मंगलवार, 10 मई 2011

मध्यप्रदेश में बस्तर बनाने की कवायद


मध्यप्रदेश में माओवादी आतंक के बारे में अब सनसनीखेज खुलासे हो रहे हैं। प्रदेश की राजधानी भोपाल में न सिर्फ नक्सली पर्चे और साहित्य बरामद हुए हैं, बल्कि हथियारों का कारखाना भी पकड़ा जा चुका है। मध्यप्रदेश का एक बड़ा भू-भाग छत्तीसगढ़ की सीमा से लगा हुआ है। नक्सली पहले भी बड़े वारदातों को अंजाम देने से पहले मध्यप्रदेश को अपने पनाहगाह के रुप में इस्तेमाल करते रहे हैं। मध्यप्रदेश अब तक नक्सलियों के लिए पनाहगाह और शरणस्थली के रूप में ही इस्तेमाल हो रहा था, लेकिन इस मामले में अब नया बदलाव हुआ है।

छत्तीसगढ़ और बिहार-झारखंड के नक्सली अब मध्यप्रदेश को ‘आॅपरेशनल एरिया’ के रूप में देख रहे हैं। पिछले दिनों बालाघाट में नक्सलियों ने इसका इसका आगाज भी कर दिया है। नक्सलियों ने ‘नक्सल विरोधी अभियान’ में लगे पुलिस के जवानों पर घात लगाकर हमला कर दिया और इसमें में पुलिस का जवान शहीद भी हो गया था।

अभी छत्तीसगढ़ ओर बिहार-झारखंड के हथियारबंद नक्सलियों ने सीधी-सिंगरौली क्षेत्र में अपनी आमद दे दी है। केन्द्र और राज्य की खुफिया एजेंसियों ने इस बाबत राज्य सरकार को सचेत भी कर दिया है। लेकिन मध्यप्रदेश सरकार की नक्सल विरोधी नीति या योजना के बारे में किसी को कुछ भी पता नहीं हैं। केन्द्रीय गृहमंत्री नक्सल प्रभावित राज्यों के मुख्यमंत्रियों की बैठक में अपनी चिंता व्यक्त करते रहे हैं, लेकिन उनकी ये चिंता राज्य सरकारों को चिंतित नहीं करती। हां राज्य की सरकार को नक्सल विरोधी अभियान के लिए विशेष पैकेज की दरकार जरुर रहती है।

मध्यप्रदेश पुलिस ने माओवादी चुनौतियों से निपटने के लिए नये थानों का प्रस्ताव देकर अपना पल्ला झाड़ लिया है। बालाघाट, मंडला, डिंडोरी, शहडोल और अनूपपुर तो पहले से ही नक्सल प्रभावित रहा है। अब नक्सलियों ने सतना-रीवा और सीधी-सिंगरौली की ओर अपना रूख किया है। पिछले दिनों सीधी-सिंगरौली क्षेत्र में भी नक्सलियों के ‘मिलिट्री दलम’ के हथियारबंद दस्ते देखे गए हैं। वहां की पुलिस पहले से ही बदइंतजामी का शिकार है। नक्सलियों की दस्तक ने उनकी चिंता और बढ़ा दी है। अब वे आम जनता की सुरक्षा की बजाए अपनी सुरक्षा के लिए अधिक चिंतित हो गए हैं। पुलिस प्रशासन और नागरिक प्रशासन में विश्वास और तालमेल की कमी हैं। सरकार की विेकास योजनाएं अभी भी नक्सली विस्तार को रोक पाने में सफल नहीं हो पायी है। नक्सलियों के स्थानीय दलम से प्रशासन की संाठ-गांठ की चर्चाएं भी होने लगी है। पुलिस और खुफिया विभाग के आला अधिकारी और विशेषज्ञ इस बात की थाह ले रहे हैं कि क्या कारण है कि नक्सलियों के निशाने पर पुलिस और अद्र्धसैनिक बल ही होते हैं। नागरिक प्रशासन के लोग नक्सली खतरे की जद से बाहर कैसे हैं। खुफिया एजेंसियो ने पिछले दिनों बालाघाट के एक आला अधिकारी को संदेह के घेरे में लिया। इस अधिकारी पर नक्सलियों को लेवी देने का संदेह है। इन स्थितियों में पुलिस का मनोबल कमजोर हो रहा है। प्रदेश के मुखिया शिवराज सिंह चैहान नये मंत्रालय, नये जिले और नये तहसील बनाने की घोषणा तो कर रहे हैं, लकिन नये थानों का गठन और पुलिस आधुनिकीकरण की प्रक्रिया काग़जों में ही दौड़ लगा रही है। वाम आतंक के संदर्भ में क्या सरकार ‘‘सहिष्णुता और धैर्य की चाबी’’ का इस्तेमाल कर रही है?

राज्य सरकार इस इस बात पर तो संतोष कर सकती है कि जितने भी बड़े नक्सली हादसे हुए हैं वे सभी दूसरे राज्यों में। सरकार इस बात पर भी अपनी पीठ थपथपा सकती है कि उसकी पुलिस ने राजधानी भोपाल में माओवादियों के केन्द्रीय तकनीकी समिति के सदस्य समेत 5 हार्डकोर नक्सलियों को गिरफ्तार किया और उनके असलहा कारखाने का भंडाफोड़ किया। लेकिन सरकार अपनी ही पुलिस की चिंताओं को कबतक नजरंदाज कर सकती है। वाम आतंक के जानकारों का मानना है कि माओवादियों ने एक खास रणनीति के तहत मध्यप्रदेश में बडे हादसों को अंजाम नहीं दिया है। वे अपने ‘रेड कॉरिडोर’ के निर्माण और विस्तार में मध्यप्रदेश का उपयोग सुरक्षित क्षेत्र के रूप में करते रहे हैं। इसी दौरान माओवादियों ने मध्यप्रदेश में अपने समर्थकों की एक बड़ी फौज खड़ी कर ली। मध्यप्रदेश में बड़ी संख्या में एनजीओ, मानवाधिकार संगठन और बुद्धिजीवियों की जमात इस माओवादी अभियान का समर्थन करती है और उसे सहयोग देती है।

मध्यप्रदेश सरकार को यह नहीं भूलना चाहिए कि केन्द्र सरकार ने जिन राज्यों को गंभीर नक्सल प्रभावित माना है उनमें मध्यप्रदेश भी है। सरकार को यह भी सुध लेनी चाहिए कि अधिक बडे नक्सली हादसे पुराने मध्यप्रदेश और वर्तमान पड़ोसी राज्य छत्तीसगढ़ में ही हुए हैं। संभव है किसी भी दिन नक्सलियों ने अपनी रणनीति बदली और किसी बड़े हादसे को अंजाम दिया।

