।
दिनांक १४ सितम्बर
आयोध्या मामले में अदालत के निर्णय से पहले सरसंघचालक श्री. मोहनजी भागवत ने मंगलवार को कहा कि वह विवादास्पद स्थल पर संसद द्वारा बनाए गए कानून के माध्यम से राम मंदिर के निर्माण के पक्ष में हैं और अयोध्या मामले पर अदालत के फैसले पर संघ की प्रतिक्रिया 'कानून एवं संविधान' के दायरे में होगी।
इंडियन विमेंस प्रेस कॉर्प द्वारा आयोजित एक वार्तालाप में महिला संवाददाताओं से बात करते हुए उन्होंने कहा, “निश्चित तौर पर, हिंदू समाज की आकांक्षा है कि रामजन्मभूमि पर मंदिर बनाया जाना चाहिए। इस संबंध में फैसले पर हमारी प्रतिक्रिया इन इच्छाओं के अनुरूप होगी। हम सुनिश्चित करना चाहेंगे कि वहां राम मंदिर का निर्माण हो”।
अदालत के निर्णय के बारे में पूछे जाने पर सरसंघचालक ने कहा, “फैसला आने के बाद ही हम प्रतिक्रिया दे सकते हैं, आगे के कानूनी विकल्प भी मौजूद होंगे”।उन्होंने संकेत दिया कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय का फैसला जिस संबंधित पार्टी के पक्ष में नहीं जाता है, वह उच्चतम न्यायालय जा सकता है।
इस विषय में 24 सितंबर को अदालत का फैसला आने के बाद कानून-व्यवस्था की समस्या उत्पन्न होने की आशंकाओं के बारे में बार बार पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि फैसले पर संघ की प्रतिक्रिया 'कानून, संविधान औरलोकतांत्रिक सीमाओं में' होगी। भागवत ने पत्रकारों से कहा, 'हमारे तरफ से कोई झंझट नहीं होगा।'
मोहनजी भागवत ने कहा, “हम समाज में किसी तरह का विभाजन नहीं चाहते, हम इसे हिंदू-मुस्लिम विवाद के रूप में नहीं देखते बल्कि इसे हम राष्ट्रीय मूल्यों के आदर के रूप में देखते हैं। वास्तव में अगर मंदिर बनता है तो इससे समाज में एकता स्थापित करने में मदद मिलेगी”।
यह पूछने पर कि क्या इस मुद्दे पर वह बाबरी मस्जिद ऐक्शन कमिटी से वार्ता करेंगे तो उन्होंने कहा कि समाज में खाई को कम करने के लिए आरएसएस धार्मिक नेताओं के साथ वार्ता कर रहा है लेकिन मंदिर मुद्दे पर कोई भी वार्ता मंदिर आंदोलन के 'संतों' की समिति की परिधि में किया जाएगा।
यह पूछने पर कि क्या मंदिर मुद्दे पर भाजपा के रूख से आरएसएस हताश है ?तो उन्होंने कहा, 'राम मंदिर आंदोलन से भाजपा को सहायता मिली है। परन्तु इस बारेमें निर्णय भाजपा को ही करना होगा. बहरहालअपने आंदोलन को चलाने के लिए हमें किसी के सहयोग की जरूरत नहीं है।'
भगवा आतंकवाद ग़लत
गृह मंत्री के भगवा आतंकवाद से देश को खतरे और संघ के कुछ कार्यकर्ताओं के बम विस्फोटो की जांच में नाम सामने आने परसरसंघचालक ने कहा कि ‘भगवा आतंकवाद’ सही शब्द नहीं है.
जहां तक संघ के कुछ लोगो के नाम है, आरएसएस इन्हें अपवाद के रुप में देखता है और अगर कोई पकड़ा जाता है तो कानून को अपना काम करना चाहिए.
लेकिन उन्होंने गृह मंत्री पी चिदंबरम को आड़े हाथों लेते हुए कहा, ''ये कुछ ताक़तो के देश को बदनाम करने की कोशिश है. जब आप भगवा आतंकवाद कहते है तो कहते है कि ये देश के अंदर पैदा हुआ आतंकवादहै. दुनिया के सामने इसका क्या संदेश जाएगा. लोग हमें ‘अराजक देश’ कहेंगे. गृह मंत्री को ज़िम्मेदारी से शब्दों का चयन करना चाहिए. हिंदू और आतंकवाद कभी साथ नहीं हो सकते.’’
कश्मीर
कश्मीर की स्थिति और स्वायत्तता के सवाल पर उन्होंने कहा, 'हम आजादी या स्वायत्तता जैसे शब्दों को पसंद नहीं करते। हम अलगाववादियों से बात करने की जरूरत नहीं समझते। हमारा मानना है कि कश्मीर को पूरी तरह भारत में मिला देना चाहिए।'उनका मानना है कि सरकार का रूख और नीतियां इसी विचार पर आधारित होनी चाहिए न कि क्षेत्र के साथ अलग व्यवहार करना चाहिए। साथ ही उन्होंने कहा कि कश्मीर के लोगों में विश्वास बढ़ाने की जरूरत है।
Written by Administrator
Wednesday, 15 September 2010
कानून व संविधान के तहत ही मंदिर बने
नई दिल्ली।
दिनांक १४ सितम्बर
आयोध्या मामले में अदालत के निर्णय से पहले सरसंघचालक श्री. मोहनजी भागवत ने मंगलवार को कहा कि वह विवादास्पद स्थल पर संसद द्वारा बनाए गए कानून के माध्यम से राम मंदिर के निर्माण के पक्ष में हैं और अयोध्या मामले पर अदालत के फैसले पर संघ की प्रतिक्रिया 'कानून एवं संविधान' के दायरे में होगी।
इंडियन विमेंस प्रेस कॉर्प द्वारा आयोजित एक वार्तालाप में महिला संवाददाताओं से बात करते हुए उन्होंने कहा, “निश्चित तौर पर, हिंदू समाज की आकांक्षा है कि रामजन्मभूमि पर मंदिर बनाया जाना चाहिए। इस संबंध में फैसले पर हमारी प्रतिक्रिया इन इच्छाओं के अनुरूप होगी। हम सुनिश्चित करना चाहेंगे कि वहां राम मंदिर का निर्माण हो”।
अदालत के निर्णय के बारे में पूछे जाने पर सरसंघचालक ने कहा, “फैसला आने के बाद ही हम प्रतिक्रिया दे सकते हैं, आगे के कानूनी विकल्प भी मौजूद होंगे”।उन्होंने संकेत दिया कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय का फैसला जिस संबंधित पार्टी के पक्ष में नहीं जाता है, वह उच्चतम न्यायालय जा सकता है।
इस विषय में 24 सितंबर को अदालत का फैसला आने के बाद कानून-व्यवस्था की समस्या उत्पन्न होने की आशंकाओं के बारे में बार बार पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि फैसले पर संघ की प्रतिक्रिया 'कानून, संविधान औरलोकतांत्रिक सीमाओं में' होगी। भागवत ने पत्रकारों से कहा, 'हमारे तरफ से कोई झंझट नहीं होगा।'
