बुधवार, 21 अगस्त 2013

मीडिया चौपाल - 2013


जन-जन के लिए विज्ञान, जन-जन के लिए संचार 14-15, सितम्बर, 2013 प्रिय साथी, संचार क्रांति के इस वर्तमान समय में सूचनाओं की विविधता और बाहुल्यता है. जनसंचार माध्यमों (मीडिया) का क्षेत्र निरंतर परिवर्तित हो रहा है. सूचना और माध्यम, एक तरफ व्यक्ति को क्षमतावान और सशक्त बना रहे हैं, समाधान दे रहे हैं, वहीं अनेक चुनौतियां और समस्याएँ भी पैदा हो रही हैं. इंटरनेट आधारित संचार के तरीकों ने लगभग एक नए समाज का निर्माण किया है जिसे आजकल "नेटीजन" कहा जा रहा है. लेकिन मीडिया के इस नए रूप के लिए उपयोग किये जाने वाली पदावली - नया मीडिया, सोशल मीडिया आदि को लेकर भी सवाल उठ रहे हैं. लेकिन एक बात पर अधिकाँश लोग सहमत हैं कि "मीडिया का यह नया रूप लोकतांत्रिक है. यह लोकतांत्रिक मूल्यों को बढ़ावा दे रहा है. मीडिया पर से कुछेक लोगों या घरानों का एकाधिकार टूट रहा है. आपको स्मरण होगा कि पिछले वर्ष 12 अगस्त, 2012 को "विकास की बात विज्ञान के साथ- नए मीडिया की भूमिका" विषय को आधार बनाकर एक दिवसीय "मीडिया चौपाल-2012" का आयोजन किया गया था. इस वर्ष भी यह आयोजन किया जा रहा है. कोशिश है कि "मीडिया चौपाल" को सालाना आयोजन का रूप दिया जाए. गत आयोजन की निरंतरता में इस वर्ष भी यह आयोजन 14-15 सितम्बर, 2013 (शनिवार-रविवार) को किया जा रहा है. यह आयोजन मध्यप्रदेश विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद तथा स्पंदन (शोध, जागरूकता और कार्यक्रम क्रियान्वयन संस्थान) द्वारा संयुक्त रूप से हो रहा है. इस आयोजन का मुख्य उद्देश्य विकास में मीडिया की सकारात्मक भूमिका को बढ़ावा देना है. इस वर्ष का थीम होगा- "जन-जन के लिए विज्ञान, जन-जन के लिए मीडिया". इसी सन्दर्भ में विभिन्न चर्चा-सत्रों के लिए विषयों का निर्धारण इस प्रकार किया गया है- 1. मानव सभ्यता का भारतीय और यूरोपीय परिपेक्ष्य और मीडिया तकनीक, 2. नया मीडिया, नई चुनौतियां (तथ्य, कथ्य और भाषा के विशेष सन्दर्भ में) 3. जन-माध्यमों का अंतर्संबंध और नया मीडिया, 4. ग्रामीण भारत का सूचना सशक्तिकरण और नया मीडिया, 5. नये (सोशल) मीडिया पर सरकारी नियमन की कोशिशें : कितना जरूरी, कितना जायज. कृपया विशेष वक्तव्य और प्रस्तुति देने के इच्छुक प्रतिभागी इस सम्बन्ध में एक सप्ताह पूर्व (5 सितम्बर,2013 तक) सूचित करेंगे तो सत्रों की विस्तृत रूपरेखा तैयार करने में सुविधा होगी. इस सम्बन्ध में अन्य जानकारी के लिए संपर्क कर सकते हैं- अनिल सौमित्र - 09425008648, 0755-2765472. mediachaupal2013@gmail.com, anilsaumitra0@gmail.com "मीडिया चौपाल-2013" में सहभागिता हेतु अभी तक 1. श्री आर. एल. फ्रांसिस (नई दिल्ली) 2. श्री हर्षवर्धन त्रिपाठी (नई दिल्ली), 3. श्री अनिल पाण्डेय ( न संडे इंडियन, नई दिल्ली), 4. श्री यशवंत सिंह (भड़ास डाटकॉम, नई दिल्ली), 5. श्री संजीव सिन्हा (प्रवक्ता डाटकॉम, नई दिल्ली), 6. श्री रविशंकर (नई दिल्ली), 7. श्री संजय तिवारी (विस्फोट डाटकॉम, नई दिल्ली), 8. श्री आशीष कुमार अंशू, 9. श्री आवेश तिवारी, 10. श्री अनुराग अन्वेषी 11.