नक्सलियों के सर्वोच्च नेता गणपति ने अपने बयान में भले ही पश्चिम बंगाल के ‘‘लालगढ़’’ और उड़ीसा के ‘‘नारायणपट्टन’’ को माओवादी ‘गुरिल्ला जोन’ बनाने का दावा किया हो लेकिन यह भी गौरतलब है कि माओवादियों ने मध्यप्रदेश के बड़े हिस्से को अपने आॅपरेशन एरिया के लिए चुना है। छत्तीसगढ़ के बस्तर इलाके में भले ही माओवादियों का पूरा नियंत्रण न हो और वे केन्द्रीय अद्र्धसैनिक बलों के दबाव में हों, लेकिन यह भी सच है कि बस्तर में छत्तीसगढ़ सरकार का भी कोई नियंत्रण नहीं है। सरकार चाहे कितनी भी कोशिश कर ले वहां विकास कार्यक्रमों को संचालित नहीं कर पा रही है। मनरेगा और अन्य विकास कार्यक्रमों का लाभ आम लोगों से अधिक नक्सलियों को मिल रहा है। यह कहना शायद अतिशयोक्ति नहीं होगा कि माओवादी रणनीतिकार मध्यप्रदेश में भी एक ‘बस्तर’ चाहते है। वे इसी रणनीति के तहत कार्य कर रहे हैं। सीधी-सिंगरौली क्षेत्र में माओवादियों ने खदानों और क्रेशर के खिलाफ अभियान छेड़ रखा है। खदान मालिक या तो माओवादियों से लेन-देन के आधार पर तालमेल कर रहे हैं, या फिर वे भयाक्रांत हैं। कई खदान ठेकेदारों ने अपना कारोबार समेटने का मन बना लिया है। नक्सलियों के इस अभियान को इस क्षेत्र में आम जनता का खासा समर्थन भी मिल रहा है। माओवादियों ने आने वाली स्थितियों के मद्देनज़र अभी से अपनी तैयारी शुरु कर दी है। अद्र्धसैनिक बलों के दबाव के कारण छत्तीसगढ़ के अबूझमाड़ से नक्सलियों के पांव उखड़ने की संभावना है। इस स्थिति को भांपकर माओवादी रणनीतिकारों ने छत्तीसगढ़ से मध्यप्रदेश की ओर ‘‘रणनीतिक निकासी मार्ग’ का विकास शुरु कर दिया है ताकि अबूझमाड़ छोड़ने की आपात स्थिति में वे सुरक्षित निकासी सुनिश्चित कर सकें। इसके लिए उन्होंने पूर्व विदर्भ के वनाच्छादित इलाके भंडारा-गोदिया-बालाघाट की पहचान की है। पेंच नेशनल पार्क - नागपुर और सिवनी भी माओवादियों के ‘‘रणनीतिक निकासी मार्ग’ के लिए मुफीद है। हाल के दिनों में इन इलाकों में माओवादी हचलच तेज हुई है। मतलब साफ है संभल सको तो संभल जाओ - लाल सलाम दस्तक दे चुका है।

मध्य प्रदेश की भाजपा सरकार भले ही अपनी आंखें भींच ले, लेकिन उसके अनदेखा कर देने से मध्यप्रदेश में माओवादी समस्या खत्म नहीं हो जायेंगी। इसके पहले कि आम लोगों की सुरक्षा खतरे की जद में आ जाये और विकास कार्यक्रमों के लिए गुजाईश खत्म हो जाये सरकार को समय रहते एतिहात बरतना होगा। सुरक्षा जरूरतों को प्राथमिकता के आधार पर पूरा करने की पहल करनी होगी। पुलिस बल को आधुनिक, सक्षम और सबल करना होगा। पुलिस और नागरिक प्रशासन के बीच परस्पर भरोसा, विश्वास और तालमेल का विकास जरुरी होगा।

उत्तर प्रदेश के कई जिले भी वाम आतंक से पीड़ित हैं। पंजाब के मुख्यमंत्री और पुलिस महानिदेशक ने भी नक्सली गतिविधियों के प्रति चिंता व्यक्त की है। स्पष्ट तौर पर माओवादी देश के उन हिस्सों में अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहे हैं जहां अभी तक उन्हें देखा नहीं गया था, या कम देखा गया। मध्यप्रदेश तो उनकी नजऱ में पहले से ही काफी उर्वर जमीन रही है। कांग्रेस के शासन काल में नक्सलियों को सरकार का सक्रिय समर्थन मिला। भाजपा राज में भी एक अजीब-सी चुप्पी दिखती है। जाहिर-सी बात है संकट के समय अगर कोई आपका विरोध नहीं करे तो संकटग्रस्त के लिए यही काफी होता है। मध्यप्रदेश की भाजपा सरकार नक्सलियों के प्रति ऐसा ही व्यवहार करती हुई दिख रही है।

तेलंगाना क्षेत्र में माओवादी पुनः अपना मजबूत आधार बनाने की फिराक में हैं। पृथक तेलंगाना राज्य की मांग और पोलावरम डैम विरोधी भावना को वे भुनाना चाहते हैं। मध्यप्रदेश के शहडोल और रीवा संभाग के क्षेत्रों में भी वे शासन की खदान विरोधी भावना निजी क्रेशर विरोधी भावना को अपने पक्ष में करना चाहते हैं। इस क्षेत्र में माओवादियों ने आम लोगों को वैध-अवैध क्रेशर उद्योग से मुक्ति दिलाने का वादा किया है। इसके कारण उन्हें किसानों और जनजातीय लोगों का समर्थन प्राप्त हो रहा है। प्रशासन के जनविरोधी रवैये के कारण पहले से ही माओवाद समर्थक माहौल तैयार हैं।

केन्द्र सरकार ने नक्सल प्रभावित राज्यों को और अधिक अद्र्धसैनिक बल उपलब्ध कराया है। लेकिन केन्द्र की यह अपेक्षा भी है कि राज्य सरकारें भी और अधिक सुरक्षा जवानों की भर्ती करें, प्रशिक्षण कार्यक्रम पर पहले की तुलना में अधिक निवेश करें, श्रेष्ठ गुणवत्ता और अधिक संख्या में आधुनिक शस्त्रों का भंडारण करें और जवानों को उपलब्ध कराएं और माओवादियों की की सख्त घेरेबंदी करें। लेकिन केन्द्र की अपेक्षाओं के बारे में मध्यप्रदेश की राज्य सरकार कितनी संजीदा है! मध्यप्रदेश सरकार अपने पड़ोसी राज्यों खासकर छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र से कितना और किस प्रकार का ताल-मेल और समन्वय विकसित कर रहा है यह भी एक पहेली जैसा ही है।

सरकार के पास तात्कालिक, अल्पकालिक, मध्यकालिक और दीर्घकालिक तौर पर क्या उपाय या योजना है, इसका किसी को पता नहीं। पुलिस के उच्च अधिकारी फरमाते हैं - योजना हो तब तो किसी को पता हो। सरकार की माओवादी विरोधी नीति, योजना और रणनीति भगवान भरोसे है। राजनैतिक नेतृत्व शायद यह सोचता हो कि जब आग लगेगी तो कुंआ खोद ही लेंगे। आग बुझाने लायक पानी तो मिल ही जायेगा। लेकिन माओवादी आतंक की आग शायद ऐसी नहीं है। उसकी लपटों से प्रदेश पहले से ही झुलसता रहा है। अब तो वक्त है माओवादी विस्तार को रोकने और खत्म करने की पुख्ता रणनीति और कार्ययोजना तैयार करने की। दशकों पुरानी माओवादी समस्या से निपटने के लिए केन्द्र सरकार ने एक समेकित कार्य-योजना तैयार की है जो - सुरक्षा, विकास, प्रशासन और जन धारणा पर आधारित है। क्या ऐसी कोई सोच, कार्य-योजना या समझ राज्य सरकार की है! आखिरकार केन्द्र की तैयारी भी तो राज्य सरकार के भरोसे ही है। केन्द्र सरकार की तैयारियों का परिणाम राज्य सरकार की क्रियान्वयन दक्षता व क्षमता पर ही निर्भर करती है। यह काम राज्य सरकार की सतत निगरानी, सतर्कता और सावधानी से ही संभव है।