मोहनजी भागवत ने कहा, “हम समाज में किसी तरह का विभाजन नहीं चाहते, हम इसे हिंदू-मुस्लिम विवाद के रूप में नहीं देखते बल्कि इसे हम राष्ट्रीय मूल्यों के आदर के रूप में देखते हैं। वास्तव में अगर मंदिर बनता है तो इससे समाज में एकता स्थापित करने में मदद मिलेगी”।
यह पूछने पर कि क्या इस मुद्दे पर वह बाबरी मस्जिद ऐक्शन कमिटी से वार्ता करेंगे तो उन्होंने कहा कि समाज में खाई को कम करने के लिए आरएसएस धार्मिक नेताओं के साथ वार्ता कर रहा है लेकिन मंदिर मुद्दे पर कोई भी वार्ता मंदिर आंदोलन के 'संतों' की समिति की परिधि में किया जाएगा।
यह पूछने पर कि क्या मंदिर मुद्दे पर भाजपा के रूख से आरएसएस हताश है ?तो उन्होंने कहा, 'राम मंदिर आंदोलन से भाजपा को सहायता मिली है। परन्तु इस बारेमें निर्णय भाजपा को ही करना होगा. बहरहालअपने आंदोलन को चलाने के लिए हमें किसी के सहयोग की जरूरत नहीं है।'
भगवा आतंकवाद ग़लत
गृह मंत्री के भगवा आतंकवाद से देश को खतरे और संघ के कुछ कार्यकर्ताओं के बम विस्फोटो की जांच में नाम सामने आने परसरसंघचालक ने कहा कि ‘भगवा आतंकवाद’ सही शब्द नहीं है.
जहां तक संघ के कुछ लोगो के नाम है, आरएसएस इन्हें अपवाद के रुप में देखता है और अगर कोई पकड़ा जाता है तो कानून को अपना काम करना चाहिए.
लेकिन उन्होंने गृह मंत्री पी चिदंबरम को आड़े हाथों लेते हुए कहा, ''ये कुछ ताक़तो के देश को बदनाम करने की कोशिश है. जब आप भगवा आतंकवाद कहते है तो कहते है कि ये देश के अंदर पैदा हुआ आतंकवादहै. दुनिया के सामने इसका क्या संदेश जाएगा. लोग हमें ‘अराजक देश’ कहेंगे. गृह मंत्री को ज़िम्मेदारी से शब्दों का चयन करना चाहिए. हिंदू और आतंकवाद कभी साथ नहीं हो सकते.’’
कश्मीर
कश्मीर की स्थिति और स्वायत्तता के सवाल पर उन्होंने कहा, 'हम आजादी या स्वायत्तता जैसे शब्दों को पसंद नहीं करते। हम अलगाववादियों से बात करने की जरूरत नहीं समझते। हमारा मानना है कि कश्मीर को पूरी तरह भारत में मिला देना चाहिए।'उनका मानना है कि सरकार का रूख और नीतियां इसी विचार पर आधारित होनी चाहिए न कि क्षेत्र के साथ अलग व्यवहार करना चाहिए। साथ ही उन्होंने कहा कि कश्मीर के लोगों में विश्वास बढ़ाने की जरूरत है।
मंगलवार, 14 सितंबर 2010
श्रीराम जन्मभूमि वाद का निर्णय
विश्व हिन्दू परिषद्
संकटमोचन आश्रम, (हनुमान मंदिर) से0-6,रामकृष्णपुरम,नई दिल्ली- 110 022
दूर-011-26178992, 26103495 फैक्स-26195527,
वि0हि0प0/12/2010 09 सितम्बर, 2010
प्रेस विज्ञप्ति
नई दिल्ली, 09 सितम्बर, 2010
पूज्य सन्तों के पूर्वानुमान के अनुसार ही दिनांक 24 सितम्बर, 2010 को अयोध्या प्रकरण पर 60 वर्षों तक बहुप्रतीक्षित श्रीराम जन्मभूमि वाद का निर्णय सुनाया जाएगा, ऐसी सूचना प्राप्त हुई है। पूज्य सन्तों ने स्पष्ट कर दिया है कि न्यायालय का निर्णय कुछ भी हो पूर्व घोषित श्रीहनुमत् शक्ति जागरण अनुष्ठान के कार्यक्रम मन्दिरों में अनवरत रूप से शान्तिपूर्वक चलते रहेंगे। हम अपने कार्यक्रम को पूर्ण शान्ति के साथ पूर्व नियोजित रूप से सम्पन्न करेंगे।
इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पूर्णपीठ द्वारा 24 सितम्बर, 2010 को दिए जाने वाले निर्णय के सम्बन्ध में समग्र विचार करने हेतु सन्तों की उच्चाधिकार समिति जिसको देश के लाखों सन्तों ने श्रीराम जन्मभूमि भूमि हेतु निर्णय लेने के लिए अधिकृत किया है, की बैठक आगामी 24-25 सितम्बर, 2010 को दिल्ली में बुलाई गई है। जिसमें सब प्रकार का विचार विमर्श करके आगे की कार्यवाही सुनिश्चित की जाएगी। सन्तों ने यह भी स्पष्ट कर दिया है कि हमें हर परिस्थिति में कानून व्यवस्था बनाए रखनी है।
संकटमोचन आश्रम, (हनुमान मंदिर) से0-6,रामकृष्णपुरम,नई दिल्ली- 110 022
दूर-011-26178992, 26103495 फैक्स-26195527,
वि0हि0प0/12/2010 09 सितम्बर, 2010
प्रेस विज्ञप्ति
नई दिल्ली, 09 सितम्बर, 2010
पूज्य सन्तों के पूर्वानुमान के अनुसार ही दिनांक 24 सितम्बर, 2010 को अयोध्या प्रकरण पर 60 वर्षों तक बहुप्रतीक्षित श्रीराम जन्मभूमि वाद का निर्णय सुनाया जाएगा, ऐसी सूचना प्राप्त हुई है। पूज्य सन्तों ने स्पष्ट कर दिया है कि न्यायालय का निर्णय कुछ भी हो पूर्व घोषित श्रीहनुमत् शक्ति जागरण अनुष्ठान के कार्यक्रम मन्दिरों में अनवरत रूप से शान्तिपूर्वक चलते रहेंगे। हम अपने कार्यक्रम को पूर्ण शान्ति के साथ पूर्व नियोजित रूप से सम्पन्न करेंगे।
इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पूर्णपीठ द्वारा 24 सितम्बर, 2010 को दिए जाने वाले निर्णय के सम्बन्ध में समग्र विचार करने हेतु सन्तों की उच्चाधिकार समिति जिसको देश के लाखों सन्तों ने श्रीराम जन्मभूमि भूमि हेतु निर्णय लेने के लिए अधिकृत किया है, की बैठक आगामी 24-25 सितम्बर, 2010 को दिल्ली में बुलाई गई है। जिसमें सब प्रकार का विचार विमर्श करके आगे की कार्यवाही सुनिश्चित की जाएगी। सन्तों ने यह भी स्पष्ट कर दिया है कि हमें हर परिस्थिति में कानून व्यवस्था बनाए रखनी है।
क्या आप धर्मनिरपेक्ष हैं ?