श्री सिद्धार्थ झा, 12. श्री भावेश झा, 13. श्री दिब्यान्शु कुमार (दैनिक भास्कर, रांची), 14. श्री पंकज साव (रांची), 15. श्री उमाशंकर मिश्र (अमर उजाला, नई दिल्ली), 16. श्री उमेश चतुर्वेदी (नई दिल्ली), 17. श्री भुवन भास्कर (सहारा टीवी, नई दिल्ली), 18. श्री प्रभाष झा (नवभारत टाईम्स डाटकॉम, नई दिल्ली), 19. श्री स्वदेश सिंह (नई दिल्ली), 20. श्री पंकज झा (दीपकमल,रायपुर), 21. श्री निमिष कुमार (मुम्बई), 22. श्री चंद्रकांत जोशी (हिन्दी इन डाटकॉम, मुम्बई), 23. श्री प्रदीप गुप्ता (मुम्बई), 24. श्री संजय बेंगानी (अहमदाबाद), 25. श्री स्वतंत्र मिश्र (दैनिक भास्कर, नई दिल्ली) 26. श्री ललित शर्मा (बिलासपुर), 27. श्री बी एस पाबला (रायपुर), 28. श्री लोकेन्द्र सिंह (ग्वालियर), 29. श्री सुरेश चिपलूनकर (उज्जैन), 30. श्री अरुण सिंह (लखनऊ), 31. सुश्री संध्या शर्मा (नागपुर), 32. श्री जीतेन्द्र दवे (मुम्बई), 33. श्री विकास दावे ( कार्यकारी संपादक, देवपुत्र, इंदौर), 34. श्री राजीव गुप्ता 35. सुश्री वर्तिका तोमर, 36. ठाकुर गौतम कात्यायन पटना, 37. अभिषेक रंजन 38. श्री केशव कुमार 39. श्री अंकुर विजयवर्गीय (नई दिल्ली) 40. जयराम विप्लव (जनोक्ति.कॉम, नई दिल्ली) ने अपनी सभागिता की सूचना दी है. भोपाल से 1. श्री रमेश शर्मा (वरिष्ठ पत्रकार), 2. श्री गिरीश उपाध्याय (वरिष्ठ पत्रकार), 3. श्री दीपक तिवारी (ब्यूरो चीफ, न वीक), 4. सुश्री मुक्ता पाठक (साधना न्यूज), 5. श्री रवि रतलामी (वरिष्ठ ब्लॉगर), 6. श्रीमती जया केतकी (स्वतंत्र लेखिका), 7. श्रीमती स्वाति तिवारी (साहित्यकार), 8. श्री महेश परिमल (स्वतंत्र लेखक), 9. श्री अमरजीत कुमार (स्टेट न्यूज चैनल), 10. श्री रविन्द्र स्वप्निल प्रजापति (पीपुल्स समाचार), 11. श्री राजूकुमार (ब्यूरो चीफ, न संडे इंडियन), 12. श्री शिरीष खरे (ब्यूरोचीफ, तहलका), 13. श्री पंकज चतुर्वेदी (स्तंभ लेखक), 14. श्री संजय द्विवेदी (संचार विशेषज्ञ), 15. श्रीमती शशि तिवारी (सूचना मंत्र डाटकॉम), 16. श्री शशिधर कपूर (संचारक), 17. श्री हरिहर शर्मा, 18. श्री गोपाल कृष्ण छिबबर, 19. श्री विनोद उपाध्याय, 20. श्री विकास बोंदिया, 21. श्री रामभुवन सिंह कुशवाह, 22. श्री हर्ष सुहालका, 23. सुश्री सरिता अरगरे (वरिष्ठ ब्लॉगर), 24. श्री राकेश दूबे (एक्टिविस्ट), आदि रहेंगे ही. इस चौपाल में प्रो. प्रमोद के. वर्मा (महानिदेशक, म.