सोमवार, 4 अप्रैल 2011

भ्रष्टाचार के खिलाफ गुरु-गोविन्द दोनों मैदान में


अनिल सौमित्र
भ्रष्टाचार के खिलाफ गोविन्दाचार्य और गुरुमूर्ति फिर मैदान में हैं । बाबा रामदेव ने गुरु-गोविन्द दोनों को भ्रष्टाचार के खिलाफ मुहिम मे अपना संरक्षण दिया है। उनके साथ हैं पूर्व मुख्य न्यायाधीश श्री एम.एन. वेंकटचेलैया और न्यायमूर्ति जे. एस. वर्मा, जनता पार्टी के अध्यक्ष और पूर्व केन्द्रीय मंत्री सुब्रह्मण्यम स्वामी, आईबी के पूर्व निदेशक अजीत डोबाल, वरिष्ठ पत्रकार वेदप्रताप वैदिक और भीष्म अग्निहोत्री जैसे विभिन्न क्षेत्रों के दिग्गज । अन्ना हजारे, किरण बेदी, शांति भूषण, प्रशांत भूषण, राम जेठमलानी, अरविंद केजरीवाल जैसे सामाजिक, कानूनी और प्रशासनिक क्षेत्र के अनुभवी लोग पहले ही हल्ला बोल चुके हैं। लोकसभा के पूर्व महासचिव श्री सुभाष सी कश्यप, पत्रकार श्री एम.डी. नलपत, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के प्रो. अरुण कुमार एवं पूर्व राजदूत सतीशचन्द्र, पूर्व प्रशासक भूरेलाल और बी. आर. लाल एवं सी. बी. आई के पूर्व निदेशक श्री जोगिन्दर सिंह, अमेरिका के कर सलाहकार श्री डेविड स्पेंसर, रोनाल्ड लोमे, नुरिआ मोलिना ने भी भ्रष्टाचार के खिलाफ इस मुहिम में साथ देने की इच्छा जाहिर की है।
30 जनवरी को नयी दिल्ली के रामलीला मैदान मे शायद पहली बार बिना किसी राजनैतिक पार्टी के सहयोग अथवा आह्वान के बिना भ्रष्टाचार के विरुद्ध ऎसा हल्ला बोल हुआ। इसमे जस्टिस संतोष हेगड़े, जे.एम .लिंगदोह, स्वामी अग्निवेश तथा आर्चबिशप विन्सेंट एम. कोंसेसाओ सहित तमाम संगठनों, विचारों और क्षेत्रों के लोग एक मंच पर आये । जन लोकपाल बिल पर सरकार और समाज आमने-सामने है. सोनिया-मनमोहन लोकपाल बिल पर मनमानी चाहते है । लेकिन सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे ने साफ कर दिया है कि जन लोकपाल बिल वही होगा जिसका मसौदा सामाजिक क्षेत्र के लागों ने तैयार किया है । इसी को लेकर वे 5 अप्रैल को दिल्ली के जंतर-मंतर पर अनशन कर रहे है. उनके समर्थन मे देशभर के लोग उपवास रखेंगे और भ्रष्टाचार के खिलाफ संकल्प लेंगे.
राजनीतिक विचारक और स्वदेशी चिंतक गोविन्दाचार्य ने भी देश की नब्ज समझ ली है. वर्षो की संचित ताकत को वे इस भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम मे झोंक देना चाहते है। देश का हाल बेहाल है। आमजन लूट-पिट रहा है. राजनेता, उद्दोगपति और नौकरशाही माला-माल है। राजनीतिक दल चाहे सत्ता पक्ष हो या विपक्ष – गलबहिया खेल रहे है। विडम्बना यह है कि सबसे ईमानदार प्रधानमंत्री के कार्यकाल मे सर्वाधिक भ्रष्टाचार है. प्रधानमंत्री अर्थशास्त्र के विद्वान है, लेकिन देश महंगाई से त्रस्त है। आम नागरिकों का धैर्य टूट गया है. गोविन्दाचार्य समझ गये है कि भ्रष्टाचार के खिलाफ हथौडा आजमाने का वक्त आ गया है। 1 और 2 अप्रैल को दिल्ली के विवेकानन्द इंटरनेशनल फाउंडेशन में दुनिया भर से दर्जनों और देशभर से सैकडों सामाजिक इकट्ठा हुए। लोग आये तो थे सेमीनार में, लेकिन जाते-जाते "भ्रष्टाचार विरोधी मोर्चा" बनाने के संकल्प करते गये। योग गुरु स्वामी रामदेव के संरक्षण में बने इस मोर्चे के संयोजक के. एन. गोविन्दाचार्य एवं सह- संयोजक आईआईएम बेंगुलुरु के प्रो. श्री आर. वैद्यनाथन और श्री भूरे लाल होंगे। श्री एस. गुरुमूर्ति, श्री अजित डोबाल, श्री वेद प्रताप वैदिक और श्री भीष्म अग्निहोत्री इस मोर्चे सदस्य होंगे। यही समिति भ्रष्टाचार के विरोध में बनने वाली सारी योजनाओं और रणनीतियों का खाका तैयार करेगी। जल्द ही राज्यों में भी इस मोर्चे की ईकाइयां गठित कर दी जायेंगी। स्वामी रामदेव जी ने 2 दिन के सेमीनार के अंत में भ्रष्टाचार के खिलाफ जंग का ऐलान करते हुए इस विषय से जुड़े प्रतिबद्ध व्यक्तियों और संघठनो से अपील की कि वे भी अपनी-अपनी विचारधाराओं से ऊपर उठ कर इस जंग में शामिल हो।
गौरतलब है कि विवेकानन्द इंटरनेशनल फाउन्डेशन के तत्वावधान में ‘‘शासन में पारदर्शिता एवं जवाबदेही : भारतीय परिपेक्ष्य एवं अन्तरराष्ट्रीय अनुभव’’ विषय पर दो दिवसीय सेमीनार के बहाने यह सब हुआ। दोनों दिन राजनीति, खुफिया, अर्थशास्त्र और सामाजिक क्षेत्रों के विशेषज्ञों ने भ्रष्टाचार और काले धन की समस्या के स्वरुप, पहलू और परिणाम पर गहन विचार किया।
पूर्व मुख्य न्यायाधीश श्री एम.एन. वेंकटचेलैया ने कहा कि शासन का उत्तरदायित्व प्रधानमंत्री का होता है । प्रधानमंत्री जैसा चलेंगे वैसा ही देश चलेगा । वर्तमान में सरकारों के पास न तो दृष्टि और न ही ध्येय । दृष्टि और ध्येय से ही जनकल्याण की भावना उत्पन्न होती है । उन्होंने कहा कि भ्रष्टाचार और काले धन का मामला तो संसद कानून बनाकर चुटकियों में हल कर सकती है । जनता पार्टी के अध्यक्ष और पूर्व केन्द्रीय मंत्री डॉ. सुब्रह्मण्यम स्वामी ने कहा कि काला धन और भ्रष्टाचार देश के सामने एक बड़ा खतरा है। श्री एस. गुरुमूर्ति ने कहा कि भ्रष्टाचार से पैदा हुआ करोड़ों रू. विदेशों में जमा है। यह पैसा हमारे देश में हथियार और नशीले पदार्थों के रूप में आता है । विदेश की बात तो छोड़ें, देश में ही एक नहीं अनेक हसन अली है। उन्होंने कहा कि भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचारी दोनों एक्सपोज होने चाहिये। भ्रष्टाचार को दंडित होने के लिये इसका खुलासा बहुत जरुरी है। रुस की खुफिया एजेंसी केजीबी द्वारा राजीव गान्धी के परिवार को पैसा देना दस्तावेजो में मौजूद है, लेकिन सब चुप है।
गोविंदाचार्य ने कहा कि अभी सब कुछ खत्म नही हुआ है। भ्रष्टाचार के खिलाफ लडाई में जिद्द और संकल्प चाहिये। देश में राजनीतिक व्यवस्था से लोगों का विश्वास उठ चुका है। सत्ता पक्ष और विपक्ष का भेद खत्म हो चुका है। सरकार पर सत्ता लिप्सा, हिस्ट्रीशीटरों और धनबल की चादर चढ गई है। भारतीय राज्य, भारतीय लोगों के ही खिलाफ संघर्ष कर रहा है। अपराध और भ्रषटाचार का अन्तरराष्ट्री यकरण हो गया है। ऎसी स्थिति में हमें वाक् विलास से आगे की सोचना चाहिये। जाहिर है वे सेमीनार को आन्दोलन की शक्ल देना चाह्ते थे। वे जो चाहते थे वही हुआ। गोविन्दाचार्य चाह्ते है कि देश की समस्या का उपाय राजनीतिक और गैर-राजनीतिक दोनो मोर्चों पर हो। हालांकि उनके पास समय और संसाधन दोनो बहुत कम है। लेकिन वे अपनी ताकत बखूबी जानते है। इस मुहिम में आरएसएस उनके साथ है। बाबा रामदेव के संरक्षण से उन्हें एक बडी ताकत मिली है। जयप्रकाश आन्दोलन के सिपाही बेशक उनका साथ देंगे। भ्रष्टाचार ऎसा मुद्दा जो विचारधारा, दल और संगठन से परे हो गया है। इस मुहिम में कोई वैचारिक अडचन नहीं है। जयप्रकाश आन्दोलन के बाद एक बार फिर देश व्यवस्था परिवर्तन के लिये तैयार खडा है। सामाजिक आन्दोलनों के नेताओं ने मौके की नजाकत भांप ली है। इकट्ठा होने और देश को इकट्ठा करने की कवायद शुरु हो चुकी है। अन्ना की आवाज को गोविन्द ने हुंकार दी है। जनता पहले से ही कोपाकुल है। उसकी भृकुटि चढी हुई है। लेकिन इस बार सिर्फ सिंहासन खाली करने या भरने की नही, बल्कि व्यवस्था को झंकझोडने की, उसे नई व्यवस्था देने की बात है।
बहरहाल गोविन्दाचार्य के पास खोने को कुछ नही है। वे कई मोर्चों पर कवायद मे जुटे है। वे रचनात्मक, आन्दोलनात्मक और बौद्धिक तीनों ही आयामों पर प्रयोग कर रहे हैं। राजनीतिक तौर पर राष्ट्र्वादी मोर्चा, नये संविधान-सभा के गठन और शासन में पारदर्शिता एवं जवाबदेही को लेकर सामाजिक कार्यकर्ताओं के जुटान में उन्होंने साहसिक पहल की है। सिर्फ राजनैतिक मोर्चे पर ही अब दो तक दर्जन से अधिक छोटे-छोटे दल साथ आ चुके है। अगर सफल हुए तो इतिहास रच जायेंगे, असफल हुए तो भी रास्ता तो दिखा ही जायेंगे।