जरा फ़िर सोचिये और स्वयं के लिये इन प्रश्नों के उत्तर खोजिये.....
१. विश्व में लगभग ५२ मुस्लिम देश हैं, एक मुस्लिम देश का नाम बताईये जो हज के लिये "सब्सिडी" देता हो ?
२. एक मुस्लिम देश बताईये जहाँ हिन्दुओं के लिये विशेष कानून हैं, जैसे कि भारत में मुसलमानों के लिये हैं ?
३. किसी एक देश का नाम बताईये, जहाँ ८५% बहुसंख्यकों को "याचना" करनी पडती है, १५% अल्पसंख्यकों को संतुष्ट करने के लिये ?
४. एक मुस्लिम देश का नाम बताईये, जहाँ का राष्ट्रपति या प्रधानमन्त्री गैर-मुस्लिम हो ?
५. किसी "मुल्ला" या "मौलवी" का नाम बताईये, जिसने आतंकवादियों के खिलाफ़ फ़तवा जारी किया हो ?
६. महाराष्ट्र, बिहार, केरल जैसे हिन्दू बहुल राज्यों में मुस्लिम मुख्यमन्त्री हो चुके हैं, क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि मुस्लिम बहुल राज्य "कश्मीर" में कोई हिन्दू मुख्यमन्त्री हो सकता है ?
७. १९४७ में आजादी के दौरान पाकिस्तान में हिन्दू जनसंख्या 24% थी, अब वह घटकर 1% रह गई है, उसी समय तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान (अब आज का अहसानफ़रामोश बांग्लादेश) में हिन्दू जनसंख्या 30% थी जो अब 7% से भी कम हो गई है । क्या हुआ गुमशुदा हिन्दुओं का ? क्या वहाँ (और यहाँ भी) हिन्दुओं के कोई मानवाधिकार हैं ?
८. जबकि इस दौरान भारत में मुस्लिम जनसंख्या 10.4% से बढकर 14.2% हो गई है, क्या वाकई हिन्दू कट्टरवादी हैं ?
९. यदि हिन्दू असहिष्णु हैं तो कैसे हमारे यहाँ मुस्लिम सडकों पर नमाज पढते रहते हैं, लाऊडस्पीकर पर दिन भर चिल्लाते रहते हैं कि "अल्लाह के सिवाय और कोई शक्ति नहीं है" ?
१०. सोमनाथ मन्दिर के जीर्णोद्धार के लिये देश के पैसे का दुरुपयोग नहीं होना चाहिये ऐसा गाँधीजी ने कहा था, लेकिन 1948 में ही दिल्ली की मस्जिदों को सरकारी मदद से बनवाने के लिये उन्होंने नेहरू और पटेल पर दबाव बनाया, क्यों ?
११. कश्मीर, नागालैण्ड, अरुणाचल प्रदेश, मेघालय आदि में हिन्दू अल्पसंख्यक हैं, क्या उन्हें कोई विशेष सुविधा मिलती है ?
१२. हज करने के लिये सबसिडी मिलती है, जबकि मानसरोवर और अमरनाथ जाने पर टैक्स देना पड़ता है, क्यों ?
१३. मदरसे और क्रिश्चियन स्कूल अपने-अपने स्कूलों में बाईबल और कुरान पढा सकते हैं, तो फ़िर सरस्वती शिशु मन्दिरों में और बाकी स्कूलों में गीता और रामायण क्यों नहीं पढाई जा सकती ?
१४. गोधरा के बाद मीडिया में जो हंगामा बरपा, वैसा हंगामा कश्मीर के चार लाख हिन्दुओं की मौत और पलायन पर क्यों नहीं होता ?
१. विश्व में लगभग ५२ मुस्लिम देश हैं, एक मुस्लिम देश का नाम बताईये जो हज के लिये "सब्सिडी" देता हो ?
२. एक मुस्लिम देश बताईये जहाँ हिन्दुओं के लिये विशेष कानून हैं, जैसे कि भारत में मुसलमानों के लिये हैं ?
३. किसी एक देश का नाम बताईये, जहाँ ८५% बहुसंख्यकों को "याचना" करनी पडती है, १५% अल्पसंख्यकों को संतुष्ट करने के लिये ?
४. एक मुस्लिम देश का नाम बताईये, जहाँ का राष्ट्रपति या प्रधानमन्त्री गैर-मुस्लिम हो ?
५. किसी "मुल्ला" या "मौलवी" का नाम बताईये, जिसने आतंकवादियों के खिलाफ़ फ़तवा जारी किया हो ?
६. महाराष्ट्र, बिहार, केरल जैसे हिन्दू बहुल राज्यों में मुस्लिम मुख्यमन्त्री हो चुके हैं, क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि मुस्लिम बहुल राज्य "कश्मीर" में कोई हिन्दू मुख्यमन्त्री हो सकता है ?
७. १९४७ में आजादी के दौरान पाकिस्तान में हिन्दू जनसंख्या 24% थी, अब वह घटकर 1% रह गई है, उसी समय तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान (अब आज का अहसानफ़रामोश बांग्लादेश) में हिन्दू जनसंख्या 30% थी जो अब 7% से भी कम हो गई है । क्या हुआ गुमशुदा हिन्दुओं का ? क्या वहाँ (और यहाँ भी) हिन्दुओं के कोई मानवाधिकार हैं ?
