क्या इस देश में हिंदु होना गुनाह है???
अमरनाथ श्राइन बोर्ड को वनभूमि के अस्थायी आवंटन के मुद्दे पर हिंदु समुदाय को एक पखवात्रडे में कम से कम तीन बार प्रत्यक्ष रूप से ठेस पहुंचाई गई। अपनी सहिष्णुता और अति उदारता के कारण विशेष पहचान रखने वाला बहुसंख्यक समुदाय आज यदि उग्र प्रतिक्रिया व्यक्त कर रहा था तो यह तय मानें कि उसके लिए पानी सिर से गुजरने जैसी स्थिति बन गई थी । अमरनाथ श्राइन बोर्ड को अस्थायी रूप से 40 हेक्टेयर वन भूमि का आवंटन वापस लेने के बाद पिछले दिनों जम्मू तप रहा था । जम्मू कश्मीर सरकार के फैसले के विरोध में आयोजित भारत बंद को लेकर लोगों का ऑकलन और प्रतिक्रियाएं कुछ हों किन्तु इससे बहुसंख्यक समाज की भावनाएं अवश्य सामने आई ।श्री अमरनाथ करोत्रडों हिंदुओं के लिए श्रध्दा का एक प्रमुख केंद्र है। प्राकृतिक रूप से वहां निर्मित होने वाले हिम लिंग के दर्शन करने हर साल लाखों श्रध्दालु जाते हैं। श्रध्दालुओं की सुविधाओं के लिए वन भूमि के मात्र 40 हेक्टेयर के टुकत्रडे आवंटन के विरूध्द कश्मीर घाटी विशेष कर श्रीनगर में चार पांच दिनों तक चले उपद्रव हुए। इस दौरान भारत-विरोधी और पाक समर्थक नारे गूंजे। उस पर मुफ्ती मोहम्मद सईद की पीडीपी तथा माकपा की जम्मू कश्मीर इकाई ने भूमि आवंटन के खिलाफ रूख अपनाकर बहुसंख्यक समुदाय को भारी ठेस पहुंचाई है। रही-सही कसर जम्मू-कश्मीर की कांग्रेसी सरकार ले पूरी कर दी। अमरनाथ श्राइन बोर्ड से वन भूमि वापस ले ली गई। राज्य सरकार के इस फैसले को पृथकतावादियों और साम्प्रदायिक तत्वों के आगे घुटना टेक देने जैसा माना गया है।समूचा घटनाक्रम इस बात का प्रमाण है कि बहुसंख्यक समुदाय का कम से कम तीन बार अपमान हुआ है। उसकी भावनाओं का ध्यान नही रखा गया। ऐसी स्थिति में यदि देश के एक प्रमुख राजनीतिक दल द्वारा आयोजित बंद को समर्थन मिला है, तब आश्चर्य कैसा ? मध्यप्रदेश के कुछ नगरों में बंद के दौरान उपद्रव, हिंसा और तोत्रडफोत्रड की घटनाएं हुई हैं। निश्चित रूप से इन बातों का समर्थन नहीं दिया जा सकता। फिर भी यह सत्य स्वीकार करना होगा कि कश्मीर घाटी में जो देखने को मिला वह शर्मनाक था, जो हुआ उस पर असहमति व्यक्त की जा सकती है। जम्मू-कश्मीर में बिल्कुल ही भिन्न नजारा था । अमरनाथ श्राइन बोर्ड से अस्थायी भूमि आवंटन वापस लेने पर जम्मू जल रहा था । कश्मीर में मूर्ख पृथकता वादी अपनी जीत का जश्न मना रहे थे । देश के अन्य भागों में रहने वाले मुसलमान कश्मीरी मुसलमानों की हरकत और उनकी सोच पर हैरान थे।अब यह सवाल हर जुबान पर है कि अमरनाथ श्राइन बोर्ड के साथ हुए व्यवहार के बाद भविष्य में अब किसी भी धर्म , पंथ और सम्प्रदाय के लोग किस मुंह से किसी सरकारी जमीन के टुकत्रडे को रियायती दर पर आवंटित करने की मांग कर सकेगे ? इस घटनाक्रम में पूर्व केंद्रीय गृह मंत्री तथा पीडीपी नेता मुफ्ती मोहम्मद सईद और उनकी बेटी महबूबा मुफ्ती का असल चेहरा पूरी तरह सामने आ गया। भूमि आवंटन के मुद्दे पर गुलाम नबी आजाद सरकार से समर्थन वापस लेकर सईद और महबूबा ने अपनी साम्प्रदायिक तथा पृथकतावादी सोच खुद ही उजागर कर दी। इससे पूर्व अनेक अवसरों पर ऐसे स्पष्ट संकेत मिल चुके है कि बाप-बेटी भारत की बजाय पाकिस्तान के हितों की चिन्ता अधिक करते हैं। बहरहाल, भारत बंद को राजनीति से ऊपर देखना चाहिए। यह क्यों नहीं मानें की यह बंद पृथकतावादियों और देशद्रोहियों के प्रति लोगों में बत्रढ रही नाराजगी का प्रमाण रहा।
6 टिप्पणियां:
यह देश का दुर्भाग्य है कि राजनीति की वजह से जन्नत (कश्मीर) बिगड़कर दोजख बनने पर मजबूर है !
कश्मीर की खूबसुरत वादियोँ मेँ उगे कमल और नरगिस के फूलोँ पे खून के निशान !
ये कैसा समय आया है :-(
- लावण्या
भवेश जी,
आपने मुझे लॉजिक के लिए कहा था पर यह सोचिए क्या आप आत्म दया से पीड़ित नहीं है। क्या विलाप मात्र से इस देश में हिंदुत्व क्रांति सम्भव है। माँगिए मत छीनिए। एक हिन्दू बहुल देश में रहकर ऐसी बातें करना दीनता का ही परिचायक है। आपने कहा कि मेरे ब्लॉग में लॉजिक नहीं। पर अब आकर देखिए वेद और कुरआन दोनों का ही लॉजिक समाहित किया गया है।
बन्धु आपके विचार उत्तम हैं। याद हो आपने मुझे आलेखों में लॉजिक की सलाह दीथी पर आपके ब्लॉग में तो तॉजिक है ही नहीं... वो तो एक विलाप मात्र है... जिससे आत्मदया का बोध होता है। इसलिए कृपया मेरे ब्लॉग पर आइए और देखिए किस तरह से कुरआन और वेद दोनों का ही लॉजिक समाहित या गया है।
बन्धु आपके विचार उत्तम हैं। याद हो आपने मुझे आलेखों में लॉजिक की सलाह दीथी पर आपके ब्लॉग में तो तॉजिक है ही नहीं... वो तो एक विलाप मात्र है... जिससे आत्मदया का बोध होता है। इसलिए कृपया मेरे ब्लॉग पर आइए और देखिए किस तरह से कुरआन और वेद दोनों का ही लॉजिक समाहित या गया है।
बन्धु आपके विचार उत्तम हैं। याद हो आपने मुझे आलेखों में लॉजिक की सलाह दीथी पर आपके ब्लॉग में तो तॉजिक है ही नहीं... वो तो एक विलाप मात्र है... जिससे आत्मदया का बोध होता है। इसलिए कृपया मेरे ब्लॉग पर आइए और देखिए किस तरह से कुरआन और वेद दोनों का ही लॉजिक समाहित या गया है।
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