रविवार, 13 फ़रवरी 2011

नर्मदा कुम्भ में धर्मांतण पाप से मुक्ति


ईसाइयों की जैसी आशंका या उनका जैसा आरोप था वैसा कुछ भी नहीं हुआ. नर्मदा कुम्भ का भव्य शुभारंभ हो गया. वनवासी हो या मतांतरित ईसाई कोई न तो डरे और न ही रुके. लेकिन कॉंग्रेस और ईसाई मिशनरी जरुर डरे है. ऑल इंडिया कैथोलिक यूनियन के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष जॉन दयाल की ओर से जारी एक प्रेस विज्ञप्ति में कुंभ के आयोजकों पर आरोप लगाते हुए कहा गया कि ईसाई समाज की प्रार्थना सभाओं में बाधा डालने की कोशिश की जा रही है। ईसाई परिवारों में जाकर उन्हें वापस हिंदू बनने के लिए दबाव डाला जा रहा है।

उधर प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष सुरेश पचौरी और कॉंग्रेस के ही महासचिव दिग्विजय सिंह ने बार-बार नर्मदा कुम्भ पर रोक लगाने की मांग की है. ईसाई मिशनरियों के सुर में सुर मिलाते हुए कॉंग्रेस के नेताओं ने नर्मदा सामाजिक कुम्भ को भाजपा का आयोजन बताया. दरअसल कॉंग्रेस के नेताओं में मिशनरियों को पीछे छोड़ देने की होड लगी है. कॉंग्रेस के लिए मध्यप्रदेश में नर्मदा कुम्भ के आयोजन से एक तरफ कुआ तो दूसरी तरफ खाई पैदा हो गयी गई. कॉंग्रेस सांप-छछूंदर की स्थिति में है. कॉंग्रेस के नेता, ईसाईं मिशनरी, सोनिया और वनवासियों को एक साथ खुश करना चाहते है. नेताओं को डर है कि अगर ये खुश नहीं हुए तो नाराज हो जायेंगे. वे ये भी जानते है कि ये तीनो एक साथ खुश भी नहीं हो सकते. असमंजस की स्थिति में कॉंग्रेस के नेताओं ने तय किया कि अभी तो कांग्रेसमाता सोनिया और ईसाई मिशनरी को ही खुश किया जाए. अभी अनुसूचित जनजाति के वोट की दरकार कोंग्रेस को नहीं गई. आने वाला चुनाव उत्तरप्रदेश में है. इसलिए वनवासी समाज के नाराज होने से कॉंग्रेस की राजनीतिक सेहत पर तत्काल कोई असर नहीं पडने वाला. मुसलमानों की ही तरह वनवासी (कॉंग्रेस के आदिवासी) भी कॉंग्रेस के लिए सिर्फ वोटबैंक है. इस कुम्भ से वोट बैंक पर तत्काल कोइ खतरा नहीं.

मध्यप्रदेश के मंडला में आयोजित तीन दिवसीय नर्मदा सामाजिक कुम्भ पर कॉंग्रेस और मिशनरियों का एक ही सुर है. पोप, जॉन दयाल, सोनिया माइनो और सुरेश पचौरी-दिग्विजय एक ही राग अलाप रहे है. कॉंग्रेस के नेताओं ने अपने आम कार्यकर्ताओं के खिलाफ जाकर इस कुम्भ का विरोध किया तो उसका कारण हर हाल में सोनिया और मिशनरियों को प्रसन्न करना है. कॉंग्रेस नेता सुरेश पचौरी ने नर्मदा कुंभ को सनातन धर्म की मान्यताओं के विरूद्व बताते हुये इस पर मध्यप्रदेश धर्म स्वतंत्रता कानून 1968 के अंतर्गत तत्काल रोक लगाने की मांग की है। केन्द्रीय गृहमंत्री पी. चिदम्बरम् एवं प्रदेश के राज्यपाल रामेश्वर ठाकुर को लिखे पत्र में उक्त आशय का आग्रह करते हुये उन्होंने कहा है कि कथित कुंभ में अल्पसंख्यकों के खिलाफ घृणा फैलाने के लिये आपत्तिजनक पर्चों का वितरण किया जा रहा है जो घोर निंदनीय है। दरअसल काग्रेस के नेताओं ने वास्ताविकता से आँखे भींचने की कोशिश की है. मिशनरियों के इशारे पर संघ, भाजपा और कुम्भ आयोजकों पर आरोप लगा कर वे स्वयं ही अपनी किरकिरी करा रहे है. मंडला की स्थानीय ईसाई संस्थाएँ कुम्भ में आयोजकों का सहयोग कर रही है. उन्होंने यहाँ अपने कैम्प और स्टॉल भी लगा रखे है. जहां तक मतांतरित ईसाइयों के घर वापसी का सवाल है तो जब सामान्य हिन्दू नर्मदा में स्नान करके अपने पापों से मुक्त हों जाते है तो फिर नि:संदेह मतांतरित हिन्दू भी अपने पापों से मुक्त हों सकते है. नर्मदा कुम्भ के आयोजक भले ही प्रत्यक्ष तौर पर "घर वापसी" के किसी कार्यक्रम से इंकार कर रहे है, लेकिन नर्मदा स्नान से कितनी बडी घर वापसी हो रही है इसका अंदाजा न तो सोनिया माइनो को है और न ही जॉन दयाल को. नर्मदा कुम्भ के आयोजकों की कोशिश है कि नर्मदा स्नान को पापमुक्ति, शुद्धिकारण और घर वापसी के तंत्र के रुप में स्थापित कर दिया जाए. घर वापसी के लिए नर्मदा स्नान का मन्त्र देने में आयोजक सफल रहे. इंकार करने से भी यह सच झूठ नहीं हों सकता कि 10 से 12 फरवरी तक होने वाले इस तीन दिवसीय आयोजन में लाखों हिन्दू अपने पापों से मुक्त होंगे, वहीं हजारों मतांतरित हिन्दू अपने मतांतरण-पाप से भी मुक्त होंगे. उल्लेखनीय है कि नर्मदा सामाजिक कुंभ हिन्दू समाज एक अनूठा आयोजन है। तीन दिन तक चलने वाले इस कुंभ में 20 लाख से भी अधिक वनवासियों के जुटने की उम्मीद है।