८. जबकि इस दौरान भारत में मुस्लिम जनसंख्या 10.4% से बढकर 14.2% हो गई है, क्या वाकई हिन्दू कट्टरवादी हैं ?
९. यदि हिन्दू असहिष्णु हैं तो कैसे हमारे यहाँ मुस्लिम सडकों पर नमाज पढते रहते हैं, लाऊडस्पीकर पर दिन भर चिल्लाते रहते हैं कि "अल्लाह के सिवाय और कोई शक्ति नहीं है" ?
१०. सोमनाथ मन्दिर के जीर्णोद्धार के लिये देश के पैसे का दुरुपयोग नहीं होना चाहिये ऐसा गाँधीजी ने कहा था, लेकिन 1948 में ही दिल्ली की मस्जिदों को सरकारी मदद से बनवाने के लिये उन्होंने नेहरू और पटेल पर दबाव बनाया, क्यों ?
११. कश्मीर, नागालैण्ड, अरुणाचल प्रदेश, मेघालय आदि में हिन्दू अल्पसंख्यक हैं, क्या उन्हें कोई विशेष सुविधा मिलती है ?
१२. हज करने के लिये सबसिडी मिलती है, जबकि मानसरोवर और अमरनाथ जाने पर टैक्स देना पड़ता है, क्यों ?
१३. मदरसे और क्रिश्चियन स्कूल अपने-अपने स्कूलों में बाईबल और कुरान पढा सकते हैं, तो फ़िर सरस्वती शिशु मन्दिरों में और बाकी स्कूलों में गीता और रामायण क्यों नहीं पढाई जा सकती ?
१४. गोधरा के बाद मीडिया में जो हंगामा बरपा, वैसा हंगामा कश्मीर के चार लाख हिन्दुओं की मौत और पलायन पर क्यों नहीं होता ?
रविवार, 12 सितंबर 2010
मीडिया में भारतीय मूल्यों की जरूरत : आईएमसी
भोपाल 11 सितंबर 2010
पहले जो पत्रकारिता भारतीय मूल्यों को लेकर की जाती थी आज उसके स्वरूप मे व्यापारिक मूल्य अधिक हावी होते जा रहे है इसे देखते हुए मीडिया की कार्यप्रणाली में सुधार की जरुरत है और मीडिया को स्वयं ही इसकी शुरुआत करनी होगी। यह विचार जनसंपर्क,ं संस्कृति, एवं उच्च शिक्षा मंत्री श्री लक्ष्मीकांत शर्मा ने इंडियन मीडिया सेंटर की गवर्निंग बोर्ड की दो दिवसीय राष्ट्ीय बैठक के उदृघटन सत्र में मुख्य अतिथि के रुप में व्यक्त किए।
बैठक की अध्यक्षता इंडियन मीडिया सेंटर के अध्यक्ष, वरिष्ठ पत्रकार एवं सांसद डॉ.चंदन मित्रा ने की। इस अवसर पर वरिष्ठ पत्रकार एवं इंडियन मीडिया सेंटर के निदेशक श्याम खोसला एवं माखनलाल चतुर्वेदी राष्टीय पत्रकारिता वि.वि.के कुलपति प्रो. ब्रजकिशोर कुठियाला, पंजाब पुलिस के पूर्व महानिदेशक श्री पी.सी. डोगरा विशिष्ट अतिथि के रुप में उपस्थित थे। बैठक का आयोजन इंडियन मीडिया सेंटर के मध्यप्रदेश चैप्टर द्वारा किया गया था। बैठक का समापन रविवार को मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चैहान करेंगे।
श्री शर्मा ने कहा कि आज मीडिया में नकारात्मक बातों को विशेष रूप से प्रभावी बनाया जा रहा है। सरकार व प्रशासन में जो गलत हो रहा है उसे मीडिया को जरुर छापना व दिखाना चाहिये। पर जब अच्छा काम हो तो वह भी सामने लाया जाना चाहिये। उन्होंने युवा पत्रकारों का आहवान करते हुये कहा कि भारतीय मूल्यों की स्थापना के लिये अच्छे साहित्य का अध्ययन करना चाहिये।
कार्यक्रम के अध्यक्ष डॉ. चंदन मित्रा ने कहा कि पत्रकारिता में हो रहे अवमूल्यन को रोकने के लिए हमें समाज का नैतिक अवमूल्यन रोकना होगा। इस लिहाज से हमें मीडिया की कमजोरियों पर व्यापक दृष्टिकोण से विचार करना चाहिये। मीडिया की विकृतियों पर अंकुश लगाने के लिये मीडिया को स्वयं रास्ता तलाशना होगा। पेड न्यूज की बढती प्रवृत्ति पर चिंता व्यक्त करते हुये उन्होंने कहा कि पिछले चुनावों में मीडिया की इस प्रवृत्ति के सामने राजनैतिक दल झुक गये यदि वे ऐसा नहीं करते तो इस पर अंकुश लग सकता था। उन्होंने कहा कि अकेले पत्रकार यह लडाई नहीं लड़ पायेंगे। इसके लिये समाज और राजनीतिक दलों को जागरुक करना होगा।
वरिष्ठ पत्रकार श्री श्याम खोसला ने कहा कि पत्रकारिता नाजुक और चुनौती से भरे दौर से गुजर रही है और यह खतरे बाहर के नहीं मीडिया के भीतर से ही पैदा हुये हैं। मीडिया को अपने इन संकटों और कमजोरियों को पहचानना होगा। और आत्म निरीक्षण करना होगा। श्री खोसला ने कहा कि मीडिया की विश्वसनीयता घटी है। पत्रकारों में सच्चाई ढूंढने की प्रवृत्ति कम हुई है। आज पत्रकारों को सच को सामने रखना होगा। पेड न्यूज की चर्चा करते हुये श्री खोसला ने कहा कि प्रेस कौंसिल के वर्तमान स्वरुप में बदलाव करते हुए एक नई मीडिया कौंसिल बनाये जाने की जरुरत पर जोर दिया। एक शक्तिशाली और प्रभावी कौंसिल ही मीडिया को नियंत्रित करने में कारगर हो सकती है।। उन्होंनेे कहा कि इंडियन मीडिया संंेटर समर्पित व्यक्तियों के माध्यम से मीडिया को बदलने का एक प्रयास है।
इस अवसर पर माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार वि.वि. के कुलपति प्रो. ब्रजकिशोर कुठियाला ने कहा कि जिस तरह का बदलाव हो रहा है उसे देखते हुए भविष्य में समाज की रचना मीडिया संवाद पर ही निर्भर करेगी। इसलिए यदि समाज को सुनियोजित करना है तो मीडिया को सुनियोजित करना होगा। इसके लिए मीडिया और समाज दोनों को मिलकर भी कार्य करना होगा। कार्यक्रम में स्वागत उद्बोधन वरिष्ठ पत्रकार एवं उपाध्यक्ष राष्ट्रीय एकता समिति श्री रमेश शर्मा जी ने दिया। कार्यक्रम का संचालन पत्रकार श्री राघवेन्द्र सिंह ने किया और आभार प्रदर्शन मीडिया कार्यकर्ता श्री अनिल सौमित्र ने किया।
