किसी राष्ट्र की उन्नति व एकता के लिए वहां के निवासियांे में अपनी संस्कृति, मान्यताओं व धर्म के प्रति दृढ़ता व सामाजिक समरसता की महती भूमिका है। किसी राष्ट्र की संस्कृति व धर्म को क्षीण कर दिया जाये तो वह ज्यादा दिन तक सबल नहीं रह सकता। भारत एक धर्म प्रधान राष्ट्र है, प्रारम्भ से ही धर्म रुपी सूत्र ने समूचे राष्ट्र को एकरुप बँाध रखा है। विभिन्न बोली-भाड्ढा, खान-पान,रहन-सहन, स्थानीय लोक व्यवहार की भिन्नताआंे के बावजूद हिन्दू धर्म की सर्वव्यापकता ने एकात्मता के भाव को सर्वोपरि रखा तथा राष्ट्र की एकता को अक्षुण्ण रखा। स्वामी विवेकानंद ने भी कहा है - धर्म भारत का प्राण है।
प्राचीनकाल से ही कुंभ जैसे बड़े-बड़े धार्मिक स्वरुप लिये हुए वृहद् सामाजिक आयोजन देश की अखण्डता व एकात्मता को सुदृढ़ बनाने के माध्यम रहे हैं। इस अवसर पर सामाजिक व्यवस्थाओं, परम्पराओं के पुनर्मूल्यांकन व संषोधन की प्रक्रिया विद्वत मण्डली, ऋड्ढि-मुनियांे की उपस्थिति में चलती रहती थी। इस प्रकार के आयोजनों से वर्ग भेद को मिटाकर समाज में समरसता, उदारता, एकता और संगठन के सूत्र में पिरोने का कार्य सम्पन्न करने मार्ग निर्देषित किये जाते रहे हैं।
आगामी 10,11,व 12 फरवरी 2011 अर्थात् माघ षुक्ल, सप्तमी,अष्टमी व नवमी, विक्रम संवत् 2067 को माँ नर्मदा जयंती के अवसर पर ‘‘माँ नर्मदा सामाजिक कुंभ’’ का आयोजन प्राचीन महिष्मती नगरी (वर्तमान मण्डला ) में किया जा रहा है । इसके पूर्व सन् 2006 में गुजरात के डांग जिले में षबरी कुंभ का आयोजन सफलता पूर्वक सम्पन्न हो चुका है। उस समय सम्पूर्ण भारतवर्ड्ढ से पूज्य संतों के अह्वान पर बड़ी संख्या में आबाल - वृð, नर-नारी सम्मिलित हुये थे। उस समय संतो का यह निर्णय हुआ कि ऐसे सामाजिक कुंभांे का आयोजन पष्चिम से पूर्व की दिषा में बढ़ते हुए हो । उक्त आह्वान की श्रृंखला की कड़ी के रुप में ही इस आयोजन की रचना बनी है।
मंडला मध्यप्रदेष का एक ऐतिहासिक स्थल है जिसका सीधा सम्बंध रानी दुर्गावती की षैार्य गाथाओं से जुड़ा हुआ है। इसके अलावा गढ़ मण्डला हजारों वर्ड्ढों से वनवासी संस्कृति का पोड्ढक कंेद्र भी रहा है।धार्मिक दृष्टि से भी पुराणकालीन कृष्ण द्वयपायन वेदव्यास ने वेदों का संकलन एवं सरलीकरण तथा प्रख्यात् श्री नर्मदा पुराण की रचना यहीं की थी । ऐसे पावन स्थल पर ‘‘माँ नर्मदा सामाजिक कुंभ’’ का आयोजन होने जा रहा है। हम सब इस वास्तविकता से अवगत हैं कि गंगा, यमुना, सरस्वती, नर्मदा, क्षिप्रा, गोदावरी, कावेरी जैसी पावन नदियों के तट पर ही संपूर्ण विष्व को अपने ज्ञानसे आलोकित करने वाली सनातन संस्कृति ने जन्म लिया है। यहां आयोजित कुंभ के अवसरों पर देष के कोने-कोने से संत और प्रबुðजन एकत्र होकर काल,परिस्थिति का समग्र विष्लेड्ढण कर समाज का मार्गदर्षन करते रहे हेैंें। इस अवसर पर महामण्डलेष्वर स्वामी अखिलेष्वरानंद जी महाराज, मार्गदर्षक मा.मुकुंदराव पणषीकर एवं सचिव श्री राजेन्द्र प्रसाद जी आदि ने इस अवसर पर पत्रकारों से विषेड्ढ चर्चा की।
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