यह सर्वविदित है कि संघ और अन्य हिन्दूवादी संगठन पोप और उनके मतांतरण तंत्र चर्च और मिशनरी की गतिविधियों से काफी चिंतित है. मध्यप्रदेश में गठित नियोगी और रेगे कमिटी ने भी मतान्तरण के खतरे के प्रति आगाह किया था. राज्य सरकार की लापरवाही के कारण चर्च और मिशनरियों ने स्वच्छंद होकर मतान्तरण किया. गाँव-गाँव तक अपना जाल फैलाया. संघ जब चेता तब तक काफी देर हों चुकी थी. अब मतान्तरण और घर वापसी राजनीतिक मुद्दा बन गया है. संघ ने वर्षों पहले (२००२) झाबुआ में "हिन्दू संगम" का आयोजन किया था. बाद में वर्ष 2006 मे गुजरात में शबरी कुम्भ और अब मंडला में नर्मदा सामाजिक कुम्भ. आयोजक सार्वजनिक तौर पर चाहे कुछ भी कहें उनका एजेंडा स्पष्ट है. संघ वनवासियों में पहचान की अस्मिता जागृत करना ही है. यह आयोजन हिन्दू धर्म के प्रति आस्था रखने, राष्ट्रीय एकता का भाव जगाने तथा सामाजिक समरसता का अलख जगाने हेतु किया जा रहा है। संतों के मुताबिक, माँ नर्मदा सामाजिक कुंभ का उद्देश्य आदिवासियों की संस्कृति, उनकी पहचान और जीवन शैली ही नहीं बल्कि उनके आराध्य देव (बूढ़ादेव)के प्रति उनकी आस्था पर होने वाले आघात से उन्हें सुरक्षित करना भी है। संघ और उनसे जुड़े आयोजक भोले- भाले वनवासियों को धर्मातरण के कुचक्र से बचाने की कवायद में है. नर्मदा तट पर जमा हुए करीब दो लाख से भी अधिक जनसमुदाय से आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत और विश्व हिंदू परिषद नेता प्रवीण तोगड़िया और ऐसे ही कई नेताओं ने मंडला में मतान्तण रोकने का आह्वान किया. मोहन भागवत ने कहा कि जब शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी सुविधाएं वनवासियों को मिलेंगी तो उन्हें कोई लालच देकर धर्मातरित नहीं कर सकेगा। स्वामी सत्यमित्रानंद सरस्वती ने ईसाई मत ग्रहण करने वाले वनवासियों को उल्लू की संज्ञा देते हुए कहा कि उन्हें दिन के उजाले में भी कुछ नजर नहीं आता है। ओंकारेश्वर से आए स्वामी हरिहरानंद ने कहा कि दो-ढाई हजार साल पहले उत्पन्न हुए धर्म के कीट-पतंगे हमारे भोले-भाले लोगों को बरगला कर उनका धर्म परिवर्तित कर रहे हैं। सभी वक्ताओं ने अपने-अपने तरीके से कहा कि धर्म बदलने के बाद व्यक्ति अपने पूर्वजों को भूल जाता है, फिर उसकी निष्ठाएं बदल जाती हैं। संघ की चिंता है मतान्तण से राष्ट्रान्तरण होता है. एक हिन्दू का मतान्तरण होने से सिर्फ एक ईसाई या एक मुसलमान नहीं बढता बल्कि देश का एक शत्रु बढ़ता है. संघ अब नर्मदा जल से शत्रू प्रक्षालन करेगा. एक-एक मतांतरित ईसाई और मुसलमान को देशभक्त हिन्दू बनायेगा.

ईसाइयों के वरिष्ठ प्रतिनिधि और ऑल इंडिया कैथोलिक यूनियन के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष जॉन दयाल का नर्मदा कुम्भ पर छाती पीटना स्वाभाविक है. वर्षों की मेहनत और करोड़ों-अरबों खर्च कर जो काम किया वह नर्मदा जल से यूं ही धुल जाए ये चर्च और मिशनरियों को कैसे सुहायेगा. लोभ,लालच और छल से किया गया धर्मं परिवर्तन एक झटके में नर्मदा मैया के प्रवाह में बह जाए इसे जॉन दयाल कैसे पचा पायेंगे. क्या जवाब देंगे अपने आका को. वे किसा मुंह से पोप को बताएँगे कि कितना खोखला है उनके इसाईयत का मुल्लमा. जैसे पचौरी को सोनिया के सवालों का डर है, शायद जॉन दयाल भी पोप के सवालों से डरे है. कुम्भ के आयोजकों ने सवाल किया है नर्मदा कुम्भ से कोइ देशभक्त भयातुर नहीं है, ईसाई मिशनरी क्यों डर रहे है. संघ की कोशिश है एक बार वनवासी समाज जागरूक और सचेत हों जाए तो फिर चर्च भी कुछ नहीं कर सकेगा. राजनीतिक दल भी उसे सिर्फ वोटबैंक नहीं मानेंगे. तब चाहे भाजपा, कांग्रेस हों या गोंडवाना पार्टी, चर्च-मिशनरी हों या इस्लामिक ताकतें कोइ भी वनवासियों को बरगला नहीं सकेगा. संघ प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि समाज के क्रियाशील हुए बिना धर्मातरण नहीं रुक सकता। कुंभ में हम यह संकल्प लें कि हम हिंदू समाज में व्याप्त छुआछूत को समाप्त करने के लिए काम करेंगे। विद्या दान करेंगे, अन्नदान करेंगे। संघ ने हर चार साल में सामाजिक कुंभ का ताना-बाना बुन दिया है. पहले 2006 गुजरात में शबरी कुंभ और 2011 में मध्यप्रदेश के मंडला में नर्मदा कुम्भ. आयोजकों ने हर पांच साल में इस तरह के सामाजिक कुंभ की योजना पहले ही बना रखी है। संघ नेताओं का कहना है कि असली हिंदुत्व तो वनवासियों ने ही बचा रखा है। धार्मिक कुंभ नासिक, उज्जैन, इलाहबाद और वाराणसी में होता आया है. वनवासियों का यहा सामाजिक कुम्भ भी हर चौथे साल में आयोजित होगा. वनवासी क्षेत्र ज्यादातर दुर्गम इलाको में है इसलिए सामाजिक कुम्भ भी सुदूर दुर्गम क्षेत्रों में ही होगा. संभव है अगला कुम्भ झारखंड या पूर्वोत्तर क्षेत्र में कही आयोजित हो. गौर करने लायक बात है कि संघ जहा अपनी पद्धति से काम कर रहा है, वही कॉंग्रेस और मिशनरी भी अपनी स्टाइल में विरोध कर रहे है. अभी तो संघ का पलडा भारी दिखता है. कॉंग्रेस और मिशनरी ने प्रेस और मीडिया के जरिये ज्ञापन देकर अपना विरोध प्रकट किया है. इन्होंने शबरी कुम्भ के समय भी ऐसा ही किया था. संघ ने देशभर से लाखों वनवासियों को इकट्ठा कर विरोधियों कों उनकी औकात बता दी है. संघ ने नर्मदा जयन्ती पर लाखों वनवासियों और नर्मदा भक्तों के बीच वनवासी पहचान को बचाने और मतांतरण को रोकने का आह्वान किया. भाजपा को संघ और सरकार के प्रयासों का लाभ तो मिलना ही है. वही कोंग्रेस अपनी छाती पीटती रही. कॉंग्रेस के नेता चाहते तो इस कुम्भ में भागीदार होकर वनवासियों की इतनी बड़ी उपस्थिति का लाभ ले सकते थे. लेकिन अपने आलाकमान सोनिया की नाराजगी के डर से वे यह भी नहीं कर सके.