पहले जो पत्रकारिता भारतीय मूल्यों को लेकर की जाती थी आज उसके स्वरूप मे व्यापारिक मूल्य अधिक हावी होते जा रहे है इसे देखते हुए मीडिया की कार्यप्रणाली में सुधार की जरुरत है और मीडिया को स्वयं ही इसकी शुरुआत करनी होगी। यह विचार जनसंपर्क,ं संस्कृति, एवं उच्च शिक्षा मंत्री श्री लक्ष्मीकांत शर्मा ने इंडियन मीडिया सेंटर की गवर्निंग बोर्ड की दो दिवसीय राष्ट्ीय बैठक के उदृघटन सत्र में मुख्य अतिथि के रुप में व्यक्त किए।
बैठक की अध्यक्षता इंडियन मीडिया सेंटर के अध्यक्ष, वरिष्ठ पत्रकार एवं सांसद डॉ.चंदन मित्रा ने की। इस अवसर पर वरिष्ठ पत्रकार एवं इंडियन मीडिया सेंटर के निदेशक श्याम खोसला एवं माखनलाल चतुर्वेदी राष्टीय पत्रकारिता वि.वि.के कुलपति प्रो. ब्रजकिशोर कुठियाला, पंजाब पुलिस के पूर्व महानिदेशक श्री पी.सी. डोगरा विशिष्ट अतिथि के रुप में उपस्थित थे। बैठक का आयोजन इंडियन मीडिया सेंटर के मध्यप्रदेश चैप्टर द्वारा किया गया था। बैठक का समापन रविवार को मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चैहान करेंगे।
श्री शर्मा ने कहा कि आज मीडिया में नकारात्मक बातों को विशेष रूप से प्रभावी बनाया जा रहा है। सरकार व प्रशासन में जो गलत हो रहा है उसे मीडिया को जरुर छापना व दिखाना चाहिये। पर जब अच्छा काम हो तो वह भी सामने लाया जाना चाहिये। उन्होंने युवा पत्रकारों का आहवान करते हुये कहा कि भारतीय मूल्यों की स्थापना के लिये अच्छे साहित्य का अध्ययन करना चाहिये।
कार्यक्रम के अध्यक्ष डॉ. चंदन मित्रा ने कहा कि पत्रकारिता में हो रहे अवमूल्यन को रोकने के लिए हमें समाज का नैतिक अवमूल्यन रोकना होगा। इस लिहाज से हमें मीडिया की कमजोरियों पर व्यापक दृष्टिकोण से विचार करना चाहिये। मीडिया की विकृतियों पर अंकुश लगाने के लिये मीडिया को स्वयं रास्ता तलाशना होगा। पेड न्यूज की बढती प्रवृत्ति पर चिंता व्यक्त करते हुये उन्होंने कहा कि पिछले चुनावों में मीडिया की इस प्रवृत्ति के सामने राजनैतिक दल झुक गये यदि वे ऐसा नहीं करते तो इस पर अंकुश लग सकता था। उन्होंने कहा कि अकेले पत्रकार यह लडाई नहीं लड़ पायेंगे। इसके लिये समाज और राजनीतिक दलों को जागरुक करना होगा।
वरिष्ठ पत्रकार श्री श्याम खोसला ने कहा कि पत्रकारिता नाजुक और चुनौती से भरे दौर से गुजर रही है और यह खतरे बाहर के नहीं मीडिया के भीतर से ही पैदा हुये हैं। मीडिया को अपने इन संकटों और कमजोरियों को पहचानना होगा। और आत्म निरीक्षण करना होगा। श्री खोसला ने कहा कि मीडिया की विश्वसनीयता घटी है। पत्रकारों में सच्चाई ढूंढने की प्रवृत्ति कम हुई है। आज पत्रकारों को सच को सामने रखना होगा। पेड न्यूज की चर्चा करते हुये श्री खोसला ने कहा कि प्रेस कौंसिल के वर्तमान स्वरुप में बदलाव करते हुए एक नई मीडिया कौंसिल बनाये जाने की जरुरत पर जोर दिया। एक शक्तिशाली और प्रभावी कौंसिल ही मीडिया को नियंत्रित करने में कारगर हो सकती है।। उन्होंनेे कहा कि इंडियन मीडिया संंेटर समर्पित व्यक्तियों के माध्यम से मीडिया को बदलने का एक प्रयास है।
इस अवसर पर माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार वि.वि. के कुलपति प्रो. ब्रजकिशोर कुठियाला ने कहा कि जिस तरह का बदलाव हो रहा है उसे देखते हुए भविष्य में समाज की रचना मीडिया संवाद पर ही निर्भर करेगी। इसलिए यदि समाज को सुनियोजित करना है तो मीडिया को सुनियोजित करना होगा। इसके लिए मीडिया और समाज दोनों को मिलकर भी कार्य करना होगा। कार्यक्रम में स्वागत उद्बोधन वरिष्ठ पत्रकार एवं उपाध्यक्ष राष्ट्रीय एकता समिति श्री रमेश शर्मा जी ने दिया। कार्यक्रम का संचालन पत्रकार श्री राघवेन्द्र सिंह ने किया और आभार प्रदर्शन मीडिया कार्यकर्ता श्री अनिल सौमित्र ने किया।
भारतीय मूल्य ही मीडिया को दिशा देने में सक्षम : मुख्यमंत्री श्री चौहान
भोपाल 12 सितंबर 2010
भौतिकता से दग्ध मानवता को शांति और दिशा देने का काम भारतीय मूल्य और दर्शन करेंगे। भारतीय मूल्यों और राष्ट्रीय भावना को संरक्षित करने और प्रसारित करने की जिम्मेदारी मीडिया को निभानी होगी। उक्त विचार प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चैहान ने इंडियन मीडिया सेंटर की गवर्निंग बोर्ड की मीटिंग में मीडिया में भारतीय मूल्यों के समावेश विषय पर व्यक्त किए। इस दो दिवसीय बैठक का आयोजन इंडियन मीडिया सेंटर के भोपाल चैप्टर ने किया। सत्र की अध्यक्षता वरिष्ठ पत्रकार डॉ. चंदन मित्रा ने की।