प्र. विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद), श्री मनोज श्रीवास्तव (प्रमुख सचिव, मुख्यमंत्री मध्यप्रदेश शासन), प्रो. बृज किशोर कुठियाला (कुलपति, माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय भोपाल), श्री राममाधव जी (अखिल भारतीय सह-संपर्क प्रमुख, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ), 2. श्रीमती स्मृति ईरानी (वरिष्ठ भाजपा नेत्री) के उपस्थित रहने की भी संभावना है. कुछ और भी नाम हैं जिन्होंने आमंत्रण स्वीकार कर सहभागिता के लिए प्रयास करने का आश्वासन दिया है- श्री चंडीदत्त शुक्ल (मुम्बई), श्री प्रेम शुक्ल (सामना, मुम्बई), श्री सुशांत झा(नई दिल्ली), श्री लालबहादुर ओझा (नई दिल्ली), प्रो. शंकर शरण (स्तंभकार, नई दिल्ली) श्री नलिन चौहान (नई दिल्ली), श्री शिराज केसर, सुश्री मीनाक्षी अरोड़ा (इंडिया वाटर पोर्टल, नई दिल्ली), श्री हितेश शंकर (संपादक, पांचजन्य, नई दिल्ली). अब न्यौता भेजने का समय खत्म हो चुका है. इस पत्र के बाद अब आगे की सूचनाएं भेजी जायेंगी. कोशिश हो कि आप सभी की भागीदारी से मीडिया के बारे में एक सार्थक चिंतन व विमर्श हो सके. इसमें आपका सहयोग अपेक्षित है. सादर, (अनिल सौमित्र) संयोजक स्पंदन (शोध, जागरूकता एवं कार्यक्रम क्रियान्वयन संस्थान)

मंगलवार, 13 अगस्त 2013

14-15 सितम्बर को भोपाल में "मीडिया चौपाल 2013" का आयोजन


स्तंभ लेखक, फीचर लेखक, सोशल मीडिया संचारक, ब्लोगर्स और वेब-संचालकों की भागीदारी साथियों! 14-15 सितम्बर (शनिवार-रविवार) को "मीडिया चौपाल- 2013" का आयोजन भोपाल में लगभग सुनिश्चित हुआ है. आप अपनी स्वीकृति, अपना संक्षिप्त परिचय (फोटो सहित) और चौपाल के मुद्दों के बारे में अपने सुझाव भेजने का कष्ट करें. अपेक्षा यह है कि पिछली बार की कमियों को न दुहराया जाए और एक प्रभावी और परिणामपरक चौपाल का आयोजन हो. अभी से ही आरक्षण करा सकें तो असुविधा से बच सकेंगे. पिछली बार इसा मीडिया चौपाल में स्तंभ लेखक, फीचर लेखक, सोशल मीडिया संचारक, ब्लोगर्स और वेब-संचालकों ने भागीदारी की थी. इस बार भी ऐसा ही कुछ इरादा है....anilsaumitra0@gmail.com 09425008648

गुरुवार, 1 अगस्त 2013

वैकल्पिक राजनीति की राजनीति


दिल्ली के मावलंकर हाल में देश को वैकल्पिक राजनीति देने की कवायद क्या देश की राजनीति यूं ही सरपट दौड़ती जाएगी, या अपनी पटरी बदलेगी? राजनीति में क्या कोई बदलाव, कोई परिवर्तन संभव है? आमजनता को अपने ही प्रतिनिधियों पर भरोसा नहीं रहा. जनप्रतिनिधि अब लोकतंत्र का पहरुआ नहीं रहा. शायद था कभी, या कभी पहरुआ बना ही नहीं! क्या किया जाए कि संसद और लोकतंत्र एक-दूसरे के पोषक बनें. आज तो नेता और व्यापारी एक-दूसरे के पोषक बन रहे हैं. राजनैतिक दल बहुराष्ट्रीय कंपनियों के एजेंट जैसे हो गए है. संसदीय व्यवस्था ऐसी है जो अल्पसंख्यक मतदाताओं का प्रतिनिधित्व करती है. ऐसे कई सवाल हैं, कई उधेडबुन हैं जो राजनैतिक रूप से जागरूक और सक्रिय लोगों के मन में असमंजस पैदा करते है. पार्टियों के भीतर और इस तरह की राजनीति को लेकर कई लोग बेचैन हैं. राजनीति में उलझन ही उलझन ही उलझन दिख रहा है. राजनीति की इसी उलझन को सुलझन देने की कवायद हुई २० जुलाई को. दिल्ली के मावलंकर सभागार में देशभर के राजनीतिक नेताओं का जुटान हुआ. हर बार की तरह अगुआ बने के.