सोमवार, 10 जनवरी 2011

गुजरात में शबरी कुंभ के बाद मध्यप्रदेश में नर्मदा सामाजिक कुंभ


भोपाल से अनिल सौमित्र
भोपाल। वर्ष 2011 मध्यप्रदेश ही नहीं, पूरे देश के लिए ऐतिहासिक होने वाला है। 10 से 12 फरवरी तक मां नर्मदा सामाजिक कुंभ का आयोजन हो रहा है। नर्मदा कुंभ मध्यप्रदेश के वनवासी बहुल मंडला जिले में हो रहा है। ऐसा ही एक कंुभ वर्ष 2006 में गुजरात के डांग जिले में शबरी कुंभ के नाम से आयोजित हुआ था। भारत वर्षों से हरिद्वार, प्रयाग, उज्जैन और नासिक में होने वाले धार्मिक कुभ से अलग यह सामाजिक कंुभ है।
नर्मदा सामाजिक कुंभ के मीडिया समन्वयक विराग पाचपोर ने पत्रकारों से बातचीत करते हुए बताया कि इस कंुभ के लिए आयोजन समिति का गठन काफी पहले हो चुका है। इस समिति में देश के प्रख्यात धर्माचार्य, सामाजिक संगठन और वनवासी क्षेत्रों में कार्यरत ख्यात लोग शामिल हैं। इस कुभ में मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, झारखंड, आंध्रप्रदेश, राजस्थान, उत्तरप्रदेश, बिहार और दिल्ली के साथ ही पूर्वोत्तर के राज्यों से भी बड़ी संख्या में लोगों के आने की संभावना है। श्री पाचपोर ने बताया कि वर्तमान तैयारियों के आधार पर यह अनुमान है कि इस कुंभ में लगभग 20 से 25 लाख लोग शामिल होंगे। कुंभ के आयोजन के लिए केन्द्रीय आयोजन समिति के अलावा ब्लॉक, तालुका और जिला स्तर पर आयोजन समिति का गठन किया गया है।
परंपरागत रूप से आयोजित होने वाले ऐतिहासिक कुंभ-मेलों का उद्देश्य भले ही धार्मिक हो लेकिन गुजरात के शबरी कुंभ और छत्तीसगढ़ के राजिम कुंभ से लेकर मंडला में आयोजित होने वाले नर्मदा कुभ का उद्देश्य विकास के साथ सामाजिक समरसता को बढ़ावा देना है। वनवासी क्षेत्रों में मतान्तरण रोकना और मतान्तरण से पैदा होने वाले राष्ट्रीय एकता-अखंडता के खतरे को उजागर करना भी इस कुंभ का एक प्रमुख उद्देश्य है। कुंभ के पूर्व और कुंभ के दौरान जनजागरण कार्यक्रमों के द्वारा मंडला की महारानी दुर्गावती, रानी लक्ष्मीबाई सहित मध्यप्रदेश के ऐतिहासिक व्यक्तित्वों और जनजातीय संस्कृति को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पेश किया जायेगा।
मां नर्मदा सामाजिक कुंभ के दौरान रानी दुर्गावती, महाराणा प्रतात, पर्यावरण एवं मां नर्मदा, सिख गुरुपुत्रों की बलिदान गाथा, राष्ट्रीय एकता और विधर्मियों के कुटिल हथकंडे, विश्वमंगल गौ-माता, जल संरक्षण, सामाजिक सुरक्षा और अयोध्या राम मंदिर केन्द्रित 10 से अधिक प्रदर्शनियां भी लगाई जायेगी। चूुकि यह ऐतिहासिक आयोजन मध्यप्रदेश में हो रहा है इसलिए राज्य सरकार ने भी अपनी ओर से तैयारियां कर रही है। सड़कें और पुल-पुलियों के निर्माण और मरम्मत का काम तेजी से हो रहा है। मध्यप्रदेश शासन की ओर से सड़क और बिजली जैसी आधारभूत सुविधाओं के साथ ही सुरक्षा की दृष्टि से भी मदद का आश्वासन दिया गया है।
आयोजकों ने इस सामाजिक कुंभ को समाज के अंतिम व्यक्ति तक ले जाने का निर्णय किया है। इसीलिए तैयारियों से लेकर जन-जागरण और सामग्री संग्रह में भी शहरी और ग्रामीण परिवारों से मदद ली जा रही है। महाराष्ट्र से शक्कर और लाखों की संख्या में लॉकेट बुलाया जा रहा है। इसी प्रकार मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के लाखों परिवारों से एक किलो चावल, आधा किलो दाल और एक-एक रूपये का संग्रह किया जा रहा है। उत्तरप्रदेश से आलू तो गुजरात से भाजन सामग्री के साथ बड़ी संख्या में भाजन बनाने और वितरण करने वाले आ रहे हैं।
मां नर्मदा सामाजिक कुंभ के आयोजक एक तरफ इसके सफल आयोजन के प्रति निश्चिन्त हैं, वहीं असामाजिक तत्वों और ईसाइ मिशनरियों के विरोध के प्रति चिंतित भी। शबरी कुंभ के आयोजन में भी इन्हीं तत्वों ने देश-विदेश में काफी विरोध किया था। जबलपुर सहित प्रदेश के अनेक ईसाइ संगठनों ने इस सामाजिक कुंभ के खिलाफ न सिर्फ दुष्प्रचार शुरु कर दिया है बल्कि उन्होेने इसके विरोध की रणनीति भी बना रखी है। आने वाले दिनों में ईसाइयों का दुष्प्रचार और विरोध और अधिक आक्रमक होगा।