इस अवसर पर मुख्यमंत्री श्री चैहान ने कहा कि आज भारतीय मूल्यों और परंपराओं को तोड़ने का प्रयास किया जा रहा है। मीडिया भी इसमें शामिल है। मीडिया को मर्यादित होना होगा। श्री चैहान ने आजादी के पूर्व और बाद के मीडिया की सकारात्मक और संर्घषशील भूमिका की चर्चा करते हुए कहा कि आज मीडिया व्यावसायिक हो रहा है जिसके कारण वह संकट के दौर से गुजर रहा है। श्री चैहान ने पेड न्यूज की चर्चा करते हुए इसे समाज के लिए जहर के समान बताया। उन्होंने कहा कि देश तब मजबूत होगा जब नागरिक राष्ट्रीय भावना से ओतप्रोत होंगे। मीडिया को समाज में राष्ट्रीयता की भावना जागृत करने का कार्य करना चाहिए।
सत्र की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ पत्रकार डॉ चंदन मित्रा ने कहा कि भारतीय मूल्यों की रचना में गौरवशाली इतिहास का महत्वपूर्ण योगदान रहा है पर आज उस इतिहास की उपेक्षा हो रही है जिसके परिणामस्वरूप भारतीय मूल्यों में गिरावट आ रही है। नई पीढ़ी इतिहास और परम्पराओं से अनभिज्ञ है। मीडिया भी भारतीय मूल्यों पर हमला कर रहा है। उन्होंने आरोप लगाया कि पत्रकारिता में राष्ट्रीय भावना को हीन करने की कोशिशें की जा रही हैं। उन्होंने मीडिया से शाश्वत भारतीय मूल्यों को सामने लाने का आहवान किया। .श्री मित्रा ने नई पीढ़ी को भारतीय इतिहास और मूल्यों से परिचित करवाने हेतु इसे पाठ्यक्रमों में शामिल करने की बात कही।
इस अवसर पर माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बी. के. कुठियाला ने कहा कि आज देश में जो पत्रकारिता की जा रही है वह भारत के लिए तो है लेकिन भारतीयों के लिए नहीं है। इस प्रवृत्ति का कारण बताते हुए उन्होंने कहा कि भारतीय मीडिया की उत्पत्ति, सिद्धांत और आधार पश्चिमी रहे हैं। उन्होंने कहा कि पत्रकारिता का आधार सत्य है पर आज की पत्रकारिता अप्रिय और अधूरे सत्य को अभिव्यक्त कर रही है। श्री कुठियाला ने कहा कि पत्रकारिता का व्यापारीकरण उचित नहीं है समाज उसे बल देकर सामाजिक उददेश्यों की प्राप्ति का साधन बना सकता है।
इंडियन मीडिया सेंटर के संयोजक और मध्यप्रदेश राष्ट्रीय एकता समिति के उपाध्यक्ष श्री रमेश शर्मा ने कहा कि आज देश का मीडिया भारत की प्राथमिकताओं के साथ नहीं है वह विदेशी ताकतोंे के साथ दिखता है। मीडिया राष्ट्र और राष्ट्रवाद को अनदेखा कर रहा है जो कि हमारी मानसिक दासता का द्योतक है।
कार्यक्रम के दूसरे सत्र में पेड न्यूज पर चर्चा करते हुए वरिष्ठ पत्रकार श्री के. जी सुरेश ने कहा कि आज विज्ञापनों और पेड न्यूज को बतौर समाचार दिखाया जा रहा है। आज पत्रकारों को आत्ममंथन की आवश्यकता है क्योंकि उनकी इस कमजोरी के कारण राजनेता उनको कटघरे में खड़ा कर रहे हैं। इस विषय पर पत्रकारों को सोचना होगा कि यदि उन्होंेने अपनी इस कमजोरी को खत्म नहीं किया तो हमारी विश्वनीयता समाप्त हो जाएगी।
कार्यक्रम में उपस्थित भारतीय जनसंचार संस्थान के प्रो.प्रदीप माथुर ने कहा कि मीडिया में आ रही गिरावट के लिए सिर्फ पत्रकार जिम्मेदार नहीं हैं बल्कि समाज को भी इसकी जिम्मेदारी लेनी होगी और घटिया सामग्री वाले मीडिया को नकारना होगा। उन्होंने कहा कि पेड न्यूज के लिए पैसे देने वाला भी उतना ही जिम्मेदार है जितना कि लेने वाला। इसलिए मीडिया और पत्रकारों के साथ ही समाज को भी जिम्मेदारी का निर्वहन करना होगा।
कार्यक्रम में आए प्रतिभागियों का धन्यवाद श्री रमेश शर्मा ने किया। प्रथम सत्र में श्री संजय द्विवेदी तथा दूसरे सत्र में कार्यक्रम का संचालन श्री अनिल सौमित्र ने किया।
भौतिकता से दग्ध मानवता को शांति और दिशा देने का काम भारतीय मूल्य और दर्शन करेंगे। भारतीय मूल्यों और राष्ट्रीय भावना को संरक्षित करने और प्रसारित करने की जिम्मेदारी मीडिया को निभानी होगी। उक्त विचार प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चैहान ने इंडियन मीडिया सेंटर की गवर्निंग बोर्ड की मीटिंग में मीडिया में भारतीय मूल्यों के समावेश विषय पर व्यक्त किए। इस दो दिवसीय बैठक का आयोजन इंडियन मीडिया सेंटर के भोपाल चैप्टर ने किया। सत्र की अध्यक्षता वरिष्ठ पत्रकार डॉ. चंदन मित्रा ने की।
इस अवसर पर मुख्यमंत्री श्री चैहान ने कहा कि आज भारतीय मूल्यों और परंपराओं को तोड़ने का प्रयास किया जा रहा है। मीडिया भी इसमें शामिल है। मीडिया को मर्यादित होना होगा। श्री चैहान ने आजादी के पूर्व और बाद के मीडिया की सकारात्मक और संर्घषशील भूमिका की चर्चा करते हुए कहा कि आज मीडिया व्यावसायिक हो रहा है जिसके कारण वह संकट के दौर से गुजर रहा है। श्री चैहान ने पेड न्यूज की चर्चा करते हुए इसे समाज के लिए जहर के समान बताया। उन्होंने कहा कि देश तब मजबूत होगा जब नागरिक राष्ट्रीय भावना से ओतप्रोत होंगे। मीडिया को समाज में राष्ट्रीयता की भावना जागृत करने का कार्य करना चाहिए।