एन. गोविन्दाचार्य. मंच बना लोकतंत्र बचाओ मोर्चा. मंच पर थे- लोकसत्ता के डा. जयप्रकाश नारायण, एकता परिषद के पी.वी. राजगोपाल, पूर्व केन्द्रीय मंत्री आरिफ मोहम्मद खान, गुजरात परिवर्तन पार्टी के गोवर्धन झड़फिया, बिहार के पूर्व मंत्री रामदेव सिंह यादव, नवल किशोर शाही, पूर्व सांसद सरखन मुर्मू, मध्यप्रदेश भारतीय किसान संघ से निष्कासित और भारतीय किसान प्रजा पार्टी के अध्यक्ष शिवकुमार शर्मा, लोकसत्ता दिल्ली के अनुराग केजरीवाल. इसमें कर्नाटक के पूर्व लोकायुक्त संतोष हेगडे और एनडीए सरकार में प्रधानमंत्री के सलाहकार जगदीश शेट्टार भी शामिल हुए. सभा का संचालन आरएसएस के पूर्व प्रचारक रमेश भाई ने किया. आयोजन की रूपरेखा राष्ट्रीय स्वाभिमान आंदोलन के संयोजक सुरेन्द्र बिष्ट ने प्रस्तुत की. जब से गोविदाचार्य भाजपा से बाहर हुए तभी से साहस, पहल और प्रयास की बात कर रहे है. वो देश के मिजाज को समझाने का दावा तो कर रहे है, लेकिन देश शायद उनके फार्मूले को समझ नहीं पा रहा है. वे भाजपा से छुट्टी लेकर अध्ययन अवकाश पर गए. उदारीकरण का भारत पर पडने वाले प्रभावों का अध्ययन किया. समस्या और समाधान की पहचान की. कुछ औजारों की पहचान भी की. लेकिन अपने समर्थकों और संगठनों में जरूरी लायक न भरोसा पैदा कर पाए और न ही उत्साह और जूनून ही. विकल्पों की तलाश में खुद विकल्प बन गए. कभी रामदेव, तो कभी अन्ना-केजरीवाल! किरण बेदी, हेगडे, केजरीवाल, वेदप्रताप वैदिक, रामबहादुर राय और बाबा रामदेव जैसे लोगों को एकसूत्र में बांधने की कोशिश करते रहे, लेकिन सबके सब धागा (सूत्र) ही लेकर भाग निकले. सब अपनी महत्वाकांक्षाओं के आगे बेबस है. सबकी अपने-अपनी डफली है. वे गोविदाचार्य के राग से अलग है. इस मामले में कांग्रेस और भाजपा एक है. वे किसी विकल्प को पैदा नहीं होने देंगे. आरएसएस मौन है. वह इस मामले किसी प्रकार का रिस्क लेना नहीं चाहता. संघ के लिए राजनीति को ठीक करने या राजनीति का उपयोग करने का सबसे उपयुक्त रास्ता है - भाजपा. फिलहाल वह किसी भी वैकल्पिक राजनीति के बारे में वक्त जाया करने के मूड में नहीं है. इसालिए वह न तो खुलकर गोविन्दाचार्य के साथ है न ही उनके इतर. इसीलिये गोविन्दाचार्य लालकृष्ण आडवानी और संघ के सरकार्यवाह भैयाजी से लेकर गुरूमूर्ति, सुब्रमण्यम स्वामी, जयप्रकाश नारायण, राजगोपाल, बाबूलाल मरांडी, गोवर्धन झड़फिया और शिवकुमार शर्मा तक को साधने में लगे है. वे एक संघ को भले ही न साध सके, शायद इसीलिये अनेक को साधने की कवायद कर रहे है. यह कोई संयोग नहीं है कि वैकल्पिक राजनीति के तमाम प्रयोग करने के बावजूद अब तक कोई निर्णायक परिणाम नहीं दिखा. गोविदाचार्य बिखरावों को बार-बार जोडने की कोशिश करते है. कई