माँ नर्मदा सामाजिक कुंभ

हिन्दू समाज में श्रेष्ठतम् दार्षनिक सिðांत होने के बावजूद काल प्रवाह मंे अनेक ऐसी षिथिलताएं और कुरीतियां समाज में प्रवेष करती चली गयीं, जिनमे सर्वाधिक कष्ट कर विड्ढय जाति के आधार पर हिन्दू और हिन्दू के बीच भेद-भाव एवं अस्पृष्यता रहा,जिनसे हमारे षत्रुओं केा हमें परास्त करने और दासत्व में रखने का अवसर प्राप्त हुआ। इसमें मुख्य रुप से तेरह सौ वर्ड्ढ मुगल एवं पांच सौ वर्ड्ढ ईसाइयांें का रहा। इतने वर्ड्ढों तक विदेषी आक्रांताओं की उपस्थिति के बावजूद हिन्दू धर्म की सर्वव्यापकता के कारण हिन्दू धर्म का अस्तित्व एवं राष्ट्र की एकता अक्षुण्ण रही। विष्व का अन्य कोई भी देष 100-150 से ज्यादा वर्ड्ढों के संघर्ड्ढ मंे अपना अस्तित्व कायम नही रख पाया।
हमारे समाज को कुरीतियों से मुक्त करने के लिए जितना कार्य किया जाना चाहिए था, उतना अभी हुआ नहीं है । बौð, जैन, सिक्ख सभी अपने - अपने तत्वज्ञान को कायम रखते हुए हिन्दू धर्म के व्यापक सहायक अंग हैं, अतः हिन्दू समाज को अपने तत्व ज्ञान के अनुरुप अपना आचरण दिखाना है। कुरीतियों और रुढ़ियांे से ग्रस्त इस समाज में बदलाव आना चाहिए। हिन्दू समाज की मूल धारा रहे, जनजातीय व वनवासी बन्धुओं को अलग करने का एक ड्ढड्य××ंत्र चल रहा है। अतः आज स्वयं में परिवर्तन लाये जाने की जरुरत है। हिन्दू ही अपनी संस्कृति से दूर हटेगा तो कौन इस महान संस्कृति का धारक होगा। हम सब भारत माता के पुत्र हैं यह भाव सभी में उत्पन्न करना, यही हम सब का लक्ष्य होना चाहिये। हिन्दू समानता की कल्पना सर्वांगीण समरसता की कल्पना है। सभी में एक ही ईष्वर का अंष है इसलिए न कोई ऊंचा है और न कोई निम्न।
इस माँ नर्मदा सामाजिक कुंभ में देषभर से संत, महात्माआंे एवं प्रबुðजनों के अलावा लगभग बीस लाख लोगों के आने की संभावना है। इसकी सुचारु व्यवस्था के लिये हजारों कार्यकर्ताओं की आवष्यकता होगी जो दस दिनांे तक रहकर कुंभ मंे आयोजित विभिन्न कार्यक्रमों की व्यवस्था में लगेंगे। विगत 12,13 व 14 नवम्बर को मंडला मंे कुंभ के संचालन हेतु लगभग पांच हजार कार्यकर्ताओं को व्यवस्था संम्बधी प्रषिक्षण दिया गया। इस कुंभ में सहभागिता हेतु बड़ी संख्या में साधु संतों के अपनी षिष्य मंडली सहित आगमन की सहमति प्राप्त हो रही है। समूचे राष्ट्र से सभी जाति बिरादरियों के बंधु इस कुंभ में पधार रहे हैं।
इस आयोजन से सामाजिक समरसता के निर्माण एवं धर्म की दृढ़ता की परिणति राष्ट्र की सुदृढ़ एकता के रुप में होगी। जबलपुर में दिनांक 21/11/2010 रविवार को आयोजित इस पत्रकार वार्ता को मार्गदर्षक द्वय मा.श्री मुकुंदराव जी पणषीकर(अ.भा.धर्मजागरण प्रमुख), स्वामी महामण्डलेष्वर अखिलेष्वरानंद जी सरस्वती, श्री राजेन्द्र जी (सचिव) माँ नर्मदा सामाजिक कुंभ ने सम्बेाधित किया।

10,11,व 12 फरवरी २०११ माँ नर्मदा सामाजिक कुंभ

किसी राष्ट्र की उन्नति व एकता के लिए वहां के निवासियांे में अपनी संस्कृति, मान्यताओं व धर्म के प्रति दृढ़ता व सामाजिक समरसता की महती भूमिका है। किसी राष्ट्र की संस्कृति व धर्म को क्षीण कर दिया जाये तो वह ज्यादा दिन तक सबल नहीं रह सकता। भारत एक धर्म प्रधान राष्ट्र है, प्रारम्भ से ही धर्म रुपी सूत्र ने समूचे राष्ट्र को एकरुप बँाध रखा है। विभिन्न बोली-भाड्ढा, खान-पान,रहन-सहन, स्थानीय लोक व्यवहार की भिन्नताआंे के बावजूद हिन्दू धर्म की सर्वव्यापकता ने एकात्मता के भाव को सर्वोपरि रखा तथा राष्ट्र की एकता को अक्षुण्ण रखा। स्वामी विवेकानंद ने भी कहा है - धर्म भारत का प्राण है।
प्राचीनकाल से ही कुंभ जैसे बड़े-बड़े धार्मिक स्वरुप लिये हुए वृहद् सामाजिक आयोजन देश की अखण्डता व एकात्मता को सुदृढ़ बनाने के माध्यम रहे हैं। इस अवसर पर सामाजिक व्यवस्थाओं, परम्पराओं के पुनर्मूल्यांकन व संषोधन की प्रक्रिया विद्वत मण्डली, ऋड्ढि-मुनियांे की उपस्थिति में चलती रहती थी। इस प्रकार के आयोजनों से वर्ग भेद को मिटाकर समाज में समरसता, उदारता, एकता और संगठन के सूत्र में पिरोने का कार्य सम्पन्न करने मार्ग निर्देषित किये जाते रहे हैं।
आगामी 10,11,व 12 फरवरी 2011 अर्थात् माघ षुक्ल, सप्तमी,अष्टमी व नवमी, विक्रम संवत् 2067 को माँ नर्मदा जयंती के अवसर पर ‘‘माँ नर्मदा सामाजिक कुंभ’’ का आयोजन प्राचीन महिष्मती नगरी (वर्तमान मण्डला ) में किया जा रहा है । इसके पूर्व सन् 2006 में गुजरात के डांग जिले में षबरी कुंभ का आयोजन सफलता पूर्वक सम्पन्न हो चुका है। उस समय सम्पूर्ण भारतवर्ड्ढ से पूज्य संतों के अह्वान पर बड़ी संख्या में आबाल - वृð, नर-नारी सम्मिलित हुये थे। उस समय संतो का यह निर्णय हुआ कि ऐसे सामाजिक कुंभांे का आयोजन पष्चिम से पूर्व की दिषा में बढ़ते हुए हो । उक्त आह्वान की श्रृंखला की कड़ी के रुप में ही इस आयोजन की रचना बनी है।
मंडला मध्यप्रदेष का एक ऐतिहासिक स्थल है जिसका सीधा सम्बंध रानी दुर्गावती की षैार्य गाथाओं से जुड़ा हुआ है। इसके अलावा गढ़ मण्डला हजारों वर्ड्ढों से वनवासी संस्कृति का पोड्ढक कंेद्र भी रहा है।धार्मिक दृष्टि से भी पुराणकालीन कृष्ण द्वयपायन वेदव्यास ने वेदों का संकलन एवं सरलीकरण तथा प्रख्यात् श्री नर्मदा पुराण की रचना यहीं की थी । ऐसे पावन स्थल पर ‘‘माँ नर्मदा सामाजिक कुंभ’’ का आयोजन होने जा रहा है। हम सब इस वास्तविकता से अवगत हैं कि गंगा, यमुना, सरस्वती, नर्मदा, क्षिप्रा, गोदावरी, कावेरी जैसी पावन नदियों के तट पर ही संपूर्ण विष्व को अपने ज्ञानसे आलोकित करने वाली सनातन संस्कृति ने जन्म लिया है। यहां आयोजित कुंभ के अवसरों पर देष के कोने-कोने से संत और प्रबुðजन एकत्र होकर काल,परिस्थिति का समग्र विष्लेड्ढण कर समाज का मार्गदर्षन करते रहे हेैंें। इस अवसर पर महामण्डलेष्वर स्वामी अखिलेष्वरानंद जी महाराज, मार्गदर्षक मा.मुकुंदराव पणषीकर एवं सचिव श्री राजेन्द्र प्रसाद जी आदि ने इस अवसर पर पत्रकारों से विषेड्ढ चर्चा की।