सत्र की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ पत्रकार डॉ चंदन मित्रा ने कहा कि भारतीय मूल्यों की रचना में गौरवशाली इतिहास का महत्वपूर्ण योगदान रहा है पर आज उस इतिहास की उपेक्षा हो रही है जिसके परिणामस्वरूप भारतीय मूल्यों में गिरावट आ रही है। नई पीढ़ी इतिहास और परम्पराओं से अनभिज्ञ है। मीडिया भी भारतीय मूल्यों पर हमला कर रहा है। उन्होंने आरोप लगाया कि पत्रकारिता में राष्ट्रीय भावना को हीन करने की कोशिशें की जा रही हैं। उन्होंने मीडिया से शाश्वत भारतीय मूल्यों को सामने लाने का आहवान किया। .श्री मित्रा ने नई पीढ़ी को भारतीय इतिहास और मूल्यों से परिचित करवाने हेतु इसे पाठ्यक्रमों में शामिल करने की बात कही।
इस अवसर पर माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बी. के. कुठियाला ने कहा कि आज देश में जो पत्रकारिता की जा रही है वह भारत के लिए तो है लेकिन भारतीयों के लिए नहीं है। इस प्रवृत्ति का कारण बताते हुए उन्होंने कहा कि भारतीय मीडिया की उत्पत्ति, सिद्धांत और आधार पश्चिमी रहे हैं। उन्होंने कहा कि पत्रकारिता का आधार सत्य है पर आज की पत्रकारिता अप्रिय और अधूरे सत्य को अभिव्यक्त कर रही है। श्री कुठियाला ने कहा कि पत्रकारिता का व्यापारीकरण उचित नहीं है समाज उसे बल देकर सामाजिक उददेश्यों की प्राप्ति का साधन बना सकता है।
इंडियन मीडिया सेंटर के संयोजक और मध्यप्रदेश राष्ट्रीय एकता समिति के उपाध्यक्ष श्री रमेश शर्मा ने कहा कि आज देश का मीडिया भारत की प्राथमिकताओं के साथ नहीं है वह विदेशी ताकतोंे के साथ दिखता है। मीडिया राष्ट्र और राष्ट्रवाद को अनदेखा कर रहा है जो कि हमारी मानसिक दासता का द्योतक है।
कार्यक्रम के दूसरे सत्र में पेड न्यूज पर चर्चा करते हुए वरिष्ठ पत्रकार श्री के. जी सुरेश ने कहा कि आज विज्ञापनों और पेड न्यूज को बतौर समाचार दिखाया जा रहा है। आज पत्रकारों को आत्ममंथन की आवश्यकता है क्योंकि उनकी इस कमजोरी के कारण राजनेता उनको कटघरे में खड़ा कर रहे हैं। इस विषय पर पत्रकारों को सोचना होगा कि यदि उन्होंेने अपनी इस कमजोरी को खत्म नहीं किया तो हमारी विश्वनीयता समाप्त हो जाएगी।
कार्यक्रम में उपस्थित भारतीय जनसंचार संस्थान के प्रो.प्रदीप माथुर ने कहा कि मीडिया में आ रही गिरावट के लिए सिर्फ पत्रकार जिम्मेदार नहीं हैं बल्कि समाज को भी इसकी जिम्मेदारी लेनी होगी और घटिया सामग्री वाले मीडिया को नकारना होगा। उन्होंने कहा कि पेड न्यूज के लिए पैसे देने वाला भी उतना ही जिम्मेदार है जितना कि लेने वाला। इसलिए मीडिया और पत्रकारों के साथ ही समाज को भी जिम्मेदारी का निर्वहन करना होगा।
कार्यक्रम में आए प्रतिभागियों का धन्यवाद श्री रमेश शर्मा ने किया। प्रथम सत्र में श्री संजय द्विवेदी तथा दूसरे सत्र में कार्यक्रम का संचालन श्री अनिल सौमित्र ने किया।
सोमवार, 6 सितंबर 2010
हिंदू कभी आतंकवादी नहीं हो सकता
मीडिया आतंकवाद के लिए आॅक्सीजन का काम करती है
भोपाल। हिंदू कभी भी आतंकवादी नहीं हो सकता। हिंदू कट्टरपंथ भी विश्व शांति के लिए होगा क्योंकि वो तो हमें अपनी परंपराएं निभाना ही सिखाएगा, जिसमें आतंकवाद शामिल नहीं है। वर्तमान में भारतीय समाज आतंकवाद से लड़ाई की निर्णायक राह तलाश रहा है। इसी संदर्भ में कुछ लोगों ने भटक कर गलती कर दी। इसी वजह से गृहमंत्री चिदंबरम को ‘भगवा आतंकवाद’ शब्द गढ़ने को मौका मिल गया। हिन्दू आतंकवाद या भगवा आतंकवाद का इसका सृजन इस्लामिक, माओवादी आतंकवाद तथा अन्य्ा समाज विरोधी गतिविधिय्ाों से लोगों का ध्य्ाान हटाने के उद्देश्य्ा से किय्ाा जा रहा है। भोपाल में स्वैच्छिक संस्था स्पंदन और मप्र राष्ट्रीय एकता समिति द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकारिणी सदस्य राममाधव यह बात कही। श्री राममाधव भोपाल के शहीद भवन में आयोजित एक संगोष्ठी को संबोधित कर रहे थे। संगोष्ठी का विषय था - ‘आतंकवाद की राजनीति और मीडिया’।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पूर्व प्रवक्ता श्री राममाधव ने कहा कि आतंकवाद के बारे में पूरी दुनिय्ाा मे आम सहमति है और इसकी समाप्ति के लिए तमाम देश अनेक तैय्ाारिय्ाां भी कर रहे हैं। लेकिन दुर्भाग्य्ा से आतंकवाद के विषय्ा में भारत में कोई स्पष्टता नहीं है। वर्तमान केंद्र सरकार ने कई आतंकवादी घटनाओं पर कोई कार्रवाई नहीं की जबकि अजमेर शरीफ की घटना को लेकर भगवा आतंकवाद का शब्दजाल रच दिया। उन्होंने कहा कि हिंदू आतंकवाद की घटनाओं से त्रस्त है और अगर हिन्दू आतंकवाद के रास्ते पर आ रहे हैं तो इसके जवाबदारों के खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए। उन्होंने पूर्व