बार वे खुद ही टूट जाते है. वो तो उनकी जिद्द है जिसके कारण वे फिर उठा खड़े होते हैं और फिर अनेक को एक करने की कोशिश करते है. वे वैकल्पिक राजनीति की बाधाओं, चुनौतियों और खतरों से बखूबी वाकिफ है. लेकिन वे खतरों के खिलाड़ी बनना चाहते है. इसलिए राजनीति के मैदान को छोडना नहीं चाहते. वे राजनीति के मैदान में राजनीति के खेल को ही बदलने की फिराक में है. इस खेल में वे मित्र-शत्रु भाव भी भूल बैठे है. वे भाजपा के बीच से भी मित्र ढूंढ रहे है, और भाजपा के शत्रुओं के बीच से भी इस खेल के खिलाड़ी. इसीलिये उनके आह्वान पर गुजरात से पुराने संघी-भाजपाई गोवर्धन झड़फिया आये तो मध्यप्रदेश किसान संघ से निष्कासित नेता शिवकुमार शर्मा भी. कहने वाले कह सकते हैं कि गोविदाचार्य के लोकतंत्र बचाओ मोर्चा या वैकल्पिक राजनीतिक मोर्चा में पिटे-पिटाए नेता ही है. उनके साथ वे ही हैं जो किसी काम के नहीं. अपने-अपने इलाके में ये नेता या तो बेअसर हो गए हैं या उपेक्षा के शिकार है. लेकिन यह भी सच है की भारत की वर्तमान राजनीति जुगाड़ की राजनीति है. कौन जाने गोविन्दाचार्य कबाड से जुगाड़ की राजनीति कर रहे हों. भाजपा के महासचिव रहते हुए गोविन्दाचार्य अपना सर्वोत्तम राजनीतिक जीवन जी चुके हैं. वे भाजपा की रग-रग से वाकिफ हैं. वे भाजपा के भीतर के गैर-भाजपाइयों को भी जानते हैं. वे आरएसएस के भाजपाइयों को भी जानते हैं. गोविन्दाचार्य भाजपा ही नहीं राजनीति की कमजोर और मजबूत कड़ियों को जानते-पहचानते है. भाजपा विरोधी अनेक भाजपाई उनके सतत संपर्क में है. वे भाजपा में जोड़-तोड़ और गठजोड के नीतिकार रहे हैं. वे अपना बचा हुआ जीवन राजनीतिक प्रयोगों में लगा रहे हैं. प्रयोग सफल हुआ तो इतिहास बनेगा. नहीं हुआ तो भी गोविन्दाचार्य के पास खोने को कुछ भी नहीं है. आज की जो राजनीति है उसमें पद और प्रतिष्ठा के लिए लोग किसी भी हद तक जा रहे है. गोविन्दाचार्य के पास भी भाजपा में वापसी के अवसर थे. जोड़-तोड़ के सहारे वे भी राज्यसभा में पहुँच सकते थे. लेकिन यह सब न करके वे संसद के बाहर से लोकतंत्र के लिए संघर्ष कर रहे है. राजनीति के केकड़े और मेढकों को एक तराजू पर लाने का प्रयोग कर रहे हैं. इसे तो आग से खेलना ही कहा जाएगा. एक तरफ भाजपा-कांग्रेस जैसी स्थापित पार्टियां, दूसरी तरफ सपा-बसपा और लोजपा जैसी अवसरवादी पार्टियां और तीसरी तरफ विदेशी शक्तियाँ. इनके पास दल-बल और छल है. गोविन्दाचार्य के प्रयासों में संघ हो सकता था, अपनी ताकत और व्याप्ति के साथ, लेकिन संघ साथ नहीं है. अगर कोई साथ है तो देश में व्याप्त जनाक्रोश और बिखरे हुए छिट-पुट लोग. अगर इन बिखरी हुई ताकतों को संगठित कर देश के जनाक्रोश को वैकल्पिक राजनीति की और मोड़ पाए तो गोविन्दाचार्य सफल हो पायेंगे. तभी उनका राजनैतिक वनवास पूरा होगा. तभी विकल्प की राजनीति सार्थक होगी. तभी देश की राजनीति को एक नयी पटरी मिल पायेगी.