"नर्मदा संस्कृति: संक्रमण एवं समाधान" पर विमर्श

विश्व संवाद केंद्र, हिंदुस्तान समाचार तथा इंडियन मीडिया सेण्टर भोपाल ने आज उपरोक्त विषय पर एक कार्यशाला आयोजित की, जिसमे मुख्य अतिथि पूर्व मुख्य सचिव श्री कृपा शंकर शर्मा, तथा मुख्यवक्ता विश्वप्रसिद्ध मानवशास्त्री श्री विकास भट्ट थे. श्री विराग पाचपोर कार्यक्रम के अध्यक्ष तथा राष्ट्रीय एकता समिति के उपाध्यक्ष रमेश शर्मा विशिष्ट अतिथि थे.
नर्मदा लोकगाथाओं और वैज्ञानिक तथ्यों, दोनों से ही विश्व की प्राचीनतम नदी मानी गयी है. यही कारण है की इसके तट पर विश्व की प्राचीनतम सभ्यता विकसित हुई. जब विश्व की अनेक प्राचीन संस्कृतियों ने साम्राज्यवाद और अनेक अन्य आक्रमणों के आगे घुटने टेक दिए और पूर्णतः नाश्ता हो गयीं, विश्व नर्मदा की सभ्यता ने अपना अस्तित्व कायम रखा और स्वयं को हर युग में अभिव्यक्त करती रही. इस महान संस्कृति के संरक्षक नर्मदाक्षेत्र के वनवासी हैं जो युगों से अपनी आस्था का केंद्र अपनी नरबदा मैया, अपने संस्कारों, अपनी परम्पराओं और अपने देशज ज्ञान को मानते रहे हैं. वर्तमान युग में यह समाज की जिम्मेदारी है की वे वनवासी बंधुओं से पुनः सांस्कृतिक और सामाजिक सम्बन्ध प्रगाढ़ कर सदियों पुरानी अपनी संस्कृति, कलाओं और ज्ञान को ग्रहण करें तथा इनके संरक्षण हेतु उनके साथ कंधे से कन्धा मिलाकर खड़े हों. इसी विचार से इस विषय को विस्तार से आम लोगों तक पहुंचाने, नए युग में इस संस्कृति पर आसन्न नयी चुनौतियों को पहचानने, तथा उनका समाधानों पर चर्चा हेतु ये कार्यशाला आयोजित की गयी थी.
उदबोधन:
इस अवसर पर मुख्य अतिथि श्री कृपा शंकर शर्मा ने स्वयं को नर्मदा पुत्र बताते हुए इसके तट पर बसे लोगों का माँ नर्मदा के प्रति उनकी आस्थाओं के बारे मं बताया. उन्होए विश्वास व्यक्त किया की इस कार्यशाला से अनेक उपयोगी विचार निकल कर आयेंगे. मुख्यवक्ता श्री विकास भट्ट ने विस्तार से अमरकंटक से लेकर गुजरात तक नर्मदा तट पर बसे वनवासियों की आस्थाओं और उनसे जुडी परम्पराओं का वर्णन किया. उन्होंने ने इस बात पर भी प्रकाश डाला की किस प्रकार विदेशी आक्रमणकारियों ने वनवासियों को मुख्य से बाटने के हर संभव प्रयास किये, यहाँ तक की उन्हें 'आदिवासी' कह कर उनकी पहचान ही बदलने की कोशिश की. शिक्षाविद श्री संजय द्विवेदी ने नर्मदा तट पर नक्सालियों की समस्या पर प्रकाश डाला तो नर्मदा सहयता के विद्वान नरेन्द्र द्विवेदी ने अनेक नै चुनौतियों का वर्णन किया. कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे नागपुर के वरिष्ठ पत्रकार श्री विराग पाचपोर ने धर्मांतरण से उत्पन्न संकट और कम्यूनिस्ट, इस्लामी आतंकवाद, इसाई मिशनरियों तथा नाक्साल्वादियों के गठजोड़ पर गहरी चिंता जताई. बिनायक सेन की रिहाई के प्रयासों को भी उन्होंने देश के विरुद्ध एक षड़यंत्र बताया. कार्यक्रम में आभार प्रदर्शन श्री अनिल सौमित्र ने किया.

गुरुवार, 6 जनवरी 2011

नर्मदा सामाजिक कुंभ में सहयोग के लिये अपील पत्र

आदरणीय बन्धु/भगिनी,
सादर, नमस्कार।
आपको विदित ही होगा कि 10, 11 और 12 फरवरी, 2011 को मध्यप्रदेश के वनवासी बहुल जिला मंडला में नर्मदा सामाजिक कुंभ का आयोजन हो रहा है। यह आयोजन सभी दृष्टियों से विशाल और व्यापक है। अनुमान के मुताबिक लगभग 20 से 25 लाख लोगो के इस आयोजन में सभी नागरिक-ग्रामीण और गिरिजन की अपनी-अपनी कुछ न कुछ भूमिका होगी। जो उपस्थित होंगे वे भी और जो उपस्थित नहीं हो सकेंगे वे भी इस महायज्ञ में कुछ न कुछ योगदान देंगे।
सब का योगदान अपनी-अपनी क्षमता के आधार पर होगा। जानकारी के अनुसार आयोजन समिति नकद राशि के अलावा विभिन्न प्रकार की आवश्यक सामग्रियों का संकलन कर रही है। कोई नगद राशि देगा तो कोई दाल-चावल, गुड़-शक्कर से लेकर दीया-सलाई और अन्य उपयोग की वस्तुएं।
नर्मदा सामाजिक कुभ के दौरान स्पंदन संस्था भी अपनी उपस्थिति और भागीदारी दर्ज कराना चाहती है। लेकिन अकेले नहीं, आप सबके साथ। आप स्पंदन के माध्यम से भी अपनी भावनाएं, अपना स्नेह और सहयोग इस कुंभ में पहुंचा सकते हैं। निश्चित ही आप पुण्य के भागी बनेंगे। आपका सहयोग कई जरूरतमंदों के लिए मददगार सिद्ध होगा। इसके लिए आप भी स्पंदन मुहिम में शामिल होकर हमारे प्रयासों में हाथ बंटाइए।
कृपया आपके पास नए-पुराने, किसी भी साइज के, किसी भी प्रकार के कपड़े जो बच्चों, किशोरों और बुजुर्गों के उपयोग के लायक हों, हमें उपलब्ध कराइए, ताकि इसे जरूरतमंद वनवासी बन्धुओं के बीच वितरित किया जा सके। इसके आप हमें हमारे ई-मेल या दूरभाष/मोबाईल पर भी संपर्क कर सकते हैं। स्पंदन कार्यकर्ता संकलित वस्त्र आपसे प्राप्त कर लेंगे। आप चाहें तो निम्न पते पर इसे पहुंचा भी सकते हैं -
स्पन्दन, ई-31, 45 बंगले, भोपाल - 462003, मध्यप्रदेश
दूरभाष : 0755-2765472, 2765174, 09425008648
संपर्क हेतु अन्य सूत्र
श्री जी.के. छिब्बर - 09826012960, 2753294 श्रीमती कुंकुम गुप्ता -0755-2760400
श्रीमती दीपशिखा हर्ष – 09425018086 श्री एस.जी. हसन - 9406809422
श्री अंकुर शर्मा – 09926642199 श्री सुनील मीणा - 08109373211

आपके माध्यम से स्पंदन समूह समाज के लिए सहयोगी बनना चाहता है। आप हमारी सहायता करें, बड़ी कृपा होगी। हमारा आग्रह स्वीकार करें हमारी मुहिम में शामिल हों, स्पंदन समूह कृतार्थ होगा। कृपया इस सन्देश को आप अपने मित्रों, परिचितों और सगे-संबंधियों तक भी पहुंचाने मे हम सब की मदद किजिये।
सादर,
भवदीय
अनिल सौमित्र