सुरक्षा विशेषज्ञ के हवाले से य्ाह प्रश्न खडा किय्ाा कि भगवा आतंकवाद का हौवा खडा करने में कहीं सेक्य्ाूरिटी ब्य्ाूरों का हाथ तो नहीं। श्री राम माधव का कहना था कि अन्य्ा जरूरी मुद्दों से हट कर भगवा आतंकवाद की बात करना राजनीति का हिस्सा है, हमें इस बात को समझ्ाना होगा। आतंकवाद तथा माओवाद का उद्देश्य्ा बंदूक के बल पर सत्ता को हासिल करना होता है, जबकि हिन्दूवादी संगठन सत्ता की लालसा से कोई ऐसा कायर््ा नहीं कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि आतंकवाद के खिलाफ संघर्ष करना किसी वर्ग य्ाा संप्रदाय्ा के विरोध में जाना नहीं है। हम लडे न लडे तब भी इसके विरुद्ध्ा दुनिय्ाा लडेगी। जो लोग हिन्दू फण्डामेंटलिज्म की बात कह रहे हैं, तो उनके लिए य्ाही कहना सही होगा कि य्ाह है भी तो बुरा नहीं बल्कि अच्छा ही है।
उन्होंने मीडिया से आग्रह करते हुए कहा कि उसे हर मसले को राजनीतिक दृष्टि से नहीं देखना चाहिए। आतंकवाद से जुड़ी प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय घटनाओं का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि इन घटनाओं के प्रस्तुतीकरण में मीडिया को संतुलन का ध्यान रखना चहिए। उन्होंने पश्चिम की मीडिया की भारत के मीडिया से तुलना करते हुए कहा कि वहां आतंकवाद से जुड़ी घटनाओं में मीडिया ने तथ्य राष्ट्रहित को ध्यान में रखते हुए पेश किए, जबकि यहां पर अनेक अवसरों पर उचित संतुलन का आभाव नजर आता है। मीडिया को अपनी आजादी का उपयोग जिम्मेदारी के साथ करना चाहिए।
हिन्दुवादी राजनीतिक दल शिवसेना के मुखपत्र सामना के संपादक प्रेम शुक्ल वक्ता के बतौर बोलते हुए उन्होंने कहा कि आतंक का रंग निर्धारण करने से पहले आतंक के ढंग को समझना होगा. इस ढंग को समझने के लिए जिस आंख की जरूरत है उसका भारत में सर्वथा अभाव है. वह आंख कुछ और नहीं बल्कि मीडिया है। उन्होंने यह भी कहा कि भारतीय मीडिया का चरित्र इस मामले में नासमझी वाला है, लेकिन अगर हमारे नेताओं के पास ही कोई विश्वदृष्टि नहीं है तो भला मीडिया से यह उम्मीद कैसे की जाए कि कि वे आतंकवाद की गंभीर चुनौती को आंकने के लिए अपनी कोई दृष्टि विकसित कर लेगी।
श्री शुक्ल ने कहा कि आतंकवाद की कल्पना बहुत प्राचीन है, हमारे सभी अवतारी पुरूषों ने जन-चेतना को आतंकवाद के खिलाफ खडा किय्ाा है। उन्होंने कहा कि भगवा आतंकवाद के विषय्ा में पी. चितम्बरम को जवाब देना चाहिए। धर्म के नाम पर जब जिéा ने देश को दो भागांे में बांटा, वह भी आतंकवादी घटना थी लेकिन उसे किसी ने आतंकवाद नहीं कहा। इसी तरह कश्मीर में लगातार हो रही आतंकी घटनाओं को आतंकवाद नहीं माना गय्ाा लेकिन 9@11 की घटना के बाद से इस्लामिक आतंकवाद का उदय्ा हुआ। उन्होंने कहा सनातन धर्म को मानने वालों ने हिन्दुत्व को स्थापित करने के लिए कभी आतंकवाद को नहीं अपनाय्ाा। साध्वी प्रज्ञा सिंह तथा कर्नल पुरोहित की कायर््ाशैली और अलकाय्ादा की कायर््ाशैली में बहुत भिéता है। जेहाद पर खडा आतंकवाद पूरी तरह से सुनिय्ाोजित और इस्लाम का परचम लहराने के उद्देश्य्ा से कायर््ारत है। जबकी कोई भी हिन्दूवादी लोक कल्य्ााण के बारे में ही सोचता है। जिन हिन्दूवादी लोगों को आतंक फैलाने के नाम पर हिरासत में लिय्ाा गय्ाा है। उनकी नार्को टेस्ट जैसी जांच करने के बाद भी कोई पुख्ता सबूत न मिलने पर कहा जाता है कि य्ो लोग य्ाोग करते हैं इसलिए इनसे सच नहीं उगलवाय्ाा जा सका।
उन्होंने कहा कि हमारा मीडिया आतंकवाद से लड़ने के बजाए लोगों में भय पैदा करता है, जबकि यूरोप और अमेरिका ने मीडिया को आतंकवाद के खिलाफ हथियार की तरह उपयोग किया है। इराक की घटना इसका उदाहरण है जहां बिना किसी रासायनिक हथियार के मिले पूरे देश पर कब्जा कर लिया गया जबकि भोपाल गैस त्रासदी में 15000 से भी अधिक लोगों के मारे जाने के बाद भी हम एक गुनाहगार तक को सजा नहीं दिलवा पाए। अमेरिका का मीडिया अपने देश के हित में काम करता है जबकि भारत का मीडिया देश का मनोबल तोड़ने का काम करता है। श्री शुक्ल ने मार्गे्रट थैचर के वक्तव्य को उद्धृत करते हुए कि भारत में भी मीडिया आतंकवाद के लिए आॅक्सीजन का काम कर रही है।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ राजनेता महेश जोशी ने कहा कि हिंदू इसलिए कभी आतंकवादी नहीं हो सकता क्योंकि हमारे यहां जीव हत्या को पाप माना गया है। हमारे घरों की माताएं-बहनें हमें कीड़े तक नहीं मारने देतीं, ऐेसी शिक्षा के बाद हम किसी की जान कैसे ले सकते हैं। उन्होंने कहा कि अगर हमस ब एक हो जाएं तो आतंकवाद जड़ से समाप्त हो सकता है। कार्यक्रम का आयोजन स्वैच्छिक संस्था स्पंदन और राष्ट्रीय एकता समिति ने किया था।
अनिल सौमित्र भोपाल से
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